कुशराज झाँसी की किसान विमर्श की बदलाओकारी कविताएँ : किसानी कैप्सूल
*** कुशराज झाँसी की किसान विमर्श की बदलाओकारी कविताएँ - "किसानी कैप्सूल" ***
1.
हम किसान,
उपजाते हैं अन्न।
मिटाते हैं दुनिया की भूख,
मगर खुद भूखे रह जाते हैं।
2.
भगवान भरोसे खेती करते,
सूखा पड़े या आए बाढ़।
मुँह नहीं मोड़ेंगे,
हम खेती से।
क्योंकि हम,
अन्नपूर्णा माँ के बेटे हैं।
3.
परंपरागत बीजों से खेती
करें किसान,
उपज भले ही हो कम,
स्वस्थ रखेंगे सबको हम।
4.
हरित क्रांति ने खेती में रसायन घोला,
उपज को कई गुना बढ़ाया,
सबकी थाली को जहरीला बनाया।
5.
हम बुंदेली किसान,
मोटे अनाज उपजाते थे।
मोटा ही खाते थे,
मोटा ही पहनते थे।
खुद तंदुरुस्त रहके,
दुनिया को हष्ट-पुष्ट बनाते थे।
6.
सरकार ने श्रीअन्न योजना चलाई है,
गाँव-गाँव परंपरागत खेती की बहार आई है।
अब हम फिर से मोटे अनाज उगाएंगे,
दुनिया को शक्तिशाली बनाएंगे।
7.
चार महीने में हमने,
हाड़तोड़ मेहनत से,
चकाचक टमाटर उपजाया।
मंडी में आकर मट्टी हुई पलीत,
जब टमाटर औनेपौने दाम बिका।
8.
मंडी के बड़े व्यापारी ने
हमसे टमाटर
आठ रुपए किलो खरीदा।
फिर उसने ठेलेवाले को
बारह रुपए किलो बेचा।
ठेलेवाले ने वही टमाटर
बीस रुपए किलो बेचा।
सब विक्रेताओं ने
खूब मुनाफा कमाया।
हम अन्नदाता किसान के हाथ
लागत मूल्य ही नहीं आया।
©️ कुशराज झाँसी
(किसानवादी विचारक, युवा लेखक)
संशोधित रचना - 12/8/2024_4:30दिन_ खुशीपुरा झाँसी
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