खबर लहरिया बुन्देली अखबार : भारतीय महिला पत्रकारिता की अनोखी मिसाल -: कुशराज झाँसी

 खबर लहरिया बुन्देली अखबार : भारतीय महिला पत्रकारिता की अनोखी मिसाल -: कुशराज झाँसी 

Khabar Lahariya Bundeli Newspaper : Unique Example of Indian Women Journalism -: Kushraaz Jhansi



दुनिया में शौर्य, खेल, भाषा, साहित्य, कला और संस्कृति के क्षेत्र में अपनी अनोखी पहचान रखने वाले अखंड बुंदेलखंड ने अपनी अनोखी पत्रकारिता के कारण भी नई पहचान कायम की है। बुंदेलखंड की यह अनोखी पत्रकारिता दुनिया के सामने 'खबर लहरिया' के नाम से जानी - पहचानी जाती है।




                         फोटो साभार : गूगल


'खबर लहरिया' सन 2002 से लगातार बुंदेलखंड के चित्रकूट से ठेठ बुन्देली यानि बुंदेलखंडी भाषा में प्रकाशित होने वाला देश - दुनिया का ऐसा आंचलिक अखबार है, जो ग्रामीण महिलाओं के द्वारा निकाला जाता है। 

21वीं सदी का ये भारत में प्रकाशित होने वाला बुंदेली भाषा का एकमात्र अखबार भी है। 

ये अखबार बुंदेलखंड इलाके की ग्रामीण गरीब, दलित, पिछड़ी, किसान, आदिवासी और कम पढ़ी - लिखी महिलाओं के द्वारा गैर सरकारी संगठन - निरंतर की मदद से प्रकाशित किया जाता है।



अखबार की अद्वितीय कामयाबी के मद्देनजर इसे सन 2009 में यूनेस्को साक्षरता पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इस साल 2022 में खबर लहरिया ने अपने गौरवशाली प्रकाशन के 20 साल पूरे किए हैं।


वैश्विक पहचान का बुन्देली अखबार खबर लहरिया एक बार फिर से फरवरी 2022 में दुनिया की चर्चा में आ गया है क्योंकि इस पर बनी डॉक्यूमेंट्री फिल्म राइटिंग विद फायर (Writing With Fire) को ऑस्कर पुरस्कारों के लिए मनोनीत किया गया है। राइटिंग विद फायर नाम की इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म को रिंटू थॉमस और सुष्मित घोष ने बनाया है। इसे सर्वश्रेष्ठ डॉक्यूमेंट्री फीचर के ऑस्कर अवॉर्ड के लिए मनोनीत किया गया है। राइटिंग विद फायर की कहानी खबर लहरिया नामक अखबार के प्रिंट से डिजिटल तक के सफर, इस सफर में आने वाली परेशानी, प्रतिरोध, समाज और मीडिया के रिश्ते के इर्द-गिर्द घूमती है। इसके केंद्र में मीरा, सुनीता और श्यामकली हैं, जो खबर लहरिया से जुड़ी पत्रकार हैं। यह ऑस्कर के लिए मनोनीत होने वाली पहली भारतीय फीचर डॉक्यूमेंट्री भी है। 




राइटिंग विद फायर फिल्म पर खबर लहरिया की टीम ने अपना बयान दिया कि ऑस्कर जाने वाली कहानी से ज्यादा जटिल हमारी कहानी है।


28 मार्च 2022 को ऑस्कर से पहले एक लंबे ब्लॉग पोस्ट में खबर लहरिया ने कहा कि "डॉक्यूमेंट्री, जिसे टीम ने हाल ही में देखा। उनकी कहानी का सिर्फ एक हिस्सा है और आंशिक कहानियों में कभी-कभी पूरी तरह से विकृत करने का एक तरीका होता है। " उन्होंने यह भी कहा कि

"फिल्म काफी गतिशील और शक्तिशाली है। लेकिन इसमें खबर लहरिया का एक संगठन के रूप में रिपोर्टिंग पर फोकस करना गलत दिखाया गया है।"


टीम ने आगे कहा कि डॉक्यूमेंट्री में उनके पत्रकारिता मूल्यों को प्रदर्शित नहीं किया गया है, जिसने अंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोहों में धूम मचा दी है। उन्होंने अपने पोस्ट में आगे लिखा कि दलितों के नेतृत्व वाली उनकी टीम में मुस्लिम, ओबीसी और उच्च जाति की महिलाएं भी शामिल हैं, जो निष्पक्ष पत्रकारिता करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। यह सिर्फ "दिल को छू लेने वाली" सफलता की कहानी नहीं है।




फोटो साभार : गूगल



अपने इस लंबे से पोस्ट में खबर लहरिया ने यह निष्कर्ष निकाला कि टीम ने "अप्रत्याशित रूप से" फिल्म के जरिए पूरी दुनिया में अपनी पहचान बनाई है। ऐसे में हम उम्मीद करते है कि फिल्म में इस बात पर जोर दिया जाए कि ऐसा क्या है जिसने "महिलाओं के नेतृत्व वाले, इस स्वतंत्र ग्रामीण मीडिया समूह को संभव बनाया है। यह ऑस्कर जाने वाली कहानी से ज्यादा जटिल कहानी होगी। गौरतलब है कि फिल्म ने डॉक्यूमेंट्री (फीचर) श्रेणी में अकादमी पुरस्कारों के 94 वें संस्करण में अंतिम नामांकन सूची में स्थान हासिल किया।



पुरस्कृत फिल्मकार को राइटिंग विद फायर डॉक्यूमेंट्री को बनाने में पाँच साल लगे और इसे पहली बार सन 2021 में अमेरिका के प्रतिष्ठित सनडांस फिल्म फेस्टिवल में दिखाया गया था। यह सुष्मित घोष की पहली डॉक्यूमेंट्री फीचर फिल्म भी है।



खबर लहरिया में संपादन और समाचार संकलन का पूरा काम महिलाएँ करती हैं। अखबार बाँटने के काम में पुरुष हॉकर मदद करते हैं। ग्रामीण महिलाओं के इस अखबार में काम करने के लिए कम से कम आठवीं कक्षा पास होना जरूरी है 

लेकिन नवसाक्षर भी जुड़ सकते हैं।


खबर लहरिया अखबार में सभी तरह की खबरें होती हैं लेकिन पंचायत, महिला सशक्तीकरण, ग्रामीण विकास की खबरों को ज्यादा महत्त्व दिया जाता है। समाचार स्थानीय बुंदेली भाषा में और बड़े अक्षरों में छापे जाते हैं ताकि नवसाक्षर महिलाएँ और ग्रामीण लोग आसानी से पढ़ सकें। राजनीतिशास्त्र से मास्टर डिग्री ले चुकीं मीरा ने कहती हैं कि संवाददाता के रूप में गरीब महिलाओं के जुड़ने का उनके परिवार और समाज के लोग ही विरोध करते हैं। लेकिन अब यह कम हो गया है।


खबर लहरिया अखबार सन 2002 से चित्रकूट से और सन 2006 से बाँदा से स्वयंसेवी संस्था निरन्तर के द्वारा प्रकाशित हो रहा है। जिसकी लगभग 6 हजार प्रतियाँ छपती हैं और जिसे लगभग 30 हजार लोग पढ़ते हैं। इसका मूल्य दो रूपए प्रति अखबार है।



खबर लहरिया भारत का एकमात्र महिला - संचालित नैतिक और स्वतंत्र ग्रामीण समाचारों का ब्रांड है। आज यह कई डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए हर महीने 50 लाख लोगों तक पहुँचता है। इसका अखंड बुंदेलखंड यानी उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 16 जिलों में 25 महिला पत्रकारों का नेटवर्क है, जो एक हाइपरलोकल, वीडियो - फर्स्ट न्यूज चैनल चलाती हैं, मुख्य रूप से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के दूरदराज के इलाकों में दर्शकों के लिए समाचार प्रसारित करती हैं, जिन्हें 150 मिलियन से अधिक बार देखा गया है और 540,000 + YouTube ग्राहक हैं।


यह 2002 में ग्रामीण महिलाओं के लिए एक वयस्क साक्षरता कार्यक्रम के अंत में शुरू किया गया था और मीरा जाटव, शालिनी जोशी और कविता बुंदेलखंडी द्वारा सह-स्थापना की गई थी। कविता खबर लहरिया की वर्तमान प्रधान संपादक हैं। प्रारंभ में, यह सात महिलाओं के एक कर्मचारी के साथ शुरू हुआ, जिन्होंने बुंदेली और हिंदी भाषाओं में एक पाक्षिक समाचार पत्र लिखा और प्रकाशित किया। प्रकाशन में स्थानीय से लेकर वैश्विक समाचारों तक सब कुछ शामिल था, सभी को नारीवादी दृष्टिकोण से रिपोर्ट किया गया था।


बुंदेलखंड में अपनी जड़ों के साथ, अब हम खबर लहरिया ब्रांड का विस्तार करने के लिए काम कर रहे हैं, जो 20 वर्षों से उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और बिहार के विभिन्न जिलों में महिलाओं को मीडिया में लाने के लिए काम कर रहा है।


खबर लहरिया 2015 में पूरी तरह से डिजिटल हो गया, जिसे दिशा मलिक और शालिनी जोशी द्वारा स्थापित एक डिजिटल मीडिया सामाजिक उद्यम  चंबल मीडिया द्वारा स्थापित किया गया था।



जैसा कि खबर लहरिया अपनी वेबसाइट पर अपना परिचय देता हुआ कहता है - " खबर लहरिया देश का एकमात्र डिजिटल ग्रामीण मीडिया नेटवर्क है। खबर लहरिया एक शक्तिशाली स्थानीय प्रहरी और जमीनी जवाबदेही तय करने का मजबूत तंत्र बना है। इसकी पत्रकारिता उन मुद्दों पर है जो राष्ट्रीय और क्षेत्रीय मीडिया की चर्चा और ध्यान से बहुत दूर हैं। खबर लहरिया खासतौर पर सरकार की ग्रामीण विकास और सशक्तीकरण के लिए बनाई गई योजनाओं के दावों और उनकी हकीकत के बीच के अंतर को उजागर करता है। हमारी खबर, हमारी भाषा में – ये है खबर लहरिया की खासियत। "

 


हम कुशराज झाँसी - " बुन्देली अखबार खबर लहरिया को भारतीय महिला पत्रकारिता की अनोखी मिसाल मानते है। क्योंकि खबर लहरिया में ग्रामीण महिलाओं द्वारा अपनी भाषा में देश - दुनिया के उन मुद्दों और समस्याओं पर खबरें बनाई जाती हैं, जिनकी ओर मुख्यधारा की मीडिया कई कारणों से अपना रूख नहीं करती है। खबर लहरिया इस मायने में भी मिसाल है कि इसने बुन्देली जनता के द्वारा बुन्देली जनता की मातृभाषा बुन्देली में बुन्देली जनता के मुद्दों को देश - दुनिया तक पहुँचाया और नारी सशक्तिकरण का जीवंत उदाहरण पेश किया। "





                फोटो साभार : फेसबुक द्वारा खबर लहरिया


बीबीसी हिन्दी की खबर के अनुसार खबर लहरिया ये है - " गैर सरकारी संगठन निरंतर को यूनेस्को किंग सेजोंग लिट्रेसी सम्मान 2009 से सम्मानित किया गया है। ये सम्मान इसे अखबार खबर लहरिया के लिए मिला है। अखबार की खास बात ये है कि इसमें काम करने वाली सभी महिलाएँ हैं और वे दलित, आदिवासी और मुस्लिम वर्ग से आती हैं।"


" वर्ष 2002 में चित्रकूट में शुरू हुए आठ पन्ने के अखबार खबर लहरिया में महिला रिपोर्टर कहानी सुनाती हैं बदलते समाज की, समाज में फैले भ्रष्टाचार की, पूरे नहीं हुए सरकारी वादों की, गरीबों की और महिलाओं की। " 


" 30 वर्षीय कविता चित्रकूट के कुंजनपुर्वा गाँव के एक मध्यमवर्गीय दलित परिवार से आती हैं। बचपन में उनकी पढ़ाई नहीं हुई। 12 वर्ष में उनकी शादी हो गई और चार वर्ष बाद उन्होंने एक गैर सरकारी संगठन की मदद से पढ़ाई शुरू की। उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि वो ‍जिंदगी में कभी पत्रकार बनेंगी। वर्ष 2002 में उन्होंने गैर सरकारी संगठन (NGO) - ' निरंतर ' की ओर से चित्रकूट शहर से शुरू किए गए बुंदेली अखबार 'खबर लहरिया' में पत्रकार के रूप में काम शुरू किया।" 


" जहाँ चाह वहाँ राह : वर्ष 2006 में अखबार बाँदा से भी छपना शुरू हो गया। कविता आज खबर लहरिया की बाँदा संपादक हैं। वे कहती हैं कि इस अखबार ने मेरी जिंदगी बदल दी है। मेरे पिताजी ने बचपन से मुझे पढ़ाया नहीं और कहा कि तुम पढ़कर क्या करोगी, तुम्हे कलेक्टर नहीं बनना है। मैनें छुप - छुप कर पढ़ाई की। "


" पहले था कि मैं किसी की बेटी हूँ या फिर किसी की पत्नी हूँ... आज मेरी खुद की पहचान है और लोग मुझे संपादक के तौर पर जानते हैं। यहाँ ये बताते चलें कि कविता ने पिछले वर्ष ही स्नातक की परीक्षा पास की यानी जहाँ चाह, वहाँ राह। "


" चित्रकूट से खबर लहरिया की करीब ढाई हजार प्रतियाँ छपती हैं और बाँदा से करीब दो हजार। आँकड़ों के मुताबिक गाँवों में रहने वाले 20000 से ज्यादा लोग इस अखबार को पढ़ते हैं। " 


" चित्रकूट और बाँदा डकैतों के दबदबे वाले क्षेत्र हैं और कविता कहती हैं कि ऐसे इलाकों में दलित, आदिवासी और अल्पसंख्यक वर्ग की महिलाओं के लिए एक पुरुष प्रधान व्यवसाय में काम करना आसान नहीं है। " 


" वे कहती हैं कि हम पर लोगों का काफी दबाव था कि महिलाएँ होकर हमारे खिलाफ छापती हैं। ज्यादातर लोग जो उच्च जाति के लोग थे, वो कहते थे कि आपके अखबार को बंद करवा देंगे। वो कहते थे कि बड़े अखबारों ने हमारे खिलाफ कुछ नहीं निकाला तो फिर आपकी हिम्मत कैसे हुई। शायद इन्हीं दबावों का नतीजा है कि अखबार में बायलाइन नहीं दी जाती। इससे ये पता नहीं चलता कि किसी खबर को किसने लिखा है। " 


" हिम्मत नहीं हारी : परेशानियों के बावजूद ये महिलाएँ डटकर खबर लिखती हैं - चाहे वो दलितों के साथ दुर्व्यवहार का मामला हो, खराब मूलभूत सुविधाएँ हों, नरेगा की जाँच पड़ताल हो, पंचायतों के काम करने के तरीके पर टिप्पणी हो, या फिर सूखे की मार से परेशान किसानों और आम आदमी की समस्या हो, सूखे की वजह से लोगों की पलायन की कहानी हो, या फिर बीमारी से परेशान लोगों के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी। "


" ये महिला पत्रकार हर मुश्किल का सामना कर दूर दराज के क्षेत्रों में जाती हैं, जहाँ बड़े-बड़े अखबारों के संवाददाता नहीं पहुँच पाते। उनके खबर लिखने का अंदाज भी काफी अलग होता है। साथ ही इनका कहना है कि वो अपने अखबार में नकारात्मक खबर ही नहीं, सकारात्मक खबरें भी छापती हैं। "


" गैर सरकारी संगठन निरंतर की शालिनी जोशी, जो अखबार की प्रकाशक भी हैं, कहती हैं कि जिस तरह ये महिलाएँ खबरें लाती हैं वो कई लोगों को अचंभे में डाल देती हैं। "


" उनका कहना है कि इन इलाकों में जाति आधारित हिंसा और महिलाओं पर होने वाली हिंसा बहुत है। ऐसी स्थिति में दूरदराज के गाँवों तक जाना, खबरें लेकर आना और अन्य पक्षों से बात करना और फिर उसे लिखना और उस पर टिप्पणी देना, ये इस टीम की खासियत है। अखबार के चित्रकूट संस्करण की संपादक मीरा बताती हैं कि शुरुआत में पुरुष पत्रकारों ने उन्हें पत्रकार मानने से ही इनकार कर दिया था। "


" वे कहती हैं कि पुरुष पत्रकार कहते थे कि आप कैसे खबर ला सकती हैं या फिर लिख सकती हैं, लेकिन हम अपने काम में लगे रहे। आज वही पत्रकार खबर लहरिया से खबरें लेकर अपने अखबारों में डालते हैं। और वो मानते भी हैं कि खबर लहरिया ही ऐसा अखबार है जहाँ गाँव स्तर तक महिलाएँ जाती हैं और खबरें लाती हैं और उनकी खबरें ठोस होती हैं। "


" चित्रकूट के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बीबीसी को बताया कि अखबार की पहुँच पूरे जिले में तो नहीं, हाँ कुछ पिछड़े इलाकों के गावों तक है और वहाँ तक अखबार अपनी बातों को पहुँचाने में सफ़ल रहता है। "


" बाँदा संपादक कविता अखबार की कुछ बड़ी कहनियों के बारे में बताती हैं। वो बताती हैं कि किस तरह चित्रकूट में एक कंपनी जब पहाड़ों पर खुदाई करने पहुँची तो उसकी मिट्टी किसानों के खेतों में जा रही थी और उससे किसान परेशान थे और हमने उस खबर को पहले पन्ने पर छापा। खबर छापने से वहाँ की खुदाई रुकी थी। "


" कविता कहती हैं कि वो इस अखबार के माध्यम से समाज में बदलाव लाना चाहती हैं। वहीं शालिनी जोशी बताती हैं कि खबर लहरिया अब बिहार में तीन जगहों सीतामढ़ी, गया और शिवहर से जल्दी ही अपनी शुरुआत करने वाला है। " 


लेखक राजेन्द्र अग्निहोत्री जी अपने लेख - बुन्देलखण्ड की पत्रकारिता की एक झलक में खबर लहरिया पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं - 

" ठेठ बुन्देली में छपने वाले खबर लहरिया अखबार का महत्त्व सिर्फ इसलिए नहीं है कि यह खांटी ग्रामीण और जुझारू औरतों का सामूहिक प्रयास है बल्कि मूक रूप से चल रहे इस आंदोलन को यूनेस्को ने पुरस्कृत कर दुनिया भर के सामने मिशाल पेश की है। सुदूर गाँवों की साक्षर, कम पढ़ी - लिखी और सूचना क्रांति की धमक को अब तक न महसूस कर पाने वाले ग्रामीण महिलाओं की यह पहल का उदाहरण भी है। संसद से लेकर सड़क तक इन दिनों बुन्देलखण्ड के विकास को लेकर चर्चा है। बुन्देलखण्ड के बुलन्द हौसले की उड़ान की सच्ची कहानी है खबर लहरिया। दलित, कोल और मुस्लिम महिलाओं की टीम द्वारा निकाले जा रहे स्थानीय बुन्देली भाषा के अखबार खबर लहरिया को यूनेस्को का किंग सेजोंग लिट्रेसी पुरूस्कार 2009 देने की घोषणा की गयी। इसके पहले चमेली देवी जैन अवार्ड इस अखबार की टीम को मिल चुका है। "




                            फोटो साभार : गूगल


– 23/12/2022 _ 10:50रात _ झाँसी



      शोध - आलेख -:


       कुशराज झाँसी


(बुंदेलखंडी युवा लेखक, सदस्य : बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति झाँसी, सामाजिक कार्यकर्त्ता)


मातृभाषा :- कछियाई - किसानी - बुंदेली (बुंदेलखंडी)

लेखन :- हिन्दी और बुन्देली में शोध, लेख, कविता, कहानी, डायरी इत्यादि।

शिक्षा :- दिल्ली विश्वविद्यालय से बी०ए० हिन्दी ऑनर्स, बुंदेलखंड कॉलेज झाँसी से कानून स्नातक एवं एम० ए० हिन्दी।

प्रकाशित पुस्तक :- पंचायत (हिन्दी कहानी एवं कविता संग्रह) 2022

ईमेल :- kushraazjhansi@gmail.com

सम्पर्क :- 8800171019, 9569911051

पता - नन्नाघर, जरबौ गॉंव, बरूआसागर, झाँसी (बुंदेलखंड) – 284201




                         कुशराज झाँसी की फोटो 



सन्दर्भ : 

1. खबर लहरिया 

https://khabarlahariya.org/


2. बीबीसी हिन्दी

https://m-hindi.webdunia.com/article/bbc-hindi-news/%E0%A4%96%E0%A4%AC%E0%A4%B0-%E0%A4%B2%E0%A4%B9%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE-%E0%A4%95%E0%A5%87-%E0%A4%B2%E0%A4%BF%E0%A4%8F-%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A5%87%E0%A4%B8%E0%A5%8D%E0%A4%95%E0%A5%8B-%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AE%E0%A4%BE%E0%A4%A8-109080700155_1.htm?amp=1


3. यूनेस्को

https://uil-unesco-org.translate.goog/case-study/effective-practices-database-litbase-0/khabar-lahariya-news-waves-india?_x_tr_sl=en&_x_tr_tl=hi&_x_tr_hl=hi&_x_tr_pto=tc,sc


4. हिंदुस्तान हिंदी अखबार

https://www.livehindustan.com/national/story-documentary-film-on-39-khabar-lahariya-39-nominated-for-oscar-5774578.html


5. अमर उजाला हिंदी अखबार

https://www.amarujala.com/photo-gallery/entertainment/bollywood/writing-with-fire-the-team-of-khabar-lahariya-reacts-on-the-film-writing-with-fire-said-our-story-is-more-complicated-than-the-story-going-to-the-oscars


6. राइटिंग विद फायर

https://youtu.be/uv51mXOvjJw


7. शतरंग टाइम्स ब्लॉग

https://www.shatrangtimes.page/2019/12/bundelakhand-kee-patrakaarita-VKSY8O.html?m=1



 


 



Comments