बुन्देलखण्डी ज्ञान परंपरा की अनोखी प्रयोगशाला है बुन्देली विरासत दीर्घा - कुशराज
संपादकीय लेख
बुन्देलखण्डी ज्ञान परंपरा की
अनोखी प्रयोगशाला है
बुन्देली विरासत दीर्घा
बुन्देलखण्डी ज्ञान परंपरा में वेद, पुराण, रामायण से लेकर आल्हा, ईसुरी की फागें, राई, बधाई, कछियाई समेत बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय की अत्याधुनिक शिक्षा पद्धति आती है। बुन्देलखण्डी ज्ञान परंपरा के संरक्षण और विकास हेतु संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार ने फरवरी 2023 में बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय में बुन्देली विरासत दीर्घा / बुन्देली हेरिटेज गैलरी और सांस्कृतिक समिति / कल्चरल क्लब की स्थापना हेतु 20 लाख रूपए की धनराशि प्रदान की थी।
माननीय कुलपति प्रो० मुकेश पाण्डेय के संरक्षण और गुरूजी प्रो० पुनीत बिसारिया के निर्देशन में बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी के हिन्दी विभाग में शिक्षक-शिक्षिकाओं, स्नातक-परास्नातक के छात्र-छात्राओं, शोधार्थियों और पुरातन छात्रों के रचनात्मक योगदान, बाह्य सहयोगियों के विशेष योगदान और संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश सरकार के आर्थिक सहयोग से बुन्देली विरासत दीर्घा की स्थापना हुई है। बुन्देली विरासत दीर्घा अखण्ड बुन्देलखण्ड की समृद्ध विरासत की अनोखी झलक प्रस्तुत करती है। बुन्देली विरासत दीर्घा की टैगलाइन / नारा है - आओ निहारें बुंदेलखंड।
बुन्देली विरासत दीर्घा की स्थापना बुन्देली संस्कृति को जीवंत बनाए रखने हेतु की गई है क्योंकि बुन्देली संस्कृति विश्व की सबसे प्राचीनतम संस्कृतियों में से एक है। बुन्देली माटी की कालपी नगरी जिला जालौन में हिन्दूओं के आदिग्रंथ वेद रचे गए। महोबा में विश्व की सबसे प्रचलित लोकगाथा आल्हा की सर्जना हुई। झाँसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई ने झाँसी से 'मैं अपनी झाँसी नहीं दूँगी' का उद्घोष करके हर किसी को अपनी माटी, अपने राज्य, अपनी भाषा और अपनी संस्कृति की रक्षा के लिए कमर कसने को प्रेरित किया।
बुन्देली विरासत दीर्घा के निदेशक प्रो० पुनीत बिसारिया ने बताया कि यह दीर्घा बुन्देलखण्ड के समृद्ध इतिहास, उत्कृष्ट लोक साहित्य, समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय की उपलब्धियों को आम जनता तक पहुँचाने में अहम भूमिका निभाएगी।
इस दीर्घा में बुन्देलखण्ड की सांस्कृतिक धरोहर और बुन्देलखण्ड के महापुरुषों को संजोया गया है। इसके साथ ही भारत के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की दीपशिखा झाँसी की रानी - वीरांगना लक्ष्मीबाई के साथ आल्हा-ऊदल, वीरवर हरदौल, महर्षि वाल्मीकि, आचार्य केशवदास, गोस्वामी तुलसीदास, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त, वृन्दावनलाल वर्मा, लोककवि ईसुरी, हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचन्द की चित्र प्रदर्शनी और उनके इतिहास को प्रदर्शित किया गया है। इसके साथ ही इसमें बुन्देली लोक साहित्य, बुन्देली परिधान, बुन्देली चित्रकला, बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के गौरवशाली इतिहास और मेधावी पुरातन विद्यार्थियों की भी जानकारी भी प्रदर्शित की गई है।
बुन्देली विरासत दीर्घा में प्रदर्शित कलाकृतियाँ, मॉडल इत्यादि हिन्दी विभाग के स्नातक-परास्नातक छात्र-छात्राओं ने बनाए हैं। इन छात्र-छात्राओं की कला अद्भुत है। इसमें शिक्षक-शिक्षिकाओं, शोधार्थियों और पुरातन छात्रों ने रचनात्मक योगदान और बाह्य सहयोगियों के विशेष योगदान दिया है इसलिए बुन्देली विरासत दीर्घा बुन्देलखण्डी ज्ञान परंपरा की अनोखी प्रयोगशाला है।
12 नवम्बर 2025 को बुन्देली विरासत दीर्घा के लोगो यानी प्रतीक चिह्न का लोकार्पण समारोह आयोजित हुआ। जिसमें माननीय कुलपति प्रो० मुकेश पाण्डेय, कुलसचिव ज्ञानेन्द्र कुमार और परीक्षा नियंत्रक राजबहादुर ने लोगो का लोकार्पण किया। समारोह को संबोधित करते हुए कुलपति प्रो० मुकेश पाण्डेय ने कहा - "राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के उद्देश्यों में विद्यार्थियों की रचनात्मक क्षमता को उभारना और उन्हें अपनी विरासत की खुशबू से जोड़ना भी शामिल है। हर्ष का विषय है कि दीर्घा के निदेशक, अधिष्ठाता कला संकाय एवं हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो० पुनीत बिसारिया के कुशल संयोजन में विद्यार्थियों ने अपनी रचनात्मक प्रतिभा को प्रस्तुत किया है, जिसका परिणाम बुन्देली विरासत दीर्घा में तैयार की गई कलाकृतियाँ, मूर्तियाँ, चित्र, म्यूरल और थ्री डी मॉडल हैं।"
इस ऐतिहासिक अवसर पर कुलसचिव ज्ञानेन्द्र कुमार ने कहा - "बुन्देली विरासत दीर्घा का भ्रमण करने से संपूर्ण बुन्देलखण्ड की झलक जीवंत हो जाती है। इसमें बनाए गए शिल्प बहुमूल्य हैं और विद्यार्थियों के कला कौशल का शानदार उदाहरण हैं।"
परीक्षा नियंत्रक राजबहादुर ने लोगो के सूत्रवाक्य 'भारतस्य हृदयस्थलम् बुन्देलखण्ड' की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हुए कहा कि बुन्देलखण्ड की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को एक स्थान पर संजोने का यह अभिनव प्रयास सराहनीय है। बुन्देली विरासत दीर्घा के लोगो की परिकल्पना और रचना पुरातन छात्र किसान गिरजाशंकर कुशवाहा ‘कुशराज’ और हंसराज वर्मा ने की। लोगो में इन्होंने बुन्देली विरासत की एक झलक दर्शायी है इसमें इन्होंने कलम-कृपाण-किसान की धरती बुन्देलखण्ड को दिखाते हुए उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के समस्त सात जिलों - झाँसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, महोबा, बाँदा, चित्रकूट आदि की एक-एक प्रतिनिधि सांस्कृतिक-ऐतिहासिक धरोहर को शामिल किया है। इसके साथ ही आधुनिक बुन्देलखण्ड की ज्ञान की राजधानी - बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय को चित्रित किया है और बुन्देलखण्ड भारत का केन्द्र है, यह दर्शाने हेतु पुराणों में वर्णित सूत्रवाक्य 'भारतस्य हृदयस्थलम्' को विशेष रूप से प्रदर्शित किया है।
कार्यक्रम संयोजक प्रो० पुनीत बिसारिया ने अपने उद्बोधन में कहा - "वर्ष 2024 में संस्कृति विभाग से सहयोग प्राप्त होने के उपरांत बुन्देली विरासत दीर्घा का निर्माण कार्य प्रारंभ किया गया। इसके प्रतीक चिह्न में उत्तर प्रदेश के बुन्देलखण्ड के सभी सात जनपदों की विशेषताओं को उकेरा गया है। उन्होंने आगे बताया कि इस दीर्घा में वीरांगना महारानी लक्ष्मीबाई की अश्वारूढ़ प्रतिमा, बुन्देलखण्ड की विभूतियों के म्यूरल, चित्र, मूर्तियाँ तथा अनेक सांस्कृतिक पर्वों, मन्दिरों, परम्पराओं और लोक देवताओं एवं विभूतियों के विवरण एवं इतिहास को जीवन किया गया है। शीघ्र ही बुन्देली विरासत दीर्घा का लोकार्पण कराया जाएगा।"
बुंदेली पुनर्जागरण आंदोलन के इस ऐतिहासिक अवसर पर डॉ० अनुपम व्यास, डॉ० नवीन चन्द पटेल, डॉ० अनिल बोहरे, गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज', शुभि यादव, हंसराज वर्मा, दीपक यादव, ऋतु राजपूत, पर्वत कुमार, नैन्सी सोनी, मोहिनी रायकवार 'माही' समेत अनेक विभागों के शिक्षक, शोधार्थी और छात्र- छात्राएँ उपस्थित रहे। डॉ० सुधा दीक्षित ने संचालन किया और डॉ० सुनीता वर्मा ने आभार व्यक्त किया।
बुन्देली विरासत दीर्घा का उद्घाटन विश्व में नारी सशक्तिकरण की अनोखी मिसाल, झाँसी की रानी - वीरांगना लक्ष्मीबाई की जयंती 19 नवम्बर 2025 को बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय, झाँसी के माननीय कुलपति प्रो० मुकेश पाण्डेय की अध्यक्षता, झाँसी-ललितपुर के माननीय सांसद डॉ० अनुराग शर्मा के मुख्य आतिथ्य, कुलसचिव ज्ञानेंद्र कुमार, परीक्षा नियंत्रक राजबहादुर और वित्त अधिकारी प्रमोद कुमार सिंह के विशिष्ट आतिथ्य और बुन्देली विरासत दीर्घा के निदेशक प्रो० पुनीत बिसारिया के संयोजन में हो रहा है। बुन्देली विरासत दीर्घा में छात्र- छात्राएँ, शोधार्थी, शिक्षक-शिक्षिकाएँ, साहित्यकार, संस्कृतिकर्मी और बुन्देलखण्डप्रेमी बुन्देलखण्ड को निहारने अवश्य आएँ क्योंकि बुन्देली विरासत दीर्घा बुन्देलखण्डी ज्ञान परंपरा की अनोखी प्रयोगशाला है।
।। बुंदेली मताई की जै ।।
।। जै जै बुंदेलखंड - जै जै बुंदेली।।
© किसान गिरजाशंकर कुशवाहा ‘कुशराज’
(बुन्देली-बुन्देलखण्ड अधिकार कार्यकर्ता)
15 नवम्बर 2025, झाँसी, अखण्ड बुन्देलखण्ड





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