बुंदेलखंड के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी : चुंटाप्रसाद - कुशराज
बुंदेलखंड के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी : चुंटाप्रसाद
बुंदेलखंड त्याग, शौर्य और बलिदान के क्षेत्र में प्राचीनकाल से ही विश्वविख्यात रहा है। झाँसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई ने जहाँ बुंदेलखंड से भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम - सन 1857 की क्रांति की शुरूआत की, तो वहीं झाँसी की रानी से प्रेरणा लेकर सन 1947 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बुंदेलखंड के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने अपनी अहम भूमिका निभाई। हमीरपुर जिला भी स्वतंत्रता संग्राम का गढ़ रहा है। यहाँ के अनेक वीर और साहसी स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने आजादी के आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। उन्हीं स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में से एक हैं त्यागमूर्ति श्री चुंटाप्रसाद।
चुंटाप्रसाद जी का जन्म सन 1909 ईस्वी में ग्राम पचखुरा बुजुर्ग, विकासखंड सुमेरपुर, जिला हमीरपुर, अखंड बुंदेलखंड के किसान परिवार में हुआ था। इनके पिता श्री भिखारी लाल थे। जिनकी छह संतानें थीं। पाँच पुत्र क्रमशः मंगली, दनकू, चुंटाप्रसाद, सुक्खा, शिवनाथ और एक पुत्री, जिसका नाम था टंटी। इनका ननिहाल टेढ़ा गॉंव जिला हमीरपुर में था। ये बचपन से ही मेधावी रहे। इन्होंने उच्च प्राथमिक विद्यालय कम्पोजिट पचखुरा बुजुर्ग, सुमेरपुर से सातवीं कक्षा तक शिक्षा अर्जित की। पढ़ाई पूरी करने के बाद इन्होंने घरेलू कामकाज और खेती-बाड़ी के काम के लिए इंग्लैंड में निर्मित हिन्द साईकिल खरीदी। इनकी पत्नी का नाम तिजिया था। इनकी चार संतानें जन्मीं, जिनमें तीन पुत्र क्रमशः गंगाचरण, रामगोपाल, रामप्रकाश और एक पुत्री, जिसका नाम था सियादुलारी।
अपनी युवावस्था से ही चुंटाप्रसाद जी स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। राठ तहसील के जराखर गॉंव में जब कांग्रेस की सभा को संबोधित करने के लिए पंडित जवाहरलाल नेहरू आए तब इन्होंने क्षेत्र के कांग्रेसियों और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों को संगठित किया। इस सभा में निश्चित किया गया कि अंग्रेजी शासन का बहिष्कार करने के लिए उनको काले झंडे दिखाए जाएँ। इस दौरान अंग्रेजों ने चेतावनी दी कि जिसको अपनी जान प्यारी हो, वो सामने से हट जाए। निर्भीक, साहसी, वीर सेनानी चुंटाप्रसाद भीड़ में सबसे आगे खड़े हो गए और अंग्रेजों की नीति का जमकर मुकाबला किया। ये मगरौठ के दीवान शत्रुघ्न सिंह से लड़ाई हेतु कारतूस लेते थे। इन्होंने असहयोग आंदोलन और अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रियता से भाग लिया और जेल गए। अंग्रेज सरकार द्वारा सन 1933 में इन्हें 6 माह की सजा सुनाकर फतेहपुर जेल में बंद कर दिया। इसके बाद जेल भरो आंदोलन में भी जेल गए। जेल से छूटने के बाद राजनीति और जनसेवा में सक्रिय हो गए और फिर पीआरडी होमगार्ड विभाग में नौकरी की। केंद्र सरकार और राज्य सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की पेंशन देकर और सम्मानित करके इनके आजादी के योगदान को सराहा। सन 1968-69 में नौकरी से सेवानिवृत्त होने के बाद उन्होंने समाजसेवा की। स्वतंत्रता के पच्चीसवें वर्ष में 15 अगस्त 1972 को तत्कालीन प्रधानमंत्री माननीया इंदिरा गाँधी ने स्वतंत्रता संग्राम में स्मरणीय योगदान हेतु उनको ताम्रपत्र से सम्मानित किया। समाज और देश की सेवा में जीवन समर्पित करने वाले स्वतंत्रता संग्राम सेनानी, त्यागमूर्ति चुंटाप्रसाद जी का 97 वर्ष की आयु में 16 सितंबर सन 2006 को लखनऊ के गोमतीनगर में उनके छोटे पुत्र डॉ० रामप्रकाश, जो स्वास्थ्य विभाग के निदेशक पद पर कार्यरत थे, उनके आवास पर स्वर्गवास हुआ।
आजादी के स्वर्णिम 75 वर्ष के उपलक्ष्य में यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी द्वारा आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम घोषित किया गया, जिसमें स्थानीय स्वतंत्रता सेनानियों को इतिहास और समाज में उचित स्थान देकर सम्मानित किया गया। आजादी का अमृत महोत्सव के अंतर्गत चुंटाप्रसाद जी की जन्मभूमि में स्थापित उच्च प्राथमिक विद्यालय में उनके नाम का शिलालेख स्थापित किया गया।
- किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज'
(इतिहासकार - सीसीआरटी, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार)







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