Thursday 17 October 2019

परिवर्तनकारी कुशराज की कॉलेज डायरी - गुरूवार, 17 अक्टूबर 2019, दिल्ली


" परिवर्तनकारी कुशराज की कॉलेज डायरी -  गुरूवार, 17 अक्टूबर 2019, दिल्ली "



प्रिय क्रान्ति,

मैं आज सुबह साढ़े नौ पर सोकर उठा तब तक एक क्लास का समय निकल चुका था। जल्दी - जल्दी बिना नहाए तैयार हुआ और नेहरू विहार बस स्टैण्ड से ई-रिक्शा पकड़कर विश्वविद्यालय मैट्रो स्टेशन पहुँचा। रिक्शे में पाँच लोग बैठते हैं और इसमें तीन ही बैठे, तो रोड पर गड्ढे होबे के कारण आज दचका कुछ ज्यादा ही लगे। मैट्रो गेट नम्बर 1-2 से 3-4 की ओर जाने के लिए हाईवे पर करना पड़ता है। बस, कार, ट्रैक और बाइक्स का लम्बा जाम होने के कारण इस पार से उस पार जाने में पन्द्रह मिनट लग गए। देश की राजधानी, महानगर दिल्ली में ट्रैफिक जाम लगना आम बात है। यातायात नियमों के मुताबिक गाड़ी चलाने की स्पीड और आत्मसुरक्षा के साधन निश्चित किए गए हैं फिर भी लोग हाई - स्पीड में बिना हेलमेट के ही गाड़ी चलाते हैं और जाने - अनजाने में दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं। आज के युवा और युवतियाँ तो फोन पर बात करते हुए और ध्रूमपान के साथ - साथ कुछ नशे में गाड़ी चलाते हैं और फिर इसका इल्जाम भुगतते हैं। गेट नम्बर 3-4 पर ई-रिक्शों की भारी संख्या होने के बावजूद मुझे  वहाँ से अपने कॉलेज, हंसराज कॉलेज जाने के लिए रिक्शा नहीं मिला क्योंकि अधिकतर रिक्शे गर्ल्स कॉलेज, दौलतराम और मिराण्डा हाऊस की सवारियाँ बैठा रहे थे, जो कॉलेज हंसराज स्व पहले पड़ते हैं। तो हमें थोड़ा दूर चलकर मैनरोड से रिक्शा लेना पड़ा। रास्ते में मैंने देखा कि दिल्ली यूनिवर्सिटी की वॉल ऑफ डेमोक्रेसी पर छात्र राजनैतिक पार्टी, क्रांतिकारी युवा संगठन - KYS के पर्चे चिपके हुए थे। जिन पर लिखा हुआ था - स्कूल ऑफ ओपन लर्निंग - SOL और दिल्ली विश्वविद्यालय - DU ने मिलकर SOL में भी स्टूडेंट्स को बिना अवगत कराए हुए DU की भाँति CBCS, सेमेस्टर परीक्षा सिस्टम लागू किया है। जो स्टूडेंट्स के लिए अन्याय है। और आगे लिखा था - UGC के रवैए पर हल्ला बोल, छात्र - छात्राओं के साथ अत्याचार नहीं सहेंगे...

KYS का छात्र-आन्दोलन करना उचित है। आंदोलन होने भी चाहिए क्योंकि क्रांति, परिवर्तन और विकास प्रकृति के शाश्वत नियम हैं। देश की टॉप यूनिवर्सिटीज में छात्र - छात्राओं के साथ ज्यादा ही अन्याय हो रहे हैं। कभी बेबजह फीस बढ़ा दी जाती है तो कभी सिलेबस बदल दिया जाता है। और लड़कियों को हॉस्टल से रात में बाहर जाने पर पाबंदी लगाई जाती है जबकि लड़के रात - रात भर हॉस्टल से बाहर कैम्पस में आजाद घूमते हैं। DU की छात्राओं ने कुछ दिनों पहले अपनी आजादी के लिए और पाबंदियों को हटाने के लिए 'पिंचड़ा तोड़ो आन्दोलन' किया था। जो आज के लिए परम आवश्यक है।

आगे चलकर आर्ट्स फैकल्टी पुलिस बैरिकेट लगे हुए थे और चार ट्रैफिक पुलिस वाले वाहनों की चैकिंग कर रहे थे। मेरे रिक्शे के जस्ट पीछे स्कूटी से आने वाली सुन्दर युवती हेलमेट को लगाने  के बजाय हाथ में लटकाए हुए थी तो पुलिस ने उसे रोका और डाँटा। रिक्शे ड्राइवर के बगल में ही मैं बैठा था तो ड्राइवर ने कहा - मैडम, हेलमेट क्यों लगायेंगी, इन्हें तो अपनी सूरत दिखानी होती है...

रिक्शे ने हंसराज हॉस्टल गेट पर ही उतार दिया। 10:40 से 11:40 तक 'अस्मितामूलक विमर्श और हिन्दी साहित्य' विषय की क्लास ली। डॉ० प्रेमप्रकाश मीणा सर ने स्त्रीविमर्शवादी कविता " मैं किसकी औरत हूँ।" का अध्यापन कराया। जिसकी रचयिता सविता सिंह हैं। कविता की मूलसंवेदना यह है कि पितृसत्तात्मक समाज में औरत की खुदकी कोई पहचान नहीं है। यहाँ उसे सिर्फ और सिर्फ एक उपभोग की वस्तु माना जाता है और इससे ज्यादा कुछ नहीं। एक औरत को हमेशा किसी की पत्नी, बहिन, बेटी के नाम से ही जाना जाता है। जबकि सविता सिंह इस पर प्रश्नचिन्ह लगाती हैं और कहती हैं कि मैं किसी की औरत नहीं हूँ। मैं अपना खाती हूँ। जब जी चाहता है तब खाती हूँ। मैं किसी की मार नहीं सहती... एक औरत को अपनी पहचान खुद बनानी होगी बिल्कुल आत्मनिर्भर और सशक्त बनकर तभी इस समाज का कल्याण हो सकेगा और व्यवस्था में सामंजस्य बन सकेगा।

11:40 से 12:40 तक 'पाश्चात्य काव्यशास्त्र' विषय की क्लास ली। इसमें डॉ० नृत्यगोपाल शर्मा सर ने 'मिथक' के बारे में समझाया। उन्होंने कहा कि कुछ बजहों से मिथक जैसे रामायण, महाभारत और इतिहास जैसे आधुनिक भारत का इतिहास भिन्न - भिन्न होते हैं। जबकि कल मैंने सर से डिबेट की और सिद्ध करने  की कोशिश की कि मिथक भी इतिहास है। मैं मिथक को भी इतिहास मानता हूँ और सबको मानना भी चाहिए क्योंकि राम-मन्दिर अयोध्या और बाबरी मस्जिद के बीच के विवादों को कोई झुठला नहीं सकता...

12:40 से 01: 00 के बीच लंच हुआ तब हम दोस्तों के साथ कैण्टीन गए तब मैंने देखा कि मेरी प्रेयसी क्रान्ति सिंह अपने क्लासमेट्स के साथ लंच कर रही है। जो आज पिंक टॉप और क्रीम जीन्स पहने थी और पिंक कलर का ही बैग लायी थी क्योंकि इसे मैंचिंग बहुत पसन्द है। इस प्रेयसी से मेरी कुछ दिनों से बात नहीं है जो शायद ठीक ही है क्योंकि आज का जमाना ऐसा ही चल रहा है। और कॉलेज लाइफ में तो प्रेमी - प्रेमिकाओं के रिलेशन मुश्किल से अधिकतम साल - छः महीने तक ही चल पाते हैं और इससे भी बड़ी बात यह है कि दिल्ली जैसे शहरों में एक लड़के की कई गर्लफ्रैंड और एक लड़की के कई बॉयफ्रेंड रहते हैं। जो मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं। मैं अपने जीवन मैं सिर्फ एक गर्लफ्रैंड चाहता हूँ और वो भी प्रिन्सेस जैसी। साहसी, निडर, जीनियस और आन्दोलनकारी लड़की...

लंच में हम लोगों ने रोटी - सब्जी, मसाला डोसा और अण्डा - चाऊमीन लिया और फिर सारे दोस्त अलग - अलग हो गए और मैं लाइब्रेरी गया जहाँ से चार किताबें घर के लिए इसू करवायीं। जिनमें साहित्य, सिनेमा, समाज, मीडिया , सोशल मीडिया और विमर्श जैसे विषय समाहित हैं। लगभग 2 बजे कॉलेज के मैनगेट से ई-रिक्शा लिया और विश्वविद्यालय आ पहुँचा। वहाँ 20₹ के अन्नानास खाए और फिर दूसरा रिक्शा पकड़कर नेहरू विहार आ गया। जहाँ मेरा फ्लैट छटवें फ्लोर पर है। फ्लैट तक तकरीबन 80 - 90 सीढ़ियाँ चढ़नी पड़ती हैं। इतनी ऊँची चढ़ाई में सबकी हालात पस्त हो जाती है। ये है हम युवा स्टूडेंस्ट्स का संघर्ष...।।

  आपका, कुशराज
  झाँसी बुन्देलखण्ड






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