हिन्दी चेतना / विविधा (ऑनलाइन पत्रिका) में 15 अगस्त 2024 को डॉ० रामदरश मिश्र जी की जन्मशती पर प्रकाशित "डॉ० रामदरश मिश्र से साक्षात्कार - शिवजी श्रीवास्तव" पर कुशराज की प्रतिक्रिया...
*** हिन्दी चेतना / विविधा (ऑनलाइन पत्रिका) में 15 अगस्त 2024 को डॉ० रामदरश मिश्र जी की जन्मशती पर प्रकाशित "डॉ० रामदरश मिश्र से साक्षात्कार - शिवजी श्रीवास्तव" पर कुशराज की प्रतिक्रिया ***
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"21वीं सदी के साहित्य पर सारगर्भित साक्षात्कार। आदरणीय श्रीवास्तव जी Shivji Srivastava के सवाल जायज हैं और पूजनीय मिश्र जी के जबाव सटीक हैं। वर्तमान और भविष्य के साहित्य को अपने में अपनी संस्कृति को समाहित करके नई पीढ़ी को संस्कृति से जोड़े रखना चाहिए और समाज की तमाम समस्याओं को उठाकर उनके उचित समाधान देकर आदर्श समाज का निर्माण करना चाहिए। विश्व-ग्राम को अवधारणा को नकारते हुए 'अपना गॉंव-अपनी पहचान' की अवधारणा को अपनाना चाहिए। स्त्री-विमर्श के नाम पर स्त्री की देह-मुक्ति नाजायज है। भारतीय स्त्री-विमर्श को सावित्रीबाई फुले की विचारधारा पर चलने की परम आवश्यकता है। प्रेमचंद का दलित साहित्य तथाकथित दलित साहित्यकारों से सौ गुना बेहतर है। महात्मा जोतिबा फुले किसान थे लेकिन उन्होंने अपना सारा जीवन दलितों के कल्याण में समर्पित किया। गुलामगिरी दलित साहित्य का शिखर है। स्त्री विमर्श और दलित विमर्श पर कोई भी लिख सकता है। चाहे वो पुरूष हो या गैर दलित। जैसा हम मानते हैं कि किसी भी वर्ग के द्वारा किसान-जीवन पर लिखा हुआ साहित्य 'किसान साहित्य' है और उसे लिखने वाला 'किसान साहित्यकार'...।"
©️ कुशराज झाँसी
(किसानवादी, युवा आलोचक)
16/8/2024, झाँसी
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