जातिगत जनगणना और किसान - कुशराज Caste Census & Kisan - Kushraj

 लेख : जातिगत जनगणना और किसान


- किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज'

(सहायक आचार्य - हिन्दी विभाग, डॉ० आर० पी० रिछारिया डिग्री कॉलेज, बरूआसागर, झाँसी, अखंड बुंदेलखंड)

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यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी जी के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार का देश में जातिगत जनगणना कराने का निर्णय युगांतकारी कदम है। अब भारत में जातिगत जनगणना होने जा रही है। जातिगत जनगणना का सर्वाधिक लाभ हिन्दू धर्मावलंबी किसान वर्ग यानी पिछड़ी जातियों - कुशवाहा, यादव, पटेल, पाल, रायकवार, सेन, प्रजापति इत्यादि को मिलने वाला है।


जाति और धर्म का कॉलम सरकारी और गैर-सरकारी कागजी कार्यवाही में अनिवार्य रूप से लिखा जाना चाहिए क्योंकि ये हमारे इतिहास, संस्कृति और वर्तमान स्थिति को दर्शाता है। हमें अपनी जाति कुशवाहा, वर्ग किसान / पिछड़ा वर्ग / ओबीसी, धर्म - क्षत्रिय हिन्दू पर गर्व है और सबको अपनी जाति और धर्म पर गर्व होना चाहिए। किसी व्यक्ति की पारिवारिक स्थिति, सामाजिक प्रस्थिति, कौटुम्बिक संस्कृति और विशेष मातृभाषा का आंकलन करने हेतु जाति जरूरी है। भारतीय समाज और देश से जाति व्यवस्था कभी भी समाप्त नहीं होनी चाहिए। जाति व्यवस्था भारतीय समाज की रीढ़ की हड्डी है। 


जब जाति व्यवस्था के मूलभूत ढाँचे में कोई विकृति आती है तब पतनशील समाज के विशेष जातिगत समूह अपना वर्चस्ववादी अस्तित्व कायम करने के कोरे सपने देखने लगते हैं। पतनशील समाज के विशेष जातिगत समूह में माँस-मदिरा का सेवन करने के साथ ही चरित्रहीनता करने वाले पंडित / ब्राह्मण जातियों के पुरुष और स्त्रियाँ, झूठे वायदों के जरिए तथाकथित निम्न जातियों की स्त्रियों का बहुआयामी शोषण करने वाले तथाकथित उच्च जातियों के पुरुष और निम्न जातियों के पुरुषों से प्रेम-प्रसंग चलानी वाली स्त्रियाँ आती हैं। इसके साथ ही दलित जातियों के स्त्री-पुरुषों द्वारा किसान / क्षत्रिय जातियों के जातिगत नाम या उपनाम का अपने नाम के साथ उपयोग करने के साथ ही पंडित या किसान वर्ग के स्त्री-पुरुष के साथ प्रेम-प्रसंग चलाना और फिर वैवाहिक संबंध स्थापित करना भी पतनशील समाज के विशेष जातिगत समूह के अन्तर्गत आता है।


आजादी के 78 वर्ष बाद भी देश की बहुसंख्यक जनता - किसान / पिछड़ी जातियाँ सामाजिक, धार्मिक, आर्थिक, राजनैतिक,  शैक्षिक और सांस्कृतिक भेदभाव का दंश झेल रही हैं। पिछड़ी जातियों का मुख्य व्यवसाय कृषि या पशुपालन है, जो पूँजीवाद और बाजारवाद के चलते घाटे का सौदा साबित हो रहा है और किसान कर्ज की मार झेलते हुए आत्महत्या कर रहे हैं, जो देश के लिए बड़े दुःख की बात है। जब ब्राह्मणों के लड़का-लड़कियों की शिक्षा के लिए संस्कृत या वैदिक विद्यालय / संस्कृत महाविद्यालय / संस्कृत विश्वविद्यालय, सैनिकों के लड़का-लड़कियों की शिक्षा के लिए आर्मी स्कूल, दलितों के लड़का-लड़कियों की शिक्षा के लिए श्रेष्ठ आवासीय विद्यालय और निःशुल्क शिक्षा का संचालन हो सकता है तो फिर किसानों के लड़का-लड़कियों के लिए किसान विद्यालय / किसान महाविद्यालय / किसान विश्वविद्यालय क्यों संचालित नहीं हो सकते।  जब संस्कृत महाविद्यालयों / विश्वविद्यालयों में ब्राह्मण वर्ग का 90 प्रतिशत घोषित-अघोषित आरक्षण हो सकता है तो फिर कृषि महाविद्यालयों / विश्वविद्यालयों में किसान / पिछड़ा वर्ग के लिए प्रवेश और नियुक्तियों में 90 प्रतिशत आरक्षण क्यों नहीं हो सकता। जब ब्राह्मण कृषि कर सकते हैं तो फिर किसान पुरोहिताई क्यों नहीं कर सकते। 


21वीं सदी के भारतीय समाज भी में जातिगत और वर्गगत भेदभाव व्याप्त हैं। मनुवाद के पोषक ब्राह्मण तो कृषि और पुरोहिताई विशेषाधिकार के साथ कर रहे हैं लेकिन फुलेवादी क्षत्रिय किसान कृषि ही कर रहे हैं। हमारे किसानवाद के अनुसार - किसानों को भी पुरोहिताई करने का विशेषाधिकार मिलना चाहिए। जब ब्राह्मण, किसान आदि हिन्दू हैं तो दोनों को पुरोहिताई करने का अधिकार क्यों नहीं। जब ब्राह्मण बच्चों की शिक्षा के लिए संस्कृत महाविद्यालय / विश्वविद्यालय में 90 प्रतिशत आरक्षण है तो किसान बच्चों की शिक्षा के लिए कृषि महाविद्यालय में 90 प्रतिशत आरक्षण क्यों नहीं। जब देश में 65-70 प्रतिशत आबादी पिछड़ों / किसानों की है तो उन्हें 27 प्रतिशत आरक्षण ही क्यों? जैसे ब्राह्मणों की कई पीढ़ियाँ किसानी कर रहीं हैं वैसे ही पिछड़े / किसान समाज की नई पीढ़ी पुरोहिताई और पंडिताई करना चाहती है। हम घर, परिवार निर्माण से पहले समाजसुधार करना चाहते हैं क्योंकि घर-परिवार बनाने में तो 98 प्रतिशत लोग लगे हैं लेकिन 2 प्रतिशत ही समाजसुधार के कार्य में लगे हैं। समाजसुधार और किसानहित सर्वोपरि है हमारे लिए।


हम सरकार से माँग करते हैं कि भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार साथ ही अन्य राज्य सरकारें एक ऐसा कानून लागू करें, जिसमें हिन्दू धर्म के चारों वर्णों - ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र और चारों वर्गों - सामान्य वर्ग (ब्राह्मण-बनिया), अन्य पिछड़ा वर्ग (किसान), अनुसूचित जाति वर्ग (दलित), अनुसूचित जनजाति (वनवासी) के स्त्री-पुरुषों को हर संस्कृत विद्यालय / महाविद्यालय /  विश्वविद्यालय में शिक्षा प्राप्त करने और शिक्षक बनने, पुरोहिताई करने, श्रीमद्भागवत कथा वाचन, श्रीरामकथा वाचन, मंदिरों में पुजारी बनने का समान अधिकार मिले। इस नए कानून में ऐसा प्रावधान हो कि जो हिन्दू धर्म का अनुयायी 'अखिल भारतीय हिन्दू धर्म प्रचारक योग्यता परीक्षा' में सफल होगा, वही पुरोहित, कथावाचक, पुजारी इत्यादि बनकर धार्मिक क्षेत्र में व्यवसाय करने का अधिकारी होगा। जब पंडित, किसान, दलित और वनवासी सभी हिन्दू हैं तो फिर किसान, दलित और वनवासियों के पुजारी, कथावाचक बनने पर ब्राह्मणों और ब्राह्मणवादियों को ईर्ष्या-द्वैष क्यों? जब पंडित (ब्राह्मण) किसानी कर सकता है तो किसान (पिछड़ा) पंडिताई क्यों नहीं कर सकता। यदि पंडित अपनी सारी कृषि भूमि सरकार और किसानों को सुपुर्द करके किसानी करना छोड़ देंगे तो हम किसान भी पंडिताई करना छोड़ देंगे। यदि ऐसा नहीं हुआ तो हम किसानों को 'हिन्दू राष्ट्र भारत' में पृथक किसान राज्य 'किसान भारत' दिया जावे।


किसान / पिछड़ा वर्ग की प्रमुख जाति - कुशवाहा किसान की वर्तमान दशा और दिशा पर बुंदेलखंड के बैरवार गाँव, जतारा जिला टीकमगढ़ की निवासी युवा लेखिका, दिल्ली विश्वविद्यालय की स्नातक छात्रा आरती कुशवाहा ने अध्ययनपरक लेख 'आखिर क्यों रह जाती है बुंदेलखंड की कुशवाहा किसान बेटियों की शिक्षा अधूरी?' लिखा है। इस लेख में आरती कुशवाहा ने बुंदेलखंड के परिप्रेक्ष्य में कुशवाहा बेटियों की शिक्षा की स्थिति का गहन अध्ययन करके सार्थक विश्लेषण किया है। हम चाहते हैं कि सरकार आरती के लेख का संज्ञान लेते हुए कुशवाहा बेटियों की शिक्षा हेतु विशेष प्रावधान करे और कुशवाहा किसान कन्या विद्यालय / कुशवाहा किसान महिला महाविद्यालय / कुशवाहा किसान महिला विश्वविद्यालय की स्थापना करे।


हमें पूर्ण विश्वास है कि जातिगत जनगणना होने से बहुसंख्यक हिन्दू धर्मावलंबी किसान वर्ग का उत्थान होगा, किसान में भी किसानिनों यानी किसान महिलाओं और उनकी लड़कियों का शैक्षिक, आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक विकास होगा और विकसित भारत-विश्व गुरू भारत का लक्ष्य सार्थक हो सकेगा।

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