बुंदेलखंड के स्वतंत्रता सेनानी पंडित रामसहाय शर्मा
*** बरूआसागर जिला झाँसी बुंदेलखंड के स्वतंत्रता सेनानी - पंडित रामसहाय शर्मा ***
बुंदेलखंड का बरूआसागर नगर स्वतंत्रता समर का केंद्र रहा है। यहाँ के अनेक स्वतंत्रता सेनानियों ने स्वतंत्रता समर में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्हीं सेनानियों में से एक हैं - पंडित रामसहाय शर्मा।
पंडित रामसहाय शर्मा का जन्म 10 नवम्बर सन 1905 में बरूआसागर जिला झाँसी, बुंदेलखंड के किसान ब्राह्मण परिवार में पंडित हरदास पुरोहित के घर में हुआ था। इनकी माता लक्ष्मीदेवी पुरोहित थीं। इनकी प्रारम्भिक शिक्षा बरुआसागर में हुई। बचपन से ही मेधावी होने के कारण शर्मा जी शिक्षा के क्षेत्र में आगे ही बढ़ते चले गए और अध्यक नियुक्त हुए।
शर्मा जी की जन्मभूमि बरूआसागर रही और कर्मभूमि गुरसरांय - गरौठा। झाँसी शहर और अन्य ग्रामीण क्षेत्रों में अध्यापन करने के साथ इन्होंने स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय योगदान दिया। बरूआसागर और गुरसरांय - गरौठा क्षेत्र के स्वतंत्रता सेनानियों का नेतृत्व भी किया।
बुंदेलखंड की तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों की पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए शर्मा जी ने 'आजादी का बिगुल' नामक क्रांतिकारी पुस्तक की रचना की। जो बरुआसागर और गुरसरांय - गरौठा क्षेत्र की तत्कालीन दशा और दुर्दशा को प्रतिबिंबित करती है। इनके छोटे भाई बाबू पन्नालाल शर्मा गाँधीवादी और कम्युनिस्ट स्वतंत्रता सेनानी थे।
टहरौली के बमनुआँ गॉंव में नियुक्ति के दौरान क्षेत्र में व्याप्त बेगारी प्रथा का शर्मा जी ने पुरजोर विरोध किया। एक बार पुलिस थाने द्वारा एक गरीब परिवार से बेगारी कराए जाने पर इन्होंने आपत्ति दर्ज कराते हुए थाने में ही धरना दिया। थाने के पुलिस स्टाफ ने समर्पित भाव से शर्मा जी की बात मानी और वादा किया कि अब आप अपना आंदोलन वापिस ले लें, आज से यहाँ किसी व्यक्ति से कोई बेगार नहीं ली जाएगी। सम्भवतः अंग्रेजी राज के दौरान बेगार प्रथा की समाप्ति हेतु यह पहला और प्रभावी कदम था। इस तरह की तमाम घटनाएँ हैं, जिसमें शर्मा जी ने क्रान्तिकारी नेतृत्त्व किया।
नमक सत्याग्रह आंदोलन से भारत छोड़ो आंदोलन - 1942 तक, कभी विदेशी कपड़ों का बहिष्कार, शराब की दुकानों पर पिकेटिंग आदि नाफरमानी के कार्यों के फलस्वरूप शर्मा जी सन 1925, 1930, 1931, 1939, 1940, 1941 और 1942 तक 7 बार गिरफ्तार हुए और जेल गए।
15 अगस्त 1947 वह शुभ दिन आया जब देश आजाद हुआ तब सबसे पहले बरुआसागर किले की प्राचीर से शर्मा जी ने अपार जनसमूह की उपस्थिति में झंडा फहराया और सबने राष्ट्रगान गाते हुए तिरंगे को सलामी दी। इस प्रकार पहले स्वतंत्रता दिवस पर ध्वजारोहण करने का गौरव पाने वाले वे बरूआसागर के पहले नागरिक हैं।
आजादी के बाद आत्माराम गोविन्द खेर इंटर कॉलेज गुरसरांय, पंडित रामसहाय शर्मा इंटर कॉलेज बरुआसागर इत्यादि प्रमुख शिक्षण संस्थाओं के द्वारा शर्मा जी ने झाँसी जिले में शिक्षा की जोत जलाई।
निष्काम कर्मवीर , गांधीवादी नेता, स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद रामसहाय शर्मा जी को हम 'बुंदेलखंड के गाँधी' या 'बुंदेली बापू' के नाम से भी जानते हैं। शर्मा जी सन 1952 से 1957 तक गरौठा विधानसभा विधायक भी रहे। 12 मई सन 1969 में शर्मा जी अपने पैतृक घर बरुआसागर में स्वर्ग सिधार गए। पूरे राजकीय सम्मान के साथ हजारों लोगों ने नम आँखों से उन्हें अंतिम विदाई दी।
©️ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी'
(बुन्देलखंडी युवा लेखक, सामाजिक कार्यकर्त्ता)
_ 6/5/2023 _ 9:20रात _ बरूआसागर
संदर्भ -
1. जिला गजेटियर, झाँसी
2. शहीद स्तंभ, महारानी लक्ष्मीबाई पार्क, झाँसी
3. स्वतंत्रता सेनानी पार्क, बरूआसागर (झाँसी)
4. उत्तरायण स्मारिका - स्वतंत्रता सेनानी पड़ित रामसहाय शर्मा जी के परिजन पंडित रविप्रकाश शर्मा, एडवोकेट एवं अध्यक्ष - डॉ० आर० पी० रिछारिया पी० जी० डिग्री कॉलेज, बरूआसागर जिला झाँसी के अनुसार
5. स्मारिका, पंडित रामसहाय शर्मा इंटर कॉलेज, बरूआसागर (झाँसी)
6. स्मारिका, त्यागमूर्ति आत्माराम खेर इंटर कॉलेज, गुरसरांय (झाँसी)
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