Sunday 23 June 2024

शोधपत्र - बुंदेली भाषा की राजनीति : एक पड़ताल - किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी', एड० अर्चना मिश्रा

 शोधपत्र - बुंदेली भाषा की राजनीति : एक पड़ताल  


©️ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 

      'कुशराज झाँसी'

(शोधार्थी - हिन्दी विभाग, बुंदेलखंड़ महाविद्यालय, झाँसी)

ईमेल - kushraazjhansi@gmail.com

पता - नन्नाघर, जरबौ गॉंव, बरूआसागर, झाँसी, अखंड बुंदेलखंड़ (284201)


©️ एड० अर्चना मिश्रा

(पूर्व छात्रा - विधि विभाग, बुंदेलखंड़ महाविद्यालय, झाँसी)

ईमेल - archanaishumishra@gmail.com

पता - गरौठा, झाँसी, अखंड बुंदेलखंड़ (284203)


***** 


शोधसार - बुंदेली भाषा बुंदेलखंड में बोली जाने वाली मुख्य भाषा है। इसे बुंदेलखंडी के नाम से भी जाना जाता है। बुंदेलखंड़ को हम लोग 'अखंड बुंदेलखंड' मानते हैं। बुंदेली का  विकास अपभ्रंश भाषा से 10वीं सदी में हुआ। 12वीं सदी में जगनिक द्वारा रचित आल्हा चरित (परमाल रासो) को बुंदेली का पहला महाकाव्य और जगनिक को पहला कवि माना जाता है। बुंदेली की लगभग 25 बोलियाँ प्रचलित हैं। भाषा की राजनीति का एक अपना इतिहास है। भाषा की राजनीति सदियों से होती चली आ रही है। समकालीन वैश्विक, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय परिदृश्य को देखकर यही लगता है कि भाषा के नाम पर राजनीति सदियों तक होती भी रहेगी। बुंदेली भाषा की राजनीति करने करने वालों में स्थानीय नेता से लेकर राष्ट्रीय नेता समेत प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी भी शामिल हैं और इस भाषायी अस्मिता की लड़ाई और राजनीतिक चेतना में लेखक और पत्रकार मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। भाषा और संस्कृति के संरक्षण और विकास में राजनीति और सरकार का पुरातन काल से लेकर आज तक अहम योगदान रहा है इसलिए भाषा की राजनीति होती है। उसी क्रम में बुंदेली भाषा की राजनीति होती आ रही है और जब तक बुंदेली भाषा भारत के संविधान 'भारत विधान' की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं हो जाती और अखंड बुंदेलखंड़ की राजभाषा नहीं बन जाती, तब तक बुंदेली भाषा की राजनीति होती रहनी चाहिए।


कुंजी शब्द - बुंदेली भाषा, बुंदेलखंडी, बुंदेलखंड़, अखंड़ बुंदेलखंड़, बुंदेली भाषा की राजनीति, राजनीति, बुंदेलखंड राज्य, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, संविधान, भारत विधान, राजभाषा, आठवीं अनुसूची।


प्रस्तावना - बुंदेली भाषा बुंदेलखंड में बोली जाने वाली मुख्य भाषा है। इसे बुंदेलखंडी के नाम से भी जाना जाता है। बुंदेलखंड़ को हम लोग 'अखंड बुंदेलखंड' मानते हैं। बुंदेली का  विकास अपभ्रंश भाषा से 10वीं सदी में हुआ। 12वीं सदी में जगनिक द्वारा रचित आल्हा चरित (परमाल रासो) को बुंदेली का पहला महाकाव्य और जगनिक को पहला कवि माना जाता है। ध्यान रहे कि बुंदेलखंड में आल्हा गायन के ऐतिहासिक परंपरा के कारण आल्हा विश्व की सबसे बड़ी लोकगाथाओं में आज भी सुशोभित हो रहा है। बुंदेली की लगभग 25 बोलियाँ प्रचलित हैं। बुंदेली भाषा-भाषी क्षेत्र के बारे में हमारी (कुशराज) ये अवधारणा है - " बुंदेली भाषा-भाषियों की जनसंख्या दस-बारह करोड़ है। बुंदेली भाषा-भाषी प्रदेश 'अखंड बुंदेलखंड' में उत्तर प्रदेश के आठ जिले - झाँसी, ललितपुर, जालौन, हमीरपुर, महोबा, बाँदा, चित्रकूट, फतेहपुर और मध्य प्रदेश के चौबीस जिले - टीकमगढ़, निवाड़ी, सागर, पन्ना, छतरपुर, दमोह, जबलपुर, दतिया, शिवपुरी, गुना, अशोकनगर, ग्वालियर, भिंड, मुरैना, श्योपुर, विदिशा, भोपाल, नरसिंहपुर, नर्मदापुरम, रायसेन, सीहोर, छिंदवाड़ा, सिवनी, बालाघाट आदि आते हैं। इन्हीं बत्तीस जिलों को हम मानक बुंदेली भाषा-भाषी क्षेत्र मानते हैं।"¹


इस अवधारणा में हमने बुंदेली भाषा-भाषी क्षेत्र के अन्तर्गत उन जिलों को रखा है, जहाँ आम जनता दैनिक बोलचाल से लेकर सांस्कृतिक कार्यक्रमों आदि में बुंदेली भाषा का प्रयोग करती है और भोपाल जैसे जिलों को इस कारण बुंदेली भाषा-भाषी क्षेत्र माना है क्योंकि कई दशकों से वहाँ बुंदेली भाषा के विकास और संरक्षण हेतु वैश्विक स्तर पर काम हो रहा है।

 

यदि हम बुंदेली की बोलियों की बात करें तो "'बुंदेली भाषा-भाषी क्षेत्र दर्शन' के अन्तर्गत आलोचक डॉ० राम नारायण शर्मा जनपदीय क्षेत्र विशेष और जाति विशेष में बुन्देली भाषा के नाम का उल्लेख करते हैं, जिन्हें हम (कुशराज) बुंदेली की बोलियाँ मानते हैं। उनके अनुसार अग्रलिखित बारह बोलियाँ हैं - शिष्ट हवेली, खटोला, बनाफरी, लुधियातीं, चौरासी, ग्वालियरी, भदावरी, तवरी, सिकरवारी, पवांरी, जबलपुरी, डंगाई। जबकि बुंदेलखंड में रहने वाले वाली जातियों की अपनी-अपनी बोलियाँ हैं। जातियों के आधार पर बुंदेली की प्रमुख बोलियाँ और उनकी जातियाँ इस प्रकार हैं -  कछियाई (काछी/कुशवाहा), ढिमरयाई (ढीमर/रायकवार), अहिरयाई (अहीर/यादव), धुबियाई (धोबी/रजक), लुधियाई (लोधी/राजपूत), बमनऊ (बामुन/ब्राह्मण/पंडित), किसानी (किसान), बनियाऊ (बनिया/व्यापारी), ठकुराऊ (ठाकुर/बुंदेला), चमरयाऊ (चमार/अहिरवार), गड़रियाई (गड़रिया/पाल), कुमरयाऊ या कुम्हारी (कुम्हार/प्रजापति), कलरऊ (कलार/राय), बेड़िया (बेड़नी/आदिवासी) आदि। यद्यपि लुधियातीं और लुधियाई बोली एक ही है इसलिए डॉ० रामनारायण शर्मा द्वारा प्रस्तुत उपर्युक्त बारह (12) बोलियाँ और हमारे द्वारा प्रस्तुत तेरह (13) बोलियाँ मिलाकर बुन्देली भाषा की 25 बोलियाँ मुख्य रूप से प्रचलित हैं। इनके अलावा भी बोलियाँ हैं, जिनका अभी संज्ञान में आना अपेक्षित है।"²


इस प्रकार हम लोग मानते हैं कि हर भाषा किसी क्षेत्र या राज्य या राष्ट्र विशेष की मातृभाषा और उसकी संस्कृति की संवाहिका होती है। यदि भाषा विलुप्त हो जाती है तो वहाँ की संस्कृति भी विलुप्त हो जाती है। इसलिए यदि हमें दुनिया और भारत देश को बहुभाषायी और बहुसांस्कृतिक बनाए रखना है तो हर छोटी से छोटी और बड़ी से बड़ी भाषा को जीवित रखना होगा और उसका संरक्षण करके उसके ज्ञान-विज्ञान के विविध क्षेत्रों में विकसित होने के द्वार खोलने होंगे। भाषा और संस्कृति के संरक्षण और विकास में राजनीति और सरकार का पुरातन काल से लेकर आज तक अहम योगदान रहा है इसलिए भाषा की राजनीति होती है। उसी क्रम में बुंदेली भाषा की राजनीति होती आ रही है और जब तक बुंदेली भाषा भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल  नहीं हो जाती और अखंड बुंदेलखंड़ की राजभाषा नहीं बन जाती, तब तक बुंदेली भाषा की राजनीति होती रहनी चाहिए। हम दोनों 'भारत के संविधान' को 'भारत विधान' नाम देना उचित समझते हैं क्योंकि जैसे अंग्रेजों के बनाए कानून इंडियन पीनल कोड को बदलकर 'भारतीय न्याय संहिता' बनाई गई और अंग्रेजों की दासता की निशानी मिटाई गई। वैसे ही नए भारत में तथाकथित दलित वर्ग / बहुजन वर्ग व्यक्ति विशेष को संविधान का जनक बताता है जबकि संविधान निर्माण समिति में अनेक नीतिनिर्माता थे। उन सबको उनका सम्मान मिल सके। इसके लिए सरकार को संविधान का नाम बदलकर 'भारत विधान' रखकर नया इतिहास रचना चाहिए।


बुंदेली भाषा की राजनीति - भाषा की राजनीति का एक अपना इतिहास है। भाषा की राजनीति सदियों से होती चली आ रही है। समकालीन वैश्विक, राष्ट्रीय और क्षेत्रीय परिदृश्य को देखकर यही लगता है कि भाषा के नाम पर राजनीति सदियों तक होती भी रहेगी। 

भारतीय संदर्भ में भाषा की राजनीति की पड़ताल हमने (कुशराज झाँसी) अपने लेख 'भाषा की राजनीति' में इस प्रकार की है - "भारत की आजादी के बाद जब राज्यों का पुर्नगठन हो रहा था तब भाषा के आधार पर राज्यों का पुनर्गठन उचित है या नहीं, इसकी जाँच के लिए संविधान सभा के अध्यक्ष डॉ० राजेन्द्र प्रसाद ने इलाहाबाद संविधान सभा के अवकाशप्राप्त न्यायाधीश एस० के० धर की अध्यक्षता में एक चार सदस्यीय आयोग की नियुक्ति की। इस आयोग ने भाषा के आधार पर राज्यों के पुर्नगठन का विरोध किया और प्रशासनिक सुविधाओं के आधार पर राज्यों के पुर्नगठन का समर्थन किया। और फिर धर आयोग के निर्णयों की परीक्षा करने के लिए कांग्रेस कार्य समिति ने अपने जयपुर अधिवेशन में जवाहर लाल नेहरू, वल्लभभाई पटेल और पट्टाभि सीतारमैय्या की एक समिति का गठन किया। इस समिति ने भाषायी आधार पर राज्यों पुर्नगठन की माँग को खारिज कर दिया। नेहरू, पटेल एवं सीतारमैय्या (जे०वी०पी० समिति) समिति की रिपोर्ट के बाद मद्रास राज्य के तेलगू-भाषियों ने पोटी श्री रामुल्लू के नेतृत्व में आन्दोलन छेड़ दिया और 56 दिन के आमरण अनशन के बाद 15 दिसम्बर 1952 ई० को रामुल्लू की मृत्यु हो गई। रामुल्लू की मृत्यु के बाद प्रधानमंत्री नेहरू ने तेलगूभाषियों के लिए पृथक 'आन्ध्र प्रदेश' के गठन की घोषणा कर दी। 01 अक्टूबर 1953 ई० को आन्ध्र प्रदेश राज्य का गठन हो गया। यह राज्य स्वतंत्र भारत में भाषा के आधार पर गठित होने वाला पहला राज्य था। उस समय आन्ध्रप्रदेश की राजधानी कर्नूल थी। इसी प्रकार 01 मई 1960 ई० को मराठी और गुजराती भाषियों के बीच संघर्ष के कारण बम्बई राज्य का बंटवारा करके महाराष्ट्र एवं गुजरात नामक दो राज्यों की स्थापना की गई। और 01 नवम्बर 1966 ई० को पंजाब को विभाजित करके पंजाब (पंजाबी भाषी) एवं हरियाणा (हिन्दी भाषी) दो राज्य बना दिए गए।"³


'भाषा की राजनीति' नामक लेख में ही 'बुंदेली भाषा की राजनीति' विषय पर इस तरह प्रकाश डालने का प्रयास किया है  - "आज भी भाषा की राजनीति बहुत हो रही है। पूर्वांचल क्षेत्र के भोजपुरीभाषी भोजपुरी को संविधान की आठवीं अनुसूचि में सम्मिलित कराने हेतु आन्दोलन कर रहें हैं और वहीं दूसरी ओर बुन्देलीभाषी तो पृथक बुन्देलखण्ड राज्य की माँग कर रहे हैं।"⁴


बुंदेली भाषा की राजनीति करने करने वालों में स्थानीय नेता से लेकर राष्ट्रीय नेता यहाँ तक प्रधानमंत्री भी शामिल हैं और इस भाषायी अस्मिता की लड़ाई और राजनीतिक चेतना में लेखक और पत्रकार मुख्य भूमिका निभा रहे हैं। जिनके बारे में हम यहाँ विवेचन कर जा रहे हैं।


राष्ट्रीय स्तर पर बुंदेली भाषा की राजनीति और राजनीति में बुंदेली के प्रथम प्रयोग के साक्ष्य हमें बुंदेली की पहली पत्रिका 'मधुकर' के सन 1943 में प्रकाशित अंक 'बुंदेलखंड प्रांत निर्माण विशेषांक' में मिलते हैं। जिसके संपादक बनारसीदास चतुर्वेदी जी थे।⁵


इसी क्रम हम पाते देखते हैं कि 21वीं सदी बुंदेली भाषा की राजनीति में मील का पत्थर साबित हुई है क्योंकि सूचना क्रांति के इस युग में सोशल मीडिया के माध्यम से हर कोई अपनी आवाज दुनिया के हर कोने तक पहुँचा पा रहा है इसलिए बुंदेलखंड़ की जमीनी हकीकत से जुड़े छात्रनेता और युवा लेखक कुशराज झाँसी उर्फ सतेंद सिंघ किसान बुंदेली और बुंदेलखंड के हक में समय-समय पर सोशल मीडिया और ब्लॉग के माध्यम से आवाज उठाते रहे हैं। उन्होंने 09 दिसंबर 2019 को अपनी फेसबुक पोस्ट में लिखा था - "बुन्देलखण्ड राज्य निर्माण हो...बुन्देली भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हो… हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की भाषा हिन्दी हो...।"⁶

फिर उन्होंने 13 जनवरी 2020 को अपने ब्लॉग 'कुसराज की आबाज' पर 'बुंदेली बुंदेलखंड आंदोलन' के अंतर्गत लिखा - "बुंदेली हमाई मातभासा हैगी, इए सम्मान और सांबिधानिक अधकार दिलाबो हमाओ फरज बनत...।"⁷ इसके बाद उन्होंने फिर से  24 जुलाई 2020 को 'अखंड बुंदेलखंड महाँपंचयात' संगठन की स्थापना करके अपनी ई-पत्रिका 'अखंड बुंदेलखंड़' में आवाज उठाई -


 " जब तेलगू भासियन के लानें आंध्रा और तेलंगाना राज्ज

तमिलन के लानें तमिलनाडु

मराठियन के लानें महारास्ट्र

गुजरातियन के लानें गुजरात

बंगालियन के लानें बंगाल

तो बुंदेलखंडियन के लानें अखंड बुंदेलखंड काय नईं?

बुंदेली भासियन के लानें अखंड बुंदेलखंड राज्ज बनें चज्जे और उते की राजभासा बुंदेली-किसानी...।"⁸


बुंदेलीभाषी राज्य बुंदेलखंड के बारे में हम लोग 30 अक्टूबर 2020 को जागरण न्यूज पोर्टल पर प्रकाशित पत्रकार राजेश शर्मा की रिपोर्ट '64 साल पहले खत्म हुआ था बुन्देलखण्ड राज्य का अस्तित्व' में बहुत जरूरी तथ्य पाते हैं, जो इस प्रकार हैं -  स्वतंत्र भारत में जब राज्यों का गठन हुआ तब संविधान सभा ने 12 मार्च सन 1948 को बुंदेलीभाषी राज्य 'बुंदेलखंड' का गठन किया। जिसकी राजधानी नौगांव (छतरपुर) रही और कामना प्रसाद सक्सेना मुख्यमंत्री रहे। 8 साल 7 माह तक बुंदेलखंड राज्य का अस्तित्व बना रहा और 31अक्टूबर 1956 को बुंदेलखंड़ के कुछ जिलों का उत्तर प्रदेश और कुछ जिलों का मध्य प्रदेश में विलय कर दिया गया।⁹


इस प्रकार सन 1956 के बाद से ही बुंदेलीभाषी अपनी भाषा और संस्कृति की अस्मिता की रक्षा हेतु पृथक बुंदेलखंड राज्य निर्माण हेतु आंदोलन करते आ रहे हैं। यह आंदोलन आज भी जारी है। बुंदेलखंड राज्य निर्माण हेतु प्रयासरत आंदोलनकारी एवं बुंदेलखंड क्रान्ति दल के अध्यक्ष सत्येन्द्र पाल सिंह कहते हैं - "प्राचीन काल में भी बुन्देलखण्ड का अस्तित्व रहा है। तब देश में 16 महाजनपद थे, जिसमें बुन्देलखण्ड राज्य था, जिसे 'चेदी' नाम से जाना जाता था। आजाद भारत में भी 8 साल 7 माह तक बुन्देलखण्ड राज्य रहा है। चूँकि फजल अली आयोग ने भाषा के आधार पर राज्य बनाने की सहमति दी थी, पर इसके बाद कोई आयोग का गठन नहीं किया गया। तब 14 राज्य व 6 केन्द्र शासित प्रदेश थे, जबकि अब 28 राज्य व 8 केन्द्र शासित प्रदेश हैं। सरकारों ने नए 10 राज्य किस आधार पर बनाए, इसका जवाब किसी के पास नहीं है।"¹⁰


इसी प्रकार बुंदेलखंड़ के जीवंत विश्वकोश कहे जाने वाले विद्वान और राजनेता हरगोविन्द कुशवाहा कहते हैं - "बुन्देलखण्ड की संस्कृति सबसे प्राचीन है। आजादी के बाद विन्ध्य प्रान्त में बुन्देलखण्ड राज्य का अस्तित्व भी था। साढ़े आठ साल बाद राज्य पुनर्गठन आयोग की सिफारिश पर बुन्देलखण्ड राज्य को उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश के बीच बाँट दिया गया। इसके बाद से ही अलग राज्य की माँग की जा रही है।"¹¹


बुंदेली भाषा के संवैधानिक अधिकारों के आंदोलन और बुंदेली भाषा की राजनीति करने वालों नेताओं और बुंदेलीभाषी जनता को मनमंदिर में अपनी अमिट छवि स्थापित करने हेतु 29 फरवरी 2020 को भारत सरकार और उत्तर प्रदेश सरकार की महत्त्वाकांक्षी परियोजना 'बुंदेलखंड एक्सप्रेसवे' के शिलान्यास के अवसर पर चित्रकूट में जनसभा को बुंदेली भाषा में संबोधित करते हुए यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी ने कहा - "चित्रकूट में राम जी अपने भाई लखन और सिया जी के साथ इतईं निवास करत हैं। जासैं हम मर्यादा पुरुषोत्तम राम की तपोस्थली में आप सभई को अभिनंदन करत हौं"¹²


इसके बाद 1857 की क्रांति यानी प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की अग्रदूत झाँसी की रानी वीरांगना लक्ष्मीबाई की जयंती के उपलक्ष्य में 19 नवंबर 2021 को अखंड बुंदेलखंड़ की प्रस्तावित राजधानी झाँसी में राष्ट्र रक्षा समर्पण पर्व के अवसर पर यशस्वी प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी बुंदेली भाषा से अपना संबोधन देकर बुंदेली भाषा के संवैधानिक अधिकारों की प्राप्ति मार्ग में आ रही बाधाओं को दूर करने का संदेश दिया। उन्होंने अपना संबोधन इस प्रकार शुरू किया - "जौन धरती पै हमाई रानी लक्ष्मीबाई जू ने, आजादी के लाने, अपनो सबई न्योछार कर दओ, वा धरती के बासियन खों हमाऔ हाथ जोड़ के परनाम पौंचे। झाँसी ने तो आजादी की अलख जगाई हती। इतै की माटी के कन कन में, बीरता और देस प्रेम बसो है। झाँसी की वीरांगना रानी लक्ष्मी बाई जू को, हमाओ कोटि कोटि नमन।"¹³


बुंदेली भाषा को संवैधानिक मान्यता और पृथक बुंदेलखंड राज्य निर्माण के प्रबल समर्थक, बाँदा-हमीरपुर सांसद माननीय कुँवर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल ने 03 दिसंबर 2021 को लोकसभा में बुंदेली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु निजी विधेयक प्रस्तुत करते हुए कहा - "अध्यक्ष जी, बुंदेलखंड क्षेत्र एक विशेष संस्कृति वाला क्षेत्र है और वहाँ की अपनी एक बुंदेली भाषा है। देश में करीब 60 करोड़ लोग हिन्दी भाषा बोलने वाले हैं और इन लोगों में से करीब 12 प्रतिशत लोग बुंदेली भाषा बोलते हैं। भाषा से ही क्रियाओं और विभिन्न संज्ञाओं का ज्ञान होता है और भाषा के द्वारा ही मनुष्य की संवेदनाओं और विचारों को व्यक्त किया जाता है। इस कारण से भारतीय संस्कृति में भाषा पर हर संभव प्रकार से विचार किया गया है। यह उसी का प्रमाण है कि भारतीय संस्कृति के पास साहित्य और भाषा का विपुल भंडार है। संस्कृत भाषा भारतीय भाषाओं सहित विश्व की सभी भाषाओं की जननी है। इसके परिणामस्वरूप भारतवर्ष में 22 भाषाएँ अनुसूचित हैं और सैकड़ों भाषाएँ तथा बोलियाँ हैं। इन बोलियों द्वारा ही भारत के पास असीम वैचारिक शक्ति है। संस्कृत की तरह इन भाषाओं के पास भारत के उत्थान और विकास के लिए मार्गदर्शक शक्ति है जिसको और ज्यादा सहजने तथा संवारने की जरूरत है। यदि इनमें कुछ भाषाओं को विशेष संवैधानिक संरक्षण प्राप्त होगा, तो नए भारत का निर्माण और तेजी से होगा। महोदय, मेरी मांग है कि बुंदेलखंड में 'आल्हा' गायन बुंदेली भाषा में होता है। यह दुनिया का एकमात्र ऐसा खंडकाव्य है जो हजारों वर्षों से आज तक जीवित है। दुनिया के विकसित देशों के हजारों छात्र वहाँ गाई जा रही वीरता की गाथाओं पर शोध कर रहे हैं। महारानी लक्ष्मी बाई हमारे यहां से आईं। आपने हमेशा सुना होगा – 'बुंदेले हर बोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी, खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी।' मेरा निवेदन है कि आठवीं अनुसूची में भारत सरकार बुंदेली भाषा को जोड़े, ताकि वहाँ अपनी भाषा समझने वाले छात्र प्रतियोगी परीक्षाओं में उच्च स्तर पर पहुंच सकें और उच्च पदों पर सुशोभित हो सकें।"¹⁴


ससंद में सांसद कुँवर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल द्वारा बुंदेली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु पेश किए गए निजी विधेयक के बाद राष्ट्रीय स्तर पर बुंदेली राजनैतिक विमर्श का केंद्र बन गई और फिर इसके बाद जब 28 फरवरी 2022 को उत्तर प्रदेश विधानसभा में झाँसी के किसान नेता और गरौठा विधायक माननीय जवाहरलाल राजपूत ने अपनी बुंदेली भाषा में विधायक पद की शपथ ली। तब से हर बुंदेलीभाषी अपनी मातृभाषा और मातृभूमि की अस्मिता की रक्षा खातिर हर तरीके से लड़ने को तैयार हो गया। क्योंकि यदि उसकी भाषा को मान-सम्मान नहीं मिलेगा और उसकी संस्कृति भी संकट में पड़ जाएगी। इसकिए वह अपनी संस्कृति की रक्षा खातिर सजग है। जवाहर लाल राजपूत बुंदेलखंड के एकमात्र विधायक रहे, जिन्होंने क्षेत्रीय भाषा में शपथ ली थी। देखिए उनकी शपथ के अंश - "हम जवाहर लाल राजपूत, जो विधानसभा के सदस्य निर्वाचित भए हैं। भगवान को कौल खाकें कैरए हैं, कै हम विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के लानें सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखें। हम भारत की प्रभुता और अखंडता अक्षुण्ण रखें और जी पद खों हम ग्रहण करबे बारे हैं, ऊके कर्तव्यन कौ श्रद्धा पूर्वक पालन करें।"¹⁵


निष्कर्ष - उपरोक्त विवेचन के आधार पर हम कह सकते हैं कि बुंदेली भाषा की राजनीति बुंदेली भाषा को कानूनी मान्यता दिलाने हेतु यानी भारत के संविधान 'भारत विधान' की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने हेतु की जा रही है। हम सबके लिए ये हर्ष की बात है कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 में शिक्षा के माध्यम के रूप में क्षेत्रीय भाषाओं / स्थानीय भाषाओं / मातृभाषाओं  के अन्तर्गत बुंदेली भाषा को भी प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाया गया है और प्राथमिक शिक्षा से लेकर उच्च शिक्षा तक में बुंदेली भाषा को स्वतंत्र विषय के रूप में पढ़ाए जाने का यथोचित प्रावधान भी किया गया है। बुंदेली भाषा को सवैंधानिक मान्यता मिल जाने से सिविल सेवा, केंद्रीय सेवाओं और राज्य सेवाओं समेत हर सरकारी नौकरी से बुंदेलीभाषी चयनित होंगे क्योंकि अपनी भाषा में हर जंग जीती जा सकती है।


संदर्भ -

¹ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी' एवं दीपक नामदेव, बुंदेली भाषा और साहित्य का विकास एवं संरक्षण, बुंदेली झलक, झाँसी, 14 मार्च 2024

https://bundeliijhalak.com/bundeli-bhasha-aur-sahitya-ka-vikas/


² किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी' एवं दीपक नामदेव, बुंदेली भाषा और साहित्य का विकास एवं संरक्षण, बुंदेली झलक, झाँसी, 14 मार्च 2024

https://bundeliijhalak.com/bundeli-bhasha-aur-sahitya-ka-vikas/


³ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी', भाषा की राजनीति, कुसराज की आबाज, झाँसी, 09 मई 2024

https://kushraaz.blogspot.com/2024/05/blog-post_25.html


⁴ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी', भाषा की राजनीति, कुसराज की आबाज, झाँसी, 09 मई 2024

https://kushraaz.blogspot.com/2024/05/blog-post_25.html


⁵ नरेंद्र अड़जरिया, भारत में आंचलिक पत्रकारिता और बुंदेलखंड़, यश पब्लिकेशन, नई दिल्ली, संस्करण 2023, पृष्ठ 54


⁶ कुशराज, फेसबुक पोस्ट, कुशराज का फेसबुक पेज, झाँसी, 9 दिसंबर 2029

https://www.facebook.com/126613095401617/posts/pfbid02WhoTTrBXZUkvFfNg5uDMMpoGe1SLiJroDtXR9qBtHe8JHdKuDAXWVhFJPcY1WPNsl/?app=fbl


⁷ कुसराज झाँसी, बुंदेली बुंदेलखंड़ आंदोलन, कुसराज की आबाज, झाँसी, 13 जनवरी 2020

https://kushraaz.blogspot.com/2020/01/blog-post.html?m=1


⁸ सतेंद सिंघ किसान, बुंदेलखंडियन के लानें अखंड बुंदेलखंड काय नईं?, अखंड बुंदेलखंड महाँपंचयात, झाँसी, 24 जुलाई 2020

https://akhandbundelkhand.blogspot.com/2020/07/blog-post_24.html


⁹ राजेश शर्मा, 64 साल पहले खत्म हुआ था बुन्देलखण्ड राज्य का अस्तित्व, जागरण, झाँसी, 30 अक्टूबर 2020

https://www.jagran.com/uttar-pradesh/jhansi-city-20987207.html


¹⁰ राजेश शर्मा, 64 साल पहले खत्म हुआ था बुन्देलखण्ड राज्य का अस्तित्व, जागरण, झाँसी, 30 अक्टूबर 2020

https://www.jagran.com/uttar-pradesh/jhansi-city-20987207.html


¹¹ राजेश शर्मा, 64 साल पहले खत्म हुआ था बुन्देलखण्ड राज्य का अस्तित्व, जागरण, झाँसी, 30 अक्टूबर 2020

https://www.jagran.com/uttar-pradesh/jhansi-city-20987207.html


¹² प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जब बुंदेली भाषा में पीएम मोदी ने कहा "सभई को अभिनंदन करत हौं" तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा सभास्थल, पत्रिका, चित्रकूट, 29 फरवरी 2020

https://www.patrika.com/chitrakoot-news/modi-narendra-modi-bundelkhand-express-way-chitrakoot-5839448


¹³ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, 'झांसी,उत्तर प्रदेश में राष्ट्र रक्षा समर्पण पर्व पर प्रधानमंत्री के संबोधन का मूल पाठ', पीएमइंडिया, नईदिल्ली, 19 नवंबर 2021

https://www.pmindia.gov.in


¹⁴ सांसद कुँवर पुष्पेंद्र सिंह चंदेल, लोकसभा बुंदेली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने हेतु लोकसभा में प्रस्तुत निजी विधेयक, लोकसभा टीवी, नईदिल्ली, 3 दिसंबर 2021

https://www.facebook.com/share/v/QRBT2m2LwFP1RrVw/?mibextid=oFDknk


¹⁵ विधायक जवाहरलाल राजपूत, 'जौन पद खों हम ग्रहण करबे बारे हैं, ऊके कर्तव्यन कौ श्रद्धा पूर्वक पालन करें', अमर उजाला, झाँसी, 28 मार्च 2022

https://www.amarujala.com/uttar-pradesh/jhansi/we-are-about-to-accept-jaun-s-post-who-should-follow-our-duties-with-devotion-jhansi-news-jhs217564873

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