गाँवों में 14-15 वर्षीय किशोर-किशोरियों के प्रेम-प्रसंग और उनके प्रभाव - कुशराज
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साप्ताहिक स्तंभ : प्रेम की पाठशाला
आज से हम प्रेम की पाठशाला नामक साप्ताहिक स्तंभ में लेख-श्रृंखला शुरू कर रहे हैं। प्रेम की पाठशाला में हम हर मंगलवार को चर्चा करेंगे - 21वीं सदी के भारतीय समाज में चल रहे नातेदारी-संकट, रक्तसंबंध-प्रदूषण, सिनेमाई सांस्कृतिक आतंकवाद, स्त्री-पुरुष की मित्रता और किशोरावस्था, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था और वृद्धावस्था के प्रेम-प्रसंग और उनके प्रभावों के साथ ही पवित्र प्रेम-संबंधों की समाज में पुर्नस्थापना जैसे समसामयिक मुद्दों पर। आज की प्रेम की पाठशाला में पढ़िए, समकालीन भारतीय समाज में गाँवों के किशोर-किशोरियों के प्रेम-प्रसंग और उनके व्यक्तिगत, पारिवारिक, सामाजिक प्रभावों को।
लेख : गाँवों में 14-15 वर्षीय किशोर-किशोरियों के प्रेम-प्रसंग और उनके प्रभाव
- किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज'
(सहायक आचार्य - हिन्दी विभाग, डॉ० आर० पी० रिछारिया डिग्री कॉलेज, बरूआसागर, झाँसी, अखंड बुंदेलखंड)
सम्पर्क सूत्र : 9569911051, 8800171019
ईमेल : kushraazjhansi@gmail.com
ब्लॉग : कुसराज की आबाज
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समकालीन भारतीय समाज नातेदारी-संकट के भयानक दौर से गुजर रहा है। प्रेम-प्रसंगों के कारण नातेदारी में दरार आ रही है। नातेदारी में हम रक्त-संबंधी नातेदार, सगे-संबंधी, सामाजिक-धार्मिक संबंधी, रिश्तेदार, मित्र-मित्राणियों इत्यादि को सम्मिलित मानते हैं।
आज हम 21वीं सदी के भारत, विशेषकर अखंड बुंदेलखंड यानी मध्य भारत के गाँवों में 14-15 वर्षीय किशोर-किशोरियों के प्रेम-प्रसंग और उनके व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक प्रभावों पर चर्चा करने जा रहे हैं। आज के भारत में महानगर हों, नगर हों या फिर दूरदराज के गाँव, हर जगह संचार के साधनों ने अपना जाल फैला लिया है। संचार के साधनों की अति होने के कारण ही नातेदारी-संकट उत्पन्न हुआ है। संचार के साधनों में से स्मार्ट फोन ने सबसे ज्यादा नई पीढ़ी को अपनी चपेट में लिया है और नई पीढ़ी को स्मार्टफोनोफोबिया जैसी लाइलाज बीमारी का शिकार बना लिया है।
गाँवों के किशोर-किशोरियाँ अपने-अपने स्मार्टफोन में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों - यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, स्नैपचेट आदि पर प्रेम-प्रंसग वाली फिल्में, कहानियाँ, वीडियो, रील्स, पोस्ट देख रहे हैं और उनसे उत्प्रेरित होकर कच्ची उम्र में ही प्रेम-प्रसंग में पड़ रहे हैं।
गाँवों में 14-15 वर्षीय किशोर-किशोरियों के प्रेम-प्रसंगों और उनके प्रभावों को हम इन दो प्रकरणों के माध्यम से समझ सकते हैं -
प्रकरण 1 : दुबे ब्राह्मण लड़के और पाल किसान लड़की का प्रेम-प्रसंग -
निवाड़ी के किशुनपुरा गाँव के पुरोहित सुखलाल दुबे के 15 वर्षीय बेटे अजयनारायण दुबे और गड़रियाने के किसान हरिचन्द पाल की 14 वर्षीय बिटिया अंशिका पाल के बीच नदी किनारे मंदिर पर जवारे विसर्जन के दौरान हुई भेंट से प्रेम-प्रसंग की शुरुआत होती है। उनकी एक वर्ष तक फोन कॉल पर घण्टों बातचीत होती है। फिर एक दिन वे दोपहर में एक कच्चे घर में आपत्तिजनक स्थिति में पड़ोसी द्वारा पकड़े जाते हैं। अगले दिन पंचायत होती है और अंशिका की माँ पुरोहित पर बिटिया से विवाह करने का दबाव बनाती है लेकिन पुरोहित विवाह के अलावा किसी भी दंड का पालन करने को तैयार होते हैं। तब पंचों द्वारा फैसला सुनाया जाता है कि सुखलाल दुबे अपने बेटे के अक्षम्य अपराध हेतु चार लाख रुपए नगद दंड के रूप में दें और अजयनारायण अंशिका, उसके माता-पिता के पैर छूकर माँफी माँगे। इस प्रेम-प्रसंग के फलस्वरूप, सुखलाल दुबे को अपने यजमान हरिचंद पाल द्वारा भरी पंचायत में लज्जित होना पड़ता है। अजयनारायण को काशी कर्मकांड पढ़ने हेतु भेज दिया जाता है लेकिन अंशिका की पढ़ाई बंद कराके उसकी झाँसी के रजखेरा निवासी 22 वर्षीय युवा किसान धीरज पाल से सगाई कर दी जाती है।
प्रकरण 2 : बसोर दलित लड़की और राजपूत किसान लड़के का प्रेम-प्रसंग -
महोबा के विजयगढ़ गाँव के दलित संतू बसोर की 15 वर्षीय बेटी राधा वर्मा को लुधयाने के किसान रवेंद्र सिंह राजपूत के 14 वर्षीय बेटे समर सिंह राजपूत से इंस्टाग्राम पर हुई दोस्ती के 3 महीने बाद प्रेम हो गया। समर से प्रेम होने के बावजूद उसने अपने स्कूल के सहपाठी जीत साहू से भी दोस्ती कर ली और वो दोस्ती भी प्रेम में बदल गई। स्कूल के समय में राधा जीत से प्रेम-प्रसंग चलाती और घर आकर समर के साथ। 6 महीने बाद राधा और समर शारिरिक संबंध बनाते हैं और राधा को गर्भ ठहर जाता है, इसके 5 महीने बाद राधा के परिवारवालों को पता चलता है कि मेरी बिटिया गर्भवती है, तो फिर वो समर के घर आते हैं और थाने में रिपोर्ट लिखाने और राधा के साथ विवाह करने की धमकी देते हैं। तब समर के बाबूजी रवेंद्र सिंह पंचायत बुलाते हैं। पंच फैसला सुनाते हैं कि गर्भवती राधा से समर को हर हाल में विवाह करना ही है और संतू बसोर ससम्मान अपनी बिटिया का कन्यादान करेगा और दहेज भी देगा। राधा बसोर और समर सिंह राजपूत के प्रेम-प्रसंग के परिणामस्वरूप किसान रवेंद्र सिंह राजपूत को अपनी आन-बान-शान को एक तरफ रखते हुए दलित लड़की से अपने बेटे का विवाह करना पड़ा। सारे गाँव, इलाके और रिश्तेदारी में समर और रवेंद्र की बड़ी थू-थू हुई। विवाह के 4 महीने बाद राधा ने पुत्री को जन्म दिया, जिसका नाम रखा गया शालिनी सिंह वर्मा राजपूत। राधा एक बेटी की माँ बनने के बाद भी अपने स्कूल के प्रेमी जीत साहू से प्रेम-प्रसंग जारी रखती है और फिर विवाहेत्तर प्रेम-प्रसंग के चलते समर सिंह राधा से विवाह-विच्छेद कर लेता है और पंचायत संतू बसोर पर अपनी बेटी के अपराध हेतु गाँवभर की कन्याओं का भोज बड़ी माता मन्दिर पर कराने का फैसला सुनाती है।
उपर्युक्त दोनों प्रेम-प्रसंगों का विश्लेषण करने पर हम पाते हैं कि गाँवों में जातिवाद की जड़ें और ऊंच-नीच की खाई बहुत गहराई तक जमी हुई है। प्रेम-प्रसंगों के दौरान जातीय-संघर्ष छिड़ जाता है। यदि देश को जातिवाद और जातीय-संघर्ष जैसी समस्याओं और गाँवों के किशोर-किशोरियों और नई पीढ़ी को प्रेम-प्रसंगों से बचाना है तो सरकार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों - यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप, स्नैपचैट इत्यादि पर प्रचारित-प्रसारित सामग्री जैसे - प्रेम-प्रंसग वाली फिल्में, कहानियाँ, वीडियो, रील्स, पोस्ट्स आदि, जो नई पीढ़ी को कच्ची उम्र में ही प्रेम-प्रसंग हेतु उत्प्रेरित करती हैं, उनके प्रचार-प्रसार पर तत्काल प्रभाव से रोक लगानी चाहिए और यौन-शिक्षा को कक्षा सातवीं से अनिवार्य विषय के रूप में पढ़ाया जाना शुरू कर देना चाहिए। तभी भारत की नई पीढ़ी प्रेम-प्रसंगों के दुष्प्रभावों से बच सकेगी और भारतीय समाज नातेदारी-संकट से छुटकारा पा सकेगा।
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