कुशराज और मैं -: मो. आतिफ



                          परममित्र गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज' बहुमुखी प्रतिभा के धनी, रचनात्मक व्यक्तित्त्वसम्पन्न जैसा व्यक्तित्त्व  हमें अपने महाविद्यालय हंसराज कॉलेज में विद्यार्थी स्तर पर किसी का नहीँ लगता है। जब हम कुशराज से कक्षा में पहली या दूसरी बार मिले तब हमें उनके बारे में कुछ ज्यादा जानकारी नहीँ थी। उस समय मैंने सोचा कि वे सामान्य विद्यार्थी के समान ही होंगे। मगर जब हमारे प्राध्यापक महोदय डॉ. राजेश कुमार शर्मा ने कक्षा में उपस्थित विद्यार्थियों को तत्काल एक लेख लिखने को कहा तब कुशराज का लेख सर्वश्रेष्ठ आया। तभी हमें उनके ज्ञान, शब्द-शक्ति, नवीन दृष्टिकोण का पता चला। मेरी दृष्टि में कुशराज एक ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने अपनी सक्रियता, प्रबलता और कर्मठशीलता से महाविद्यालय छात्रसंघ चुनाव में रेवोलुशन पैनल को जिताने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी। मैं बिना कुशराज के इस ऐतिहासिक जीत की कल्पना नहीँ कर सकता। कुशराज में खास बात है कि वे  सच्चे हृदय वाले, हमेशा सबका भला सोचने वाले हैं और सबकी सहायता करने के लिए तत्पर रहते हैं। कुशराज केवल अपने पाठ्यक्रम तक सीमित नहीँ हैं बल्कि महाविद्यालय की विभिन्न सोसायटियों में कार्यरत हैं। कुशराज ने अपनी अभूतपूर्व सक्रियता और अपने रचनात्मक कार्यों से महाविद्यालय के सभी विद्यार्थियों को प्रभावित किया है। इस कथ्य में कोई अतिश्योक्ति नहीँ है। कुशराज में रचनात्मकता और कलात्मकता का अपार भण्डार है।
                         वे अपने लेखों, निबंधों, कविताओं और अन्य साहित्यिक विधाओं से लोगों को प्रभावित करते हैं। विशेषतः जिन्हें महाविद्यालय की यशस्वी प्राचार्या डॉ. रमा जी द्वारा प्रशंसा मिली हो, वे कुछ खास अवश्य होंगे ही। कुशराज, जो पृथक बुन्देलखण्ड प्रान्त निर्माण के दृढ़ संकल्प को अपने जीवन का सार समझ बैठे हैं और मुझे पूर्ण विश्वास है कि अगर तुम इसी तरह अपने कर्त्तव्य - पथ पर चलायमान और प्रवाहमय रहे तो निःसंदेह तुम इस महान संकल्प को साकार कर लोगे। कुशराज, जिस प्रकार तुम आतंकवाद, बलात्कार, यौन शौषण, सामाजिक न्याय, बालश्रम, परिवारवाद, वंशवाद पर अपनी कलम चलाते हो। जो उद्देश्यपूर्ण है और प्रशंसनीय भी। मैं चाहता हूँ कि आप जैसी कलम हर विद्यार्थी चला सके। कुशराज की अगर पृष्ठभूमि की बात करें तो ये झाँसी बुन्देलखण्ड सेे हैं, जो एक यशस्वी वीरांगना, हमारी मार्गदर्शिका और प्रेरणास्रोत झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई की वीरभूमि है
। मुझे लगता है कि कुछ न कुछ प्रभाव कुशराज पर दिखता है झाँसी की रानी का। कुशराज अपने विद्यालय की छात्र संसद में प्रधानमंत्री रहे हैं और इनके लेख, कवितायेँ स्थानीय अखबारों में दिन - प्रतिदिन  प्रकाशित होते रहे हैं। तो इस आधार पर कुशराज की सामान्य विद्यार्थी से रूप में गणना नहीँ कर सकते, इनकी गणना तो केवल और केवल विशेष विद्यार्थी के रूप में ही हो सकती है। कहने को तो बहुत उपलब्धियाँ, विशेषताएँ और योग्यताएँ हैं कुशराज कीं मगर मैं यहीँ अपनी कलम को विराम देता हूँ।

  ✍ मो. आतिफ, दिल्ली

   बी.ए. हिंदी (प्रतिष्ठा) द्वितीय वर्ष

हंसराज कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय



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