फाग / होली की भौत - भौत बधाई - कुशराज झाँसी
रंगो के त्यौहार फाग / होली की भौत - भौत बधाई 💐💐💐♥️💛💚
बुरा न मानो होरी है... सारे बैर भाव को भूलकर आकर प्रेम से लगे मिलो और होली पे रंगों, गुलाल, अबीर में सराबोर होकर जिंदगी में खुशियां लाओ। - कुशराज झाँसी
दैनिक भास्कर से साभार - : जिस होली के त्यौहार को सारी दुनिया बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है, उसकी शुरुआत रानी लक्ष्मीबाई के शहर झाँसी - बुंदेलखंड से हुई थी। सबसे पहली बार होलिका दहन झाँसीसी के प्राचीन नगर एरच में ही हुआ था। एरच में एक ऊंचे पहाड़ पर वह जगह आज भी मौजूद है, जहां होलिका दहन हुआ था। इस नगर को भक्त प्रह्लाद की नगरी के नाम से जाना जाता है। झाँसी से एरच करीब 70 किलोमीटर दूर है।
भक्त प्रहलाद से जुड़ी है घटना -:
- पुराणों के आधार पर होली मनाए जाने के पीछे की घटना भक्त प्रहलाद से जुड़ी हुई है।
- सतयुग में हिरण्यकश्यप राक्षस का राज था। हिरण्यकश्यप का भारत में एक छत्र राज था।
- झांसी के एरच को हिरण्यकश्यप ने अपनी राजधानी बनाया। घोर तपस्या के बाद उसे ब्रह्मा से अमर होने का वरदान मिल गया। इससे वह अभिमानी हो गया।
- वह खुद को देवता मानने लगा और उसने प्रजा को अपनी पूजा कराने से मजबूर कर दिया, लेकिन हिरण्यकश्यप की यह बात उसके ही पुत्र भक्त प्रहलाद ने नहीं - मानी और उसकी पूजा करने से इनकार कर दिया।
- वह भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने लगा। इससे हिरण्यकश्यप क्षुब्ध हो गया। उसने प्रहलाद को मारने का मारने का षड़यंत्र रचना शुरू कर दिया।
हाथी से कुचलवाया
- हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को मारने की कोशिश की। उसने प्रहलाद को हाथी से कुचलवाया।
- उंचे पहाड़ से बेतवा नदी में धक्का दिया, लेकिन प्रहलाद बच गए। जहां प्रहलाद नदी में गिरे, वह जगह भी मौजूद है।
- कहा जाता है कि हिरण्यकश्यप ने भक्त प्रहलाद को जिस जगह बेतवा नदी में फेंका था, उस जगह पाताल जैसी गहराई है।
- आज तक उस जगह की गहराई की कोई थाह नहीं ले पाया है।
- यहां पहाड़ पर स्थित नर सिंह भगवान की गुफा में तपस्या करने वाले जागेश्वर महाराज बताते हैं कि कई प्रयास विफल होने के बाद हिरण्यकश्यप ने होलिका के साथ षड़यंत्र रचा।
- होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी। उसे वरदान था कि उसे अग्नि नहीं जला सकती। यह भी था कि जब होलिका अकेली अग्नि में प्रवेश करेगी, तभी अग्नि उसे नुकसान नहीं पहुंचायेगी।
- वहीं, हिरण्यकश्यप ने अपनी बहन होलिका से भक्त प्रहलाद को लेकर अग्नि में प्रवेश करने को कहा। वह अपने वरदान के बारे में भूल गई कि यदि किसी और के साथ जाएगी तो खुद ही जल जाएगी और हिरण्यकश्यप की बातों में आ गई।
प्रहलाद के बचने की खुशी में लगाया गया रंग -:
- एरच के ग्राम ढिकौली से बने उंचे पहाड़ पर अग्नि जलाई गई। होलिका भक्त प्रहलाद को लेकर इसी अग्नि में प्रवेश कर गई।
- चूंकि, होलिका को वरदान था कि वह अकेली जाएगी, तभी बचेगी। फिर भी वह भक्त प्रहलाद को लेकर आग में कूद गई।
- इससे वह उस आग में जलकर खाक हो गई, जबकि भगवान विष्णु ने भक्त प्रहलाद को अग्नि से बचा लिया। आसपास क्षेत्र में भीषण आग फैल गई।
- इससे बौखलाए हिरण्यकश्यप ने अपने पुत्र भक्त प्रहलाद को झांसी के एरच में स्थित इसी पहाड़ जहां उसकी बहन होलिका जली, पर एक अग्नि से तपे हुए खम्भे से बांध कर मारना चाहा।
- खडग से उस पर प्रहार किया। तभी भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध कर डाला।
- हिरण्यकश्यप के मरने से पहले ही होलिका के रूप में बुराई जल गई और अच्छाई के रूप में भक्त प्रहलाद बच गए।
- उसी दिन से होली को जलाने और भक्त प्रहलाद के बचने की खुशी में अगले दिन रंग गुलाल लगाए जाने की शुरुआत हो गई।
यह कहते हैं जानकार -:
- इतिहास के जानकार हरिओम दुबे बताते हैं कि एरच को भक्त प्रहलाद की नगरी के रूप में ही जाना जाता है।
- उनके पास सिक्कों के संग्रह में से एक दुर्लभ सिक्का भी है, जिसमें एरच का नाम ब्रहम लिपि में एरिकच्छ लिखा है और नृत्य करती हुई मोर बनी हुई है।
- दतिया जिले में प्राप्त अशोक के शिलालेख में लिखी लिपि का तरीका एक जैसा है। इससे प्रतीत होता है कि भक्त प्रहलाद की नगरी में यह सिक्का में लगभग 2300 साल पहले चलता था।
बदहाल हालत में यह स्थान - :
- धार्मिक महत्व होने के बाद भी यह स्थान बदहाल हालत में है।
- राज्य सरकार ने इस स्थान को विकसित करने और धार्मिक महत्व के स्थानों को विकसित करने के लिये पैकेज दिया है।
- पुरातत्व विभाग के पुरातत्व अधिकारी एसके दुबे का कहना है कि मान्यता है कि होली की शुरुआत यहीं से हुई थी। इस लिहाज से यह स्थान बेहद महत्वपूर्ण है।
बुंदेलखंड के विश्वविख्यात लोक साहित्यकार महाकवि ईसुरी की होली पर फागें...
१.
मोहन भर पिचकारी खींचें!
मारें जाँग दुबीचें!
लगतन धार लौट गई सारी गई तिन्नी के नीचे॥
हात लगाय भुअन के भीतर, चली गई दृग मीचें॥
तेइ पै स्याम पर गए पीछें, रंग गुलाल उलीचें॥
विन्द्रावन में भई ‘ईसुर’, रंग केसर की कीचें॥
२.
ऐसी पिचकारी की घालन!
कहाँ सीक लइ लालन!
कपड़ा भींज गए बड़ बड़ कें, जड़े हते जर तारन॥
अपुन फिरत भींजे सो भींजे, भिंजै फिरे ब्रजबालन॥
तिन्नी तरें छुअत छाती हौ, पीक लाग गई गालन॥
‘ईसुर’ आज मदन मोहन ने, कर डारी बेहालन॥
©️ गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी' / 'सतेंद सिंघ किसान'
(युवा बुंदेलखंडी लेखक, सामाजिक कार्यकर्त्ता, वकील)
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