राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 और विकलांगता - किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज'

 शोध आलेख : “ राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 और विकलांगता ”


©️ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज'

(युवा आलोचक, किसानवादी विचारक)

पता - 212 नन्नाघर, जरबौ गॉंव, बरूआसागर, झाँसी, अखंड बुंदेलखंड (284201)

संपर्क - 9569911051

ईमेल - kushraazjhansi@gmail.com


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21वीं सदी अस्मितामूलक विमर्शों के चहुँमुखी विकास हेतु वरदान साबित हो रही है। इस सदी में विकलांग विमर्श की साहित्य जगत में अनोखी पहचान बनी है। विकलांग विमर्श का प्रवर्त्तन डॉ० विनय कुमार पाठक ने बिलासपुर (छत्तीसगढ़) की धरती से किया है। स्त्री विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श आदि परंपरागत अस्मितामूलक विमर्शों के समानांतर 21वीं सदी में किन्नर विमर्श, विकलांग विमर्श, किसान विमर्श, पर्यावरण विमर्श, वृद्ध विमर्श, अल्पसंख्यक विमर्श, बाल विमर्श, पुरूष विमर्श, वेश्या विमर्श और भिक्षुक विमर्श आदि नए अस्मितामूलक विमर्शों का विकास बड़ी तेजी से हो रहा है। ये अस्मितामूलक विमर्श हाशिए के समाज की वैश्विक पटल पर अनोखी पहचान बनाने में सफल रहे हैं। इन विमर्शों की अपार शक्ति के कारण ही हाशिए के समाज को उनके मौलिक अधिकार मिल पा रहे हैं और वे मुख्यधारा के समाज के साथ मिलकर अपने विकास के नए द्वार खोल रहे हैं।


राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 21वीं सदी के भारत की पहली शिक्षा नीति है और अब तक की तीसरी शिक्षा नीति है। इसके पहले की दो शिक्षा नीतियाँ सन 1968 और सन 1986 में आईं थीं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 भारत सरकार द्वारा 29 जुलाई 2020 को जारी की गई। इस शिक्षा नीति का लक्ष्य भारत को ‘वैश्विक ज्ञान महाशक्ति’ के रूप में प्रतिष्ठित करना रखा गया है।


राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 में उसके उद्देश्यों को रेखांकित करते हुए कहा गया है - “यह राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020, 21वीं शताब्दी की पहली शिक्षा नीति है जिसका लक्ष्य हमारे देश के विकास के लिए अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करना है। यह नीति भारत की परंपरा और सांस्कृतिक मूल्यों के आधार को बरकरार रखते हुए, 21वीं सदी की शिक्षा के लिए आकांक्षात्मक लक्ष्यों, जिनमें एसडीजी 4 शामिल हैं, के संयोजन में शिक्षा व्यवस्था, उसके नियमन और गवर्नेंस सहित, सभी पक्षों के सुधार और पुनर्गठन का प्रस्ताव रखती है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति प्रत्येक व्यक्ति में निहित रचनात्मक क्षमताओं के विकास पर विशेष जोर देती है। यह नीति इस सिद्धांत पर आधारित है कि शिक्षा से न केवल साक्षरता और संख्याज्ञान जैसी 'बुनियादी क्षमताओं' के साथ-साथ उच्चतर स्तर' की तार्किक और समस्या समाधान संबंधी संज्ञानात्मक क्षमताओं का विकास होना चाहिए बल्कि नैतिक, सामाजिक और भावनात्मक स्तर पर भी व्यक्ति का विकास होना आवश्यक है।”¹


भारत सरकार द्वारा सन 2015 में अपनाए गए सतत विकास एजेंडा - 2030 के लक्ष्य-4 (एसडीजी-4) में परिलक्षित वैश्विक शिक्षा विकास एजेंडा के अनुसार, विश्व में 2030 तक “सभी के लिए समावेशी और समान गुणवत्तायुक्त शिक्षा सुनिश्चित करने और जीवन-पर्यंत शिक्षा के अवसरों को बढ़ावा दिए जाने” का लक्ष्य रखा गया है। इस प्रकार के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु संपूर्ण शिक्षा प्रणाली को समर्थन और अधिगम को बढ़ावा देने के लिए पुनर्गठित करने की आवश्यकता होगी, ताकि सतत विकास के लिए 2030 एजेंडा के सभी लक्ष्य प्राप्त किए जा सकें।


अब हम ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 और विकलांगता’ के बारे में बात करते हैं। ‘विकलांगता’ की समस्या से ग्रसित मानव-मानवी ‘विकलांग’ कहलाते हैं। इन विकलांगों की समस्याओं और उनके समाधान सहित उनके जीवन के हर पहलू की सशक्त अभिव्यक्ति जिस अस्मितामूलक विमर्श में होती है, उसे ‘विकलांग विमर्श’ कहते हैं। विकलांगों के जीवन पर लिखे गए साहित्य को ‘विकलांग साहित्य’ और विकलांगों के हक में अपनी कलम चलाने वाले साहित्यकारों को ‘विकलांग साहित्यकार’ कहते हैं। हम विकलांग विमर्श को ‘दिव्यांग विमर्श’ कहना ज्यादा उचित समझते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 में ‘विकलांग’ हेतु ‘दिव्यांग’ शब्द का ही प्रयोग किया गया है। दिव्यांगों के विकास में शिक्षा का अविस्मरणीय योगदान है। 


राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 में शिक्षा प्रणाली और व्यक्तिगत संस्थानों के मार्गदर्शन हेतु इन मूलभूत सिद्धांतों का उल्लेख किया गया है - (1.) हर बच्चे की विशिष्ट क्षमताओं की स्वीकृति, पहचान और उनके विकास हेतु प्रयास करना (2.) बुनियादी साक्षरता और संख्याज्ञान को सर्वाधिक प्राथमिकता देना (3.) सभी ज्ञान की एकता और अखंडता को सुनिश्चित करने के लिए एक बहु-विषयक दुनिया के लिए विज्ञान (4.) नैतिकता, मानवीय और संवैधानिक मूल्य 

(5.) बहुभाषिकता (6.) जीवन कौशल (7.) सीखने के लिए सतत मूल्यांकन पर जोर आदि के साथ ही ‘तकनीकी के यथासंभव उपयोग पर जोर’ नामक मूलभूत सिद्धांत के अन्तर्गत दिव्यांगों की शिक्षा को सुलभ बनाने हेतु जोर देते हुए कहा गया है - “अध्ययन-अध्यापन कार्य में, भाषा संबंधी बाधाओं को दूर करने में, दिव्यांग बच्चों के लिए शिक्षा को सुलभ बनाने में और शैक्षणिक नियोजन और प्रबंधन में तकनीकी के यथासंभव उपयोग पर जोर दिया जाना चाहिए।”²


‘प्रारंभिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा : सीखने की नींव’ शीर्षक के उपशीर्षक ‘ड्रापआउट बच्चों की संख्या कम करना और सभी स्तरों पर शिक्षा की सार्वभौमिक पहुँच सुनिश्चित करना’ में दिव्यांग सशक्तिकरण पर जोर देते हुए कहा गया है - “दूसरा यह है कि स्कूलों में सभी बच्चों की सहभागिता सुनिश्चित हो, इसके लिए बहुत ध्यान से सभी विद्यार्थियों की ट्रैकिंग करनी होगी, साथ-साथ उनके सीखने के स्तर पर भी नजर रखनी होगी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे (क) स्कूल में दाखिला ले रहे हैं और उपस्थित हो रहे हैं (ख) ड्रॉपआउट बच्चों के लौटने और यदि वे पीछे रह गए हैं तो उन्हें पुनः मुख्यधारा से जोड़ने के लिए पर्याप्त सुविधाएँ उपलब्ध हैं। फाउंडेशनल स्टेज से लेकर कक्षा 12 तक की स्कूली शिक्षा के जरिये 18 वर्ष की आयु तक सभी बच्चों को समान गुणवत्ता वाली शिक्षा प्रदान करने के लिए बुनियादी सुविधा उपलब्ध कराई जाएगी। प्रशिक्षित शिक्षकों और कार्मिकों की भर्ती विद्यालय में की जाएगी जिससे शिक्षक हमेशा छात्रों और उसके अभिभावक के साथ कार्य कर सकें। इसके साथ यह भी सुनिश्चित किया जा सके कि सभी विद्यार्थी विद्यालय आ रहे हैं और सीख रहे हैं। राज्य और जिला स्तर पर दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तीकरण से जुड़े सिविल सोसायटी संगठन / सामाजिक न्याय और अधिकारिता विभागों के प्रशिक्षित और योग्य सामाजिक कार्यकर्ता राज्य / केन्द्र शासित प्रदेश सरकारों द्वारा अपनाए गए विभिन्न नवीन तंत्रों के माध्यम से इस आवश्यक कार्य को करने में स्कूलों से जुड़े हो सकते हैं।”³


राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 में दिव्यांग छात्र-छात्राओं हेतु विशिष्ट शिक्षक नियुक्त करने का प्रावधान किया गया है - “स्कूल शिक्षा के कुछ क्षेत्रों में अतिरिक्त विशिष्ट शिक्षकों की अति आवश्यकता है। इन विशिष्ट आवश्यकताओं के कुछ उदाहरणों में मिडिल और माध्यमिक स्तर में विकलांग / दिव्यांग बच्चों, ऐसे छात्रों सहित जिन्हें सीखने में कठिनाई (लर्निंग डिसेबिलिटी) होती है, के शिक्षण हेतु विषयों का शिक्षण शामिल हैं। इन शिक्षकों को सिर्फ विषय-शिक्षण ज्ञान और विषय संबंधित शिक्षण के उद्देश्यों की समझ ही नहीं, बल्कि विद्यार्थियों की विशेष आवश्यकताओं को समझने के लिए उपयुक्त कौशल भी होने चाहिए। 

इसलिए इन क्षेत्रों में विषय शिक्षकों और सामान्य शिक्षकों को उनके शुरूआती दौर में या फिर सेवा पूर्व शिक्षक की तैयारी होने के बाद द्वितीयक विशेषज्ञता विकसित की जा सकती है। इसके लिए शिक्षकों को सेवाकालीन और पूर्व-सेवाकालीन मोड में, पूर्णकालिक या अंशकालिक / मिश्रित कोर्स बहुविषयक महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में उपलब्ध कराये जायेंगे। योग्य विशेष शिक्षकों, जो विषय शिक्षण को भी संभाल सकते हों, की पर्याप्त उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए एनसीटीई और आरसीआई के पाठ्यक्रम के बीच व्यापक तालमेल को सक्षम किया जाएगा।”⁴


इस शिक्षा नीति में दिव्यांगों की शिक्षा में सुधार की पहल भी गई है और स्कूलों में दिव्यांग बच्चों के नामांकन पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा गया है - “यू-डीआईएसई 2016-17 के आंकड़ों के अनुसार, प्राथमिक स्तर पर लगभग 19.6% छात्र अनुसूचित जाति के हैं, किन्तु उच्चतर माध्यमिक स्तर यह प्रतिशत कम होकर 17.3% हो गया है। नामांकनों में ये गिरावट अनुसूचित जनजाति के छात्रों (10.6% से 6.8%) और दिव्यांग बच्चों (1.1% से 0.25%) के लिए अधिक गंभीर हैं। इनमें से प्रत्येक श्रेणी में महिला छात्रों के लिए इन नामांकनों में और भी अधिक गिरावट आई है। उच्चतर शिक्षा में नामांकन में गिरावट और भी अधिक है।”⁵


राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 दिव्यांगों की समग्र शिक्षा हेतु प्रावधान करती है। इसमें दिव्यांगों की शिक्षा पर विशेष रूप से जोर देकर कहा भी गया है - “यह नीति विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों (सीडबल्यूएसएन) या दिव्यांग बच्चों को किसी भी अन्य बच्चे के समान गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राप्त करने के समान अवसर प्रदान करने के लिए सक्षम तंत्र बनाने के महत्व को भी पहचानती है।”⁶


‘समतामूलक और समावेशी शिक्षा : सभी के लिए अधिगम’ के अंतर्गत इस शिक्षा नीति में दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम – 2016 का उल्लेख करते हुए दिव्यांगों की समावेशी शिक्षा हेतु निम्नलिखित प्रावधान किए गए हैं - 


  1. ईसीसीई में दिव्यांग बच्चों को शामिल करना और उनकी समान भागीदारी सुनिश्चित करना भी इस नीति की सर्वोच्च प्राथमिकता होगी। दिव्यांग बच्चों को प्रारम्भिक स्तर से उच्चतर स्तर तक की शिक्षण प्रक्रियाओं में सम्मिलित होने के लिए सक्षम बनाया जाएगा। दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम 2016 (आरपीडबल्यूडी अधिनियम समावेशी शिक्षा को एक ऐसी व्यवस्था के रूप में परिभाषित करता है जहाँ सामान्य व दिव्यांग, सभी बच्चे एक साथ सीखते हैं तथा शिक्षण व सीखने की प्रणाली को इस प्रकार अनुकूलित किया जाता है कि वह प्रत्येक बच्चे की सभी सामान्य अथवा विशेष आवश्यकताओं की पूर्ति में सक्षम हो। यह नीति आरपीडबल्यूडी अधिनियम 2016 के सभी प्रावधानों के साथ पूरी तरह से सुसंगत है तथा स्कूली शिक्षा के संबंध में इसके द्वारा प्रस्तावित सभी सिफारिशों को पूरा करती है। राष्ट्रीय पाठ्यचर्या रूपरेखा तैयार करते समय एनसीईआरटी द्वारा दिव्यांगजन विभाग के राष्ट्रीय संस्थानों जैसे विशेषज्ञ संस्थानों के साथ परामर्श सुनिश्चित किया जाएगा।”⁷


  1. इसके लिए, दिव्यांग बच्चों के एकीकरण को ध्यान में रखते हुए विद्यालय व विद्यालय परिसरों की वित्तीय मदद की दृष्टि से सुस्पष्ट व कुशल प्रावधानों की व्यवस्था की जायेगी। इसके साथ यह भी ध्यान दिया जाएगा कि विद्यालय व विद्यालय परिसरों में दिव्यांग बच्चों की आवश्यकता से संबंधित प्रशिक्षण प्राप्त शिक्षकों की नियुक्ति की जाए। साथ ही, गंभीर अथवा एक से अधिक अक्षमता वाले बच्चों के लिए जहाँ भी आवश्यकता हो, एक संसाधन केंद्र स्थापित किया जाएगा। आरपीडबल्यूडी अधिनियम के अनुरूप दिव्यांग बच्चों के लिए बाधा मुक्त पहुँच सुनिश्चित की जाएगी। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों की विभिन्न श्रेणियों के अनुरूप विद्यालय अथवा विद्यालय परिसर कार्य करेंगें जिससे प्रत्येक बच्चे की आवश्यकता के अनुरूप मदद सुनिश्चित करने हेतु उपयुक्त प्रणाली विकसित की जायेगी ताकि कक्षा कक्ष में उनकी पूर्ण प्रतिभागिता व समावेशन सुनिश्चित किया जाए। कक्षा में शिक्षकों व अन्य सहपाठियों के साथ आसानी से जुड़ने के लिए विशेष आवश्यकता वाले बच्चों को कुछ सहायक उपकरण, उपयुक्त तकनीक आधारित उपकरण, भाषा उपयुक्त शिक्षण सामग्री (जैसे बड़े प्रिंट और ब्रेल प्रारूपों में सुलभ पाठ्य पुस्तकें) पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध करवाएं जायेंगे। यह कला, खेल और व्यावसायिक शिक्षा सहित सभी स्कूली गतिविधियों पर भी लागू होगा। एनआईओएस भारतीय संकेत भाषा सिखाने के लिए और भारतीय संकेत भाषा का उपयोग करके अन्य बुनियादी विषयों को सिखाने के लिए उच्चतर गुणवत्ता वाले मॉड्यूल विकसित करेगा। साथ ही दिव्यांग बच्चों की सुरक्षा पर पर्याप्त ध्यान दिया जाएगा।”⁸


  1. आरपीडबल्यूडी अधिनियम 2016 के अनुसार, मूल दिवयांगता वाले बच्चों के पास नियमित या विशेष स्कूली शिक्षा का विकल्प होगा। विशेष शिक्षकों के माध्यम से स्थापित संसाधन केंद्र, गंभीर अथवा एक से अधिक विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के पुर्नवास व शिक्षा से संबंधित आवश्यकताओं में मदद करेंगे एवं साथ ही उच्चतर गुणवत्ता की शिक्षा घर में ही उपलब्ध कराने (होम स्कूलिंग) व कौशल विकसित करने की दिशा में उनके माता-पिता / अभिवावकों को भी मदद करेंगे। स्कूलों में जाने में असमर्थ गंभीर और गहन दिव्यांग्ता वाले बच्चों के लिए गृह-आधारित शिक्षा के रूप में एक विकल्प उपलब्ध रहेगा। गृह-आधारित शिक्षा के तहत शिक्षा ले रहे बच्चों को अन्य सामान्य प्रणाली में शिक्षा ले रहे किसी भी अन्य बच्चे के समतुल्य माना जायेगा। गृह आधारित शिक्षा की दक्षता व प्रभावशीलता की जांच हेतु समता व अवसर की समानता के सिद्धांत पर आधारित ऑडिट कराया जाएगा। आरपीडबल्यूडी अधिनियम 2016 के अनुरूप इस ऑडिट के आधार पर गृह-आधारित स्कूली शिक्षा के लिए दिशानिर्देश और मानक विकसित किए जाएंगे। हालांकि यह स्पष्ट है कि दिव्यांग बच्चों की शिक्षा राज्य की जिम्मेदारी है इसके लिए माता पिता / देखरेख करने वालों के उन्मुखीकरण से लेकर बड़े स्तर पर प्राथमिकता के साथ अधिगम सामग्री के व्यापक प्रचार-प्रसार के प्रौद्योगिकी आधारित समाधान किये जायेंगे, जिनके माध्यम से माता पिता / देखरेख करने वाले अपने बच्चे की आवश्यकता के अनुरूप मदद कर पायें।”⁹


  1. “विशिष्ट दिव्यांगता वाले बच्चों (सीखने से सम्बंधित अक्षमताओं के साथ) को कैसे पढाया जाए, इससे संबंधित जागरूकता और ज्ञान को सभी शिक्षक प्रशिक्षणों का अनिवार्य हिस्सा होना चाहिए। साथ ही लैंगिक संवेदनशीलता व अल्प प्रतिनिधित्व वाले समूहों के प्रति संवेदनशीलता विकसित की जानी चाहिए जिससे उनकी प्रतिभागिता की स्थिति को बेहतर किया जा सके।”¹⁰



इस शिक्षा नीति में ‘स्कूल कॉम्प्लेक्स / क्लस्टर के माध्यम से कुशल संसाधन और प्रभावी गवर्नेंस’ के अंतर्गत भारतीय शिक्षा-व्यवस्था की चुनौतियों (जैसे - कम छात्र-छात्रा संख्या वाले स्कूलों में प्रयोगशाला, खेल मैदान, पुस्तकालय आदि की समुचित व्यवस्था) से निपटने हेतु और शिक्षा-व्यवस्था में आवश्यक सुधार करके ‘शिक्षित भारत - विकसित भारत’ के लक्ष्य के प्राप्ति हेतु प्रावधान करते हुए कहा गया है -  “इन चुनौतियों को राज्य/केन्द्र शासित प्रदेश की सरकारों द्वारा 2025 तक स्कूलों के समूह बनाने या उनकी संख्या को समुचित रूप देने के लिए नवीन प्रक्रिया अपनाकर समाधान किया जाएगा। इस तरह की प्रक्रिया के पीछे का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना होगा किः (क) हर स्कूल में कला, संगीत विज्ञान, खेल, भाषा, व्यावसायिक विषय, आदि सहित सभी विषयों को पढ़ाने के लिए पर्याप्त संख्या में परामर्शदाता (काउंसलर)/प्रशिक्षित सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षक (साझा या अन्यथा) मौजूद हों; (ख) हर स्कूल में पर्याप्त संसाधन (साझा या अन्यथा) हों, जैसे कि एक पुस्तकालय, विज्ञान प्रयोगशाला, कंप्यूटर लैब, कौशल प्रयोगशाला, खेल के मैदान, खेल उपकरण जैसी सुविधाएं, आदि; (ग) शिक्षकों, छात्रों और स्कूलों के अलगाव को दूर करने के लिए समुदाय के साथ एक समझ बनाकर संयुक्त व्यवसायिक विकास कार्यक्रमों, शिक्षण-अधिगम सामग्री के साझाकरण, संयुक्त सामग्री निर्माण, कला और विज्ञान प्रदर्शनियां, खेल गतिविधियां, क्विज और डिबेट, और मेले जैसे संयुक्त गतिविधियों का आयोजन करना; और (घ) दिव्यांगबच्चों की शिक्षा के लिए स्कूलों में सहयोग और संबलन; (ड.) स्कूली व्यवस्था की गवर्नेस में सुधार के लिए क्रियान्वयन संबंधी बारीकियों के निर्णय स्कूली समूह के स्तर पर छोड़ दिए जाएँ जहाँ उन्हें स्थानीय स्तर पर प्रधानाचार्य, शिक्षक और अन्य हितधारकों द्वारा ही लिया जाये और फाउंडेशनल स्तर से सेकेंडरी स्तर के ऐसे स्कूलों के समूह को एक एकीकृत अर्ध-स्वायत्त इकाई के रूप में देखा जाये।”¹¹


स्कूल कॉम्प्लेक्स / कलस्टर के लाभ गिनाते हुए इस शिक्षा नीति में कहा गया है - “स्कूल कॉम्प्लेक्स/कलस्टर बनने से और कॉम्प्लेक्स में संसाधन के साझे उपयोग से दूसरे भी बहुत से लाभ होंगे, जैसे - दिव्यांग बच्चों के लिए बेहतर सहयोग; ज़्यादा विविध विषय पर आधारित विद्यार्थी क्लब और स्कूल परिसर में अकादमिक /खेल/कला/शिल्प आधारित कार्यक्रमों का आयोजन; कला, संगीत, भाषा और शारीरिक शिक्षा के शिक्षक के साझे उपयोग से कक्षा में वर्चुअल कक्षाएं आयोजित करने के लिए आईसीटी टूल्स के उपयोग सहित इन गतिविधियों का ज़्यादा समावेश; सामाजिक कार्यकर्ता और सलाहकारों (काउंसलर) की मदद से विद्यार्थियों के लिए बेहतर सहयोग की उपलब्धता और बेहतर नामांकन, उपस्थिति और उपलब्धियों में सुधार, और स्कूल कॉम्प्लेक्स प्रबंधन समितियों (केवल स्कूल प्रबंधन समितियों के बजाए) के माध्यम से बेहतर और मज़बूत गवर्नेस, निरीक्षण, निगरानी, नवाचार और स्थानीय हितधारकों द्वारा उठाए जाने वाले क़दम। स्कूलों, स्कूल प्रमुखों, शिक्षकों, विद्यार्थियों, सहयोगी स्टाफ, माता-पिता और स्थानीय नागरिकों के बड़े और जीवंत समूहों के आधार पर संसाधनों का कुशल उपयोग करते हुए पूरी शिक्षा व्यवस्था उर्जावान और समर्थ बनेगी।”¹²


राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 उच्च शिक्षा व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन लाने हेतु प्रतिबद्ध है। इस शिक्षा नीति के अनुसार उच्च शिक्षा व्यवस्था में अनेकों परिवर्तनों के साथ दिव्यांगों हेतु ये महत्त्वपूर्ण परिवर्तन उल्लेखनीय है - “उपायों की एक श्रृंखला के माध्यम से पहुँच, समता और समावेशन में वृद्धिः इसके साथ ही उत्कृष्ट सार्वजनिक शिक्षा के लिए अधिक अवसर, वंचित और निर्धन छात्रों के लिए निजी परोपकारी विश्वविद्यालयों द्वारा छात्रवृत्ति में पर्याप्त वृद्धिः ओपन स्कूलिंग, ऑनलाइन शिक्षा, और मुक्त दूरस्थ शिक्षा (ओडीएल); और दिव्यांग शिक्षार्थियों के लिए सभी बुनियादी ढांचे और शिक्षण सामग्री की उपलब्धता और उस तक उनकी पहुँच।”¹³



यह शिक्षा नीति ‘उच्चतर शिक्षा की नियामक प्रणाली में आमूल-चूल परिवर्तन’ लाने जोर देती है और उच्चतर शिक्षा संस्थानों के संदर्भ में दिव्यांग छात्र-छात्राओं की प्रतिक्रियाओं / फीडबैक के महत्त्व को प्रतिपादित करती है। यथा - “एचईसीआई का पहला अंग राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा विनियामक परिषद (एनएचईआरसी) होगा यह उच्चतर शिक्षा क्षेत्र के लिए एक साझा और सिंगल पॉइंट रेगुलेटर की तरह काम करेगा जिसमें शिक्षक शिक्षा शामिल है किन्तु चिकित्सीय एवं विधिक शिक्षा शामिल नहीं है, और इस तरह नियामक प्रक्रिया में दोहराव और अव्यवस्था को समाप्त करेगा। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि व्यवस्था के भीतर वर्तमान में अनेकों विनियामक संस्थान उपस्थित हैं। इस एकल बिंदु विनियमन को सक्षम करने के लिए मौजूदा अधिनियमों की पुनर्संरचना और निरसन और विभिन्न मौजूदा नियामक निकायों के पुनर्गठन की आवश्यकता होगी। एनएचईआरसी को 'लचीले लेकिन सख्त और सुविधात्मक तरीके से संस्थानों को विनियमित करने के लिए स्थापित किया जाएगा, जिसका अर्थ है कि कुछ महत्वपूर्ण मामले विशेष रूप से वित्तीय इमानदारी, सुशासन और सभी ऑनलाइन और ऑफ़लाइन वित्त संबंधी मसलों का स्व-प्रकटीकरण, ऑडिट, प्रक्रियाओं, इंफ्रास्ट्रक्चर, संकाय / कर्मचारी, पाठ्यक्रम और शैक्षिक प्रतिफलों को प्रभावी तरीके से नियंत्रित किया जाएगा। यह सूचना सभी उच्चतर शिक्षा संस्थानों द्वारा अपनी वेबसाइट पर और सार्वजनिक वेबसाइटों जो कि एनएचईआरसी द्वारा संचालित की जाती हैं, पर मुहैया करवाई जाएंगी और समय-समय पर इन सूचनाओं को अद्यतन और सटीक रूप से उपलब्ध करवाया जाएगा। सार्वजनिक की गयी सूचनाओं से संबंधित हितधारकों और अन्य लोगों द्वारा किसी भी शिकायत या गुहार को एनएचईआरसी द्वारा सुना जाएगा और इसका हल किया जाएगा। एक निश्चित समय अंतराल पर प्रत्येक उच्चतर शिक्षा संस्थान में रैंडम तरीके से दिव्यांग छात्रों सहित चुने गए छात्रों के मूल्यवान फीडबैक ऑनलाइन लिए जाएंगे।”¹⁴


अतः उपरोक्त विवेचन के आधार पर हम निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 दिव्यांगों / विकलांगों की समग्र शिक्षा हेतु प्रतिबद्ध है। इस नीति में दिव्यांगों की स्कूली शिक्षा से लेकर उच्चतर शिक्षा तक आवश्यक प्रावधान किए गए हैं। स्कूली शिक्षा में दिव्यांग छात्र-छात्राओं हेतु विशेष शिक्षक की नियुक्ति और उच्चतर शिक्षा संस्थानों के संदर्भ में दिव्यांग छात्र-छात्राओं का फीडबैक लेने का प्रावधान युगांतकारी है। हम निश्चित रूप से ये कह सकते हैं कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति - 2020 दिव्यांगों की शिक्षा और दिव्यांग सशक्तिकरण में ऐतिहासिक भूमिका निभा रही है और आगे भी निभाएगी।



संदर्भ :- 

1.भारत सरकार, राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020, पृष्ठ 4

2. वही, पृष्ठ 7

3. वही, पृष्ठ 15

4. वही, पृष्ठ 35-36

5. वही, पृष्ठ 38

6. वही, पृष्ठ 39

7. वही, पृष्ठ 41

8. वही, पृष्ठ 41-42

9. वही, पृष्ठ 42

10. वही, पृष्ठ 43

11. वही, पृष्ठ 45-46

12. वही, पृष्ठ 46

13. वही, पृष्ठ 54

14. वही, पृष्ठ 76











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