झाँसी में बुंदेली को समर्पित संस्थानों की दशा और दिशा - किसान गिरजाशंकर कुशवाहा कुशराज (Jhansi men Bundeli ko Samarpit Sansthanon ki Dasha Aur Disha - Kisan Girjashankar Kushwaha Kushraj)
अपनी माटी, अपना देश, अपनी भाषा और अपनी संस्कृति सबको प्रिय होती है और हो भी क्यों न। जिस माटी में हम जनम लेते हैं, जिस माटी का हम अन्न-जल ग्रहण करते हैं, जिस माटी की प्रकृति से हम प्राणवायु लेते हैं। उस माटी की आन-बान-शान की रक्षा करना हमारा पहला धर्म है। हमें अपनी माटी के कण-कण से लगाव होना ही चाहिए। अपनी माटी में उपजी भाषा और संस्कृति की अस्मिता बनाए रखनी चाहिए। हमें अपनी भाषा और संस्कृति को कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि भाषा और संस्कृति ही हमारी दुनिया के सामने अनोखी पहचान बनाती है। हमारी माटी बुंदेलभूमि है, जिसे बुंदेलखंड़ नाम से दुनिया में पहचाना जाता है। हम इसे अखंड बुंदेलखंड़ मानते हैं। हमारी भाषा बुंदेली है। बुंदेली को बुंदेलखंडी नाम से भी जाना जाता है। बारहवीं सदी में महाकवि जगनिक द्वारा रचित आल्हाचरित से बुंदेली साहित्य की शुरूआत हुई थी। वर्तमान में बुंदेलीभाषियों की जनसंख्या लगभग बारह करोड़ है। बुंदेली की लगभग पच्चीस बोलियाँ जैसे बनाफरी, खटोला, कछियाई, ढिमरयाई, लुधियाई, बमनऊ इत्यादि प्रचलन में हैं। हमारी संस्कृति बुंदेली संस्कृति है, जो किसानी संस्कृति है। हमें अपनी बुंदेली माटी, बुंदेली भाषा, बुंदेलखंड राज्य और बुंदेली संस्कृति प्राणों से भी ज्यादा प्रिय है। हम अपनी बुंदेली माटी, बुंदेली भाषा और बुंदेली संस्कृति की रक्षा करना अपना धर्म मानते हैं। जब तक हमारी माटी, हमारी भाषा और हमारी संस्कृति की कीर्ति का परचम दुनिया में लहराता है, तभी तक हमारी कीर्ति की चर्चा होती है इसलिए हमें अपनी भाषा और अपनी संस्कृति का प्रचार-प्रसार हर क्षण करते रहना चाहिए।
अखंड बुंदेलखंड की राजनैतिक और सांस्कृतिक राजधानी झाँसी का बुंदेलखंड विश्वविद्यालय और बुंदेलखंड कॉलेज बुंदेली को समर्पित संस्थानों में शुमार है। आगामी समय में जल्द ही बुंदेलखंड कल्चरल एंड टूरिस्ट इन्फॉर्मेशन सेंटर एवं पंडित डॉ० विश्वनाथ शर्मा बुंदेलखंड हेरिटेज इंस्टीट्यूट संचालित होने जा रहे हैं। इसके साथ ही यहाँ उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा केशवदास बुंदेली अकादमी की स्थापना भी प्रस्तावित है। झाँसी कलम, कला, किसान और कृपाण की भूमि है। झाँसी जिले की बुंदेली भाषा मानक बुंदेली है। 21वीं सदी बुंदेली भाषा के लिए वरदान साबित हो रही है। आज के दौर में झाँसी देहात और झाँसी महानगर में बोलचाल बुंदेली में ही हो रहा है। इसके साथ ही बुंदेली भाषा का प्रयोग साहित्य, संस्कृति, शिक्षा, पत्रकारिता, सिनेमा, सोशल मीडिया आदि ज्ञान-विज्ञान के क्षेत्रों भी किया जा रहा है। झाँसी के डॉ० रामनारायण शर्मा, हरगोविंद कुशवाहा, राजा बुंदेला, डॉ० रामशंकर भारती, पन्नालाल असर, नीति शास्त्री, ब्रजलता मिश्रा, आरिफ शहड़ोली, डॉ० वंदना कुशवाहा, रामप्रकाश गुप्ता, डॉ० अजयसिंह कुशवाहा, बेबी इमरान, गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज', अमित कुमार अहिरवार, आशुतोष नायक, अर्चना कोटार्य जैसे अनेकानेक बुंदेलीसेवी बुंदेली भाषा-साहित्य और संस्कृति के उन्नयन के लिए तन-मन-धन से समर्पित होकर कार्य कर रहे हैं।
बुंदेली सेवाओं हेतु डॉ० रामनारायण शर्मा को साहित्य अकादमी दिल्ली द्वारा साहित्य अकादमी भाषा सम्मान, डॉ० रामशंकर भारती को हिंदुस्तानी एकेडमी प्रयागराज उत्तर प्रदेश द्वारा एकेडमी सम्मान, पन्नालाल असर को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ द्वारा लोकभूषण सम्मान, प्रतापनारायण दुबे को उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान लखनऊ द्वारा मैथिलीशरण गुप्त पुरस्कार और गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज' को अवध भारती संस्थान लखनऊ, बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति झाँसी एवं राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त महाविद्यालय चिरगांव झाँसी द्वारा अवध ज्योति बुंदेली सृजन शिखर सम्मान से सम्मानित किया गया है और आरिफ शहड़ोली की बॉलीवुड फिल्म गुठली हेतु कोलकाता अंर्तराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल द्वारा बुंदेली भाषा खंड के अंतर्गत सर्वोच्च निर्देशक का सम्मान मिला है।
प्रसन्नता की बात है कि बुंदेलखंड विश्वविद्यालय में स्नातक एवं परास्नातक में बुंदेली भाषा और साहित्य का अध्ययन-अध्यापन किया जा रहा है। स्नातक हिन्दी एवं परास्नातक हिन्दी के बुंदेली पाठ्यक्रम में बुंदेली काव्य ही सम्मिलित है, जबकि बुंदेली गद्य में भी प्रचुर साहित्य उपलब्ध है। यदि बुंदेली गद्य भी सम्मिलित होता तो बुंदेली भाषा और साहित्य के अध्ययन-अध्यापन में और सहूलियत होती। दुःख की बात ये है कि बुंदेलखंड विश्वविद्यालय परिसर और महाविद्यालयों में बुंदेली पाठ्यक्रम पढ़ाने हेतु शिक्षक-शिक्षकाएँ नियुक्त नहीं हैं। बुंदेली काव्य को गैर बुंदेलीभाषी जैसे हिन्दी, भोजपुरी, अवधी, ब्रज, मालवी वाले शिक्षक-शिक्षिकाएँ पढ़ा रहे हैं। यदि सरकार अतिशीघ्र बुंदेली के असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर के पदों पर अखंड बुंदेलखंड के बुंदेलीभाषी सुयोग्य व्यक्तियों की नियुक्ति कर दे तो बुंदेलखंड की शिक्षा व्यवस्था में ऐतिहासिक परिवर्तन आ जाएगा और मोदी सरकार की राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का सार्थक क्रियान्वयन हो सकेगा।
बुंदेलखंड विश्वविद्यालय परिसर में हिन्दी विभाग के अंतर्गत बुंदेली वीथिका, वृदांवनलाल पांडुलिपि दीर्घा एवं बुंदेली विरासत दीर्घा आदि उपक्रम संचालित हैं लेकिन इन उपक्रमों के निदेशक जैसे पदों पर भोजपुरी, अवधीभाषी आसीन हैं। यदि इन उपक्रमों का संचालन और प्रबंधन बुंदेलीभाषियों के द्वारा होगा तो ये उपक्रम अपने एकमात्र उद्देश्य - बुंदेली का प्रचार-प्रसार और संरक्षण को अर्जित करने में सार्थक हो सकेंगे। पिछले सत्र से हिन्दी विभाग के अंतर्गत इतिहास, भूगोल, राजनीति और संस्कृत के स्नातक ऑनर्स कोर्स संचालित किए जा रहे हैं यदि अगले सत्र से बीए ऑनर्स बुंदेली और एमए बुंदेली कोर्स संचालित होने लगेंगे तो ये हिन्दी विभाग हेतु ऐतिहासिक उपलब्धि होगी। बुंदेलखंड विश्वविद्यालय द्वारा अपनी स्थापना के शुरुआती दौर में बुंदेली-बुंदेलखंड को समर्पित बेतवावाणी नामक पत्रिका का प्रकाशन होता था। यदि बेतवावाणी का पुर्नप्रकाशन शुरू हो जाता है या फिर बुंदेलीगुरू नामक नई पत्रिका को प्रकाशन शुरू हो जाता है तो बुंदेलखंडी ज्ञान परंपरा के संरक्षण और संवर्द्धन को नई दिशा मिलेगी।
चित्र : बुंदेलखंड कॉलेज, झाँसी
झाँसी-बुंदेलखंड के प्राचीनतम महाविद्यालय बुंदेलखंड कॉलेज ने बुंदेली-बुंदेलखंड पर शोध कराके बुंदेली-बुंदेलखंड के विकास में अहम भूमिका निभायी है। इसके पूर्व हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो० मनुजी श्रीवास्तव के अथक प्रयासों से बुंदेली विश्वविद्यालयी पाठ्यक्रम में सम्मिलित हुई। आज के दौर में बुंदेलखंड कॉलेज में सुयोग्य अस्थायी बुंदेली प्रशिक्षक से बुंदेली लोकनृत्य राई और बुंदेली लोकगीत गायन में प्रशिक्षित प्रतिभाशाली छात्र-छात्रा कलाकारों के सांस्कृतिक प्रर्दशन विश्वस्तर पर धूम मचा रहे हैं। लेकिन अस्थायी बुंदेली प्रशिक्षक अपनी पारिवारिक आवश्यक आवश्यकताएँ ही पूरी नहीं कर पा रहा है। यदि उसकी स्थायी नियुक्ति हो जाती है तो बुंदेली लोकसंस्कृति के संवर्द्धन में अधिक तीव्रता आएगी। साथ ही अस्थायी और स्थायी शिक्षकों के बीच होने वाले सामाजिक, आर्थिक और अकादमिक भेदभावों से मुक्ति मिल जाएगी। यदि बुंदेलखंड कॉलेज में बुंदेलीपीठ की स्थापना हो जाए और बुंदेलीपीठ से बुंदेली भाषा और साहित्य के ग्रंथों का प्रकाशन, बुंदेलीधरती नामक बुंदेली को समर्पित पत्रिका का प्रकाशन जैसी गतिविधियाँ संचालित होने लगें ताकि बुंदेली के विकास को धार सके।
झाँसी के पूर्व मण्डलायुक्त डॉ० अजयशंकर पांडेय ने बुंदेलखंड की भाषा, साहित्य, कला, संस्कृति, पर्यटन, कुटीर उद्योग आदि के प्रचार-प्रसार और संरक्षण हेतु और अटल स्मृति पुस्तकालय झाँसी के लिए पाठ्य-सामग्री की उपलब्धता हेतु कुल नौ समितियों का गठन किया था। बुंदेलखंड की भाषा और साहित्य को समर्पित समिति बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति का गठन बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झाँसी के तत्कालीन हिन्दी विभागाध्यक्ष और बुंदेली साहित्य के मर्मज्ञ प्रो० पुनीत बिसारिया की अध्यक्षता में हुआ था। बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति ने गुमनाम से नाम की ओर पहल के अंतर्गत बुंदेलखंडी साहित्यकारों की इक्यावन पुस्तकों का प्रकाशन कराया, जिसमें बुंदेली भाषा और साहित्य के पुस्तकें भी शामिल रहीं। बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति की गतिविधियाँ बुंदेलखंडी साहित्यकारों हेतु मील का पत्थर साबित हुईं।
बुंदेली संस्कृति और पर्यटन को बढ़ावा देने हेतु झाँसी स्मार्ट सिटी लिमिटेड द्वारा क्राफ्ट मेला मैदान में बुंदेलखंड कल्चरल एंड टूरिस्ट इन्फॉर्मेशन सेंटर यानी बुंदेलखंड सांस्कृतिक एवं पर्यटन सूचना केंद्र की स्थापना की गई है, जिसका सुचारू रूप से संचालन शीघ्र ही होने जा रहा है।
झाँसी के यशस्वी सांसद डॉ० अनुराग शर्मा द्वारा बुंदेलखंड विश्वविद्यालय परिसर में पंडित डॉ० विश्वनाथ शर्मा बुंदेलखंड विरासत संस्थान, झाँसी यानी पंडित डॉ० विश्वनाथ शर्मा बुंदेलखंड हेरिटेज इंस्टीट्यूट की स्थापना की गई है, जिसके भवन निर्माण का कार्य चल रहा है। इस संस्थान में बुंदेलखंड के ज्ञान-विज्ञान की समस्त शाखाओं का अध्ययन-अध्यापन और शोध किया जाना है। इसमें बुंदेलखंडी इतिहास, बुंदेलखंडी लोकगीत, बुंदेलखंडी भाषा, बुंदेलखंडी साहित्य, बुंदेलखंडी संस्कृति, बुंदेलखंडी स्मारक, बुंदेलखंडी पर्यटन, बुंदेलखंडी व्यंजन, बुंदेलखंडी वास्तुकला, बुंदेलखंडी हस्थशिल्प कला आदि विधाओं में डिग्री, डिप्लोमा कोर्स प्रस्तावित हैं। इस इंस्टीट्यूट में संचालित कोर्सों से विद्यार्थियों को बुंदेलखंडी लोक, कला, भाषा, साहित्य, संस्कृति, पर्यटन, इतिहास और बुंदेलखंडी ज्ञान परम्परा का अध्ययन कर करेंगे और भारतीय ज्ञान परंपरा में बुंदेलखंड के योगदान पर गर्वित होंगे।
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के प्रावधान प्रोफेसर ऑफ प्रैक्टिस के अनुसार विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में विषय विशेषज्ञों को प्रोफेसर नियुक्त किया जा सकता है। यदि बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झाँसी, बुंदेलखंड कॉलेज झाँसी और पंडित डॉ० विश्वनाथ शर्मा बुंदेलखंड हेरिटेज इंस्टीट्यूट जैसे उच्च शिक्षा संस्थानों में बुंदेलखंडी ज्ञान परंपरा के जानकार, बुंदेली के विद्वानों, परामर्शदाताओं को असिस्टेंट प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर और प्रोफेसर जैसे अकादमिक पदों और विभागाध्यक्ष, निदेशक या उपनिदेशक जैसे प्रशासनिक पदों पर और बुंदेलखंड कल्चरल एंड टूरिस्ट इन्फॉर्मेशन सेंटर और केशवदास बुंदली अकादमी में भी निदेशक या उपनिदेशक जैसे प्रशासनिक पदों और अन्य पदों पर नियुक्त किया जाएगा तभी हम बुंदेलखंड और बुंदेली के साथ न्याय कर पाएँगे।
©️ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज'
(बुंदेली-बुंदेलखंड अधिकार कार्यकर्त्ता)
झाँसी, अखंड बुंदेलखंड
10/02/2025 _ 11:19रात
Comments
Post a Comment