आस्ट्रेलिया की वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार आदरणीया 'शन्नो अग्रवाल जी' द्वारा किसान विमर्श की हमारी कहानी 'रीना' पर टिप्पणी - कुशराज झाँसी
आस्ट्रेलिया की वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार आदरणीया 'शन्नो अग्रवाल जी' ने किसान विमर्श की हमारी कहानी 'रीना' पर टिप्पणी करके हमें अपना स्नेह और आशीर्वाद प्रदान किया, उनका भौत-भौत आभार।
- कुशराज झाँसी
आप सभी 'रीना' कहानी इस लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं -
https://kushraaz.blogspot.com/2023/12/blog-post_27.html
आदरणीया शन्नो अग्रवाल जी द्वारा की गई टिप्पणी -
गाँव के लोगों का पारिश्रमिक जीवन कितना कठिन है इससे हम सभी विदित हैं। किसान लोग अपने खेतों में जी तोड़ कर मेहनत करते हैं। अपनी लहलहाती फसलों को मौसम के भरोसे छोड़कर उनके लिये प्रार्थना करते रहते हैं। ताकि पकने के बाद उसे बाजार ले जाकर और बेचकर अपना जीवन यापन कर सकें।
लेकिन यदि कभी किसी कारणवश या किसी प्राकृतिक आपदा के कारण उनकी फसल नष्ट हो जाती है तो उन्हें भारी नुकसान उठाना पड़ता है। कभी बाढ़ तो कभी सूखा उनकी उम्मीदों और सपनों को धराशायी करते रहते हैं। तब पैसे की मजबूरी से उन्हें कई तरह की पारिवारिक विपदाओं का भी सामना करना पड़ता है। इस तरह की परिस्थितियों का चित्रण किसानवादी लेखक कुशराज जी ने अपनी एक 'रीना' नाम की कहानी में किया है। जिसे पढ़ते हुये हृदय विदीर्ण हो जाता है।
यह कहानी गाँव में बसे एक ऐसे गरीब परिवार की है जहाँ रीना और शिम्मी नाम के पति-पत्नी मेहनत-मजदूरी करके किसी तरह अपने परिवार का पालन-पोषण करते हैं। पर गरीबी कभी उनका पीछा नहीं छोड़ती। उनके दोनों बेटे भी काम करते हैं। पर उन्हें अपनी बेटी पिंकी का ब्याह भारी कर्ज लेकर करना पड़ता है। दुर्भाग्यवश उनकी बेटी को ससुराल में दहेज को लेकर इतना प्रताड़ित किया जाता है कि वह आत्महत्या कर लेती है।
दुर्भाग्य फिर भी इस परिवार का पीछा नहीं छोड़ता। उस गाँव का प्रधान रिश्वत देकर कुछ तिकड़मबाजी करके रीना और शिम्मी के बड़े बेटे की डाकिया वाली नौकरी छुड़वा देता है। और वही नौकरी अपने बेटा को दिलवा देता है।
करन के बेरोजगार हो जाने पर घर में गरीबी अपने पैर और पसार लेती है। इधर कर्जदार के तानों और गालियों से तंग आकर एक दिन शिम्मी ने भी फाँसी का फंदा गले में डालकर अपनी जान दे देने का फैसला कर लिया। और गले में फाँसी का फंदा डालकर उसने इस दुनिया से विदा ले ली।
इसी तरह पता नहीं गाँवों में कितने ही और गरीब परिवारों की व्यथा-कथायें हैं। किंतु यदि सरकार इस तरफ ध्यान दे और इस तरह के गरीब परिवारों को कुछ आर्थिक सहायता प्रदान करे तो लोग इस तरह की आत्म हत्यायें करने से बच सकते हैं।
सरकार को अत्यंत गरीब और निरीह लोगों की दरकार सुनना चाहिये। फसलों के क्षतिग्रस्त हो जाने पर उन निरीह किसानों के लिये मुफ़्त के बीज, खाद, आधुनिक मशीनों और सिंचाई आदि के साधनों का बंदोबस्त करके किसानों की सहायता करनी चाहिये।
इस कहानी का लेखक स्वयं एक किसान परिवार से है। और उच्च शिक्षित होने से वह किसानों और उनके जीवन से जुड़ी हर समस्या को भलीभांति जानता है। संवेदनशील लेखक ग्राम जीवन की अन्य समस्याओं की तरफ भी इंगित करता है। जिनमें जल की कमी भी एक ऐसी समस्या है जिसके होने से ग्रामवासियों को मीलों दूर पैदल चलकर भीषण गर्मी में भी किसी नदी से पानी भर कर लाना पड़ता है। जिन लोगों को पानी की किल्लत होती है वही इस परेशानी को महसूस कर सकते हैं।
राजस्थान में पानी की जो त्राहि-त्राहि मची थी उसके बारे में सबको पता है। परिस्थितियाँ इतनी भयंकर हो गयी थीं कि लोग इच्छा मृत्यु तक की माँग करने लगे थे।
जल सबकी प्यास बुझाये
यह है सबका जीवन धन
सूखे पौधों को हर्षाये
है ऐसा अनमोल रतन।
किसानों की व्यथायें व संघर्षों के बारे में सुनकर मन बिचलित हो उठता है। सरकार को इस ओर कुछ ठोस कदम उठाना चाहिये।
लेखक ने किसानों की व्यथा-कथा को अपनी इस कहानी में शब्दांकित किया है। और जब तक इसका कोई समाधान नहीं होता तब तक उनका जीवन दुखमय ही रहेगा।
'रीना' नाम की इस कहानी में लेखक ने एक गरीब परिवार की दशा का वर्णन करके उसके माध्यम से सरकार का ध्यान ऐसे ही तमाम और ग्रामीणों की तरफ खींचने का प्रयास किया है। जिसके लिये युवा लेखक कुशराज जी को साधुवाद।
सस्नेह शुभकामनाओं सहित....
- शन्नो अग्रवाल
(प्रवासी साहित्यकार, ऑस्ट्रेलिया)
30/11/2024, आस्ट्रेलिया
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