वैचारिक लेख : समकालीन भारत में युवा-युवतियों के जीवन की पड़ताल - किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी'

 #21वींसदीकाभारतीयसमाज


*** वैचारिक लेख - " समकालीन भारत में युवा-युवतियों के जीवन की पड़ताल " ***


समकालीन युग में हम देख रहे हैं कि भारतीय संस्कृति के केन्द्र के रूप में स्थापित देश की राजधानी दिल्ली और आर्थिक राजधानी मुंबई समेत महानगरों के साथ ही हमारे देश भारत के हर छोटे-बड़े नगरों में पाश्चात्य संस्कृति बड़ी तेजी से अपनायी जा रही है। जिसके कारण भारतीय समाज को विविध प्रकार की समस्याओं और हानियों का सामना करना करना पड़ रहा है। यदि अभी सजग नहीं हुए तो भविष्य में ऐसी ही अनेकों समस्याओं की जकड़न में जकड़ सकता है भारतीय समाज।


समकालीन युग में भारतीय समाज के लिए सबसे बड़ी हानियों की सूची में फैशन, नशा, धूम्रपान, देह-शोषण तथा बाजार का शिकार होना है। इनसे भी बड़ी हानि विश्व की प्राचीनतम और महानतम संस्कृति के रूप में शुमार सनातनी संस्कृति 'भारतीय संस्कृति' से विमुख होना है। 


अब ऐसी मान्यता स्थापित हो चुकी है कि सिर्फ साहित्य ही नहीं सिनेमा भी समाज का दर्पण है। यदि हम समकालीन सिनेमा में सबसे लोकप्रिय भारतीय सिनेमा 'हिन्दी सिनेमा' की पड़ताल करें, जिसे वैश्विक परिदृश्य में 'बॉलीवुड' के नाम से पहचाना जाता है तो हम पाते हैं कि समकालीन सिनेमा की कुछेक फिल्मों को छोड़कर हर फिल्म में आईटम सॉन्ग और आईटम नाच धड़ल्ले से प्रदर्शित किए जा रहे हैं। अभिनेत्रियों को विज्ञापनों और वस्तुओं के कवरों पर वस्तु की तरह पेश किया जा रहा है या अभिनेत्रियाँ स्वेच्छा से अपने आपको ऐसा पेश करने में गौरवान्वित महसूस कर रहीं हैं। समकालीन दौर में अभिनेत्रियाँ मॉडलिंग की आड़ में अर्द्धनग्नता और देह-प्रदर्शन के अलावा कुछ भी नहीं कर रहीं हैं। ये अभिनेत्रियाँ अपनी देह को बाजार की वस्तु बनाकर भोगवादियों की भाँति धनाढ्य बन रहीं हैं। फिल्मों में अभिनेत्रियाँ सिर्फ अभिनेता की शारीरिक आवश्यकताओं को पूरी करती हुईं नजर आ रहीं हैं। हमारे विचार से और भारतीय संस्कृति की मान्यताओं के हिसाब से सिनेमा का ऐसा रवैया कतई ठीक नहीं है।


ऐसा भी मान्यता है कि पुरूषप्रधान वाले क्षेत्रों जैसे - राजनीति, सिनेमा, साहित्य, मीडिया और उद्योग जगत में स्त्री को यौन-उत्पीड़न का शिकार होना पड़ता है और समाज में चरित्रहीनता के चलते बदनामी झेलनी पड़ती है। राजनीति-सिनेमा आदि में स्थापित होने के क्रम में स्त्रियों का देह-शोषण सोचनीय है। इसमें प्रेम-संबंध दूर-दूर तक नजर नहीं आते। राजनीति-सिनेमा आदि पुरुषवर्चस्व वाले क्षेत्रों के स्त्री-शोषण के रवैये को हम बिल्कुल भी ठीक नहीं मानते, ऐसी व्यवस्था को शीघ्र-अतिशीघ्र बदल दिया जाना चाहिए।


समकालीन दौर में हम देख रहे हैं कि परिवर्तन और विकास की सदी - 21वीं सदी में विश्व में हमारा देश 'भारत' सबसे युवा देश बनकर उभरा है यानी सबसे ज्यादा युवा शक्ति हम ही हैं। लेकिन विचारणीय एवं दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि समकालीन भारत के युवा-युवतियाँ फैशन, धूम्रपान, नशे और यौनेच्छा की लत के शिकार होते नजर आ रहे हैं।


सरकार की विकासवादी मंशा के मुताबिक देश के बाजार में चीन और पश्चिमी देशों में बने फैशनेबल पश्चिमी वेशभूषा और वस्तुएँ महँगे दामों में धड़ल्ले से बिक रही हैं। इन पश्चिमी वस्त्रों युवतियों और स्त्रियों का पूरा शरीर तक नहीं ढका होता है। कुछ तो तथाकथित आधुनिक और स्वछंद स्त्री दिखने हेतु ऐसे वस्त्रों का उपयोग करती हैं। 


इस होड़ में युवा और पुरूष भी बिल्कुल कम नहीं हैं, वो भी तथाकथित स्मार्ट बनने के चक्कर में सिगरेट तक फूँकने लगते हैं। दिल्ली- बम्बई में तो कॉलेज की लड़कियाँ तक सिगरेट फूँक रहीं हैं। सिर्फ इतना ही नहीं अपने तथाकथित प्रेमी के साथ गाँजा, ड्रग्स भी ले रहीं हैं। जो इन सबके के लिए जानलेवा है और समाज की सबसे बड़ी समस्या।


दिल्ली में कॉलेज लाइफ और सिविल सेवा की तैयारी के दौरान फैशन, नशा और यौनेच्छा के शिकार अधिकतर युवा-युवतियाँ हो रहे हैं। कॉलेज और कोचिंग में फरेबी प्रेम-प्रसंग के चलते यौन-शोषण का चलन चल रहा है। ऐसा माहौल बनाने में टिंडर, सोशल मीडिया और फोन बड़ी अहम भूमिका निभा रहे हैं।


जहाँ युवा कामेच्छा की पूर्ति हेतु तीन-चार प्रेमिकाएँ रख रहे हैं तो वहीं युवतियाँ पाँच-छः प्रेमी। चाणक्यनीति के मुताबिक स्त्रियों में काम-शक्ति पुरुषों से आठ गुना अधिक होती है। इस काम-शक्ति का प्रयोग तो युवतियाँ अनैतिक धंधे 'देह-व्यापार' हेतु कर रही हैं और कुछ कॉलगर्ल बन रहीं हैं तो कुछ वेश्याएँ। कॉलगर्ल, लिव-इन की संस्कृति और वेश्यावृत्ति से हानियाँ युवतियों और युवाओं दोनों को हैं। 


एक ओर, जहाँ युवा यौनेच्छा की पूर्ति हेतु हजारों रूपए खर्च कर देते हैं और साथ ही शारीरिक-मानसिक कमजोरी का दंश भी झेलते हैं और ठीक से पढ़ाई-लिखाई न कर पाने के कारण अपने कैरियर के साथ खिलवाड़ भी करते हैं। इसके अलावा अपने परिवार और समाज को भी धोखा देते हैं। एक समय बाद ऐसे भोगविलासी और नशेड़ी युवाओं की समाज में न तो कोई इज्जत बचती है और न ही कोई काम-धंधा मिलता है। इनमें से कुछ की हत्या कर दी जाती है और कुछ आत्महत्या करने को मजबूर हो जाते हैं। 


दूसरी ओर, वहीं कॉलगर्ल और वेश्यावृत्ति का धन्धा करने वाली युवतियों के साथ इन युवाओं से भी बुरा सलूक होता है। ये भी नशे की लत में पड़ जाती हैं और जीवन में अनेकों जानलेवा बीमारियों का सामना करती हैं। साथ ही अनैतिक यौन-संबंध के चलते शरीर को मानसिक और भौतिक कष्ट देने के अलावा अपनी सुंदरता और पहचान भी खो देती हैं। समाज में इनके साथ जानवरों से भी बुरा व्यवहार किया जाता है। इन्हें समाज में 'बाजारू औरत' कहा जाने लगता है और वो सम्मान नहीं मिलता, जो एक भारतीय नारी को मिलता है। इनका समाज में वस्तु की तरह इस्तेमाल किया जाता है। 


समकालीन भारत के इन फैशन, नशा और यौनेच्छा की लत के शिकार युवा-युवतियों को फैशन, नशा और यौनेच्छा की लत से बचाने का सरकार को और हम सबको मिलकर यही उपाय करने चाहिए कि देश में जूनियर, हाईस्कूल से लेकर पोस्टग्रेजुएट पाठ्यक्रमों में 'यौन शिक्षा' या 'काम-शिक्षा' यानी 'सेक्स एजूकेशन' नामक विषय अनिवार्य रूप से पढ़ाया जाना चाहिए। सरकार को विदेशी वस्तुओं की देश के बाजार में बिक्री पर रोक लगानी चाहिए और स्वदेशी वस्तुओं एवं भारतीय संस्कृति को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। धूम्रपान और नशीले पदार्थों के उत्पाद पर पूर्णतः रोक लगानी चाहिए, इसके लिए धूम्रपान सामग्री और नशीले पदार्थों का उत्पादन करने वालीं सारी सरकारी और प्राईवेट कम्पनियों को बंद कर देना चाहिए और इन कम्पनियों को खाद्य-उत्पाद कम्पनी के रूप में तब्दील कर देना चाहिए। सबको शिक्षा मिलना चाहिए और जन-जागरूकता का बिल्कुल अभाव नहीं होना चाहिए। ऐसे मेरे सपनों के समाज का निर्माण करने के लिए जनता को एकबार सशक्त क्रान्ति करनी होगी तभी नशामुक्त, सुरक्षित, शिक्षित और सशक्त भारत का निर्माण होगा और हमसब हरदम हर्षपूर्ण जीवन जिएँगे.....।


©️ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा

 'कुशराज झाँसी'

 (प्रवर्त्तक - बदलाओकारी विचारधारा)  

  _15/11/2019_7:12भोर _ दिल्ली

(संशोधन - 31/5/2024_11:16रात_झाँसी)


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