बुंदेली के महत्त्व को रेखांकित करता लघुशोध-प्रबंध '21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन' - डॉ० शिवजी श्रीवास्तव

सुप्रसिद्ध आलोचक, कथाकार, शिक्षाविद आदरणीय डॉ० शिवजी श्रीवास्तव द्वारा की गई गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज' के लघुशोध-प्रबंध '21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन" की समीक्षा.....







बुंदेली के महत्त्व को रेखांकित करता लघुशोध-प्रबंध '21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन'

©️ डॉ० शिवजी श्रीवास्तव



बुंदेली भाषा का अपना समृद्ध इतिहास है। बुंदेली में साहित्य रचने वालों की भी एक समृद्ध परंपरा है।साहित्य के प्रत्येक कालखंड में अनेक साहित्यकार बुंदेली में साहित्य-सृजन करते रहे हैं। बुंदेलखंड के लोक जीवन में भी बुंदेली घुली मिली है। शहरी क्षेत्र में भले ही बुंदेली कम बोली जाती हो किंतु ग्रामीण अंचलों में अभी भी बुंदेली का ही प्रयोग होता है।बुंदेली के संरक्षण और संवर्धन हेतु बुद्धिजीवी और बुंदेलीप्रेमियों द्वारा सतत प्रयास जारी हैं। प्रसन्नता का विषय है कि विद्यार्थी भी बुंदेली के महत्त्व को समझते हुए उसके विकास और संरक्षण की दिशा में प्रयत्नशील हो रहे हैं। श्री गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज' का लघुशोध-प्रबंध '21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन' इसी दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। बुंदेलखंड महाविद्यालय झाँसी के हिन्दी विभाग के अंतर्गत प्रो० संजय सक्सेना के निर्देशन में अत्यंत परिश्रम पूर्वक लिखा गया यह लघुशोध-प्रबंध अपने शीर्षक के ही अनुरूप वर्तमान सदी में बुंदेली के महत्त्व को रेखांकित कर रहा है।

          

          सम्पूर्ण शोध-प्रबंध को शोधार्थी ने तीन अध्यायों में विभक्त किया है। प्रथम अध्याय - '21वीं सदी और बुंदेली भाषा' को चार उपशीर्षकों में विभाजित करते हुए शोधार्थी ने सर्वप्रथम 21वीं सदी को भारत की सदी बतलाते हुए बुंदेली भाषा की उत्पत्ति और विकास की विवेचना की है। विवेचना के अंतर्गत उन्होंने तर्कपूर्ण ढंग से बुंदेली की उत्पत्ति वेदों से बतलाते हुए उसके विकास की चर्चा की है। इस अध्याय में ही बुंदेली के क्षेत्र का वर्णन करते हुए परंपरा से क्रमशः बोलचाल में, साहित्य में और राजकाज में प्रयुक्त होने वाली बुंदेली भाषा के स्वरूप को संक्षेप में दिया है। साहित्य में बुंदेली के प्रयोग के उदाहरणों में आल्हाखंड, ईसुरी की फागें और किसान कवि बजीर के साहित्य से दृष्टांत प्रस्तुत किए हैं तथा राजकाज की भाषा के उदाहरण के रूप में छतरपुर की महारानी द्वारा महारानी लक्ष्मीबाई को बुंदेली में लिखे गए ऐतिहासिक पत्र को उद्धृत किया है। इसी अध्याय के चतुर्थ उपखंड में शोधकर्त्ता ने बुंदेली की 25 ज्ञात बोलियों का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया है कि अन्य बोलियों का संज्ञान में आना भी अपेक्षित है।


          लघुशोध-प्रबंध के द्वितीय अध्याय - '21वीं सदी में विभिन्न क्षेत्रों में बुंदेली' के अंतर्गत दस उपखंड है जिनमें क्रमशः 21वीं सदी के समाज में/बोलचाल में, साहित्य में, संस्कृति में, शिक्षा में, पत्रकारिता में, सिनेमा में, सोशल मीडिया में, राजनीति में, राजकाज में और बाजार में बुंदेली का विवेचन उदाहरणों सहित किया गया है। आवश्यक स्थलों पर ऐतिहासिक संदर्भ और महत्त्वपूर्ण घटनाओं का भी उल्लेख किया गया है। इस अध्याय के अंतर्गत ही शोधार्थी ने बुंदेलखंड के अनेक लोक उत्सवों, लोक नृत्यों और समय-समय पर आयोजित होने वाले लोक महोत्सवों तथा बुंदेली के साहित्यकारों, पत्रकारों, कलाकारों का परिचय देते हुए बुंदेली के विकास के लिए चलने वाले योगदानों का भी वर्णन किया है।


          लघुशोध-प्रबंध के तृतीय अध्याय में साक्षात्कार हैं। इस अध्याय में बुंदेली के संदर्भ में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झाँसी के आचार्य प्रो० पुनीत बिसारिया, संस्कृतिकर्मी डॉ० रामशंकर भारती, साहित्यकार डॉ० रामनारायण शर्मा और फिल्म अभिनेता आरिफ शहडोली के साक्षात्कार हैं। इन सभी साक्षात्कारों में बुंदेली के वर्तमान की समस्याओं और भविष्य के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण सवाल हैं। इन सवालों में बुंदेली का भविष्य, बुंदेली शोधपीठ की स्थापना, बुंदेली साहित्य को सम्मानित करने और बुंदेली को आठवीं अनुसूची में शामिल करने जैसे विषयों के संबंध में सवाल हैं। अंतिम अध्याय उपसंहार में निष्कर्ष रूप में समस्त अध्यायों का सार भाग प्रस्तुत है।


          सम्पूर्ण लघुशोध-प्रबंध श्री कुशराज की शोध-दृष्टि, उनकी अध्ययनवृत्ति और बुंदेली के उत्थान के प्रति उनकी लगन का परिचायक है। एक बात अवश्य कहना चाहूँगा कि कुशराज जी ने लघुशोध हेतु जिस विषय का चयन किया है, उसका फलक अत्यंत विस्तृत है, वस्तुतः यह विषय शोध-ग्रंथ हेतु उपयुक्त होता। विस्तृत फलक होने के कारण अनेक स्थलों पर विषय-वस्तु परिचयात्मक होकर रह गई है। 


          इस लघुशोध-प्रबंध को देखकर यह तो कहा ही जा सकता है कि इसमें बुंदेली के भविष्य को देखने वाली अनेक खिड़कियों को खोला गया है। इन खिड़कियों से झाँककर बुंदेली के भविष्य को देखा जा सकता है। आशा है कि भविष्य में वे इसी विषय को अपने शोध का विषय बनाएंगे और विस्तार से विवेचना करेंगे। कुशराज जी में संभावनाएँ हैं। मेरी शुभकामनाएँ उनके साथ हैं।


13 अगस्त 2024, नोएडा      

(सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर - श्री चित्रगुप्त पी० जी० कॉलेज, मैनपुरी, उत्तर प्रदेश)

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