Monday, 30 December 2024

समाज की असलियत दिखाकर समाज में बदलाओ चाहती हैं हमारीं बदलाओकारी कहानियाँ - कुशराज झाँसी

  मनोगत  

समाज की असलियत दिखाकर समाज में बदलाओ चाहती हैं हमारीं बदलाओकारी कहानियाँ


धन्य हैं हम, जो हमने बुंदेलखंड में जनम लिया। ये वही बुंदेलखंड की माटी है, जो प्राचीन काल से ही साहित्य, कला, शौर्य और शिक्षा के क्षेत्र में सारी दुनिया में अपनी विजय पताका लहराती रही है। कालपी जिला जालौन में जहाँ महर्षि वेदव्यास ने चारों वेद, अट्ठारह पुराण समेत महाभारत की रचना की, तो वहीं चित्रकूट में आदिकवि वाल्मीकि ने रामायण लिखी। यहीं करीला, जिला अशोकनगर के वाल्मीकि आश्रम में सीता मैया ने लव-कुश को जन्म दिया। बाँदा में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना तो वहीं तुलसी के समकालीन आचार्य केशवदास ने ओरछा में रामचंद्रिका की रचना की।


पुराणों की कथा से ही भारतीय समाज का पहली बार कथा-साहित्य से साक्षात्कार हुआ। इन पुराणों में देवी-देवताओं, राजा-रानियों और राक्षस-राक्षसियों के जीवन पर आधारित कहानियाँ ही मुख्य रूप से मिलती हैं। इनमें आम जनमानस के जीवन की कहानियाँ नाममात्र की देखने को मिलती हैं। 


वाल्मीकि रामायण में जहाँ राम की कथा सुनाई गई है और रामकथा के साथ ही उत्तर काण्ड / लवकुश काण्ड में सीता और लव-कुश की कथा भी सुनाई गई है। लवकुश कांड का वह प्रसंग हमें सबसे ज्यादा प्रभावित किया - "हम वन के वासी सीता को न्याय दिलाने आए, हम माता को न्याय दिलाने आए.....।"


संसार की सबसे बडी लोकगाथाओं में शुमार जगनिक के 'आल्हा चरित' में भी महोबा के साहसी वीर योद्धा आल्हा-ऊदल की वीरता की कहानियाँ ही मुख्यतः मिलती हैं। 


प्रजा या जनता या आम जनमानस या राजपरिवार-शासक परिवार के इतर किसान-किसानिनों, मजदूर-मजदूरिनों, नौकर-नौकरानियों, आम युवा-युवतियों के जीवन की कहानियाँ हिन्दी साहित्य में उन्नीसवीं सदी की शुरूआत से ही मिलती है।


जनता को केंद्र में रखकर लिखा गया साहित्य ही 'असली साहित्य' है और असली साहित्य वही है, जिसकी प्रासंगिकता सदियों तक बनी रहे। साहित्य में जिस युगीन समस्या को उजागर किया गया है और उस समस्या के जो समाधान सुझाए गए हैं। उन पर समाज अमल करे। क्योंकि लेखक, कवि, साहित्यकार अपने युग का सच लिखता है। लेखक अपने लेखन में समाज का वो सच दिखाता है, जिस सच को राजनीति उजागर नहीं होने देती, उसे दबा देती है। लेखक, साहित्यकार, विचारक समाज का ऐसा डॉक्टर होता है, जो समाज की उस हर सामाजिक-राजनैतिक बीमारी का इलाज करता है, जो समाज को दूषित करती है।


जनता के जीवन पर लिखी गई पहली कहानी और गद्य साहित्य एवं हिन्दी की पहली कहानी बुंदेलखंड के दमोह निवासी माधवराव सप्रे द्वारा लिखित और सन 1901 में प्रकाशित कहानी 'एक टोकरी भर मिट्टी' है। इस कहानी में गरीब विधवा बुढ़िया की झोपड़ी को सामंतवादी जमींदार द्वारा हथिया लिया जाता है और फिर बुढ़िया वहीं पास में ही दूसरी जगह रहने लगती है। बुढ़िया की एक पाँच साल की पोती भी होती है। जब से जमींदार द्वारा झोपड़ी हथिया ली जाती है तब से पोती खाना/पीना छोड़ देती है और अपनी बुढ़िया दादी से जिद करती है कि अपने घर चल। वहीं रोटी खाऊँगी। तो फिर बुढ़िया जमींदार के पास आती है और उस झोपड़ी से एक टोकरी भर मिट्टी लेने के लिए विनती करती है तो जमींदार उसे एक टोकरी भर मिट्टी लेने के लिए हाँ कर देते हैं। बुढ़िया एक टोकरी भर मिट्टी भर लेती है और फिर उस टोकरी को अपने सिर पर रखवाने के लिए जमींदार से विनती करती है तो जमींदार टोकरी उठाने को तैयार हो जाता है लेकिन कई बार टोकरी उठाने की कोशिश करने के बाद जमींदार मिट्टी से भरी टोकरी को उठवाने में असफल रहता है। तब बुढ़िया कहती है - "महाराज! नाराज न हों, आपसे एक टोकरी भर मिट्टी नहीं उठाई जाती और इस झोपड़ी में तो हजारों टोकरियाँ मिट्टी पड़ी है। उसका भार आप जन्म-भर क्यों कर उठा सकेंगे? आप ही इस बात पर विचार कीजिए" बुढ़िया के ये वचन सुनकर धन के घमंड में पागल जमींदार की आँखें खुल गईं। उसका हृदय-परिवर्तन हो गया और वो अपने किए पर पछताया। जमींदार ने बुढ़िया से माफी माँगी और उसकी झोपड़ी वापिस कर दी।


एक सौ बाईस साल के सफर में हिन्दी कथा साहित्य ने कई करवटें लीं हैं। स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श की कहानी और जनवादी कहानी से होते हुए किसान विमर्श, पुरूष विमर्श, वेश्या विमर्श, किन्नर विमर्श, दिव्यांग विमर्श, पर्यावरण विमर्श, बाल विमर्श, युवा विमर्श, वृद्ध विमर्श, अल्पसंख्यक विमर्श, ओबीसी विमर्श, शिक्षा विमर्श, भाषा विमर्श, भिखारी विमर्श की कहानी और बदलाओकारी कहानी तक आ गई है.....


हमारा कहानी संग्रह 'घर से फरार जिंदगियाँ' बदलाओकारी कहानियों का संग्रह है। इसमें कुल ग्यारह हिन्दी कहानियाँ हैं। हमारी कहानियाँ हमारे द्वारा प्रतिपादित बदलाओकारी विचारधारा / कुशराजवाद के दर्शन के लक्ष्य को आधार बनाकर लिखी गईं हैं। हमारी विचारधारा किसान के सर्वांगीण विकास पर मुख्य रूप से केंद्रित है इसलिए इसे 'किसानवाद' के नाम से भी पुकारा जाता है। "सीता मैया बदलाओकारी विचारधारा की आदर्श हैं।" जैसे - संघी विचारधारा के आदर्श श्री राम हैं। 


हमारी कहानियों में समकालीन विमर्शों, अस्मितामूलक विमर्शों को भी लक्षित किया गया है। बदलाओकारी विचारधारा हमारी कहानियों का दार्शनिक आधार है, इसलिए हमारी कहानियों को बदलाओकारी कहानियाँ / किसानवादी कहानियाँ / कुशराजवादी कहानियाँ ही कहा जाए। 


यदि हम अपने कहानी लेखन की बात करें तो जन्म से लेकर आज तक, हमने अपने घर, परिवार, जरबो गॉंव और समाज में ग्रामीण जीवन, बरूआसागर में कस्बाई जीवन, झाँसी में बुंदेलखंड के महानगरीय जीवन और दिल्ली में विश्वस्तरीय पाश्चात्य संस्कृति के प्रभुत्व वाले महानगरीय जीवन में जो देखा, समाज की जो वास्तविकता देखी, वही हमारी कहानियों की कथावस्तु है। जब कहानी की घटनाएँ सच्ची हैं तो पात्र भी तो सच्चे ही होंगे।


हम लेखकों, विचारकों और सामाजिक कार्यकर्त्ताओं के लिए सारा समाज ही प्रयोगशाला है। इसलिए हमने अब तक समाज पर जितने प्रयोग किए। उन प्रयोगों की कार्यविधि सहित निष्कर्ष अपनी बदलाओकारी कहानियों में प्रस्तुत किए हैं। "हम कलम के किसान भी हैं क्योंकि हम कलम से विद्या की भूमि में मानव-मानवी, स्त्री-पुरूष की मानसिक भूख मिटाने के लिए विचारों के बीज बोते हैं। मेरी रचना कविता, कहानी आदि रोटी के समान है जो मानसिक भूख मिटाकर स्त्री-पुरुष को समाज से, व्यवस्था से, सरकार से लड़ने की शक्ति देती है.....।"


हमने बुंदेलखंड और दिल्ली को केन्द्र में रखकर कहानियाँ लिखीं हैं। हम बुंदेलखंड अंचल पर केंद्रित अपनी कहानियों को 'बुंदेलखंड विमर्श की कहानियाँ' कहते हैं। इन्हें हम 'देहाती दुनिया की कहानियाँ' भी कहते हैं।


बुंदेलखंड पर केंद्रित हमारी कहानियाँ भी दो प्रकार की हैं - देहाती बुंदेलखंड की कहानियाँ (ग्रामीण बुंदेलखंड की कहानियाँ) और शहरी बुंदेलखंड की कहानियाँ (महानगरीय बुंदेलखंड की कहानियाँ)।


देहाती बुंदेलखंड की कहानियाँ हैं - रीना, पंचायत, भूत, घर से फरार जिंदगियाँ, मजदूरी, प्रकृति, हिन्दी : भारत के माथे की बिंदी, अंतिम संस्कार।


शहरी बुंदेलखंड की कहानियाँ - पुलिस की रिश्वतखोरी, हिन्दी : भारत के माथे की बिंदी। 


हम दिल्ली पर केंद्रित अपनी कहानियों को 'दिल्ली की कहानियाँ' और 'महानगरीय कहानियाँ' कहते हैं। इन्हें हम 'शहरी दुनिया की कहानियाँ' भी कहते हैं।


दिल्ली की कहानियाँ हैं - सोनम : एक बहादुर लड़की, तीन लौण्डे, प्रकृति, अंतिम संस्कार। 


'रीना' हमारी पहली हिन्दी कहानी है। जो हमने 18 दिसंबर 2018 को लिखी थी। यह किसान विमर्श की कहानी है। बुंदेली किसान परिवार की कहानी है। किसानिन रीना और उसके पति किसान शिम्मू के जीवन-संघर्ष की कहानी है। इसमें बुन्देलखंड के गॉंववालों का जीवन, शिक्षा के प्रति समर्पण की भावना और 21वीं सदी के बुंदेलखंड की दशा और दिशा दिखाई गई है। नायिका रीना का फटी - पुरानी साड़ी पहनना और खपरैल घर में रहना, बुंदेलखंड की 90% स्त्रियों की गरीबों को सामने लाता है। इस कहानी में मुख्यरूप से ग्रामीण जीवन की समस्या, पेयजल की समस्या, ग्रामप्रधानों द्वारा गॉंव की जनता का शोषण, रिश्वतखोरी, दहेज प्रथा, घरेलू हिंसा की समस्या को उजागर किया गया है। रोजगार के लिए दिल्ली जैसे महानगरों में पलायन करना, बुंदेलखंड की पलायन की समस्या को दिखाता है। साहूकार नमेश सेठ द्वारा किसान का उत्पीड़न और कर्ज में डूबे किसान शिम्मू का फाँसी लगाकर खेत पर आत्महत्या करना हम सबको सोचने को मजबूर करता है। आखिर किस व्यवस्था के कारण किसान आत्महत्या कर रहा है या व्यवस्था उसकी हत्या कर रही है?


हमारी दूसरी कहानी है 'हवसी तुझे नहीं छोडूँगी'। जिसका दूसरा नाम 'सोनम : एक बहादुर लड़की' बकालत की साथी, प्यारी दोस्त 'अर्चना मिश्रा' के कहने पर रखा गया। यह  बदलाओकारी नारीवाद, कुशराजवादी स्त्री विमर्श और स्त्री विमर्श की कहानी है। इस कहानी में दिल्ली की कॉलेज लाइफ का बखूबी चित्रण हुआ है। नायिका सोनम और लड़कियों जैसा अपने प्रेमी से प्यार में धोखा खाती है तो फिर वो बदला लेती है। इस कहानी में स्त्रियों के यौन-शोषण की समस्या और उसका समाधान प्रस्तुत किया गया है। नायिका सोनम द्वारा स्त्री को भोग विलास की वस्तु समझने वाले, नशाखोर, विलासी, हवस के पुजारी अजय की चाकुओं से हत्या करना क्रांतिकारी कदम है। क्या स्त्री को अजय जैसे दरिंदे पुरूष को जान से मारना ठीक है? क्या पुरूषों की बराबरी करने के लिए स्त्री को पुरूष जैसा ही रबैया अपनाना चाहिए ? कहानी के मुख्य पात्रों सोनम, मेघा और कुश के द्वारा नारीवादी आंदोलन चलाना और अपने उद्देश्यों को पाने में सफल होना, 21वीं सदी की भारतीय स्त्री के सशक्तिकरण का प्रतीक है। स्त्री-पुरूष समानता के लिए 'कौश धर्म' की स्थापना समाज में धार्मिक - व्यवस्था में बदलाओ की निशानी है। 


तीसरी कहानी 'पंचायत' है। ये स्त्री विमर्श एवं पुरुष विमर्श, बदलाओकारी नरवाद की कहानी है। पंचायत कहानी में बुंदेलखंड के  प्रेम प्रसंगों और प्रेम प्रसंगों से उपजी समस्याओं को दिखाया गया है। पहला प्रेम प्रसंग शूरपुरा गाँव के ब्राह्मण लड़के सुनील तिवारी और शूद्र लड़की आयुषी चमार के बीच चलता है। सुनील आयुषी को एक दिन गॉंव से भगा ले जाता है और पंद्रह दिन बाद दोनों घर वापिस भी आ जाते हैं। आज भी गॉंवों में किसी दूसरी जाति के लड़का-लड़की के प्रेम प्रसंग को बड़ी बुरी नजर से देखा जाता है मनुवादी जातिवाद के कारण। आयुषी का बाप रमली चमार पंचायत बिठाता है और सुनील को उसकी बेटी भगा ले जाने के अपराध में सजा देना चाहता है। जबकि आयुषी और सुनील जाति - बंधन तोड़कर विवाह करना चाहते हैं लेकिन पैसों का लालची रमली सुनील के घर वालों से तीन रूपए भरी पंचायत में लेकर उसका अपराध माफ कर देता है। कुछ दिनों बाद आयुषी बिनब्याही माँ बन जाती है तो फिर उससे कोई विवाह नहीं करता। उसे आजीवन अविवाहित रहना पड़ता। आखिर आयुषी के पितृसत्तात्मक परिवार, सुनील के परिवार और समाज ने उसकी भावनाओं को क्यों नहीं समझा? दूसरा प्रेम प्रसंग वीरगंज कस्बे के शूद्र लड़के निमेंद्र बसोर और वैश्य लड़कियों स्नेहा और मालती सेठ के बीच चलता है। स्नेहा और मालती दोनों सगी बहनें हैं और निमेंद्र से प्रेम करतीं हैं। स्नेहा और मालती के बाप खेमू सेठ को प्रेमप्रसंग का पता चलता है तो वो शहर में पढ़ रहीं अपनी दोनों बेटियों को घर ले जाता है और उनकी पढ़ाई रोककर विवाह करा देता है। खेमू सेठ अपनी बेटियों के प्रेमी निमेंद्र बसोर की हत्या भी करा देता है। आखिर किस बजह से निमेंद्र की हत्या हुई? क्या निमेंद्र तथाकथित नीची जाति का था? क्या निमेंद्र को ऊँची जाति के उन लड़कियों से प्रेम करने का अधिकार नहीं जो उससे प्रेम करती हैं?


चौथी कहानी 'भूत' है। ये बुंदेलखंड के भूतिया किले की कहानी है। इस कहानी में प्रेत आत्माओं, भटकती आत्माओं, भूत-भूतनियों में समाज का विश्वास और  भूत-भूतनियों का समाज पर आतंक को उजागर किया गया है। हम पूरे दावे के साथ कहते हैं कि इस दुनिया में भूत-भुतनियाँ होते हैं। भूत -भुतनियों की भी दुनिया होती है। भूत-भुतनियों को तंत्र-मंत्र के द्वारा भस्म किया जा सकता है। भूत-भुतनियों के मनुष्यों को परेशान करने वाले कारनामों पर और समाज पर भूत-भुतनियों के बुरे प्रभावों पर तंत्र विद्या से रोक लगाई जा सकती है। क्या भूत-भुतनियों की दुनिया को मिटा देना चाहिए? भूत-भुतनियों की दुनिया को मिटा देने से समाज-व्यवस्था में कुछ बदलाओ आएगा? भूत-भुतनियाँ भगवान शिव के बाराती हैं तो भूत-भुतनियों की दुनिया को समाप्त करने की सोचना, क्या धार्मिक मान्यताओं का उल्लंघन होगा, शिव के उपासकों धार्मिक भावनाएं आहत होंगीं?


पाँचवी कहानी 'तीन लौण्डे' है। यह दिल्ली के विश्वविद्यालयीय जीवन की कहानी है। इस कहानी में दिल्ली की कॉलेज लाइफ का जीवंत चित्रण हुआ है। इसमें तीन मुख्य पात्र हैं - मेहू, रॉनी और निहाल। मेहू सिविल सेवा की तैयारी करने वाला गंभीर छात्र है और रॉनी और निहाल दोनों आवारा, नशाखोर, लड़कीबाज हैं। इन  तीन लौंडों के माध्यम से समाज की स्त्रियों, लड़कियों के प्रति सोच को उजागर किया गया है। साथ ही समाज के लिए वेश्याओं / रंडियों की जरूरत को दिखाया गया है और नशाखोरी, आवारागर्दी के नुकसान भी बताए गए हैं। क्या भारत के युवाओं को इन लौंडों जैसा जीवन जीना चाहिए या इन लौंडों जैसे साथियों से युवा-युवतियों को दूरी बनाकर सतर्क होकर जीवन जीना चाहिए?


छठी कहानी है 'घर से फरार जिंदगियाँ'। यह कहानी 21वीं सदी की युवा पीढ़ी, नई पीढ़ी के जीवन पर आधारित है। इसमें आज की पीढ़ी के किशोर-किशोरियों के प्रेमप्रसंगों और अंतरजातीय विवाहों का सजीव चित्रण हुआ है। आज की पढ़ी-लिखी पीढ़ी के जीवन का यथार्थपूर्ण चित्रण किया गया है और बुंदेलखंड में शिक्षा के प्रति जागरूकता को भी दिखाया गया है। साथ ही किशोर-किशोरियों और युवा-युवतियों के विवाह से पहले स्थापित यौन-संबंधों को भी उजागर किया गया है और पढ़े-लिखे युवा-युवतियों के प्रति समाज के दोहरे चरित्र को भी उजागर किया गया है। क्या अंतरजातीय विवाहों को बढ़ावा दिया जाना चाहिए या फिर अंतरजातीय विवाहों पर रोक लगानी चाहिए? क्या समाज को अपने दोहरे चरित्र में बदलाओ करना चाहिए?


सातवीं कहानी 'मजदूरी' है। बदलाओकारी नारीवाद, कुशराजवादी स्त्री विमर्श की कहानी है। इसमें बुंदेलखंड की मजदूरिन सिया के जीवन-संघर्ष को चित्रित किया गया है और उसके शराबी, जुआखोर, निक्कमे, परिवार के प्रति गैरजिम्मेदार पति रामचंद्र की हालातों को उजागर किया गया है। रामचंद्र का कैंसर और टीबी के इलाज में परिवार का सारा धन खर्च कराके और परिवार को कर्ज में डुबोकर मर जाना बड़ा त्रासदी भरा है। बुंदेलखंड के 90% परिवार नशाखोरी और जुआखोरी के कारण ही बर्बाद हैं। इस कहानी में सिया और रामचंद्र की बेटी संध्या का अपने पति के साथ मिलकर समाज-सुधार के लिए अभियान चलाना और शराबबंदी कराने एवं धूम्रपान और जुआ पर रोक लगाने में सफलता पाना बदलाओकारी है। संध्या का सशक्त अभियान चलाकर अशिक्षा के अंधकार को मिटाना युगांतकारी है। क्या सरकार और नागरिकों को बुंदेलखंड में शराबबंदी, धूम्रपान और जुआ पर पाबंदी लगाने के लिए कदम उठाने चाहिएक्या शिक्षा को बढ़ावा देकर और जागरूकता फैलाकर शराब, धूम्रपान और जुआ पर लगाम लगाई जा सकती है? क्या शराब, धूम्रपान और जुआ ही बुन्देलखंडी समाज के पतन के कारण हैं? क्या बुंदेलखंड के विकास के लिए शिक्षा ही एकमात्र उपाय है या अखंड बुंदेलखंड राज्य बनना जरूरी है?


आठवीं कहानी 'प्रकृति' है। जो पर्यावरण विमर्श और बाल विमर्श की कहानी है। इस कहानी में नौ साल की बेटी नित्या सिंह कुशवाहा का पर्यावरण-प्रेम और पर्यावरण संरक्षण हेतु आंदोलन चलाकर पर्यावरण प्रदूषण मिलाने वाले बलदाओकारी काम को दिखाया गया है और सारी दुनिया को पर्यावरण संरक्षण में सहयोगी बनना चाहिए, इस संदेश को आप सब तक पहुँचाने के उद्देश्य को लेकर कहानी लिखी गई है। एक ओर जरबो जैसे गाँव में प्रकृति की सुन्दर छटा बिखरी होना और प्रदूषण का नामोनिशान नहीं होना। दूसरी ओर दिल्ली में पर्यावरण प्रदूषण, वायु प्रदूषण की बजह से सांस लेने में परेशानी होना और दम घुटने से मौतें होना, बहुत चिंताजनक है। हम सबको पर्यावरण प्रदूषण को मिटाने के लिए वैश्विक आंदोलन चलाकर राजधानी दिल्ली और भारत के हर शहर और गाँव को प्रदूषण मुक्त बनाना चाहिए। क्या पर्यावरण प्रदूषण के लिए सिर्फ फैक्ट्रियाँ जिम्मेदार हैं या सरकार और जनता भी जिम्मेदार है?


नौवीं कहानी है 'पुलिस की रिश्वतखोरी'। ये कहानी 6 फरवरी 2023 को हमारे जीवन में पहली बार घटी रिश्वतखोरी की घटना पर आधारित है। उस दिन हम झाँसी से गुरसरांय अपनी बुआ की शादी में जा रहे थे। बकालत की साथी अर्चना मिश्रा को भी साथ में चलना था गरौठा तक, लेकिन वो अपने रिश्तेदारों से भेंट करने की बजह से बसस्टैंड थोड़ी देर से आई जबकि हम बसस्टैण्ड पहुँच गए थे तो हम साथी के इंतजार में वहाँ बने सरकारी शेल्टर होम में ठहरना चाहे, ये शेल्टर होम यात्रियों की सेवा में निःशुल्क चलाते जाते हैं। लेकिन जब हम शेल्टर होम में कर्मचारियों से बात करके ठहरने के लिए अंदर गए तो हमारी सुरक्षा में लगा पुलिसवाला बोला कि आप बीच रूपये देंगे हमें और ये बात किसी को बताएँगे भी नहीं, तभी ठहर सकते हैं आप। हमने बोला हमें आधा घंटे ही ठहरना है और हम बकील हैं तो बिना रिश्वत दिए काम नहीं चलेगा क्या? पुलिसवाला बोला यदि ठहरना चाहते हो तो बीस रुपए देने ही होंगे बरना आपकी मर्जी। हम पुलिसवाले को बीच रुपए देकर ठहर गए। जब हम जैसे बकील से भी पुलिस रिश्वत लेने में तनिक भी नहीं डरती है, तो आम जनता के साथ कैसा सलूक करती है पुलिस ये आप अंदाजा लगा सकते हैं?  क्या रिश्वतखोर पुलिस पर कानूनी कार्यवाही होनी चाहिए? क्या रिश्वतखोर पुलिस को कड़ी से कड़ी सजा आजीवन जेल या फाँसी मिलनी चाहिए? क्या देश के विकास में पुलिस सबसे बड़ी बाधा है?


दसवीं कहानी है 'हिन्दी : भारत माता के माथे की बिन्दी'। इस कहानी में वर्तमान भारत सरकार - मोदी सरकार और उत्तरप्रदेश राज्य सरकार - योगी सरकार द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के अंतर्गत हिन्दी को बढ़ावा देने पर देश में आए सकारात्मक बदलाओं को दिखाया गया है और सरकार की हिन्दी को बढ़ाना देने वाली नीतियों का समर्थन किया गया है। हिन्दी माध्यम में डॉक्टरी और इंजीनियरी की पढ़ाई होना युगांतकारी है, बदलाओकारी है, देश की 90% आबादी, किसानों और मजदूरों के जीवन में नई रोशनी लाने वाला है। अब किसानों और मजदूरों के लड़का और लड़की भी डॉक्टर - इंजीनियर बन सकते हैं क्योंकि अब उनकी राष्ट्रभाषा हिन्दी में पढ़ाई हो रही है। आखिर वो दिन कब आएँगे, जब हिन्दी को भारत की राष्ट्रभाषा कानूनी दर्जा मिलेगा? कब बुंदेली भाषा बुंदेलखंड में शिक्षा का माध्यम बनेगी? कब हिन्दी अपनी सहयोगी भाषा बुंदेली को साथ लेकर चलेगी? 


ग्यारहवीं और आखिरी कहानी है 'अंतिम संस्कार'। अंतिम संस्कार किसान विमर्श की कहानी है, कुशराजवादी स्त्री विमर्श की कहानी है। इस कहानी में किसान नेता और समाज सुधारक किसान महेन्द्र सिंह कुशवाहा उर्फ महिन्द कक्का के बलदेवपुरा गाँव के विकास में किए गए कार्यों की सराहना की गई है। महिन्द कक्का के निधन पर इकलौती बेटी बकील मेघना सिंह कुशवाहा यादव अपने पिता का अंतिम संस्कार करना चाहिए है तो मुनवादी ब्राह्मण उसे रोकनी की कोशिश करते हैं तो वो उनके पतनशील चरित्र को उजागर करते हुए ललकारकर कहती है - हम किसान भी हिन्दू हैं और तुम ब्राह्मण भी हिन्दू हो, तुम पुरूष भी मनुष्य हैं और स्त्रियाँ भी मनुष्य हैं तो हम सोलह संस्कार क्यों नहीं कर सकते, पिता का बेटी अंतिम संस्कार क्यों नहीं कर सकती। सारे पंच मेघना के हक में और ब्राह्मनों के विरोध में फैसला सुनाते हैं और फिर मेघना अपने पिता के अंतिम संस्कार के साथ मनुवादी स्त्री-विरोधी परम्पराओं का भी अंतिम संस्कार कर देती है। इसमें हिन्दू किसान पूजारी बनने का अधिकार माँगते हैं और हिन्दू ब्राह्मणों को खेती का अधिकार छोड़ने को कहते हैं। मेघना दिल्ली में बदलाओकारी नारीवाद आंदोलन का नेतृत्त्व करके स्त्रियों के लिए शासन, प्रशासन और न्याय व्यवस्था में 50% सीटें आरक्षित करने की माँग करती है। जो आने वाले भारत और दुनिया के स्त्री सशक्तिकरण की दिशा में क्रांतिकारी कदम साबित होगा। अंतिम संस्कार कहानी में मेघना सिंह कुशवाहा अपने बकालत के साथी अमर सिंह यादव से विवाह रचाती है और विवाह के बाद मेघना, मेघना सिंह कुशवाहा यादव कहलाती है और अमर, अमर सिंह यादव कहलाता है। जब ब्राह्मण स्त्रियाँ दो जाति नाम लगा रहीं हैं जैसे - अंजली त्रिपाठी शर्मा तो किसान स्त्रियाँ और किसान, ब्राह्मण, दलित और वनवासी पुरुष दो जाति नाम क्यों नहीं लगा सकते? क्या हिन्दू धर्म-सुधार की दिशा में मनुस्मृति के कुछ प्रावधानों में बदलाओ कर देना चाहिए? क्या स्त्रियों को भी सोलह संस्कार करने का अधिकार दे देना चाहिए? क्या स्त्रियों को शासन, प्रशासन और न्याय व्यवस्था में 50% आरक्षण देना चाहिए?  क्या किसान हिन्दुओं को भी पुरोहित बनने का अधिकार दे देना चाहिए? क्या ब्राह्मण हिन्दुओं से खेती करने का अधिकार छीन लेना चाहिए? आखिर वो दिन कब आएँगे जब स्त्री के नाम और उसके जाति नाम को पुरूष अपने नाम के साथ लिखेगा? आखिर वो दिन कब आएँगे जब ब्राह्मण जातियों - पुरोहित, शर्मा, मिश्रा, तिवारी जैसे किसान जातियाँ कुशवाहा, यादव, पाल, रायकवार आदि आपस में वैवाहिक संबंध स्थापित करेंगे? क्या समाज में उपर्युक्त बदलाओ लाने की जरूरत है?


वस्तुतः 'घर से फरार जिंदगियाँ' की हमारी बदलाओकारी कहानियाँ 21वीं सदी के भारतीय समाज विशेषकर बुंदेलखंड और दिल्ली के समाज की असलियत दिखाकर समाज में बदलाओ चाहती हैं। 


'घर से फरार जिंदगियाँ' किताब के प्रकाशन के अवसर पर हम लेखन की दुनिया में स्थापित कराने वाले और बदलाओकारी लेखक बनाने वाले अपने दोनों आदर्श मार्गदर्शक पूजनीय गुरूजी डॉ० रामशंकर भारती और पूजनीय आचार्य डॉ० पुनीत बिसारिया का भौत-भौत आभार व्यक्त करते हैं।  

इस किताब की भूमिका लिखने हेतु आचार्य पुनीत बिसारिया और अभिमत लिखने हेतु गुरूजी डॉ० रामशंकर भारती का हम भौत-भौत आभार व्यक्त करते हैं।


अपने लेखन के प्रेरणापुंज पूजनीय बब्बाजी कीर्तिशेष किसान बलदेव कुशवाहा, पूजनीय दादाजी किसान पीताराम कुशवाहा 'पत्तू नन्ना', पूर्व ग्रामप्रधान प्रतिनिधि जरबो गाँव जिला झाँसी और पूजनीया दादी किसानिन रामकली कुशवाहा 'बाई' का भी हम भौत-भौत आभार व्यक्त करते हैं।


इस अवसर पर हम हमारे व्यक्तित्व और कृतित्त्व के निर्माण में अहम भूमिका निभाने वाले पूजनीय आचार्य-आचार्यों में हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्राचार्या और हिन्दी विभाग की प्रोफेसर डॉ० रमा; थावे विद्यापीठ, गोपालगंज, बिहार के कुलपति डॉ० विनय कुमार पाठक ;  हिन्दी विभाग, श्रीपीताम्बरा पीठ संस्कृत महाविद्यालय, दतिया की आचार्या डॉ० रमा शर्मा ; हिन्दी विभाग, बुंदेलखंड महाविद्यालय, झाँसी के विभागाध्यक्ष डॉ० संजय सक्सेना, आचार्य डॉ० नवेन्द्र कुमार सिंह, सहायक आचार्या डॉ० वंदना कुशवाहा का भी भौत-भौत आभार व्यक्त करते हैं।


इस अवसर पर गुरूमाता प्रभा भारती, माताजी किसानिन ममता कुशवाहा, पिताजी किसान हीरालाल कुशवाहा, चाचाजी किसान भानुप्रताप कुशवाहा, चाची किसानिन माया कुशवाहा, बहिन रोशनी और भाई ब्रह्मानंद, ब्रजबिहारी, मानवेन्द्र, प्रशांत, सौरभ, गौरव से साथ ही सहपाठी, दोस्तों, साथियों में दीपेश मिश्रा, सतेंद्र कुमार पांचाल, बुशरा अलीम, दिव्यांशा खजूरिया, प्रेमराज कौशिक, प्रेरणा मिश्रा, मोहम्मद आतिफ, ज्ञानेश कुशवाहा, दीपक नामदेव, प्रीतिका बुधौलिया का भी भौत-भौत आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होंने सदा हमारे लेखन में सहयोग दिया और प्रोत्साहित किया।


बड़े-बुर्जुगों और आचार्य-आचार्याओं के आर्शीवाद, छोटे भाई-बहिनों के प्यार और साथियों के साथ और सहयोग से ही हम लेखन की दुनिया में बेहतर करके कीर्तिमान स्थापित कर पा रहे हैं इसलिए हमारे लेखन में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से जिन-जिन व्यक्तियों का योगदान रहा है, उन सबका भी हम भौत-भौत आभार व्यक्त करते हैं।

 

हम लॉयन्स पब्लिकेशन, ग्वालियर की स्वामिनी प्रकाशक, संपादक, लेखिका आदरणीय शिवांगी पुरोहित जी का भी भौत-भौत आभार व्यक्त करते हैं। जिनके सहयोग से 'घर से फरार जिंदगियाँ' किताब प्रकाशित हो पा रही है।


हमें पूरा भरोसा है कि 'घर से फरार जिंदगियाँ' की पाठकों, छात्र-छात्राओं, शोधार्थियों, शिक्षक-शिक्षिकाओं, आलोचकों और समाजशास्त्रियों के बीच सराहना होगी। पाठकों और आलोचकों से 'घर से फरार जिंदगियाँ' पर आलोचनात्मक टिप्पणी की अपेक्षा करते हुए पाठकों की अदालत में 'घर से फरार जिंदगियाँ' हाजिर करते हैं।

    

       ।। जै जै बुंदेलखंड ।।

       ।। जय सीता मैया की ।।

      ।। बदलाओकारी जिंदाबाद ।।


- कुशराज झाँसी

(प्रवर्त्तक - बदलाओकारी विचारधारा, बुंदेलखंडी युवा लेखक, सामाजिक कार्यकर्त्ता)

२८ नवम्बर २०२३,

किसान समाजसुधारक महात्मा जोतिबा फुले की पुण्यतिथि,

२१२ नन्नाघर, जरबोगॉंव, झाँसी


Wednesday, 25 December 2024

आस्ट्रेलिया की प्रवासी साहित्यकार शन्नो अग्रवाल की किसान विमर्श की रचना 'किसान (दोहे)' पर युवा आलोचक, किसानवादी विचारक कुशराज झाँसी की टिप्पणी

आस्ट्रेलिया की प्रवासी साहित्यकार शन्नो अग्रवाल की किसान विमर्श की रचना 'किसान (दोहे)' पर युवा आलोचक, किसानवादी विचारक कुशराज झाँसी की टिप्पणी -

"आदरणीया शन्नो अग्रवाल जी ने अपनी रचना 'किसान' (दोहे) में किसानों की संघर्षमयी जीवनगाथा को बखूबी प्रस्तुत किया है। इसमें इन्होंने किसानों की दिनचर्या, उनकी आर्थिक-सामाजिक स्थिति के साथ ही उनके खान-पान, रहन-सहन का चित्रण किया है और अन्न ग्रहण करने वाले हर इंसान से किसानों को से मुक्ति दिलाने की तरकीब खोजने हेतु प्रेरित किया है। किसान-विमर्श की सशक्त रचना का सृजन करने हेतु शन्नो अग्रवाल जी को भौत-भौत बधाई।"

©️ कुशराज झाँसी

(युवा आलोचक, किसानवादी विचारक)

३०/११/२०२४, 7:59रात, झाँसी 


शन्नो अग्रवाल की किसान विमर्श की रचना - 


'किसान' (दोहे)


खेतों में बसती सदा, है किसान की जान

हरियाली को देखकर, गाने लगते गान।


ना हैं साधन आधुनिक,जीवन बड़ा बवाल

मेहनत करके खेत में, कृषक होत निढाल।


तड़के उठकर खेत में, बहा रहे हैं खून

रात-दिन मेहनत करें, खाने को दो जून।


उगा रहे सबके लिये, ये धरती पर अन्न

खाकर आधापेट ही, रहते सदा प्रसन्न।


ठाठ-बाठ ना ये करें, है मुश्किल निर्वाह

इन गरीब किसानों की, कौन करे परवाह।


चाहें घर मे मौत हो, या आँधी-बरसात

बिन विराम देते हमें, फसलों की सौगात।


साधारण भोजन करें, घर में कम सामान

ना आभूषण कीमती, सस्ते से परिधान।


उपजाते हैं ये फसल, पकने की कर आस

अकसर आती बाढ़ जब, होता सत्यानास।


खेती-बाड़ी पर जिये, इनका सब परिवार

इनकी पूँजी बैल हैं, खुशियों का संसार।


मजदूरी करनी पड़े, इनको कभी-कभार

किसी तरह से जी रहे, हैं कितने लाचार।


अधिक न शिक्षा पा सके, इनका नहीं कसूर

बेबस थे माता-पिता, पैसे से मजबूर।


बलिहारी इनकी सदा, मिलती अनुपम भेंट

इन पर निर्भर हम सभी, भरें हमारा पेट।


हमें खिलाकर अन्न ये, सदा रहें गरीब

प्रगतिशील ये भी बनें, सोचो कुछ तरकीब।


©️ शन्नो अग्रवाल

   

आस्ट्रेलिया की वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार आदरणीया 'शन्नो अग्रवाल जी' द्वारा किसान विमर्श की हमारी कहानी 'रीना' पर टिप्पणी - कुशराज झाँसी

आस्ट्रेलिया की वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार आदरणीया 'शन्नो अग्रवाल जी' ने किसान विमर्श की हमारी कहानी 'रीना' पर टिप्पणी करके हमें अपना स्नेह और आशीर्वाद प्रदान किया, उनका भौत-भौत आभार। 

- कुशराज झाँसी


आप सभी 'रीना' कहानी इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं -

https://kushraaz.blogspot.com/2023/12/blog-post_27.html


आदरणीया शन्नो अग्रवाल जी द्वारा की गई टिप्पणी -

गाँव के लोगों का पारिश्रमिक जीवन कितना कठिन है इससे हम सभी विदित हैं। किसान लोग अपने खेतों में जी तोड़ कर मेहनत करते हैं। अपनी लहलहाती फसलों को मौसम के भरोसे छोड़कर उनके लिये प्रार्थना करते रहते हैं। ताकि पकने के बाद उसे बाजार ले जाकर और बेचकर अपना जीवन यापन कर सकें। 


लेकिन यदि कभी किसी कारणवश या किसी प्राकृतिक आपदा के कारण उनकी फसल नष्ट हो जाती है तो उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ता है। कभी बाढ़ तो कभी सूखा उनकी उम्मीदों और सपनों को धराशायी करते रहते हैं। तब पैसे की मजबूरी से उन्हें कई तरह की पारिवारिक विपदाओं का भी सामना करना पड़ता है। इस तरह की परिस्थितियों का चित्रण किसानवादी लेखक कुशराज जी ने अपनी एक 'रीना' नाम की कहानी में किया है। जिसे पढ़ते हुये हृदय विदीर्ण हो जाता है।


यह कहानी गाँव में बसे एक ऐसे गरीब परिवार की है जहाँ रीना और शिम्मी नाम के पति-पत्नी मेहनत-मजदूरी करके किसी तरह अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। पर गरीबी कभी उनका पीछा नहीं छोड़ती। उनके दोनों बेटे भी काम करते हैं। पर उन्हें अपनी बेटी पिंकी का ब्याह भारी कर्ज लेकर करना पड़ता है। दुर्भाग्यवश उनकी बेटी को ससुराल में दहेज को लेकर इतना प्रताड़ित किया जाता है कि वह आत्महत्या कर लेती है। 


दुर्भाग्य फिर भी इस परिवार का पीछा नहीं छोड़ता। उस गाँव का प्रधान रिश्वत देकर कुछ तिकड़मबाजी करके रीना और शिम्मी के बड़े बेटे की डाकिया वाली नौकरी छुड़वा देता है। और वही नौकरी अपने बेटा को दिलवा देता है। 


करन के बेरोजगार हो जाने पर घर में गरीबी अपने पैर और पसार लेती है। इधर कर्जदार के तानों और गालियों से तंग आकर एक दिन शिम्मी ने भी फाँसी का फंदा गले में डालकर अपनी जान   दे देने का फैसला कर लिया। और गले में फाँसी का फंदा डालकर उसने इस दुनिया से विदा ले ली।


इसी तरह पता नहीं गाँवों में कितने ही और गरीब परिवारों की व्यथा-कथायें हैं। किंतु यदि सरकार इस तरफ ध्यान दे और इस तरह के गरीब परिवारों को कुछ आर्थिक सहायता प्रदान करे तो लोग इस तरह की आत्म हत्यायें करने से बच सकते हैं।


सरकार को अत्यंत गरीब और निरीह लोगों की दरकार सुनना चाहिये। फसलों के क्षतिग्रस्त हो जाने पर उन निरीह किसानों के लिये मुफ़्त के बीज, खाद, आधुनिक मशीनों और सिंचाई आदि के साधनों का बंदोबस्त करके किसानों की सहायता करनी चाहिये।


इस कहानी का लेखक स्वयं एक किसान परिवार से है। और उच्च शिक्षित होने से वह किसानों और उनके जीवन से जुड़ी हर समस्या को भलीभांति जानता है। संवेदनशील लेखक ग्राम जीवन की अन्य समस्याओं की तरफ भी इंगित करता है। जिनमें जल की कमी भी एक ऐसी समस्या है जिसके होने से ग्रामवासियों को मीलों दूर पैदल चलकर भीषण गर्मी में भी किसी नदी से पानी भर कर लाना पड़ता है। जिन लोगों को पानी की किल्लत होती है वही इस परेशानी को महसूस कर सकते हैं। 


राजस्थान में पानी की जो त्राहि-त्राहि मची थी उसके बारे में सबको पता है। परिस्थितियाँ इतनी भयंकर हो गयी थीं कि लोग इच्छा मृत्यु तक की माँग करने लगे थे।


जल सबकी प्यास बुझाये

यह है सबका जीवन धन

सूखे पौधों को हर्षाये

है ऐसा अनमोल रतन।


किसानों की व्यथायें व संघर्षों के बारे में सुनकर मन बिचलित हो उठता है। सरकार को इस ओर कुछ ठोस कदम उठाना चाहिये।


लेखक ने किसानों की व्यथा-कथा को अपनी इस कहानी में शब्दांकित किया है। और जब तक इसका कोई समाधान नहीं होता तब तक उनका जीवन दुखमय ही रहेगा।


'रीना' नाम की इस कहानी में लेखक ने एक गरीब परिवार की दशा का वर्णन करके उसके माध्यम से सरकार का ध्यान ऐसे ही तमाम और ग्रामीणों की तरफ खींचने का प्रयास किया है। जिसके लिये युवा लेखक कुशराज जी को साधुवाद।


सस्नेह शुभकामनाओं सहित....

- शन्नो अग्रवाल

(प्रवासी साहित्यकार, ऑस्ट्रेलिया)

30/11/2024, आस्ट्रेलिया

Thursday, 5 December 2024

आस्ट्रेलिया की वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार आदरणीया 'शन्नो अग्रवाल जी' द्वारा किसान विमर्श की हमारी कहानी 'अंतिम संस्कार' पर टिप्पणी - कुशराज झाँसी

आस्ट्रेलिया की वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार आदरणीया 'शन्नो अग्रवाल जी' ने किसान विमर्श की हमारी कहानी 'अंतिम संस्कार' पर टिप्पणी करके हमें अपना स्नेह और आशीर्वाद प्रदान किया, उनका भौत-भौत आभार।

- कुशराज झाँसी


आप सभी 'अंतिम संस्कार' कहानी इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं -

https://sahityacinemasetu.com/kahani-antim-sanskaar/


आदरणीया शन्नो अग्रवाल जी द्वारा की गई टिप्पणी -

बहुत ही सशक्त कहानी। 

महिन्द कक्का ने अपने जीवन काल में अपने ग्राम में नये प्राण डाल दिये। उन्होंने उसकी उन्नति में अपनी तरफ से कोई कसर नहीं छोड़ी। और यह सब उनके शिक्षित होने का ही परिणाम था। अगर वह और जीते तो शायद और भी ग्राम-सुधार करने की योजनायें बनाते। 

गाँव व वहाँ के जन-जीवन को लेकर समस्यायें हल करना, उनके जीवन को प्रगति की ओर अग्रसर करना और सबके प्रति सद्भावना रखने से वह न सिर्फ उस गाँव की जान थे बल्कि अड़ोस-पड़ोस के गाँवों के लिये भी शक्ति स्तंभ थे। और उसी तरह थी उनकी बिटिया मेघना भी। 

उच्च शिक्षा प्राप्त मेघू स्त्रियों के अधिकारों की तरफ सजग थी। और उनके प्रति समाज की कुरीतियों को दमन करने की ओर भी अग्रसर रही। न केवल स्त्रियों के अधिकारों के लिये बल्कि बुंदेलखंड में छात्र संगठन बनाकर उनके चुनावी मुद्दे को लेकर भी मेघना अपनी आवाज उठाती है। पिता की तरह बेटी में भी सभी के हित की चाह है। अंत में उसने सबको चुनौती देते हुये अपने पिता महेंद्र सिंह कुशवाहा के मृत शरीर को मुखाग्नि देकर सिद्ध कर दिया कि बेटियों को भी अपने पिता के शव के दाह संस्कार करने का उतना ही हक है जितना बेटों को। शव के साथ ही मेघना ने बेटियों से जुड़ी एक कुरीति का भी अंतिम संस्कार कर दिया।

कहानी में आपकी भाषा-शैली अच्छी है। गाँव के परिवेश के अनुसार क्षेत्रीय भाषा के प्रयोग से कहानी की रोचकता अंत तक बरकरार रहती है।  

लेखन पर आपको बहुत बधाई व भविष्य के लिये शुभकामनायें।

- शन्नो अग्रवाल

(प्रवासी साहित्यकार, ऑस्ट्रेलिया)

27/11/2024, आस्ट्रेलिया

किसान डॉ० विजयप्रकाश सैनी के कविता-संग्रह 'मैं कहता आँखन देखी' का विमोचन और बाबू श्यामलाल सैनी स्मृति साहित्य गौरव सम्मान समारोह झाँसी में संपन्न

किसान डॉ० विजयप्रकाश सैनी के कविता-संग्रह 'मैं कहता आँखन देखी' का विमोचन और बाबू श्यामलाल सैनी स्मृति साहित्य गौरव सम्मान समारोह झाँसी में संपन्न 




विगत 1 दिसंबर, रविवार को अखंड बुंदेलखंड के सुप्रसिद्ध कवि, समाजसेवी 'किसान डॉ० विजयप्रकाश सैनी' के कविता-संग्रह 'मैं कहता आँखन देखी' का भव्य विमोचन और अखंड बुंदेलखंड के साहित्यकारों का सम्मान 'बाबू श्यामलाल सैनी साहित्य सेवा संस्थान' द्वारा झाँसी के सैनी गार्डन, माली का हाता, सीपरी बाजार में किया गया। इस अवसर पर साहित्यकारों को 'बाबू श्यामलाल सैनी स्मृति साहित्य गौरव सम्मान - 2024' से स्मृतिचिह्न, अंगवस्त्र और श्रीफल भेंटकर सम्मानित किया गया। युवा आलोचक के रूप में हमें भी 'बाबू श्यामलाल सैनी स्मृति साहित्य गौरव सम्मान-2024' से सम्मानित होने का सौभाग्य मिला। किसान डॉ० विजयप्रकाश सैनी की कविता पर विमर्श करते हुए डॉ० सत्यप्रकाश शर्मा ने कहा, सैनी जी की कविताएँ व्यंग्य के माध्यम से समाज को प्रेरणा देने का काम कर रहीं हैं। वहीं आलोचक डॉ० रामशंकर भारती ने सैनी जी की कविताओं को कबीर की अक्खड़ता, निराला की फक्कड़ता से जोड़ते हुए समकालीन जनवादी परंपरा की पोषक आम आदमी की कविता निरूपित किया। लोकभूषण पन्नालाल 'असर' ने सैनी जी की कविताओं को ग्रामीण समाज की विसंगतियों को उकेरती कविता कहा। समारोह अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार रामसेवक पाठक 'हरिकिंकर' की। मुख्य अतिथि कवि बाबूलाल द्विवेदी ने संस्कृत में पुस्तक की समीक्षा प्रस्तुत की, वहीं पूर्व आईएएस डॉ० प्रमोदकुमार अग्रवाल और बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी के समाजकार्य विभाग के आचार्य डॉ० मुहम्मद नईम ने 'मैं कहता आंखन देखी' पर व्याख्यान दिया। इस अवसर साहित्यकारों और साहित्यप्रेमियों ने 'मैं कहता आँखन देखी' के रचियता किसान डॉ० विजयप्रकाश सैनी को अभिनंदन पत्र और अंगवस्त्र भेंटकर सम्मानित किया। समारोह का शुभारंभ ब्रजलता मिश्रा की सरस्वती वंदना से हुआ। मंच पर विराजमान विद्वानों में डॉ० गौरीशंकर उपाध्याय 'सरल', उमाशंकर खरे 'उमेश', आलोक शाण्डिल्य, डॉ० सुमन मिश्रा, भगवान सिंह कुशवाहा 'राही', डॉ० सुखराम चतुर्वेदी, राज गोस्वामी, प्रताप नारायण दुबे, रवीश त्रिपाठी, कृष्ण मुरारी श्रीवास्तव 'सखा', पूर्व राजभाषा अधिकारी भटनागर आदि प्रमुख रहे। वहीं आरिफ शहडोली, अर्जुन सिंह चाँद, संजीव दुबे, सी० बी० राय तरुण, श्यामशरण नायक, माताप्रसाद शाक्य, संजय तिवारी 'राष्ट्रवादी', रवि कुशवाहा, आदित्य सैनी, के० के० साहू, निहालचंद शिवहरे, साकेत सुमन चतुर्वेदी, संगीता निगम, संध्या भूषण, बबीता सैनी, रमा शुक्ला,अरूण कुमार हिंग्वासिया, राहुल मिश्रा, पवन तूफान, जी० पी० वर्मा मधुरेश सहित सैकडों साहित्यप्रेमी उपस्थित रहे। समारोह का सफल संचालन डॉ० राजेश तिवारी 'मक्खन' ने किया और आयोजन समिति के शरद मिश्रा और विकास अवस्थी ने आभार व्यक्त किया।

- किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज'

(युवा आलोचक, बदलाओकारी विचारक)

४/१२/२०२४, झाँसी










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सत्य सनातन संस्कृति मंच ने अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर किया महिला विभूतियों का सम्मान

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