बुंदेली ज्ञान परंपरा का गागर में सागर है कुशराज का लघुशोध '21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन' - पंडित सुमित दुबे
*** बुंदेली ज्ञान परंपरा का गागर में सागर है कुशराज का लघुशोध '21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन' ***
©️ पंडित सुमित दुबे
किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज' जी ने अपने लघुशोध '21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन' में 21वीं सदी में बुंदेली भाषा, विभिन्न क्षेत्रों में बुंदेली और बुंदेलीसेवियों के साक्षात्कार नामक तीन अध्यायों में बुंदेली ज्ञान परंपरा का गागर में सागर भरने का बेहतरीन प्रयास किया है। कुशराज जी ने अपने शोध में बुंदेली भाषा का सीमांकन, बुंदेली संस्कृति और भाषाविज्ञान के आधार पर बहुत ही खूबसूरती से विश्लेषण किया है।
इसमें मुहावरों और लोकोक्ति के माध्यम से बुंदेली भाषा को परिभाषित किया गया है। साथ ही बुंदेली में भी विभिन्न बोलियाँ हैं, उनकी सुंदर विवेचना की है। बुंदेली और अन्य स्थानीय भाषाओं के अस्तित्व पर आपकी पीड़ा स्वाभाविक है। आपकी बुंदेली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल न होने की पीड़ा जायज है, जो बुंदेली भाषा पर काम करने वाले हर व्यक्ति की भी है।
कुशराज जी ने इस शोध में बुंदेली लोकजीवन में लोकसंस्कृति, खानपान, रहन-सहन, लोककला, लोकगीत, पहनावा, आभूषण, त्योहारों और परंपराओं का शोधपरक अध्ययन किया है। बुंदेली साहित्य के अध्ययन में आपने बुंदेली साहित्यकार, कवि, कथाकार, आलोचक, इतिहासकार तक पहुंचने में अच्छा प्रयास किया है।
आपने बुंदेली में सिनेमा और सिनेमा जगत और सोशल मीडिया के माध्यम से बुंदेली भाषा की लोकप्रियता का भी सूक्ष्म अध्ययन किया और उससे जुड़े लोगों को रेखांकित भी किया। अंत मे बुंदेलीसेवियों के साक्षात्कार भी बहुत बढ़िया हैं। आपके शोध-कार्य हेतु आपको बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ। आशा है कि यह लघुशोध-कार्य शोध अध्ययन में परिणित हो। आपका शोध शोधार्थियों के लिए सन्दर्भ ग्रंथ के रूप में उपयोगी होगा।
14/08/2024, नरसिंहपुर
(बुंदेली लोकसंस्कृतिकर्मी, लोक अध्येता, बुंदेली गायक। नरसिंहपुर, मध्य प्रदेश - अखंड बुंदेलखंड़)
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