नेता - कुशराज झाँसी
लेख : " नेता "
एक योग्य नेता की आवश्यकता हर युग और हर क्षेत्र में रही है और आज भी है और हमेशा रहेगी। चाहे वह क्षेत्र धर्म हो, शिक्षा हो, समाजसुधार हो या राजनीति। आज लोग सामान्यता नेता का सन्दर्भ राजनेता से जोड़ते हैं। जो शत् प्रतिशत सही नहीँ हैं। नेता तो अभिनेता भी होता है जो अपने अभिनय के द्वारा समाज में जागृति लाता है और समाज की परिस्थितियों को प्रत्यक्ष रूप में प्रदर्शित करता है।
मेरे अनुसार - "सच्चा नेता वह है जो निःस्वार्थ सेवा करता है और सदा परोपकारी कामों में लगा रहता है।" वास्तव में समाजसेवी नेता निःस्वार्थ सेवा करते हैं और कुछ राजनेता भी। कुछ तथाकथित राजनेता चुनाव जीतने के बाद अपने चुनावी क्षेत्र में वर्षों कदम तक नहीँ रखते। जिससे ये राजनेता न ही क्षेत्र की जनता की हालातों को जान पाते हैं और न ही उस क्षेत्र के बारे में। ये विकास के नाम पर करोड़ों का घोटाला करते हैं और भ्रष्टाचार के आरोप में राजनेताओं की नाक कटाते हैं।
हर नेता को चाहे वह छात्रनेता हो, अभिनेता हो या राजनेता हो। उसे अपने क्षेत्र में पूरी ईमानदारी और तत्परता के साथ काम करना चाहिए। तभी वह आसमान की बुलंदियों को छू सकेगा और अपना नाम और देश - विदेश का कल्याण कर सकेगा।
इस दुनिया में रचनात्मक कार्य और उनसे मिली प्रसिद्धि ही शाश्वत है। बाकी कमाया हुआ धन, मोह - माया, यहाँ तक की हमारा शरीर भी नश्वर है। इसलिए मैं कहता हूँ - "परोपकार से बढ़कर कोई धर्म नहीँ है।"
छात्रनेता को हमेशा छात्रों के अधिकारों के लिए काम करते रहना चाहिए। आज छात्र को कॉलेज में सभी मूलभूत सुविधाएँ उपलब्ध होनी चाहिए जिससे शिक्षा का सकारात्मक विकास हो सके और देश - समाज का कल्याण हो सके। छात्रनेता को छात्रों को अधिकार दिलाने के लिए क्रांति करना चाहिए। क्रांति होने से परिवर्तन होता है। परिवर्तन होता है तो विकास जरूर होता है। मैंने लिखा भी है - "क्रांति, परिवर्तन और विकास प्रकृति के शाश्वत नियम हैं।"
- कुशराज झाँसी
_1/6/2018_8:38 रात _ दिल्ली
आलोचना -:
नेता होना आवश्यक नहीँ, मानव में नेता जैसे गुण भी विद्यमान होने चाहिए। मगर वर्तमान युग में वे दृष्टिगोचर नहीँ होते। प्राचीन विद्वानों व विशेषज्ञों ने भी एक ऐसे नेता की परिकल्पना की है, जो कर्मठ हो, मैत्रीपूर्ण - स्नेहवान हो, रचनात्मक हो, सामाजिक हो और जिसमें निर्णयक्षमता, नैतिकता, सहानुभूति - संवेदना हो, अच्छा संदेशवाहक हो, भेदभावरहित हो। मगर दुर्भाग्य की बात ये है कि आज ऐसे नेता नहीँ हैं। मगर कहीं - कहीं शैक्षणिक संस्थानों, विभागों और सामाजिक संस्थाओं में कई नेतृत्त्व करने वाले नेता अपने व्यक्तित्व, अपनी सक्रियता और अपने कार्यों के लोगों को प्रभावित कर रहे हैं और लोग भी प्रभावित हो रहे हैं। और विशेषकर कुशराज, मेरी दृष्टि में तुम में नेता जैसे गुणों का धीरे - धीरे विकास हो रहा है और तुम अपने निबंध, लेख, कविता व अन्य साहित्यिक विधाओं द्वारा लोगों को प्रभावित करते हो।
✍ मो. आतिफ
The way you write is so beautiful.Your Revolutionary views about Our Country is so very impressive.
✍ Divyansha Khajuria (दिव्यांशा खजूरिया)
आलोचना -:
नेता होना आवश्यक नहीँ, मानव में नेता जैसे गुण भी विद्यमान होने चाहिए। मगर वर्तमान युग में वे दृष्टिगोचर नहीँ होते। प्राचीन विद्वानों व विशेषज्ञों ने भी एक ऐसे नेता की परिकल्पना की है, जो कर्मठ हो, मैत्रीपूर्ण - स्नेहवान हो, रचनात्मक हो, सामाजिक हो और जिसमें निर्णयक्षमता, नैतिकता, सहानुभूति - संवेदना हो, अच्छा संदेशवाहक हो, भेदभावरहित हो। मगर दुर्भाग्य की बात ये है कि आज ऐसे नेता नहीँ हैं। मगर कहीं - कहीं शैक्षणिक संस्थानों, विभागों और सामाजिक संस्थाओं में कई नेतृत्त्व करने वाले नेता अपने व्यक्तित्व, अपनी सक्रियता और अपने कार्यों के लोगों को प्रभावित कर रहे हैं और लोग भी प्रभावित हो रहे हैं। और विशेषकर कुशराज, मेरी दृष्टि में तुम में नेता जैसे गुणों का धीरे - धीरे विकास हो रहा है और तुम अपने निबंध, लेख, कविता व अन्य साहित्यिक विधाओं द्वारा लोगों को प्रभावित करते हो।
✍ मो. आतिफ
The way you write is so beautiful.Your Revolutionary views about Our Country is so very impressive.
✍ Divyansha Khajuria (दिव्यांशा खजूरिया)
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