Thursday 29 August 2024

युवा पीढ़ी को प्रेम के साथ ही शिक्षा के महत्त्व का संदेश देती है कुशराज की कहानी 'घर से फरार जिंदगियाँ' - डॉ० रिंकी रविकांत

कुशराज के कहानी-संग्रह 'घर से फरार जिंदगियाँ' की समीक्षा...


*** युवा पीढ़ी को प्रेम के साथ ही शिक्षा के महत्त्व का संदेश देती है कुशराज की कहानी 'घर से फरार जिंदगियाँ' ***


©️ डॉ० रिंकी रविकांत

(युवा समीक्षक - कोटा, राजस्थान)

     28 अगस्त 2024



                 

भारत में गरीबी और अमीरी के मध्य झूलता हुआ एक और वर्ग है मध्यम वर्ग। अमीर वेपरवाह होता है क्योंकि हरेक सुविधा उसके पास है उसे किसी चीज का फर्क नहीं पड़ता। गरीब लापरवाह इसलिए होता हैं क्योंकि जब सुविधाएँ ही नहीं तो क्या करना। ‘गरीब’ तो है ही ‘गरीब’, उसे दिखावे की आवश्यकता नहीं पड़ती पर मध्यम वर्ग को हमेशा दिखावे के चक्कर में झंझावातों से जूझना पड़ता है। सरकार भी अमीरों को और ‘अमीर’ करती रहती है या यूँ कहें कि उसकी सभी योजनाएँ सिर्फ ‘अमीरों’ और ‘गरीबों’ के लिए होती हैं। मध्यम वर्ग यहाँ भी मात खा जाता है। जब देश चलाने वाली सरकार ही इस वर्ग की परवाह नहीं करती तो उसे किसी और से क्या उम्मीद ?



इस मध्यम वर्ग ने कई उत्कृष्ट लेखक दिए या कई लेखक ऐसे हुए जिन्होंने इस मध्यम वर्ग के संघर्ष को रचना का विषय बनाया और अमर हो गए। यथा मिथिलेश्वर, कमलेश्वर, रामदरश मिश्र, अमरकान्त, राजेन्द्र यादव, महेन्द्र भीष्म आदि। आज की युवा पीढ़ी जिस घुटन और संत्राश से जूझ रही उसको युवा लेखकों ने भी आदर्श के बिना आवरण में लपेटे यथार्थ ही चित्रित करना प्रारंभ कर दिया। इस नई पीढ़ी के युवा और उभरते बहुमुखी प्रतिभा के धनी लेखक कुशराज भी अपनी कहानियों में इसी संघर्ष से जूझते हुए नजर आते हैं। 



‘घर से फरार जिंदगियाँ’ उनका कहानी-संग्रह है। जिसकी कहानियों के पात्र हमारे आस-पास के ही हैं। ‘रीना’ कहानी में जब लेखक कहता है कि - “ये बकरियाँ ही उनकी गायें थीं…” तब मन बड़ा उद्विग्न हो जाता है। यहाँ ‘गोदान’ के होरी की एक गऊ पालने की लालसा याद आती है परन्तु आज का किसान कदाचित और विपन्नता को प्राप्त हो चुका है तभी तो वह बकरियों को ही गाय मानने पर विवश है। कहानी बहुत कुछ घटना क्रम को समेटे हुए आगे बढती है मसलन… लड़की का विवाह आ गया, डेढ़ लाख दहेज़ देना है... दहेज की व्यवस्था हो गई और विवाह भी... ये सभी घटनाक्रम इतनी शीघ्रता से घटित होते हैं कि बात कुछ अधूरी सी प्रतित होती है। जब लेखक कहता है “एक साल के अन्दर पिंकी का पति भी उसकी मारपीट करने लगता है।” उसे लिखना था - ‘उससे मारपीट करने लगता है।’ आंचलिक भाषा के प्रयोग से वाक्य-विन्यास गड़बड़ा जा रहे। जब हम देखते हैं कि करन की नौकरी छूट गई बल्कि यूँ कहें कि छुड़ा दी गई; वो भी ग्राम प्रधान द्वारा ही। रसूख यहाँ भी काम आयी। निरीह पिता शिम्मू जो स्वयं की बेटी के विवाह के लिए तो कर्जदार बन गया पर बेटे के विवाह में उसे एक फूटी कौड़ी भी दहेज में नसीब नहीं हुआ। हाय रे! दुर्भाग्य कि नियति ने उसे तब भी नहीं बख्शा… और लेनदार से रोज-रोज की जलालत झेलता शिम्मू आख़िरकार मौत को गले लगा लेता है। इस गद्यांश में भी ‘गालीगलौच’ की बजाय ‘गालीगलौज’ और ‘टेंशन’ की बजाय ‘तनाव’ का प्रयोग होना चाहिए था। जिन विपत्तियों से ये परिवार दो चार हो रहा था उसे महज कल्पना प्रसूत नहीं कहा जा सकता वरन ये भारतीय समाज के एक बहुत बड़े वर्ग का कटु सत्य है।



‘सोनम एक बहादुर लड़की’ कहानी भी यथार्थबोध से अभिप्रेरित कहानी है। बगल में लेटी ‘पहली शिकार’ के होते हुए अजय व्हाट्सएप से ‘दूसरी का शिकार’ करने में व्यस्त है। खाना बनाने वाली को ‘आंटी’ तो कह लेता है पर उसे भी बिस्तर तक ले आता है। पाठक वर्ग अजय के चरित्र से वाकिफ हो जाता है कि अजय की प्रेमिका जिसे प्रेम समझ रही थी दरअसल वो वासना थी। कई बार ‘प्रेम’ के विषय में बहसे होती है और ‘ऐहिक प्रेम महज एक छलावा’ कह के लोग इसका मजाक भी उड़ाते हैं। आज की कुछेक बौद्धिक पीढ़ी को लगता है कि प्रेम में देह न मिले तो प्रेम कैसा? यही वजह है कि प्रेम को ‘ऐहिक’ छोड़ अब ‘दैहिक’ बना दिया गया। क्या विडंबना है इस जीवन की तीन बच्चों की उस माँ को खाना बनाने के तो डेढ़ हजार और हमबिस्तर होने के तीन हजार मिल रहे। धन्य हो हमारी गर्त में जा रही संस्कृति। भले ही कुशराज इस कहानी को लिखने के लिए किसी के निशाने पर आ जाये पर इस कहानी को लिखने का साहस दिखाने के लिए मैं उन्हें शाबासी देती हूँ।



इस कहानी में भी अजय के लिए ‘उससे’ की बजाय ‘इससे’ सच्चा प्यार और ‘हवस की आग’ की बजाय ‘हवस की प्यास’ बुझा रहा था जैसे शब्दों का प्रयोग खटकता है। नारीवादी विचारधारा की मेघा जब कहती है- “ये भारत देश है... जहाँ बारह वर्ष से कम उम्र की लड़की से रेप करने पर अत्याचारी को फाँसी की सजा सुनाई जाती है और बाकि स्त्रियों से दुष्कर्म करने पर पापी को छोटी मोटी सजा सुनाकर छोड़ दिया जाता है…” ये हमारी लचर कानून व्यवस्था पर गहरा तंज है। इसके बाद का जो पूरा घटना क्रम है वह पूरा का पूरा ‘फिल्मी’ लगता है। कानून हाथ में लेने वाली सोनम का ‘राष्टीय नारी सम्मान’, ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ यहाँ तक की ‘भारत रत्न’ तक पा लेना अतिशयोक्तिपूर्ण लगता है। लेखक को ऐसे कल्पना प्रसूत और अतिशयोक्तिपूर्ण वातावरण के निर्माण से बचना चाहिए।     



‘पंचायत’ कहानी में भी कथा सूत्र में तारतम्यता की कमी है... घटनाएँ बहुत जल्दी-जल्दी घटित करने की कमी यहाँ भी दिखती है। ‘भूत’ कहानी के पहले ही गद्यांश में ‘घुसे’ और ‘स्मैल’ शब्दों का प्रयोग खटकता है... पूरी कहानी भूतों और तांत्रिकों के बीच घटती है। आदिकालीन हिंदी साहित्य को पढ़ने वाले सिद्धों और नाथों के चमत्कारिक घटनाओं से परिचित हैं। सिद्धों और नाथों के चमत्कारों की ही भांति रमशु कक्का के झाड़-फूंक को महज अंधविश्वास नहीं कहा जा सकता। ‘तीन लौंडे’ एक ऐसा प्रयोग है जिसके असफल होने के पूर्ण आसार हैं। अधूरी और लापरवाह किस्म की इस तरह के लेखन से लेखक को बचने की आवश्यकता है। मैं इसे एक बचकाना प्रयोग कहूँगी।



‘घर से फरार जिंदगियाँ’ हरेक मामले में इस कथा-संग्रह की सफल कहानी है। साक्षी और हर्ष के अंतरजातीय विवाह की समाज में स्वीकृति, असफल प्रेम से इतर हर्ष का ‘फॉरेंसिक इंस्पेक्टर’ पद पर चयन होना प्रेम की पराकाष्ठा को दिखाता है। समाज और धर्म के ठेकेदारों की परवाह किए बगैर प्रेमी युगल का अपने फैसले पर अडिग रहना। कोई भी गलत कदम उठाने की वजाय जीवन में मेहनत करके सफल होना आदि ऐसे कारण बन जाते हैं जिससे उनके अंतरजातीय प्रेम को सामाजिक स्वीकृति मिल जाती है। युवा पीढ़ी को प्रेम के साथ ही शिक्षा के महत्त्व का संदेश देने वाले कुशराज को बधाई।



‘मजदूरी’ कहानी की बात करें तो इसमें भी कथा सूत्रों में बिखराव नजर आता है वहीँ ‘प्रकृति’ एक अच्छी कहानी है। ‘पुलिस की रिश्वत खोरी’ में कहने को कुछ बचा ही नहीं। कहानी शीर्षक से ही अपने बारें में सब कुछ कह जाती है।



‘हिंदी: भारत माता के माथे की बिंदी’ कहानी में वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हिन्दी के प्रति समर्पण और उनके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की गई है। अंतिम कहानी ‘अंतिम संस्कार’ भी एक बदलाव पेश करती है।



चूँकि लेखक ने इन कहानियों के साथ तारीखों आदि का भी विवरण पेश किया है। उससे यह ज्ञात होता है कि संभवतः उम्र एक कारण रहा है इन कहानियों की अपरिपक्वता का। आज कुशराज अच्छा लिख और पढ़ रहे। वे एक संवेदनशील और मृदुभाषी प्राणी हैं। संवेदनशील मनुष्य ही अच्छा सृजन कर सकता है क्योंकि संवेदनाहीन मनुष्य मनुष्य कहलाने लायक ही नहीं होता। जिसमें भावना नहीं वो क्या साहित्य सृजन करेगा? बौद्धिक कुशराज की कुछ कहानियाँ कहानी के शिल्प की दृष्ठि से असफल अवश्य हैं परन्तु उनका पहला कहानी संग्रह है तो उसका यथेष्ट स्वागत किया जाना चाहिए और भविष्य में उनसे अच्छी कहानियों की उम्मीद की जा सकती है।   


पुस्तक - घर से फरार जिंदगियाँ

विधा - कहानी

लेखक - कुशराज झाँसी

प्रकाशन - दिसंबर 2023

प्रकाशक - लॉयन्स पब्लिकेशन, ग्वालियर

मूल्य - ₹150

अमेजन लिंक - Ghar Se Farar Zindagiyan https://amzn.in/d/dx8vSP5



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