समकालीन विमर्शों की धरती : बिलासपुर में तीन दिन - किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी'

 *** समकालीन विमर्शों की धरती - बिलासपुर में तीन दिन ***



छत्तीसगढ़ की न्यायधानी - संस्कारधानी, अपरा नदी के पावन तट पर बसी, महान नारी बिलासा की नगरी और समकालीन विमर्शों की धरती - बिलासपुर की हमारी पहली सांस्कृतिक यात्रा २-६ सितंबर २०२३ के बीच रही। 


इस सांस्कृतिक यात्रा का छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष (दर्जाप्राप्त राज्यमंत्री, छत्तीसगढ़ शासन), विकलांग विमर्श के प्रवर्तक, महान शिक्षाविद, युगपुरुष आलोचक पूजनीय डॉ० विनय कुमार पाठक जी ने शासकीय पातालेश्वर महाविद्यालय, मस्तूरी एवं प्रयास प्रकाशन, बिलासपुर (छत्तीसगढ़) के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित 'किन्नर विमर्श : हिन्दी नाटक एवं सिनेमा के विशेष संदर्भ में' विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी एवं भरत वेद द्वारा लिखित और डॉ० आनंद कश्यप द्वारा संपादित किन्नर विमर्श के पहले नाटक 'शिखण्डी' के विमोचन एवं विमर्श समारोह में हमें शोधपत्र प्रस्तुत करने हेतु आमंत्रित कर सुअवसर प्रदान किया। हम अपने पूजनीय गुरूजी विख्यात साहित्यकार, ललित निबंधकार, लोकसंस्कृतिकर्मी और विद्या भारती बुंदेलखंड के पूर्व प्राचार्य डॉ० रामशंकर भारती जी के साथ वीरांगना लक्ष्मीबाई झाँसी रेलवे स्टेशन से बिलासपुर के लिए गोंडवाना एक्सप्रेस से २ सितंबर २०२३ को रात ९:०५ बजे रवाना हुए थे और सागर, भोपाल, नागपुर और रायपुर के रास्ते हम बिलासपुर रेलवे स्टेशन ३ सितंबर २०२३ को शाम ५:३० बजे पहुँचे। 


स्टेशन से हम लोगों को होटल तक लेने जाने के लिए गाड़ी लेनी आई तब आयोजक डॉ० आनंद कश्यप जी से पहली बार भेंट हुई और साथ ही किन्नर विमर्श के चर्चित उपन्यासकार आदरणीय महेंद्र भीष्म जी से और उनकी शिष्या शोधार्थी रिंकी 'रविकांत' एवं उनके पति ज्योतिषी रविकांत शर्मा और पुत्र अक्षम से भेंट हुई। हम लोग ६:०० बजे बिलासपुर के प्रसिद्ध होटल सेंट्रल पॉइंट पहुँचे। जहाँ पर हम और गुरूजी ५ सितंबर २०२३ तक ठहरे। 


तनक देर विश्राम और तरोजाता होने के बाद ७ : ३० बजे आगंतुक कक्ष में से राष्ट्रीय शोध संगोष्ठी के संरक्षक, देश के वरिष्ठ विमर्शकार पूजनीय डॉ० विनय कुमार पाठक जी देशभर से पधारे साहित्यकारों से मिलने आए। इस अवसर पर साहित्यकारों को नव प्रकाशित पुस्तकें भेंट कर उनका अभिनंदन किया गया। इस मौके पर लखनऊ से पधारे वरिष्ठ कथाकार आदरणीय महेंद्र भीष्म जी, देश - दुनिया के चर्चित साहित्यकार, साहित्य और सिनेमा के मर्मज्ञ, महान शिक्षाविद, बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति, झाँसी के यशस्वी अध्यक्ष, हिन्दी विभाग - बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी के पूर्व अध्यक्ष एवं प्रोफेसर हमारे पूजनीय आचार्य डॉ० पुनीत बिसारिया जी, पूजनीय गुरूजी डॉ० रामशंकर भारती जी, डॉ० अनीता सिंह जी, डॉ० अरुण कुमार यदु जी, डॉ० आनंद कश्यप जी, केशव शुक्ला जी, रिंकी रविकांत जी और गीतिका वेदिका जी आदि उपस्थित रहे।




४ सितंबर २०२३ को सुबह ७ :०० बजे हम और गुरूजी बिलासपुर की सैर पर निकले और बिलासपुर के प्रतिष्ठित महाविद्यालय डी० पी० विप्र कॉलेज और पुराने हाईकोर्ट का अवलोकन करते हुए कोचिंग हब पहुँचे जहाँ हम लोगों ने चाय पी। प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी हेतु दिल्ली के मुखर्जी नगर जैसा माहौल देखकर बेहद खुशी की अनुभूति हुई। सुबह से ही छात्र - छात्राएँ पूरे जोश के साथ कोचिंग आ रहे थे। ८:०० बजे तक हम और गुरूजी वापिस होटल के कमरे पर लौट आए और फिर नहाकर तैयार लिए। ९:०० नाश्ता करने के बाद ९:३० बजे बिलासपुर से १५ किलोमीटर दूर स्थित कार्यक्रम स्थल शासकीय पातालेश्वर महाविद्यालय, मस्तूरी पहुँच गए। कॉलेज पहुँचते ही आयोजकों द्वारा स्वागत - सत्कार किया गया। प्राचार्य कक्ष में प्राचार्य प्रो० भोजराम खूँटे जी के साथ हम सब साहित्यकारों की भेंट और चर्चा हुई। जहाँ पर विशेष रूप से शिखण्डी नाटक के रचयिता भरत वेद जी से हमारी भेंट हुई।


१०:३० बजे सरस्वती वंदना, छत्तीसगढ़ राज्य गीत, महाविद्यालय गीत और 'छत्तीसगढ़ महतारी' की जय... जय भारत - जय छत्तीसगढ़ के उदघोष के साथ कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता महाविद्यालय के प्राचार्य प्रो० भोजराज खूँटे जी ने की। वहीं मुख्य अतिथि महोबा - बुंदेलखंड निवासी किन्नर विमर्श के यशस्वी कथाकार और इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ खंडपीठ के निबंधक सह प्रधानसचिव महेन्द्र भीष्म Mahendra Bhishma जी रहे, जिन्होंने किन्नर जीवन के विविध आयामों पर गहन चर्चा करते हुए उनके प्रति मानवीय दृष्टिकोण अपनाने की अपील की।


मुख्य वक्ता झाँसी - बुंदेलखंड को कर्मभूमि बनाने वाले यशस्वी साहित्य - सिनेमा के विशेषज्ञ, विख्यात साहित्यकार, हिन्दी विभाग बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झाँसी के पूर्व अध्यक्ष हमारे पूजनीय आचार्य प्रो० पुनीत बिसारिया Puneet Bisaria जी रहे, जिन्होंने अपने वक्तव्य में किन्नर विमर्श या तृतीय लिंगी विमर्श का नामकरण दिव्य लिंगी विमर्श करने का सुझाव दिया तथा अनेक नाटकों, फिल्मों और वेब सीरीज के संदर्भ देते हुए हिन्दी साहित्य विशेषकर नाटकों और फिल्मों तथा वेब सीरीज में किन्नर समुदाय के चित्रण का संक्षिप्त परिचय दिया और अमर अकबर एंथनी, कुंवारा बाप, दायरे, संघर्ष, सड़क, मर्डर 2 से लेकर ताली वेब सीरीज तक चित्रपट पर किन्नर समुदाय के चित्रण में आ रहे बदलावों की चर्चा की और बताया कि एक समय में हास्य पैदा करने वाले पात्रों से होकर खलनायकों का सफर तय करते हुए किस प्रकार किन्नर समुदाय आज नायकत्व की चोटी पर चढ़ रहा है। नाटकों के क्षेत्र में जयशंकर प्रसाद के अमर नाटक ध्रुवस्वामिनी से किन्नर विमर्श की हिन्दी नाटकों में विधिवत शुरुआत होती है, जो आज तक गतिमान है। ऐसी स्थापना दी। 


वहीं विशिष्ट अतिथि झाँसी बुंदेलखंड निवासी देश के जाने - माने साहित्यकार, निबंधकार, लोकसंस्कृतिकर्मी हमारे पूजनीय गुरूजी डॉ० रामशंकर भारती Ramshankar Bharti जी रहे, जिन्होंने अपने वक्तव्य में चार - पाँच दशक पूर्व के सनातनी किन्नरों की तत्कालीन सामाजिक स्थितियों और वर्तमान में आए बदलाव का उल्लेख किया और जमीनी हकीकत से जुड़े संस्मरण सुनाकर किन्नर विमर्श : दशा और दिशा पर यथार्थवादी और मानवीय दृष्टिकोण अपनाने पर जोर दिया।


बीज वक्तव्य छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग के पूर्व अध्यक्ष, चर्चित साहित्यकार, विकलांग विमर्श के प्रवर्तक और यशस्वी आलोचक, युगपुरूष पूजनीय डॉ० विनय कुमार पाठक जी ने दिया, जिन्होंने किन्नर - विमर्श के विविध आयामों कर चर्चा करते हुए भरत वेद द्वारा लिखे गए नाटक 'शिखण्डी' को किन्नर विमर्श पर लिखा गया प्रथम नाटक घोषित किया।


समारोह में मंचासीन अतिथियों द्वारा 'शिखण्डी' नाट्यकृति का विमोचन और विमर्श किया गया। छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति चंद्रभूषण वाजपेयी जी समारोह के विशिष्ट अतिथि रहे। पहले तकनीकी सत्र में डी० पी० विप्र कॉलेज, बिलासपुर की यशस्वी प्राचार्या प्रो० अंजू शुक्ला जी, टीकमगढ़ - बुंदेलखंड निवासी किन्नर विमर्श की लेखिका - अभिनेत्री गीतिका वेदिका जी, शिखंडी नाटक के रचयिता भरत वेद जी, कोटा - राजस्थान से पधारीं किन्नर विमर्श की समीक्षिका रिंकी 'रविकांत' जी, उनके पति ज्योतिषी रविकांत शर्मा जी, कथाकार डॉ० चंद्रिका चौधरी जी, धनबाद - झारखंड से पधारीं और संबलपुर - उड़ीसा में सहायक आचार्य पद पर कार्यरत सुश्री पूजा सिंह 'आद्या' जी, लेखक अरुण कुमार यदु जी, कथाकार सूरज प्रकाश डडहाने जी, अभिनेता विश्वनाथ राव जी, प्रो० एल० के० निराला जी, प्रो० भुवन सिंह राज जी समेत तमाम साहित्यकार, प्राध्यापक - प्राध्यापिकाएँ, फिल्मकार, आलोचक, शोधार्थी, पत्रकार, छात्र - छात्राएँ उपस्थित रहे।


दूसरे तकनीकी सत्र में शोधार्थियों ने अपने - अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए। हमने अपना शोधपत्र - " हिन्दी नाटक में किन्नर विमर्श " पढ़ा और जिसमें हमनें तर्कों और तथ्यों के आधार पर सिद्ध किया कि हिन्दी नाटक के क्षेत्र में किन्नर विमर्श की शुरूआत सन १९९२ में 'भरत वेद' द्वारा लिखित और निर्देशित नाटक "शिखण्डी" से ही होती है। जो नाटक फरवरी सन २०२३ में डॉ० आनंद कश्यप के सम्पादन में प्रकाशित हुआ है। इस नाटक को हम किन्नर विमर्श का पहला नाटक मानते हैं। किन्नर विमर्श पर दूसरा नाटक 'हरीश बी० शर्मा' का लघु नाटक "हरारत" (सन २००३) और तीसरा नाटक 'महेश दत्तानी' द्वारा लिखित "आग के सात फेरे" (सन २००८) है।


वस्तुतः किन्नर विमर्श के उपर्युक्त तीनों नाटकों में किन्नरों की विभिन्न समस्याओं को उजागर करके उनके समाधान खोजने पर बल दिया गया है। किन्नर विमर्श के पहले हिन्दी नाटक 'शिखण्डी' में भरत देव जी ने तथाकथित समाज में सभ्य माने जाने वाले लोगों, राजनेताओं, सरकार, मीडिया और फिल्म कारोबारियों द्वारा किन्नरों पर किए जाने वाले दमन - शोषण और उपेक्षा को बेबाकी से दिखाया गया है और किन्नरों को अपने अधिकार पाने के लिए संघर्षरत दिखाया गया है, जो समाज की प्रयोगशाला में अनोखा प्रयोग है जिससे किन्नर समाज की दशा और दिशा अवश्य बदलेगी। 'हरारत' नाटक में हरीश बी० शर्मा ने मूलतः ये संदेश संप्रेषित किया है कि किन्नर के मन में भी माँ - बाप बनने की इच्छा होती है। 'आग के सात फेरे' नाटक में महेश दत्तानी जी ने किन्नरों को भी वैवाहिक - बंधन का अधिकार दिलाने हेतु आवाज बुलन्द की है और प्रेम - सम्बधों के चलते किन्नरों पर होने वाले अत्याचारों को उजाकर करके सामाजिक अपराधियों की निंदा की है।


हमें अपने इस शोधपत्र हेतु तृतीय पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया।


इसके पश्चात आयोजक हिन्दी विभाग, शासकीय पातालेश्वर महाविद्यालय, मस्तूरी के यशस्वी अध्यक्ष, चर्चित उपन्यास 'गॉंधी चौक' के लेखक, संपादक डॉ० आनंद कश्यप जी के पास हमने अपना शोधपत्र 'हिन्दी नाटक में किन्नर' और दिल्ली विश्वविद्यालय की सहपाठी रही, प्यारी दोस्त, शोधार्थी साथी अर्पिता लखेरा Arpita Lakhera का शोधपत्र 'सिनेमा में किन्नर विमर्श' जमा किया। 


शाम ६:०० बजे हम कॉलेज से लौटकर वापिस होटल आ गए। रात ८:०० बजे पूजनीय डॉ० विनय कुमार पाठक जी, लेखक अरूण कुमार यदु जी और डॉ० आनंद कश्यप जी हम साहित्यकारों से मिलने होटल आए और सभी को उपहार भेंट कर सम्मानित किए।  


५ सितंबर २०२३ की सुबह हम और गुरूजी फिर से बिलासपुर की सैर पर निकले और इस बार कथाकर डॉ० आनंद कश्यप जी के चर्चित उपन्यास 'गाँधी चौक' के कथानक स्थल बिलासपुर की गाँधी चौक का नजारा देखा। चौक पर सत्य - अहिंसा का संदेश देती राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की प्रतिमा स्थित थी तो उसके चहुँओर बाजार की दुकानें और उससे थोड़ी दूर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले छात्र - छात्राओं की काशी स्थित थी…।


दोपहर १:३० बजे हम और गुरूजी सेंट्रल पॉइंट होटल, बिलासपुर से विदा हुए और फिर उसलापुर रेलवे स्टेशन से दुर्ग हमसफर एक्सप्रेस में सवार होकर अपने घर झाँसी के लिए रवाना हुए। शहडोल, अनूपपुर, दमोह, सागर के रास्ते हम लोग ६ सितंबर २०२३ की सुबह ५:०० बजे झाँसी आ गए। 


" छत्तीसगढ़ का समाज और वहाँ की जलवायु हमें बुंदेलखंड जैसी ही लगी। हमें वहाँ अपने घर बुंदेलखंड जैसी ही अनुभूति हो रही थी। छत्तीसगढ़वासियों का अपनी संस्कृति और भाषा के प्रति समर्पण हमें बहुत आकर्षित किया। यदि ऐसा समर्पण बुन्देलखंडी अपनी बुंदेली भाषा और संस्कृति के प्रति दिखायेंगे तो अखंड बुंदेलखंड की गूँज सारी दुनिया में होगी। "


आमंत्रण हेतु पूजनीय डॉ० विनय कुमार पाठक जी और डॉ० आनंद कश्यप जी का भौत - भौत आभार 🙏🙏🙏


©️ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा

 'कुशराज झाँसी'

(परास्नातक छात्र - हिन्दी विभाग, बुन्देलखंड महाविद्यालय, झाँसी; बुन्देलखंडी युवा लेखक, बकील, सामाजिक कार्यकर्त्ता)


_ ६ सितंबर २०२३, ११:००बजे रात, झाँसी


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