महान बुंदेलीसेवी थे डॉ० रामनारायण शर्मा - कुशराज

 महान बुंदेलीसेवी थे 

डॉ० रामनारायण शर्मा




सन 1933 में भसनेह गाँव, टहरौली जिला झाँसी, अखंड बुंदेलखंड में जन्मे और झाँसी निवासी बुंदेली भाषा के सुप्रसिद्ध साहित्यकार डॉ० रामनारायण शर्मा का 92 वर्ष की आयु में 14 अक्टूबर 2025 को दिल्ली में स्वर्गवास हो गया। उन्होनें ‘बुंदेली भाषा-साहित्य का इतिहास ’, ‘बुंदेली के कथाकार’, ‘बुंदेली वार्ता’, ‘जयराष्ट्र’, ‘पेज-तीन’, ‘बुंदेली कहानियाँ’ और ‘बुंदेली के रचनाकार’ इत्यादि बुंदेली के ग्रंथ रचकर बुंदेली को विश्व पटल पर स्थापित करने में अहम भूमिका निभायी। सन 2008 में साहित्य अकादमी, दिल्ली ने बुंदेली लेखन हेतु ‘साहित्य अकादमी भाषा सम्मान’ से सम्मानित किया। डॉ० रामनारायण शर्मा जी की बुंदेली सेवा को अखंड बुंदेलखंड सदा याद रखेगा। शर्मा जी से कई बार भेंट करके बुंदेली की दशा और दिशा पर चर्चा करने का सौभाग्य मिला है। हम बुंदेली सेवा के  उनके अधूरे सपनों को पूरा करने का संकल्प लेते हुए उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। 

    

‘21वीं सदी में बुंदेली’ नामक विषय पर केंद्रित डॉ० रामनारायण शर्मा का हमारे द्वारा 22 अप्रैल 2024 को लिया गया साक्षात्कार प्रस्तुत है -

प्रश्न 1 - शर्मा जी! 21वीं सदी में बुंदेली भाषा की कैसी स्थिति है ?

उत्तर - 21वीं सदी में बुंदेली भाषा की स्थिति उसके ऐतिहासिक और वर्तमान के अनुमानों को देखते हुए अच्छी कही जा सकती है। प्रसन्नता इस बात की है कि ऊर्जावान युवा लेखक बुंदेली भाषा और विकास में सन्नद्ध हो पुरातन को नवीन लेखन से जोड़ने को उद्यत हैं। इससे बुंदेली-साहित्य का भविष्य उज्ज्वल है।


प्रश्न 2 - बुंदेली भाषा के इतिहास, वर्तमान और भविष्य को लेकर आपका क्या मानना है ?

उत्तर - बुंदेली भाषा का इतिहास अतिप्राचीन है, जो भविष्य संहिता के इस श्लोक से प्रमाणित है - "चित्रकूटे गिरे रम्ये विन्ध्यवाणी विशारदः "

दार्शनिक ईश्वर कृष्ण के नाम में 'विन्ध्यवासिन' का उल्लेख है। इससे यह क्षेत्र 'विन्ध्येलखण्ड' अथवा 'बुन्देलखण्ड' नाम से विश्रुत रहा और यहाँ की भाषा 'विन्ध्येली' अर्थात 'बुन्देली' नाम से प्रमाणित हुई। इसका भाषाई गौरव पाणिनि के इस सूत्र - 'विन्मतोर्लुक' अर्थात विनामतु पश्च लुक स्यादिष्ठे यशे (पतंजलि महाभाष्य) से प्रमाणित है। जर्मन भाषाचार्य डॉ० आर० पिण्डल ने इसे 'संस्कृतात् प्राकृतः श्रेष्ठः' कहा है। इसकी झलक भरतमुनि के नाटकों के सूत्रधारों में प्रगट है। (बुन्देली भाषा और संस्कृति - कन्हैयालाल 'कलश')

इतनी प्राचीन भाषा को डॉ० ग्रियर्सन ने एक स्वतंत्र भाषा माना। किन्तु डॉ० धीरेंद्र वर्मा ने इसे ब्रजभाषा की उपभाषा माना। जिसे डॉ० श्यामसुंदर ने अमान्य करते हुए कहा कि ब्रजभाषा का सम्पूर्ण साहित्य ही ग्वालियरी बुन्देली का साहित्य है। और बुन्देली भाषा को पश्चिमी हिन्दी की बोली मानना भी अमान्य हो गया। इस प्रकार, बुन्देली भाषा का सौष्ठव जगनिक से लेकर विष्णुदास, केशवदास, पद्माकर, ईसुरी की रचनाओं में विनिर्दिष्ट है। इस विपुल साहित्य को संग्रहित कर विद्वानों ने साहित्य पटल पर प्रतिष्ठित कर इसके स्वर्णिम भविष्य के आधार निर्मित करने का काम किया है। 21वीं सदी में बुन्देली भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में सम्मिलित होने को उद्यत है।


प्रश्न 3 - बुंदेली भाषा और साहित्य के विकास हेतु क्या प्रयास किए जाने चाहिए ?

उत्तर - 21वीं सदी भाषाई प्रतिद्वंदिता का काल है। इसलिए ऐसी सर्जना की महती आवश्यकता है, जो भाषाई समुच्चय का प्रतिमान बने। इसमें शब्दभंडार, व्याकरण सम्मत आधारों को नवाचारों तथा युगीन संचेतनाओं से परिपुष्ट हो। बुन्देली में प्रभूत साहित्य रचनाएँ प्रणीत हों। जिसमें साहित्य की अन्यान्य नवीन विधाएँ प्रतिबिंबित हों।मेरे संज्ञान में बुन्देली भाषा और साहित्य के विकास में बुन्देली के रचनाकार पूर्णरूप से सजग और समर्पित हैं। इसमें साहित्य की नई विधाएँ - भूमिका, समीक्षा, समालोचना, लघुकथाएँ, नुक्कड़ नाटक और रिपोर्ताज आदि प्रणीत हो रहे हैं। जो समग्रता से बुन्देली भाषा-साहित्य के विकास को प्रतिफलित करते हैं। इसके अतिरिक्त अभिव्यंजना साहित्य, अनुवाद तथा डायरी लेखन की नवीन चेष्टाएँ विद्वानों द्वारा सृजित होने की परमावश्यकता है। आत्मकथाएँ भी इसके विकास के सोपान बनना चाहिए। बुन्देलखण्ड के विश्वविद्यालयों में बुन्देली भाषा को स्वतंत्र विषय के रूप में मान्यता मिले और बुन्देली पीठ की स्थापना से नवीन शोध के द्वार खुलेंगे। भाषा के प्रचार-प्रसार में नई तकनीक का प्रयोग और साहित्य विमर्श हो। बुन्देली भाषा का चैनल व सिनेमा का योगदान आज की माँग है।


प्रश्न 4 - बुंदेली भाषा को संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल होने से कौन-कौन से लाभ होंगे ?

उत्तर - संविधान की 8वीं अनुसूची में शामिल होने से राष्ट्रीय भाषा सूची में बुन्देली भाषा को मान्यता मिलेगी। जिससे इसको राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय पहचान मिलेगी। राष्ट्रीय व प्रादेशिक प्रशासनिक परीक्षाओं में बुन्देली को मान्यता मिलने से युवा - जनों को इन पदों पर पदासीन होने का लाभ मिलेगा और रोजी-रोटी के व्यापक क्षितिज निर्मित होंगे।


प्रश्न 5 - आप अपनी बुंदेली सेवा के बारे में विस्तार से बताइये ?

उत्तर - बुन्देली भाषा के समुच्चय विकास में अपने सृजन और अनुभूति में काव्यान्तर्गत - फुटकल काव्य, महाकाव्य (ईसुरी महाकाव्य) तथा गद्य में बुन्देली कहानियाँ (पुरस्कृत), बुन्देली भाषा-साहित्य का इतिहास, बुन्देली भाषा-कोश, बुन्देली के रचनाकार ग्रंथ, जिसमें आजतक के 560कवियों का विशाल संग्रह है। बुन्देली के कथाकार, बुन्देली वार्ता (गद्य) ग्रंथ, पेज तीन, बुन्देली आलेख व समाचार पत्रों के स्तम्भ लेख, डायरी - एक साहित्यकार की, जय राष्ट्र (प्रथम उपन्यास), ईसुरी काव्य-मीमांसा ग्रंथ आदि प्रणीत किए हैं। जिससे साहित्य अकादमी नई दिल्ली का भाषा सम्मान (2008), उ०प्र० हिन्दी संस्थान लखनऊ का नामित मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार (2004), बुन्देली विकास संस्थान बसारी छतरपुर का राव बहादुर सिंह स्मृति सम्मान (2004), वियोगी हरी सम्मान (2012), बुन्देली गौरव सम्मान, अखिल भारतीय हिन्दी परिषद इलाहाबाद का अभिनंदन व प्रशस्ति पत्र (2013), झाँसी के साहित्यकारों द्वारा साहित्यिक अभिनंदन व 'अक्षत चंदन' ग्रंथ भेंट (2006), म०प्र० भोपाल साहित्य अकादमी के 'ईसुरी पुरस्कार' चयन समिति में सदस्य रूप में मुझे 2014 में गौरव मिला। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा साहित्य सम्मेलन (2011), करैरा (म०प्र०) में 2 जून 2011 को आमंत्रित और लेख-वाचन। नए बुन्देली कवियों की खोज में आचार्य चतुर्भुज 'चतुरेश' (चतुरंगिनी), प्रथम बुन्देली कवि ठाकुर कवि, व्याकरणाचार्य बलराम शास्त्री (व्यक्तित्व व कृतित्व) को खोजकर संपादन किया। 




मेरे साहित्य पर लिखे शोध-प्रबंध -

(१) शोधार्थी - लोकेश नरवरे, शासकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय बैतूल (बरकतउल्ला विश्वविद्यालय, भोपाल, म०प्र०)

विषय - " रामनारायण शर्मा के साहित्य का अनुशीलन "

निर्देशक - डॉ० शोमना जैन

(२) शोधार्थी - ममता, शासकीय महाविद्यालय, कोलारस (जीवाजी विश्वविद्यालय, ग्वालियर, म० प्र०) 

विषय - " बुन्देली गद्य - संदर्भ डॉ० रामनारायण शर्मा का गद्य साहित्य "

निर्देशक - डॉ० लखनलाल खरे


पत्र - पत्रिकाओं में शताधिक आलेख प्रकाशित - (१) हिन्दी साहित्य सम्मेलन पत्रिका

(बुन्देलखण्ड के साहित्यकारों का बुन्देली साहित्य में अवदान) 

(२) अक्षरा पत्रिका, भोपाल (आलोचना)

(३) साक्षात्कार, भोपाल  

(४) भारती हिन्दी परिषद पत्रिका, इलाहाबाद

(५) अनुज्ञा बुक्स प्रकाशन, शाहदरा नई दिल्ली

(६) नमन, डॉ० श्यामा प्रसाद मुखर्जी शासकीय महाविद्यालय, फाफागढ़ इलाहाबाद

(७) बुंदेली बसंत, छतरपुर, म०प्र०

(८) बुंदेली अर्चन, दमोह, म०प्र० 

आकाशवाणी छतरपुर व झाँसी में बुन्देली आलेख प्रसारण एवं पंद्रह बुन्देली कहानियों का सी०डी० द्वारा प्रसारण।

स्थापना - बुन्देली साहित्य समिति झाँसी (2000ई०), बुन्देलखण्ड ग्रंथागार एवं अभिलेखागार झाँसी (2000ई०) जिसमें लगभग दो हजार दुर्लभ ग्रंथ व पांडुलिपियाँ संग्रहित हैं। बुन्देली साहित्य सम्मेलनों का झाँसी में आयोजन और बुन्देली : भाषा-साहित्य-संस्कृति पर विचार विमर्श। बुन्देली साहित्यकारों का सम्मान (2012)

पुस्तक संपादन - घासीराम व्यास न्यास, चतुरंगिनी आदि।

2001-02 से 'बुन्देली बानी' पत्रिका (वार्षिक) का बुन्देली साहित्य समिति द्वारा प्रकाशन। जिसके साहित्य, भाषा, संस्कृति के विशेष अंक प्रकाशित व संपादित किये शोधार्थियों का मार्गदर्शन। लगभग दो दर्जन साहित्य संस्थाओं से संबद्धता - अध्यक्ष : बुन्देलखण्ड शोध संस्थान, झाँसी (1982-83)।

कई पुस्तकों का प्रकाशन (1982-83)

संस्थापक सदस्य - नवांकुर, झाँसी।

संरक्षक - सरस्वती काव्य कला संगम, झाँसी।


साहित्य सृजन काल-सीमा में नहीं बंधता। अतएव गत शिवरात्रि 2024 को 90वर्ष पूरे किए हैं। लेकिन बुन्देली - पत्र साहित्य, अनुवाद आदि के सृजन करने को संकल्पित हूँ।



- किसान गिरजाशंकर कुशवाहा ‘कुशराज’

(बुंदेली-बुंदेलखंड अधिकार कार्यकर्ता)

   03 नवम्बर 2025,

जरबौगॉंव, झाँसी, अखंड बुंदेलखंड

मो० - 9569911051, 8800171019

ईमेल - kushraazjhansi@gmail.com

ब्लॉग - kushraaz.blogspot.com


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