Friday 13 September 2024

हमारे जीवन का स्वर्णिम शिक्षक दिवस - किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज'

*** बुंदेलखंडी युवा की डायरी, शनिवार, 7 सितंबर 2024, झाँसी ***


** हमारे जीवन का स्वर्णिम शिक्षक दिवस **


प्यारी क्रांति,

इस साल का राष्ट्रीय शिक्षक दिवस हमारे जीवन का स्वर्णिम शिक्षक दिवस रहा। हमारी बचपन से ही ज्ञान और समाजसेवा के क्षेत्र में काम करने की रूचि रही है। शिक्षा की अपार शक्ति के कारण ही आज हम साहित्य, शिक्षा, शोध, समाजसेवा, पर्यावरण, पत्रकारिता, लेखन, बुंदेली, अखंड बुंदेलखंड और राजनीति आदि क्षेत्रों में बेहतर प्रदर्शन कर पा रहे हैं। हम कहते भी हैं कि ‘शिक्षा ही एकमात्र ऐसा हथियार है, जो दुनिया की कोई भी जंग जिता सकता है।’ इसलिए हर स्त्री-पुरूष को हर हाल में शिक्षा अवश्य प्राप्त करनी चाहिए।



हमारे भारत देश में गुरू-शिष्य की समृद्ध परंपरा रही है। उल्लेखनीय महान गुरूओं और उनके महान शिष्यों के नाम इस प्रकार हैं : गुरू वशिष्ठ - राम, महर्षि वाल्मीकि - लव-कुश, संदीपनी मुनि - कृष्ण, गुरू द्रोणाचार्य - अर्जुन / एकलव्य, आचार्य चाणक्य - चंद्रगुप्त मौर्य इत्यादि। शिक्षा में गुरू / शिक्षक - शिक्षिकाओं की अहम भूमिका है। हम शिष्यों - शिष्याओं / छात्र - छात्राओं को अपने गुरुजनों के बताए मार्ग पर ही चलना चाहिए। हमें अपने गुरूजनों का सदैव आदर करना चाहिए। हमारे जीवन में गुरू का स्थान ईश्वर से भी ऊँचा है। हमारी अपनी आज जो भी अनोखी पहचान बन पाई है, वो गुरुजनों के सार्थक मार्गदर्शन और आशीर्वाद का ही सुफल है।



हम बचपन से ही बड़े-बुजुर्गों के समीप रहे हैं। हमें बुजुर्गों से उनके जीवन अनुभवों से बहुत ज्ञान मिला है। हमारे परदादा किसान बल्देव कुशवाहा उर्फ बल्दू माते, जिन्हें हम ‘बब्बा’ कहते थे। बब्बा हमें प्यार से ‘सिस्सू’ कहते थे। बब्बा सन 2015 में स्वर्ग सिधारे…। वे चाहते थे कि हमारा परपोता पढ़-लिखकर बहुत बड़ा अफसर बने या कथावाचक। जब हमारा जन्म हुआ, तब हम और हमारी माँ बीमार हो गईं। शंकर भगवान की कृपा और डॉक्टरों के इलाज से हम और माँ दोनों लोग स्वस्थ हो गए। हमारे जन्म लेते ही बब्बा ने संकल्प लिया कि हे शंकर भगवान! हमारा परपोता और नतबहु ठीक हो जाए, हम अब से आजीवन आपकी सेवा करेंगे। तभी से वे अपने जरबौ गाँव के शंकर जी के मंदिर की सेवा में लग गए, मंदिर की साफ-सफाई करने लगे और भजन करने लगे। जाड़ा हो या बरसात सुबह से बाढ़ईबाय खेत के कुएँ पर स्नान करके शंकर जी को जल चढ़ाते और फिर भोजन करके दिनभर गैयाँ-भैंसें चराने जाते। शाम में फिर शंकर जी के मंदिर में और पीपल के वृक्ष के तले घी का दिया जलाते और भजन करते। बब्बा के शिवभक्त होने के कारण ही हमारा नाम ‘गिरजाशंकर’ पड़ा। बब्बा से हमने परिश्रम, ईमानदारी और लगन से काम करने और ईश्वर भक्ति करने की सीख ली। बब्बा की इच्छा थी कि हम अफसर बनें, तो वो इच्छा जल्द ही पूरी होगी। वे चाहते थे कि हम रामकथा या श्रीमद्भागवत कथावाचक बनें तो हम कथावाचक तो न बन सके लेकिन कथाकार बन गए। हमारे कथाकार बनने में बब्बा का आशीर्वाद सर्वोपरि है। हम इस शिक्षक दिवस पर पूजनीय बब्बा जू को सत-सत नमन करते हैं।



परदादी किसानिन सगुनियाँ कुशवाहा हमें बचपन में बहुत अच्छी किसा यानी लोककथाएँ सुनाती थीं। परदादी को हम ‘बऊ’ कहते थे और वो हमें ‘सिसेन्द’ नाम से पुकारती थीं। उनके पास सब्जियाँ बेचकर जो पैसे आते थे, हमारी पढ़ाई में लगाती थीं ताकि हम खूब पढ़-लिख जाएँ और हमें खेती-किसानी न करनी पड़े। उनका मायका बरूआसागर था और उन्होंने अपने बचपन से ही शिक्षा का महत्त्व समझा था इसलिए वे हमें खूब पढ़ाना चाहती थीं। वो हमें किसान इसलिए नहीं बनाना चाहती थीं क्योंकि खेती-किसानी में घाटा ही घाटा हो रहा था, किसानों की दशा अन्य वर्गों की अपेक्षा बहुत दयनीय थी। वो हमें अपनी तरह दयनीय स्थिति में नहीं रखना चाहती थीं। परदादी से हमने शिक्षा के महत्त्व को समझा, उनसे सुनी लोककथाओं से जीवन में सफल इंसान बनने की प्रेरणा ली और किसानों के कल्याण करने का संकल्प लिया। हम इस शिक्षक दिवस पर पूजनीय बऊ को सत-सत नमन करते हैं।



दादा किसान पीताराम कुशवाहा उर्फ पत्तू नन्ना अपनी युवावस्था से ही क्षेत्रीय राजनीति में सक्रिय रहे। दादाजी को हम ‘नन्ना’ कहकर पुकारते हैं। वे हमें ‘सिसेंद’ कहकर बुलाते हैं। नन्ना तीन पंचवर्षी जरबौ गॉंव के ग्रामप्रधान प्रतिनिधि रहे हैं। वे 76 वर्ष के हो गए हैं, उन्होंने अपने जीवन में समाजसेवा, ग्रामीण विकास और किसान कल्याण के क्षेत्र में अनेक महत्त्वपूर्ण काम किए हैं और अभी भी कर रहे है। नन्ना हमारे राजनैतिक गुरू हैं। उनके बताए राजनीति के सूत्रों और मूल्यों पर चलते हुए ही हम छात्र राजनीति में बेहतर करके हुए बुंदेलखंड की राजनीति में अहम भूमिका अदा कर पा रहे हैं। ग्रामीण विकास, समाजसेवा और किसान विमर्श पर काम करने की प्रेरणा भी हमें दादाजी से ही मिली है। हम इस शिक्षक दिवस पर पूजनीय नन्ना को भी सत-सत नमन करते हैं।



दादी किसानिन रामकली कुशवाहा से हम बुंदेली भाषा सीखे हैं और उनकी प्रेरणा से ही बुंदेली लेखन में आए हैं। दादी को हम ‘बाई’ कहते हैं और वे हमें ‘ससेंद’ नाम से बुलाती हैं। बाई कक्षा तीन तक ही पढ़ीं हैं लेकिन उन्होनें अपने पाँचों पोतों और एक पोती को उच्च शिक्षा दिलाई है। दादी बहुत मेहनती, धैर्यवती और धार्मिक नारी हैं। वो भी सब्जियाँ बेचती हैं और उससे जो आमदनी होती है, वो हमें खर्च के लिए दे देतीं हैं। बाई से हमें बुंदेली भाषा की महत्त्वता सीखी है और बुंदेली लेखन की प्रेरणा ली है। वो बहुत अच्छी बुंदेली बोलती हैं। गॉंव में घर पर हम भी परिवार के साथ बुंदेली में ही बतकाओ करते हैं। बाई की भाषा को हम ‘कछियाई’ बोली की संज्ञा दिए हैं। बाई से हमने महिला किसान, स्त्री शिक्षा और स्त्री सशक्तिकरण के क्षेत्र में काम करने की भी प्रेरणा ली है। हम इस शिक्षक दिवस पर पूजनीय बाई को भी सत-सत नमन करते हैं।



माता किसानिन ममता कुशवाहा से हम शिक्षा का महत्त्व और पिता किसान हीरालाल कुशवाहा से लगन, परिश्रम और ईमानदारी से जीवनयापन करना सीखे हैं। चाचा किसान भानुप्रताप कुशवाहा से अन्याय के विरूद्ध लड़ना सीखे हैं। हम इस शिक्षक दिवस पर माता-पिता औए चाचा को भी सत-सत नमन करते हैं।



इस शिक्षक दिवस की पूर्व संध्या पर भारतीय गुरू-शिष्य परंपरा का निर्वहन करते हुए हमने 4 सितंबर 2024 को बुंदेलखंड़ के प्राचीनतम महाविद्यालय ‘बुंदेलखंड़ महाविद्यालय, झाँसी’ के हिन्दी विभाग में सत्र 2022-2024 के परास्नातक उपाधि प्राप्त अपने विशेष सहपाठियों के साथ मिलकर ‘गुरू सम्मान समारोह’ का आयोजन किया। जिसमें प्राचार्य प्रो० संतोष कुमार राय, विभागाध्यक्ष प्रो० संजय सक्सेना, प्रो० नवेन्द्र कुमार सिंह, श्री अनिरुद्ध गोयल, डॉ० शिवप्रकाश त्रिपाठी जी, डॉ० श्याममोहन पटेल एवं डॉ० वंदना कुशवाहा आदि गुरूजनों को पुष्प-गुच्छ और स्मृति-चिह्न भेंटकर सम्मानित किया। गुरुजनों ने आशीर्वचनों में छात्र-छात्राओं के उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए सार्थक मार्गदर्शन दिया। वहीं हम छात्र-छात्राओं ने महाविद्यालयीय जीवन के संस्मरण सुनाकर अपने गुरुजनों के प्रति आभार प्रकट किया। इस अवसर पर कल्पना नरबरिया, दीपक नामदेव, गिरीश कुमारी, शिवम हरी, अंजू रायकवार, हिमांशी जायसवाल आदि सहपाठी उपस्थित रहे। प्रीतिका बुधौलिया ने संचालन किया और हमने आभार प्रकट किया।



आचार्य संजय जी से हमने प्रेमचंद के गोदान के माध्यम से किसान-आलोचना पर काम करने की प्रेरणा ली और उनसे सिनेमा और पत्रकारिता की उपयोगिता समझी। उनके निर्देशक में ‘21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन’ विषय पर लघुशोध करके हम बुंदेली भाषा के इतिहास लेखन एवं बुंदेली के विकास में सार्थक योगदान दे पाए हैं।  



वहीं आचार्य नवेन्द्र जी से प्रेमचंद साहित्य, पटकथा लेखन और प्रयोजनमूलक हिन्दी की उपयोगिता सीखी और प्रयोजनमूलक हिन्दी के आधार पर ही हमने भविष्य में ‘प्रयोजनमूलक बुंदेली’ पर काम करने का संकल्प लिया है। उनके संपादन में प्रकाशित महाविद्यालय की वार्षिक पत्रिका ‘उन्नयन’ में हम दोनों साल अपनी एक-एक कहानी प्रकाशित कराके कथा साहित्य में योगदान दे पाए।



शिक्षक दिवस की शुभ वेला पर 5 सितंबर 2024 को 87 वर्षीय, बुंदेलखंड के सुप्रसिद्ध वयोवृद्ध इतिहासकार दादाजी देवेंद्र कुमार सिंह का सुप्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी डॉ० रामशंकर भारती द्वारा संचालित ‘चौंतरा - लोकसंस्कृति मंच’ नामक व्हाट्सएप समूह में सुबह 10 बजकर 57 मिनिट पर संदेश आया - “प्रिय, गिरजासंकर, मुझे बुंदेली बसंत पढ़ने की इच्छा है। क्या आपसे मिल सकती है। मैं आज ग्यारह और बारह बजे के बीच बीकेडी में जाने की इच्छा रखता हूँ। आप यदि वहां आकर पत्रिका दे सकें तो आपसे मुलाकात भी हो जायगी।” हमने इस संदेश का उत्तर देते हुए लिखा - “ठीक है दादाजी। हम आते हैं आपके पास।” इसके बाद हम साढ़े ग्यारह बजे अपने बीकेडी कॉलेज यानी बुंदेलखंड महाविद्यालय पहुँच गए। फिर हिन्दी विभाग जाकर आचार्य संजय सक्सेना और आचार्य नवेन्द्र कुमार सिंह को शिक्षक दिवस की बधाई देकर आशीर्वाद लिया और आचार्यगण को बताया कि इतिहासकार देवेन्द्र कुमार सिंह आ रहे हैं। उन्हें कॉलेज घूमना है। हम उन्हें कॉलेज घुमाने आए हैं। ठीक 12:30 बजे देवेंद्र कुमार सिंह जी अपने बड़े बेटे संजय सिंह के साथ स्कूटी पर बैठकर बीकेडी आ गए। हम उनसे कॉलेज के मुख्य द्वार पर ही मिले और चरण-स्पर्श करके आशीर्वाद लिया। आज पहली बार सिंह जी से आमने-सामने पर मुलाकात हुई थी। लेकिन फेसबुक और व्हाट्सएप पर हम लोग 2-3 सालों से जुड़े हुए थे। 3-4 बार फोन पर भी हम लोग इतिहास को लेकर बातचीत किए हैं। देवेंद्र कुमार सिंह जी बहुत अच्छे इतिहासकार हैं, उनकी इतिहास लेखन-दृष्टि से हम बहुत प्रभावित हैं। आजादी के अमृत महोत्सव में जब हमने सी०सी०आर०टी०, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की क्षेत्रीय इतिहास लेखन परियोजना पर काम किया तो हमने सिंह जी की इतिहास लेखन-दृष्टि को अपनाया और बुंदेलखंड के इतिहास पर हमारी 19 कहानियाँ प्रकाशित हुईं, जो झाँसी के अन्य  इतिहासकारों की अपेक्षा सर्वाधिक थीं। सिंह जी 67 वर्ष बाद अपने कॉलेज आए थे। उन्होंने यहाँ से सन 1958 में कला स्नातक की उपाधि प्राप्त की थी। उन्होनें इतिहास विभाग में जाने की इच्छा जताई लेकिन शिक्षक दिवस के कार्यक्रमों में प्राध्यापकों की व्यस्तता के चलता विभाग बंद था इसलिए फिर हम उन्हें अपने हिन्दी विभाग ले गए। आचार्य संजय जी और आचार्य नवेन्द्र जी से हमने सिंह जी का परिचय कराया और फिर सिंह जी और आचार्यगण की विशेषकर बुंदेलखंड कॉलेज और बुंदेलखंड के साहित्य और इतिहास पर लंबी चर्चा हुई। हिन्दी विभाग के संस्थापक आचार्य क्रांतिवीर डॉ० भगवानदास माहौर जी पर भी चर्चा हुई। माहौर जी से सिंह जी ने हिन्दी भाषा और साहित्य की शिक्षा ग्रहण की थी। विभागाध्यक्ष आचार्य संजय जी ने विभाग की आगन्तुक पंजिका पर सिंह जी से टिप्पणी ली और सिंह जी ने अपने निजी पुस्तकालय की महत्त्वपूर्ण पुस्तक ‘लोकगीतों में क्रांतिकारी चेतना - विश्वमित्र उपाध्याय’ हिन्दी विभाग के पुस्तकालय को दान कर दी। इसके बाद हम सिंह जी को इतिहास विभाग में ले गए, वहाँ सहायक प्राध्यापक डॉ० उमेश चन्द्र यादव जी से भेंट करायी। सिंह जी और डॉ० यादव जी की बुंदेलखंड कॉलेज के इतिहास विभाग के इतिहास और बुंदेलखंड के इतिहास को लेकर लंबी चर्चा हुई। विभागाध्यक्ष और अन्य प्राध्यापकगण शिक्षक दिवस के कार्यक्रम में व्यस्त थे। सिंह जी ने पुस्तकालय हेतु अपनी प्रसिद्ध पुस्तकें ‘1857 का प्रथम स्वतंत्रता संग्राम और जनपद जालौन - देवेंद्र कुमार सिंह’, ‘जनपद जालौन में 1857 की क्रांति के सूत्रधार बरजोर सिंह - देवेंद्र कुमार सिंह, डॉ० हरिमोहन पुरवार’, ‘1857 : कुछ टेलीग्राम कुछ दस्तावेज जनपद जालौन - डॉ० हरीमोहन पुरवार, देवेंद्र कुमार सिंह’ समेत ‘द राइजिंग ऑफ 1857 इन बुंदेलखंड : विद स्पेशल रिफरेंस टू झाँसी - प्रो० बी० आर० मिश्रा’, उत्तर प्रदेश राज्य अभिलेखागार लखनऊ द्वारा सन 1955 के आसपास प्रकाशित प्रसिद्ध ग्रंथ ‘मुगल फरमांस : 1540ई० - 1706ई०’ समेत 8 पुस्तकें दान कर दीं। इसके बाद सिंह जी विदा लेकर घर चले गए और हम फिर से अपने हिन्दी विभाग आ गए।



यहाँ हम परास्नातक हिन्दी की लाड़ली जूनियर शिवांगी सेन के आमंत्रण पर शिक्षक के रूप में उपस्थित रहे। शिक्षक दिवस पर जूनियरों ने ‘शिक्षक सम्मान समारोह’ आयोजित किया था। जैसा हम परास्नातक उपाधि प्राप्त छात्र-छात्राओं ने 4 सितंबर 2024 को ‘गुरू सम्मान समारोह’ आयोजित किया था। ठीक वैसा ही जूनियरों ने ‘शिक्षक सम्मान समारोह’ आयोजित करके गौरवशाली पंरपरा को बढ़ाया है। उन्होंने गणेश जी की प्रतिमा और कलम उपहारस्वरूप भेंट करके और साथ ही केक काटकर और मिठाई खिलाकर आचार्यगण विभागाध्यक्ष प्रो० संजय सक्सेना, प्रो० नवेन्द्र कुमार सिंह, श्री अनिरुद्ध गोयल, डॉ० शिवप्रकाश त्रिपाठी जी, डॉ० श्याममोहन पटेल एवं डॉ० वंदना कुशवाहा आदि को शिक्षक दिवस की बधाई दी और आशीर्वाद प्राप्त किया। हम भी अपने जूनियरों के शिक्षक रहे हैं क्योंकि हमने उन्हें शोध के बारे में समझाया और लघुशोध-प्रबंध बनाने में सहायता की। शिवांगी बहुत प्रतिभाशाली लड़की है। वो कविताएँ और लेख भी लिखती है। उसने शिक्षक दिवस पर ‘शिक्षकों का जीवन में महत्त्व’ पर केंद्रित प्रभावशाली भाषण भी दिया और बहुत सुंदर गीत भी गाया। साथ ही प्रखर पटैरिया, शोभित श्रीवास्तव, अंकिता दुबे, शिखा झाँ, जया, आरती पाल, सपना यादव, शिवानी आदि जूनियरों ने भी कविताओं और गीतों की सुंदर प्रस्तुति दी। प्रिय जूनियरों को स्नेह-आशीर्वाद और इतना मान-सम्मान देने हेतु उनका भौत-भौत आभार।



इसके बाद हम अपराह्न 3 बजे बुंदेलखंड विश्वविद्यालय परिसर पहुँचे। यहाँ साथी दीपक नामदेव और दीदी संगीता नामदेव भी आ गए। हम तीनों ने सबसे पहले हिन्दी विभाग जाकर पूजनीय गुरूजी आचार्य पुनीत बिसारिया को पुष्प-गुच्छ और कलम भेंट करके शिक्षक दिवस की बधाई दी और आशीर्वाद प्राप्त किया। वहीं हम तीनों ने सहायक आचार्य डॉ० नवीनचंद पटेल को भी पुष्प-गुच्छ और कलम भेंट करके शिक्षक दिवस की बधाई दी और आशीर्वाद प्राप्त किया।



आचार्य बिसारिया जी का हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने हमारी लेखकीय और नेतृत्त्व प्रतिभा को पहचाना और हमें बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति झाँसी, हिन्दी विभाग बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, साहित्य के आदित्य, अवध ज्योति पत्रिका जैसे सशक्त मंच प्रदान किए, जहाँ हमने अपनी लेखकीय प्रतिभा का प्रदर्शन किया और अनोखी पहचान बनाने में सफलता प्राप्त की। आचार्य बिसारिया जी ने ही हमें प्रकाशित लेखक बनाया और बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति झाँसी की पहल ‘गुमनाम से नाम की ओर’ के अंतर्गत हमारी पहली पुस्तक ‘पंचायत’ (हिन्दी कहानी-कविता संग्रह) अनामिका प्रकाशन प्रयागराज से प्रकाशित करायी और हमें बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति का सदस्य बनाकर युवा लेखक-लेखिकाओं का प्रतिनिधित्त्व सुनिश्चित किया। उनकी पुस्तक ‘शोध कैसे करें’ हमें शोध के क्षेत्र में आगे बढ़ने में अति उपयोगी साबित हुई। उनके मार्गदर्शन से हमने अनेक शोधपत्र तैयार किए और जिनका वाचन राष्ट्रीय संगोष्ठियों में किया। साथ ही इन शोधपत्रों का जनकृति, बुंदेलखंड रिसर्च जर्नल, शिक्षा प्रियदर्शनी और बुंदेलखंड विमर्श आदि शोध पत्रिकाओं में प्रकाशन कराया। आचार्य बिसारिया जी हमारे शोध गुरू हैं। वे आचार्य चाणक्य हैं और हम उनके सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य। उनके श्रीचरणों में हम सत-सत नमन करते हैं।



आचार्य बिसारिया जी से मिलने के बाद हम और साथी दीपक नामदेव पत्रिकारिता एवं जनसंचार संस्थान पहुँचें। वहाँ नवनियुक्त विभागाध्यक्ष / समन्वयक सहायक आचार्य डॉ० कौशल त्रिपाठी जी को कलम भेंट करके विभागाध्यक्ष बनने और शिक्षक दिवस की बधाई देकर आशीर्वाद प्राप्त किया। जब हम अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्त्ता थे तब डॉ० त्रिपाठी जी का छात्र-राजनीति में बेहतर प्रदर्शन करने हेतु मार्गदर्शन मिला और फिर पत्रकारिता के क्षेत्र में नए प्रयोग करने हेतु भी मार्गदर्शन मिला है। 



डॉ० त्रिपाठी जी से मिलने के बाद हम और साथी दीपक नामदेव समाज कार्य विभाग पहुँचे, जहाँ सहायक आचार्य डॉ० मुहम्मद नईम जी को कलम भेंट करके शिक्षक दिवस की बधाई देकर आशीर्वाद प्राप्त किया। डॉ० नईम जी से हमें बुंदेलखंड में समाज सुधार के कार्य करने हेतु  और अखंड बुंदेलखंड के विकास में सकारात्मक भूमिका निभाने हेतु मार्गदर्शन मिलता रहता है और उन्होंने ही आजादी के अमृत महोत्सव में सी०सी०आर०टी०, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार की क्षेत्रीय इतिहास लेखन परियोजना हेतु हमें पंजीकृत कराया था। 



शिक्षक दिवस पर पूजनीय गुरूजी डॉ० रामशंकर भारती को आवश्यक कार्य से अपने गृहजनपद उरई जाना पड़ा इसलिए उनसे भेंट नहीं हो पाई। उन्हें फोन पर ही शिक्षक दिवस की बधाई देकर आशीर्वाद प्राप्त किया। फिर दूसरे दिन 6 सितंबर 2024 को हम और साथी दीपक नामदेव उनके दीनदयाल नगर, नंदनपुरा स्थित झाँसी निवास पर दोपहर 12 बजे पहुँचकर उन्हें कलम भेंट करके पुनः शिक्षक दिवस की बधाई देकर आशीर्वाद प्राप्त किया।



गुरूजी डॉ० रामशंकर भारती हमारे जीवन में महत्त्वपूर्ण योगदान है। वे हमारे साहित्यिक और दार्शनिक गुरू हैं। उन्होंने हमारी लेखकीय और आलोचकीय प्रतिभा को निखारा है। उन्होंने हमें बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति झाँसी, कलार्पण, राम महोत्सव ओरछा, ओरछा साहित्य महोत्सव, गढ़कुंडार महोत्सव, बिलासपुर की किन्नर और विकलांग विमर्शीय राष्ट्रीय संगोष्ठी जैसे सशक्त मंच प्रदान कराए, जहाँ हमने अपनी लेखकीय और आलोचकीय प्रतिभा का प्रदर्शन किया। डॉ० भारती जी ने हमें बुंदेली में काम करने हेतु भी प्रोत्साहित किया। उन्हीं के आशीर्वाद से हम बुंदेली में स्थापित युवा साहित्यकार बन पाए हैं। समकालीन विमर्शों की दुनिया में उन्होंने स्त्री, दलित, आदिवासी, विकलांग और किन्नर पर केंद्रित ‘डॉ० विनय कुमार पाठक और इक्कीसवीं सदी के विमर्श’ नामक आलोचना ग्रंथ का सहलेखक और संपादक बनाकर हमें अनोखी पहचान दिलाई। डॉ० भारती जी के मार्गदर्शन से हमने बुंदेली और समकालीन विमर्शों पर अनेक शोधपत्र तैयार किए और जिनका वाचन बिलासपुर, गढ़कुंडार और झाँसी की राष्ट्रीय संगोष्ठियों में किया। इन शोधपत्रों का शोध-पत्रिकाओं और पुस्तकों में प्रकाशन भी हुआ। डॉ० भारती जी हमें अपनी संस्कृति, मातृभूमि और मातृभाषा से जुड़े रहकर जीवनभर नए-नए प्रयोग करने हेतु भी मार्गदर्शन देते हैं इसलिए आने वाले वर्षों में बुंदेली के विविध आयामों पर हमारे अनेक ग्रंथ प्रकाशित होंगे और बुंदेली-बुंदेलखंड के समग्र विकास हेतु हमारा संगठन भी सक्रिय होगा। आजादी के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में समकालीन विमर्शों - स्त्री, किसान, दलित और आदिवासी आदि विमर्शों पर केंद्रित उनकी 75 कविताओं का संकलन ‘आखिर कब तक… ? - डॉ० रामशंकर भारती’ स्वतंत्र प्रकाशन दिल्ली से शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है, जिसका संपादन हमने किया है। डॉ० भारती जी झाँसी में हमारे अभिभावक भी हैं। वे महर्षि वाल्मीकि हैं और हम उनके लव-कुश। उनके उनके श्रीचरणों में हम सत-सत नमन करते हैं।

    ।। जै जै बुंदेलखंड।।


©️ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा ‘कुशराज’

(प्रवर्त्तक - बदलाओकारी विचारधारा, किसानवादी लेखक, बुंदेली-बुंदेलखंड अधिकार कार्यकर्त्ता)

07/09/2024 _ 11:25 रात _ झाँसी


पाठकों की टिप्पणियाँ -

(1.) विद्यार्थी की रोचक डायरी है यह। शुभकामनाएं, बधाई। 

- देवेंद्र कुमार सिंह 

(इतिहासकार, झाँसी)


(2.) अपने पूर्वजों और गुरुजनों के प्रति आदर और कृतज्ञता का भाव व्यक्ति को संस्कारवान बनाए रखता है...... 

रोजनामचा को सिलसिलेवार लिखना कठिन होता है। लेकिन तुमने इसमें भी सफलता प्राप्त की है। ढेरों शुभाशीष।

- डॉ० रामशंकर भारती

(साहित्यकार, झाँसी)


(3.) कुशराज जी, आपने गुरुओं को जो मान दिया है वह प्रशंसनीय है। आपके लेखन में एक विशेष आकर्षण सा लगता है मुझे। बधाई आपको।

- डॉ० लखनलाल पाल

(कथाकार, उरई)


(4.) शिक्षक दिवस पर सभी गुरूओं का सम्मान, बेहतरीन आलेख, जिसमें सभी बड़े-बुजुर्ग को आदर और सम्मान भाव से स्मरण किया गया और दिए  संस्कार से ही आज सफलता की सीढ़ी पर चढ़ रहे हैं। डॉ० पुनीत बिसारिया और डॉ० रामशंकर भारती के प्रति भावपूर्ण उद्गगार, जिनकी छत्रछाया में पौधा पेड़ बनने की प्रकिया में है। धरती से जुड़े भैया गिरिजाशंकर बड़े सहज, सरल व्यक्तित्व के धनी हैं, अपने से बड़ों का आदर इनका स्वभाव है। मैं चाहता हूँ कि प्रभु की कृपा इन पर बनी रहे और ये चमकते सितारे की तरह चमकें। भैया गिरिजाशंकर को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ।

- विजय प्रकाश सैनी

(साहित्यकार, झाँसी)

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