डॉ० लखनलाल पाल की आत्मकथा के अंश 'एक शोधार्थी का आत्मकथन' पर युवा आलोचक कुशराज की टिप्पणी
डॉ० लखनलाल पाल की आत्मकथा के अंश 'एक शोधार्थी का आत्मकथन' पर युवा आलोचक कुशराज की टिप्पणी
हिन्दी और बुंदेली के प्रतिष्ठित किसान कथाकार डॉ० लखनलाल पाल की आत्मकथा के अंश 'एक शोधार्थी का आत्मकथन' में भारतीय शोधार्थी के संघर्ष की कथा बड़ी बेबाकी से कही गई है। शोध-जीवन के दौरान कॉलेजों-विश्वविद्यालयों, अकादमिक जगत, साहित्य जगत के साथ ही समाज में शोधार्थी के साथ कभी जाति, कभी भाषा, कभी व्यवसाय और कभी वेशभूषा के आधार पर होने वाले अपमानों और सम्मानों को दिखाया गया है। इस आत्मकथ्य में शोधार्थी के आर्थिक और बौद्धिक शोषण को उदाहरण सहित प्रस्तुत किया गया है। छोटे-बड़े यानि टूटपुँजया-मठाधीश साहित्यकारों के घमण्ड की प्रवृत्ति पर तंज कसा गया है। शोध के दौरान शोधार्थी को साहस और ईमानदारी से काम करना चाहिए, यही लखनलाल पाल जी का इस आत्मकथ्य के माध्यम से आज के शोधार्थियों और भविष्य के शोधार्थियों को संदेश है।
आदरणीय पालसाब को अनोखी आत्मकथा हेतु भौत-भौत बधाई।
©️ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज'
(युवा आलोचक)
14/5/2025, झाँसी, अखंड बुंदेलखंड
साहित्य कुंज पत्रिका में प्रकाशित डॉ० लखनलाल पाल की आत्मकथा का अंश 'एक शोधार्थी का आत्मकथन' - https://m.sahityakunj.net//entries/view/ek-shodhaarthii-kaa-aatmakathan
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