Sunday 13 October 2024

विजयादशमी 12 अक्टूबर 2024 से प्रकाशित पोलिटिकल बाजार के नए स्तम्भ 'कवि और कविताएँ' पर कुशराज की टिप्पणी

विजयादशमी 12 अक्टूबर 2024 से प्रकाशित पोलिटिकल बाजार के नए स्तम्भ 'कवि और कविताएँ' पर कुशराज की टिप्पणी -

"पोलिटिकल बाजार के संपादक आदरणीय रामनाथ राजेश जी और साप्ताहिक स्तम्भ 'कवि और कविताएं' में चयनित चारों रचनाकारों को भौत-भौत बधाई। 

             ओमप्रकाश यती जी! आसान सब है जब हम अपने प्रति ईमानदार रहें। नेक आलोचक द्वारा बताईं गईं कमियों को दूर करें तब। मार्मिक गजल। 

          विश्वनाथ शिरढोणकर जी! आत्मा की जीवनयात्रा पर रहस्यवादी कविता।

             डॉ० रामशंकर भारती जी! यदि हमें अपने मन के रावण को मारना है तो द्वेष, दंभ, छल, पाखण्ड और झूठ को अपनी जीवनशैली से त्यागकर सच्चाई, सहयोग और सद्विचार को अपना होगा। समसामयिक समाज की वास्तविकता व्यक्त करती अद्भुत कविता।

              ऋचा धर जी! कलयुग को यदि हमें सतयुग जैसा बनाना है तो छलछन्दों का परित्याग करना होगा और राम जैसी मर्यादा और सीता जैसी चारित्रिक पवित्रता बनाए रखनी होगी। ऐतिहासिक कविता।"


©️ किसानवादी कुशराज

12/10/2024, झाँसी


12 अक्टूबर 2024 को प्रकाशित पोलिटिकल बाजार के नए स्तम्भ 'कवि और कविताएँ' को आप यहाँ पढ़ सकते हैं 👇

https://politicalbazaar.com/poets-and-poems-read-poems-by-om-prakash-yati-vishwanath-shirdhonkar-and-others/

Saturday 12 October 2024

कविता : मैं नहीं, वो ही जानते हैं - कुशराज

 कविता : " मैं नहीं, वो ही जानते हैं "


 साभार : नई दुनिया


कृष का गवाह है अखबार वाला।

जो मिला था गली में उस भोर,

जब कृष लौट रहा था सौदाकर।

तभी;

अचानक उसने राम - राम की।

कृष को याद आया -

मुझे इसकी धनराशि देना है।

उसकी,

जो मैंने पाँच - छः माह पहले अखबार लिए थे।

तुरंत; 

कृष ने उसकी धनराशि दे दी।

तब अखबारवाला बोला -

भई! आप बड़े नेक इंसान हो।

जब भी आपको फोन किया,

तब - तब धनराशि दे देने को कहा।

लेकिन व्यस्तताओं की वजह से,

उस वक्त नहीँ दे पाए।

आज आपने बिन माँगे ही दे दी।

तभी,

कृष ने मनन किया।

मैंने जिसे भी धनराशि उधार दी,

उसने अभी तक भी न लौटाई।

क्यों?

क्योंकि;

मैं सीधा हूँ, सरल हूँ, डरता हूँ।

नहीँ,

इसलिए नहीँ।

फिर ,

वो धनराशि लौटाते नहीँ।

क्यों?

क्योंकि वो अपना फर्ज निभाना नहीं चाहते,

इंसानियत दिखाना नहीँ चाहते।

वो अपने को क्या समझते हैं?

मैं नहीँ जानता।

शायद वो ही जानते होंगे।

वो क्या हैं?

वो कैसे हैं?

उन्हें बदलना है या नहीँ,

वो ही जानते हैं।

वो ही जानते हैं।


©️ कुशराज

(जरबौगॉंव, झाँसी, अखंड बुंदेलखंड)

10/5/2018 _ 6:15भोर _ दिल्ली

कुशराज


प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ० लखनलाल पाल द्वारा 'साहित्य के आदित्य' व्हाट्सएप समूह में 12 अक्टूबर 2024 को रात 08:36 बजे की गई उल्लेखनीय टिप्पणी -

'मैं नहीं, वो ही जानते हैं' कुशराज जी की यह कविता उन लोगों की असलियत बताती है  जो रुपए पैसे ले तो लेते हैं पर लौटाते नहीं है। यह समाज की आम समस्या बन चुकी है। 

            समाज की ये विकृतियां आम आदमी की पूरी चैन को खराब कर देती हैं। एक आदमी दूसरे को वादा करता है कि वह उससे लेकर आपको पैसा दे देगा। तीसरा आदमी चौथे से यही वादा करता है। अब इसमें से एक ने भी वादाखिलाफी कर दी तो पूरी चैन टूट जाती है।

             इस तरह की आम समस्या को लेकर कुशराज ने जो रचना की है, यह उनकी मौलिक सोच को दिखाती है।  आजकल यह शिकायत रहती है कि विषय नहीं मिल रहा है किस पर रचना लिखें। सोच मौलिक है तो पग-पग पर विषय मिल जाएंगे। बस दृष्टि होनी चाहिए।

         कुशराज जी बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं।

Wednesday 9 October 2024

मातृभाषा में शिक्षा - कुशराज

लेख : मातृभाषा में शिक्षा


मातृभाषा सशक्त समाज और सशक्त राष्ट्र के निर्माण में अहम भूमिका निभाती है। सशक्त समाज और सशक्त राष्ट्र शिक्षित नागरिकों से ही बनता है और किसी राष्ट्र के सत प्रतिशत नागरिकों को शिक्षित और साक्षर बनाना मातृभाषा में शिक्षा देने से ही संभव है। हर क्षेत्र की अपनी-अपनी भाषा होती है, जिसे उस क्षेत्र की मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा कहते हैं। जैसे - अखंड बुंदेलखंड की मातृभाषा बुंदेली या बुंदेलखंडी है। मातृभाषा क्षेत्र विशेष की संस्कृति की संवाहिका भी होती है। क्षेत्र विशेष के लोगों का अपनी भाषा के प्रति अटूट प्रेम भी होता है क्योंकि उनकी भाषा उन लोगों को दुनिया में अनोखी पहचान दिलाती है। जब मातृभाषा में शिक्षा दी जाती है तो छात्र-छात्राएँ हर विषय चाहे वह साहित्य हो, विज्ञान हो या फिर समाजशास्त्र इत्यादि बहुत जल्दी सीख लेते हैं जबकि किसी विदेशी भाषा माध्यम में शिक्षा देने पर उन्हें वही समझ विकसित करने में सालों लग जाते हैं इसलिए मातृभाषा में शिक्षा प्राथमिक स्तर से उच्चतर स्तर तक होनी ही चाहिए। वर्ष 2020 में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक'  के नेतृत्त्व में राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 लागू हुई। जिसमें प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में और तकनीकी एवं चिकित्सा शिक्षा राष्ट्रभाषा हिन्दी माध्यम में देने का विशेष प्रावधान किया गया। जो भारत की अनेक मातृभाषाओं के विकास एवं संरक्षण के साथ ही भारत की भाषा-समस्या के समाधान और हिन्दी के राष्ट्रव्यापी प्रचार-प्रसार के लिए युगान्तकारी पहल है।



©️ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज'

(युवा लेखक - सामाजिक कार्यकर्त्ता)

05/09/2024, झाँसी



Monday 7 October 2024

आचार्य पुनीत बिसारिया के सिनेमा संबंधी साप्ताहिक स्तम्भ के लेख 'कैसा होगा भारतीय विशेषकर हिन्दी सिनेमा का भविष्य' पर कुशराज की टिप्पणी

पॉलिटिकल बाजार डॉट कॉम पर 06 अक्टूबर 2024 को प्रकाशित आचार्य पुनीत बिसारिया के सिनेमा संबंधी साप्ताहिक स्तम्भ के लेख 'कैसा होगा भारतीय विशेषकर हिन्दी सिनेमा का भविष्य' पर कुशराज की टिप्पणी -

"गुरूजी! आपने ठीक कहा है कि हिन्दी सिनेमा यानी बॉलीवुड में खानत्रयी के दिन लदने वाले हैं। इन खानत्रयी - सलमान खान, आमिर खान और शाहरुख खान के युग खत्म होना भी चाहिए क्योंकि इन्होंने भारतीय सिनेमा में सांस्कृतिक प्रदूषण का जहर घोला है। सिनेमा से सांस्कृतिक प्रदूषण को मिटाने हेतु और भारतीय संस्कृति की अस्मिता की रक्षा हेतु कम बजट की फिल्में जैसे - गुठली लड्डू, लापता लेडीज, लघु फिल्में और वेबसीरीज जैसे - पंचायत का बनना युगान्तकारी कदम है और सिनेमा में नए युग के शुरू होनी की आहट है। अब अपनी अभिनय की दम पर गैर बॉलीवुड स्टार पृष्ठभूमि के अभिनेता - अभिनेत्रियाँ अभिनय जगत में अपनी वैश्विक पहचान बना रहे हैं। सिनेमा जगत से भाई-भतीजावाद और वंशवाद के दीमक को खत्म होना ही चाहिए।

गुरूजी! भारतीय सिनेमा और हिन्दी सिनेमा के भविष्य को लेकर आपका चिंतन अनुकरणीय है।"

- कुशराज

(युवा समीक्षक)

6/10/2024, झाँसी


आप आचार्य पुनीत बिसारिया का लेख "कैसा होगा भारतीय विशेषकर हिन्दी सिनेमा का भविष्य" यहाँ पढ़ सकते हैं👇

https://politicalbazaar.com/what-will-be-the-future-of-indian-cinema-especially-hindi-cinema/



आचार्य पुनीत बिसारिया

डॉ० रामशंकर भारती की कविता 'बीज' पर कुशराज की टिप्पणी

आचार्य पुनीत बिसारिया द्वारा संचालित 'साहित्य के आदित्य' व्हाट्सएप समूह में 06 अक्टूबर 2024 को प्रसारित डॉ० रामशंकर भारती की कविता 'बीज' पर कुशराज की टिप्पणी -

"गुरूजी! रोशनी के बीजों का जीवित रहना बहुत जरूरी है क्योंकि आज के समय में अधिकतर अंधकार की जंगल खड़े हो गए हैं और वो ईर्ष्यावश होकर अच्छे लोगों के जीवन को क्षतिग्रस्त बनाने में लगे हुए हैं कभी आँधी से तो कभी दावानल से। इसलिए इस धरती पर कल्याणकारी जीवन बनाने हेतु और पुष्प जैसा खिला हुआ खुशहाल जीवन जीने हेतु रोशनी के बीजों को बोना जरूरी है और उनसे उगे वटवृक्षों की छत्रछाया में रहना जरूरी है।

गुरूजी! आपकी 'बीज' कविता समकालीन जीव-जगत की स्थिति और जीवन के दर्शन को प्रस्तुत करती है। " 

- कुशराज

(युवा आलोचक)

6/10/2024, झाँसी


डॉ० रामशंकर भारती की कविता -

 ' बीज '


फूल तोड़ना नहीं सीखा कभी

झर गए हैं जो बीज धरती पर 

बिखर गए हैं हवाओं में उड़कर

इधर-उधर बंजर-ऊसर 

रेगिस्तानों में

उठा लाता हूँ ढूँढ़कर

फिर बो देता हूँ बड़े सुकून से 

घर के पिछवाड़े पड़ी

सोंधी गंधवाली माटी में उन्हें

फूल बनने के लिए 

बीज फूलों के हों या रोशनी के

बीज गर जीवित रहेंगे तो

आते रहेंगे आलोकमयी 

सुवासित वसंत 

शुष्क और पथराए मन को 

जीवन-गंध देने ...।


© डॉ० रामशंकर भारती




विजयादशमी 12 अक्टूबर 2024 से प्रकाशित पोलिटिकल बाजार के नए स्तम्भ 'कवि और कविताएँ' पर कुशराज की टिप्पणी

विजयादशमी 12 अक्टूबर 2024 से प्रकाशित पोलिटिकल बाजार के नए स्तम्भ 'कवि और कविताएँ' पर कुशराज की टिप्पणी - "पोलिटिकल बाजार के सं...