मातृभाषा में शिक्षा - कुशराज

लेख : मातृभाषा में शिक्षा


मातृभाषा सशक्त समाज और सशक्त राष्ट्र के निर्माण में अहम भूमिका निभाती है। सशक्त समाज और सशक्त राष्ट्र शिक्षित नागरिकों से ही बनता है और किसी राष्ट्र के सत प्रतिशत नागरिकों को शिक्षित और साक्षर बनाना मातृभाषा में शिक्षा देने से ही संभव है। हर क्षेत्र की अपनी-अपनी भाषा होती है, जिसे उस क्षेत्र की मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा कहते हैं। जैसे - अखंड बुंदेलखंड की मातृभाषा बुंदेली या बुंदेलखंडी है। मातृभाषा क्षेत्र विशेष की संस्कृति की संवाहिका भी होती है। क्षेत्र विशेष के लोगों का अपनी भाषा के प्रति अटूट प्रेम भी होता है क्योंकि उनकी भाषा उन लोगों को दुनिया में अनोखी पहचान दिलाती है। जब मातृभाषा में शिक्षा दी जाती है तो छात्र-छात्राएँ हर विषय चाहे वह साहित्य हो, विज्ञान हो या फिर समाजशास्त्र इत्यादि बहुत जल्दी सीख लेते हैं जबकि किसी विदेशी भाषा माध्यम में शिक्षा देने पर उन्हें वही समझ विकसित करने में सालों लग जाते हैं इसलिए मातृभाषा में शिक्षा प्राथमिक स्तर से उच्चतर स्तर तक होनी ही चाहिए। वर्ष 2020 में माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल 'निशंक'  के नेतृत्त्व में राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 लागू हुई। जिसमें प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में और तकनीकी एवं चिकित्सा शिक्षा राष्ट्रभाषा हिन्दी माध्यम में देने का विशेष प्रावधान किया गया। जो भारत की अनेक मातृभाषाओं के विकास एवं संरक्षण के साथ ही भारत की भाषा-समस्या के समाधान और हिन्दी के राष्ट्रव्यापी प्रचार-प्रसार के लिए युगान्तकारी पहल है।



©️ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज'

(युवा लेखक - सामाजिक कार्यकर्त्ता)

05/09/2024, झाँसी



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