प्रकृति से नाता जोड़ो - कुशराज Pirkiti Se Nata Jodo - Kushraj
विश्व पर्यावरण दिवस 2025 पर विशेष
प्रकृति से नाता जोड़ो
विज्ञान की दुनिया जिसे पृथ्वी कहती है और ब्रह्माण्ड में स्थित सौर परिवार का एक सदस्य ग्रह मानती है। जबकि हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा और सनातन धर्म की दुनिया पृथ्वी को धरती माता मानती है और हम हिन्दू धर्मावलंबी धरती माँ की विभिन्न पर्वों, त्योहारों और शुभ अवसरों पर पूजा-अर्चना करते हैं और सम्पूर्ण प्राणि जगत एवं मानव जाति की रक्षा, पोषण और समृद्धि हेतु प्रार्थना करते हैं। धरती माता का सच्चा रूप प्रकृति के स्वरूप में पाया जाता है, जो लोककल्याणकारी है। हमारे हिन्दू धर्मशास्त्रों में प्रकृति के प्रति श्रद्धा भाव रखते हुए कहा गया है -
प्रकृतिः सर्व भूतानां जीवनहेतुः साम्प्रतं,
अस्मिन जगति व्यापकः सर्वतः।
अर्थात प्रकृति सभी प्राणियों के जीवन का कारण है, जो इस दुनिया में हर जगह व्याप्त है।
धरती को माता के साथ देवी मानते हुए उसके शक्ति रूप को प्रणाम करने के अवधारणा की भारतीय ज्ञान परंपरा में प्रतिपादित की गई है -
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता।
नम: तस्यै नम: तस्यै नम: तस्यै नमो नमः।।
अर्थात हे देवी, जो सर्वव्यापी शक्ति के रूप में विराजमान हैं, मैं तुम्हें प्रणाम करता हूँ।
पिछली सदी में भूमण्डलीकरण की अवधारणा का पश्चिमी विश्व यानि यूरोप-अमेरिका में सूत्रपात होने से अखण्ड विश्व में उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण के दौर की शुरुआत हुई। इसे विमर्श की दुनिया में एलपीजी के नाम से पहचाना जाता है। उदारीकरण, निजीकरण एवं वैश्वीकरण यानी एलपीजी के चलते अखण्ड विश्व के हर देश में प्रकृति का दोहन शुरू हुआ। उद्योगों, कारखानों और खनन के लिए प्रकृति की आत्मा माने जाने वाले वनों को बेरहमी से काटा गया। वनवासी पशुओं - शेर, बाघ, चीता और पक्षियों - मोर, गौरैया, गिद्ध इत्यादि को उनके मूल यानी प्राकृतिक आवासों से विस्थापित किया गया। इसके साथ ही विकास के नाम पर दुनिया के मूलनिवासी आदिवासी यानी वनवासी जनता को जल-जंगल-जमीन से वंचित किया गया। वनवासी और किसान ही प्रकृति और धरती माता के सच्चे आराधक और भक्त हैं।
प्रकृति को पर्यावरण भी कहा जाता है। पर्यावरण के अभिन्न तत्त्व - जीव-जन्तु, वनस्पति, जल, वायु आदि के बीच जब अवांछनीय और हानिकारक पदार्थों की मात्रा बढ़ जाती है तब पर्यावरण प्रदूषण की वैश्विक समस्या गंभीर रूप से सामने आती है। आज 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस है। इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस की थीम है - प्लास्टिक प्रदूषण को हटाना। प्लास्टिक पर्यावरण के लिए सबसे खतरनाक वस्तु है। वर्तमान दौर में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति होगा, जो घर या बाहर प्लास्टिक का उपयोग नहीं करता होगा। प्लास्टिक ऐसा पदार्थ है जो सैकडों वर्षों तक समाप्त नहीं होता है, जिसके चलते पर्यावरण को इससे क्षति पहुँचती है। प्लास्टिक जमीन पर हो तो धरती जल को नहीं सोख पाती और यदि समुद्र में डाली जाए तो जलीयजीवों के लिए खतरा बन जाती है। ऐसी स्थिति में इस वर्ष की थीम प्लास्टिक के उपयोग को कम करने और प्लास्टिक प्रदूषण की रोकथाम के लिए रखी गई है।
आज इक्कीसवीं सदी में जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक तापन यानी ग्लोबल वार्मिंग बढ़ने से अपने शहर झाँसी, अखंड बुंदेलखंड का तापमान 22 अप्रैल 2025 को पृथ्वी दिवस पर 46 डिग्री सेल्सियस रहा है, जो इन जीव-जन्तुओं, वनस्पतियों और हम मानव-मानवियों के लिए हानिकारक और सोचनीय है।
ग्लोबल वार्मिंग पर नियंत्रण पाने हेतु हमें ज्यादा से ज्यादा पेड-पौधों को लगाना है, वनों को विकास के नाम पर कटने से रोकना है। ओजोन परत जो सूर्य से निष्कासित होने वाले हानिकारक विकिरणों से हम मानव-मानवियों की रक्षा करती है। उस ओजोन परत को एसी और फ्रिज से निकलने वाली सीएफसी यानी क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस क्षति पहुँचा रही है और आज ओजोन परत में छिद्र होने की बजह से कार्बनडाई ऑक्साइड की मात्रा वातावरण में असंतुलित से ग्लोबल वार्मिंग जैसी विकट समस्या खड़ी हो गयी है।
जलवायु परिवर्तन के खिलाफ स्वीडन निवासी युवा पर्यावरण कार्यकत्री ग्रेटा थनबर्ग वैश्विक आंदोलन चला रही है और प्रकृति एवं धरती की रक्षा हेतु सार्थक कदम उठा रही है। यदि हमें वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों के लिए स्वच्छ पर्यावरण बनाना है तो हमें प्रकृति से बनाता जोड़ना होगा। प्रकृति के साथ रहना होगा। प्रकृति के साथ चलना होगा। जलवायु परिवर्तन, वैश्विक तापन, पर्यावरण प्रदूषण और प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्ति पाने हेतु हम सबको इस नारे - 'प्रकृति से नाता जोड़ो' यानी 'कनेक्ट विद नेचर' के साथ जागरूक और पर्यावरण के प्रति सचेत होकर जीवन जीना होगा तभी हम सबका जीवन बच पाएगा और हमारी धरती माता भी। हमारी भारतीय ज्ञान परंपरा में कहा गया है -
अस्मिन् काले वयं पृथिव्याः रक्षां करिष्यामः।
अर्थात इस समय हम पृथ्वी की रक्षा करेंगे।
प्रकृति से नाता जोड़ो अवधारणा और पर्यावरण के महत्त्व को प्रतिपादित करती हुई हमारी बुंदेली कविता 'डाँग बचाओ' प्रस्तुत है -
डाँग बचाओ, डाँग बचाओ।
रूख लगाओ, रूख लगाओ।।
डाँग हुज्जे तबईं बरसा होए,
बरसा होए तबईं पानूँ होए।
पानूँ हुज्जे तबईं खेती होए,
खेती होए तबईं नाज होए।
नाज हुज्जे तबईं रोटी बनपे,
रोटी बनपे तबईं हमाई भूँक मिटपे।
भूँक मिटपे तबईं जीव बचपें,
जीव बचपें तोई जीबन बचपे।
जीबन बचपे तोई हम सब बचपें,
डाँग नईं बचपे तौ हम नईं बचपें।
ऐईसें...
डाँग बचाओ, डाँग बचाओ।
रूख लगाओ, रूख लगाओ।।
©️ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा ‘कुशराज’
(बुंदेली-बुंदेलखंड अधिकार कार्यकर्त्ता)
जरबौ गॉंव, झाँसी, अखंड बुंदेलखंड
मो० : 9569911051
ईमेल : kushraazjhansi@gmail.com
ब्लॉग - कुसराज की आबाज




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