Tuesday 6 August 2019

अनुच्छेद 370 और 35ए खत्म करके जम्मू - कश्मीर राज्य मिटाकर दो नए केन्द्रशासित प्रदेश जम्मू - कश्मीर और लद्दाख बनाए जाने पर देशवासियों को हार्दिक बधाई : कुशराज झाँसी

लेख - " अनुच्छेद 370 और 35ए खत्म करके जम्मू - कश्मीर राज्य मिटाकर दो नए केन्द्रशासित प्रदेश जम्मू - कश्मीर और लद्दाख बनाए जाने पर देशवासियों को हार्दिक बधाई "






आज का दिन देश और दुनिया के लिए ऐतिहासिक रहा। जम्मू - कश्मीर में 72 साल से लागू अनुच्छेद 370 और 35ए को समाप्त किया गया है। जिससे जम्मू - कश्मीर अब राज्य नहीं रहा। इस जम्मू - कश्मीर राज्य को विभाजित करके दो नए केन्द्रशासित प्रदेश जम्मू - कश्मीर (विधानसभा सहित) और लद्दाख (विधानसभा रहित) बना दिए गए हैं। अब असलियत में मेरा भारत कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक एक हो गया है। इस ऐतिहासिक परिवर्तन के लिए मैं देशवासियों को हार्दिक बधाई देता हूँ।




* अनुच्छेद 370 और 35ए खत्म होने से होंगे ये 10 बड़े परिवर्तन -:

1. अनुच्छेद-370 के साथ ही जम्मू-कश्मीर का अलग संविधान भी इतिहास बन गया है। अब वहां भी भारत का संविधान लागू होगा।
2. जम्मू-कश्मीर में स्थानीय लोगों की दोहरी नागरिकता समाप्त हो जाएगी।
3. अब जम्मू-कश्मीर में देश के अन्य राज्यों के लोग भी जमीन लेकर बस सकेंगे।
4. कश्मीर का अब अलग झंडा नहीं होगा। मतलब वहां भी अब तिरंगा शान से लहराएगा।
5. जम्मू-कश्मीर के दो टुकड़े कर दिए गए हैं। जम्मू-कश्मीर और लद्दाख अब अलग-अलग केंद्र शासित प्रदेश होंगे।
6. अब अनुच्छेद-370 का खंड-1 केवल लागू रहेगा। शेष खंड समाप्त कर दिए गए हैं। खंड-1 भी राष्ट्रपति द्वारा लागू किया गया था। राष्ट्रपति द्वारा इसे भी हटाया जा सकता है। अनुच्छेद 370 के खंड-1 के मुताबिक जम्मू और कश्मीर की सरकार से सलाह कर राष्ट्रपति, संविधान के विभिन्न अनुच्छेदों को जम्मू और कश्मीर पर लागू कर सकते हैं।
7. जम्मू-कश्मीर में विधानसभा होगी, लेकिन लद्दाख में विधानसभा नहीं होगी। मतलब जम्मू-कश्मीर में राज्य सरकार बनेगी, लेकिन लद्दाख की कोई स्थानीय सरकार नहीं होगी।
8. जम्मू-कश्मीर की लड़कियों को अब दूसरे राज्य के लोगों से भी शादी करने की स्वतंत्रता होगी। दूसरे राज्य के पुरुष से शादी करने पर उनकी नागरिकता खत्म नहीं होगी।
9. अनुच्छेद-370 में पहले भी कई बदलाव हुए हैं। 1965 तक जम्मू और कश्मीर में राज्यपाल की जगह सदर-ए-रियासत और मुख्यमंत्री की जगह प्रधानमंत्री हुआ करता था।
10. अनुच्छेद-370 को खत्म करने की मंजूरी राष्ट्रपति ने पहले ही दे दी थी। दरअसल ये अनुच्छेद पूर्व में राष्ट्रपति द्वारा ही लागू किया गया था। इसलिए इसे खत्म करने के लिए संसद से पारित कराने की आवश्यकता नहीं थी।



* अनुच्छेद 35 ए का इतिहास -:

अनुच्छेद 35 A क्या है?

अनुच्छेद 35 A, संविधान में जुड़ा हुआ वह प्रावधान है, जो जम्मू और कश्मीर की सरकार को यह अधिकार प्रदान करता है, कि वह यह तय करने के लिए स्वतन्त्र है, कि जम्मू और कश्मीर का स्थायी निवासी कौन है, किस व्यक्ति को सार्वजनिक क्षेत्र की नौकरियों में विशेष आरक्षण दिया जायेगा, कौन जम्मू और कश्मीर में संपत्ति खरीद सकता है, किन लोगों को जम्मू और कश्मीर की विधानसभा चुनाव में वोट डालने का अधिकार होगा, छात्रवृत्ति, अन्य सार्वजनिक सहायता और सामाजिक कल्याण कार्यक्रमों का लाभ कौन प्राप्त कर सकता है। अनुच्छेद 35 A, के अंतर्गत यह भी प्रावधान है, कि यदि जम्मू और कश्मीर की राज्य सरकार किसी कानून को अपने हिसाब से बदलती है, तो उसे भारत की किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है।

अनुच्छेद 35 A, जम्मू और कश्मीर को एक विशेष राज्य के रूप में अधिकार देता है। इसके तहत दिए गए अधिकार जम्मू और कश्मीर में रहने वाले 'स्थाई निवासियों' से जुड़े हुए हैं। इसका मतलब है, कि जम्मू और कश्मीर राज्य सरकार को ये अधिकार है, कि वो आजादी के वक्त दूसरी जगहों से आए हुए शरणार्थियों और अन्य भारतीय नागरिकों को जम्मू और कश्मीर में रहने के लिए पनाह दे सकते हैं, और मना भी कर सकते हैं।

अनुच्छेद 35 A भारतीय संविधान में कब जोड़ा गया?

इस अनुच्छेद को देश में लागू करने के लिए तत्कालीन सरकार ने अनुच्छेद 370, के अंतर्गत प्राप्त अधिकारों और शक्तियों का इस्तेमाल किया था। इतिहास के अनुसार अनुच्छेद 35 A, को जवाहरलाल नेहरू की सलाह पर तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के एक आदेश द्वारा 14 मई 1954, में भारतीय संविधान में शामिल किया गया था। अनुच्छेद 35 A, भारतीय संविधान में जम्मू और कश्मीर राज्य को विशेष अधिकार देने वाले अनुच्छेद 370, का ही एक हिस्सा है, इस अनुच्छेद के अंतर्गत जम्मू और कश्मीर के अलावा भारत के किसी भी राज्य का नागरिक जम्मू और कश्मीर में कोई संपत्ति नहीं खरीद सकता, और न ही जम्मू और कश्मीर की नागरिकता प्राप्त कर सकता है। इसीलिए अनुच्छेद 35 A, को जम्मू और कश्मीर के 'स्थायी निवासियों' के लिए भारत सरकार द्वारा कुछ विशेष अधिकार देने के इरादे से भारतीय संविधान में जोड़ा गया था।

भारतीय संविधान में अनुच्छेद 35 A, को लागू करने का यह आदेश 'संविधानिक आदेश, 1954' के रूप में जाना जाता है। यह आदेश 1952 में जवाहर लाल नेहरू तथा जम्मू और कश्मीर के वजीरे आजम शेख अब्दुल्ला के बीच हुए दिल्ली समझौते पर आधारित था। दिल्ली समझौते के द्वारा जम्मू और कश्मीर के नागरिकों को भारतीय नागरिक होने का दर्जा दिया गया था, किन्तु भारत का कोई भी नागरिक जम्मू और कश्मीर की नागरिकता नहीं ले सकता है। जवाहर लाल नेहरू और शेख अब्दुल्ला के बीच हुए इस दिल्ली समझौते में ही भारतीय संविधान में अनुच्छेद 35 A, को जोड़ने के बारे में सोचा गया था।

राष्ट्रपति के द्वारा दिया गया यह आदेश संविधान के अनुच्छेद 370 (1) (डी), के तहत निर्गत हुआ था। ज्ञातव्य है, कि यह अनुच्छेद राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है, कि वह जम्मू और कश्मीर के राज्य के विषयों में कुछ 'अपवाद और संसोधन' कर सकता है।

अनुच्छेद 35 A के मुख्य प्रावधान क्या हैं?

यह अनुच्छेद भारत का नागरिक होते हुए भी किसी गैर जम्मू और कश्मीर के निवासी को जम्मू और कश्मीर में जमीन खरीदने से मना करता है।भारत के किसी अन्य राज्य का निवासी किसी भी तरीके से जम्मू और कश्मीर का स्थायी निवासी नहीं बन सकता है, और इसी कारण वहाँ के किसी भी स्थानीय चुनावों में वोट नहीं डाल सकता है।अगर जम्मू और कश्मीर की कोई लड़की भारत के किसी अन्य राज्य के लड़के से शादी कर लेती है, तो उस लड़की के सारे अधिकार खत्म हो जाते हैं, साथ ही साथ उसके बच्चों के अधिकार भी खत्म हो जाते हैं।यह अनुच्छेद भारत के अन्य नागरिकों के साथ भेदभाव करता है, क्योंकि इस अनुच्छेद के लागू होने के कारण भारत के लोगों को जम्मू और कश्मीर के स्थायी निवासी प्रमाण पत्र से वंचित कर दिया, जबकि पाकिस्तान से आये घुसपैठियों को जम्मू और कश्मीर की नागरिकता दे दी गयी। अभी हाल ही में कश्मीर में म्यांमार से आये रोहिंग्या मुसलमानों को भी कश्मीर में बसने की इज़ाज़त दे दी गयी है।

अनुच्छेद 35 A विरोध और चर्चा का विषय क्यों बना हुआ है?
चूँकि अनुच्छेद 35 A, भारतीय संविधान में संसदीय प्रक्रिया का अनुसरण न करते हुए बल्कि राष्ट्रपति के एक आदेश द्वारा जोड़ा गया था। जबकि संविधान का अनुच्छेद 368, केवल भारतीय संसद को संविधान में संशोधन करने का अधिकार देता है। तो इसीलिए इस मुद्दे पर आज तक सवाल उठाये जा रहे हैं, कि राष्ट्रपति ने अपने अधिकार क्षेत्र के बाहर काम क्यों किया, और नेहरू सरकार ने इस अनुच्छेद को लागू करने के लिए इसका प्रस्ताव संसद के समक्ष भी नहीं रखा, तो इसीलिए अनुच्छेद 35 A, को शून्य करार देने की मांग की जा रही है। "पूरनलाल लखनपाल बनाम भारत के राष्ट्रपति" वाले केस में भी भारत की सर्वोच्च न्यायालय ने मार्च, 1961 में पांच सदस्यीय पीठ में, संविधान के अनुच्छेद 370, को संशोधित करने के लिए राष्ट्रपति की शक्तियों पर चर्चा की। यद्यपि न्यायालय इस केस में यह समीक्षा करता है, कि राष्ट्रपति अनुच्छेद 370, के तहत संविधान में मौजूदा प्रावधान को संशोधित कर सकते हैं, यह निर्णय इस बात का जबाब नहीं दे पा रहा है, कि क्या राष्ट्रपति संसदीय प्रक्रिया का पालन किए बिना भी भारत के संविधान में एक नया अनुच्छेद जोड़ सकते हैं।

"वी द सिटिज़न्स" नाम के एक एन. जी. ओ. ने अनुच्छेद 35 A, और अनुच्छेद 370, दोनों की वैधता को चुनौती देते हुए एक रिट याचिका दायर की थी। इसमें यह कहा गया था, कि भारत के संविधान के निर्माण के समय कश्मीर के चार प्रतिनिधि संविधान सभा के सदस्य थे, और उन्होंने या उस समय कश्मीर की तरफ से तो जम्मू और कश्मीर को विशेष दर्जे के लिए मांग नहीं की थी, तो फिर बाद में यह विशेष दर्जे वाली बात कहा से आ गयी। अनुच्छेद 370, को जम्मू और कश्मीर में स्तिथि को सामान्य करने और उस राज्य में लोकतंत्र को मजबूत करने में मदद करने के लिए केवल एक अस्थायी प्रावधान के रूप में लाया गया था, इसके उद्देश्य की समाप्ति के बाद इसे भी ख़त्म कर देने चाहिए था। संविधान निर्माताओं का उद्देश्य, अनुच्छेद 370, को एक उपकरण के रूप में प्रयोग करके भारतीय संविधान में अनुच्छेद 35 A, जैसे स्थायी संसोधन को लाने का नहीं था।

इसी याचिका में यह भी कहा गया था, कि अनुच्छेद 35 A, "भारत की एकता की भावना" के खिलाफ है, क्योंकि यह भारतीय नागरिकों के वर्ग के भीतर एक नया वर्ग बनाता है। अन्य राज्यों के नागरिकों को जम्मू और कश्मीर के भीतर रोजगार प्राप्त करने या संपत्ति खरीदने से प्रतिबंधित करना संविधान के अनुच्छेद 14, 16, 19 और 21, के तहत मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है।

जम्मू और कश्मीर की मूल निवासी चारू वली खन्ना द्वारा दायर एक दूसरी याचिका में जम्मू और कश्मीर संविधान के कुछ प्रावधानों की रक्षा के लिए अनुच्छेद 35 A, को चुनौती दी गई थी, जो कि संपत्ति के मूल अधिकार को भी प्रतिबंधित करता है, जिसमें जम्मू और कश्मीर क़े संविधान क़े अनुसार अगर जम्मू और कश्मीर की एक मूल महिला एक स्थायी निवास प्रमाण पत्र नहीं रखने वाले पुरुष से शादी करती है, तो उस महिला या उन दोनों क़े बच्चे को जम्मू और कश्मीर में संपत्ति को खरीदने क़े अधिकार से वंचित कर दिया जाता है, और वह बच्चा जम्मू और कश्मीर में रहकर वहाँ की स्थायी नागरिकता का प्रमाण पत्र प्राप्त नहीं कर सकता है, जबकि यदि कोई जम्मू और कश्मीर में स्थायी निवास प्रमाण पत्र धारण करने वाला पुरुष किसी बिना स्थायी निवास प्रमाण पत्र धारण करने वाली लड़की से शादी करता है, तो वह लड़की और उन दोनों का बच्चा भी जम्मू और कश्मीर का स्थायी नागरिक होगा, और उसे वहाँ की संपत्ति को खरीदने और बेचने का भी पूर्ण अधिकार होगा। जम्मू और कश्मीर में प्रचलित यह प्रावधान वहाँ पर लैंगिक असमानता को भी सिद्ध करता है।




✒ कुशराज झाँसी

 _5/8/2019_3:20 दिन _ झाँसी बुंदेलखंड

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