Monday 12 August 2019

धारावाहिक उपन्यास : आन्दोलन - परिवर्तनकारी कुशराज

उपन्यास : " आन्दोलन - परिवर्तनकारी कुशराज "







" दुनिया के सारे परिवर्तनकारियों, आन्दोलनकारियों, क्रान्तिकारियों, दार्शनिकों और किसानों को सादर समर्पित..." 

                            1.

सचिन गर्मियों की छुट्टियों में स्कूल से बहुत दिनों बाद घर लौटा था। वो अभी बुन्देलखण्ड किसान स्कूल, ओरछा से हाईस्कूल कर रहा था और वहीँ हॉस्टल में रहता था। जब शाम को वो अपने दद्दा - बाई के संगे बैठा था तब दद्दा - बाई आपस में चर्चा कर रहे थे -

दद्दा : "अरे! राम - राम...भौत बुरओ भओ आज दुपरे, रामदीन ने आम के पेड़ सें लटककर फाँसी लगा लई। तभी उसी के खेत के पास सिया काकी भेड़ - बकरियाँ चरा रहीं थीं। उसने जैसे ही देखा कि रामदीन भज्जा फाँसी पर झूल रहे हैं तो वह भौत डर गई। डर के मारे वो पसीने से तर - तर हो गई। पसीने में लतपथ काकी भेड़ - बकरियों को ऐसे ही छोड़कर भागते - भागते गाँव आ गई तभी हम औरें माते के चौंतरा पर ताश खेल रहे थे। जैसे ही सिया काकी ने बताया कि रामदीन भज्जा ने बड़े हार में फाँसी लगा लई तो हम आठ - दस जनें भागते - भागते पहुँच गए। जेठ मास की दुपज्जा में उतै चिरज्जा तक न दिख रई ती। रामदीन को फाँसी से उतारो और फिर रमेश को घर भेज दिया, उसके घरवालों को बुलाने...

रामदीन का बाप श्रीराम माते तो किसी काम से बाहर गया था। घर पर उसकी जनी रेखा, बिटिया कृति और बेटा उत्कर्ष तीनों ही थे और रामदीन की मताई राजकली अपने मायकेँ एरच गयी थी। फौरन वो सब आ गए। दो - तीन घण्टा बिलखते रहे। चौकीदार ने पुलिस को फोन किया। शाम चार बजे तक पुलिस आयी और मामले का जायजा लेकर लाश खों पोस्टमार्टम कै लानें भेज दिया..."

बाई : "बहुत उम्दा इंसान था रामदीन भज्जा। भज्जा जब भी मिलता था तब कक्का राम - राम, काकी राम - राम करके ही जाता था। मजाकिया भी था लेकिन अपनी खेती - किसानी के प्रति घोर समर्पित था। बाकी काम बाद में करेंगे, पहलें खेत देख लें, यही बात हमेशा कहता था फिर भी ऐसे ईमानदार किसान खों बेमौत मरनें पड़ो। कैसो समय आ गओ जो, अगर धीरे - धीरे अपने बुरे हालातों सें ऊब कैं रामदीन की तराँ पुरे किसान मर जें तो यी दुनिया का होगा सिर्फ और सिर्फ विनाश..."

दद्दा - बाई खों चर्चा करते - करते नौ बज गए। बियाई की बेराँ निकरें डेढ़ - दो घण्टा हो गए थे। इतने में सचिन की मताई हेमा आयी और बोली : "चलो, बाई हरौ रोटी खा लो..."

दद्दा - बाई और सचिन कमरा में से बखरी में रोटी खाबै पहुँच गए और फिर बियाई करकें सब जनें सो गए।

सुबह राष्ट्रीय समाचार पत्र, दैनिक भारत दर्पण, झाँसी बुन्देलखण्ड में खबर छपी : "कर्ज के कारण एक और किसान झूला फाँसी पर... नामक हेडलाइन के अंदर लिखा था कि थाना बरूआसागर के अन्तर्गत आने वाले ग्राम - तेँदौल  निवासी रामदीन कुशवाहा पुत्र श्रीराम माते ने कल दोपहर अपने खेत पर फाँसी लगा ली। गाँववालों की सूचना से मौके पर पहुँची पुलिस ने लाश को पोस्टमार्टम के लिए भेजा। गाँववालों से रामदीन के बारे में जानकारी प्राप्त करने पर पता चला कि रामदीन के बाप - मताई कर्ज में डूबे - डूबे बूढ़े हो गए और अब रामदीन पर तीन - चार लाख का कर्ज था। सेठ छक्कीलाल तो चार पर्सेंट पर सैकड़ा प्रति माह की दर से ब्याज लेता है। इन साहूकारों के चंगुल से हम किसानों का बाहर निकलना मुश्किल है। पिछले साल रामदीन ने एक खेत भी बेच दिया और ब्याज ही ब्याज में सारे जेवर चले गए। बेचारे कि ऊपर से बिटिया स्यानी हो गयी थी। उसकी शादी और दहेज के लिए भी धन इकट्ठा करना था। बहुत बुरी दशा में जी रहा है आज किसान। और कर ही क्या सकता था रामदीन इसके अलावा, इस सामाजिक - राजनीतिक व्यवस्था में..."

रामदीन वाली खबर सचिन ने भी पड़ी। यह खबर पड़कर उसने अपने आसुँओं को रोक नहीं पाया। रोते - रोते ही बिना नाश्ता किए फिर से सो गया। जब सोकर उठा तो उसने किसान और दुनिया के बारे में बहुत सोचा और फिर उसने संकल्प किया कि मैं किसानों की दशा सुधारने के लिए ही जीवन जिऊँगा। वो भी एक किसान का ही बेटा था। दोपहर को जब वह अपने बाप - मताई के संगे खाना खा रहा था तब उसने बाप लखन से पूँछा : "अरे पापा! जैसी खबर अखबार में छपी है रामदीन चाचा वाली, वैसी ही हालात है क्या किसानों की?"

लखन : "हाँ बेटा! यी सें भौत बुरई दशा है हम किसानों की। आखिर कर ही क्या सकते हैं..."

✒ परिवर्तनकारी कुशराज
   झाँसी बुन्देलखण्ड

_6/6/2019_10:23 दिन _ झाँसी

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