लखनलाल पाल की कहानी 'पेंशन' पर कुशराज की टिप्पणी
अखंड बुंदेलखंड के प्रतिष्ठित किसान कथाकार डॉ० लखनपाल पाल जी की कहानी 'पेंशन' बुंदेलखंड के गॉंवों में व्याप्त विभिन्न सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक और शैक्षिक समस्याओं को उजागर करते हुए बुंदेलखंडी समाज, संस्कृति और भाषा का जीवंत दस्तावेज पेश करती है। 'पेंशन' कहानी में चार मुख्य पात्र हैं - झुन्नो दाई, गनेसा की माँ, गनेसा और सरपंच। इस कहानी में दो गौण पात्र हैं - गनेसा के पिता और सरपंचिन। यह कहानी नायिका प्रधान कहानी है और इसकी कथानायिका है गनेसा की माँ। यह कहानी की पूर्वदीप्ति शैली में लिखी गई है और इसकी भाषा आम बोलचाल की हिन्दी है, बुंदेली के संवाद इसकी सम्प्रेषणीयता की शक्ति को बढ़ाकर इसे अत्यंत प्रभावी कहानी बनाते हैं।
'पेंशन' कहानी की शुरूआत में बुंदेलखंड की पलायन की समस्या का चित्रण गनेसा के माध्यम से किया गया है। 'गनेसा' अपने परिवार की आर्थिक तंगी की बदौलत गाँव से दूर परदेश में मजदूरी करने जाता है और फिर कुछ समय बाद कमाई करके फैशन वाले कपड़े पहने आधुनिक युवा बनकर गॉंव वापिस लौटता है तो वो हमें 'गोदान' के 'गोबर' की याद दिलाता है। गनेसा और गोबर दोनों का स्वभाव भी एक जैसा ही है - विद्रोही स्वभाव। लेकिन गनेसा की माँ और गोबर की माँ में जमीन-आसमान का अंतर है।
इस कहानी में भुखमरी और गरीबी की समस्या को प्रमुख रूप से उठाया गया है। गनेसा की माँ अपने बच्चे गनेसा की भूख मिटाने और अपने बीमार पति का इलाज कराने हेतु दिनरात मजदूरी करती है। गरीबी और बदहाल शिक्षा व्यवस्था के कारण गनेसा कक्षा पाँचवी तक ही पढ़ पाया था। उस समय सरकार 'गरीबी हटाओ' योजना चला रही थी लेकिन शिक्षा पर उतना ध्यान नहीं दे रही थी। वर्तमान समय में सरकार 'सबको शिक्षा' के मिशन पर काम कर रही है इसलिए आज के समय में गनेसा भी पढ़ सकता है। पाँचवी के बाद गनेसा ने पढ़ाई छोड़ दी थी और वह उस समय मेहनत-मजदूरी का काम करने लायक नहीं था तो उसकी माँ ने उसे सरपंच के यहाँ भैंसें चराने के काम पर लगवा दिया था। उसे भैंसें चराने के काम के बदले सिर्फ रोटियाँ ही मिलती थीं...।
इस कहानी में भ्रष्टाचार की समस्या को सरपंच के कारनामों के माध्यम से उजागर किया गया है। जब युवा गनेसा सरपंच की भैंसें चराने का काम ना करने का मन बनाता है तो सरपंच गनेसा की अशिक्षित और गरीब माँ को पेंशन बंधवाने की लालच देता है तब माँ सरपंच की बात मानकर गनेसा को भैंस चराने हेतु फिर से तैयार कर लेती है। सरपंच अपना वचन निभाता है और गनेसा की माँ की विधवा पेंशन बँधवा देता है। जबकि गनेसा के पिता जीवित थे। गनेसा की माँ के पेंशन के पहली बार एक साथ अट्ठारह सौ रुपए आए तो सरपंच ने उसमें से एक हजार रिश्वत के रूप में ले लिए। आठ सौ रुपए में गनेसा की माँ ने राशन खरीदा। जब झुन्नो दाई ने गनेसा की माँ से पेंशन के बारे में उससे पूँछताछ की तो उसने कहा - "काकी भूख विधवा-सधवा नईं दिखत। ये सारे चोंचले तो भरे पेट वालों के हैं। हमारे जिन्नगी में विधवा-सधवा की लछमन रेखा कहां है?" गनेसा की माँ ने बिल्कुल सही जवाब दिया। गरीबी से उबरने हेतु जनता को गनेसा की माँ जैसा बनना चाहिए।
लखनलाल जी को समसामयिक समस्याओं - गरीबी, भुखमरी, अशिक्षा, पलायन, भ्रष्टाचार और प्रशासन की नाकामी को चित्रित करती सशक्त कहानी 'पेंशन' लिखने हेतु और इस कहानी को पुरवाई के संपादक तेजेंद्र शर्मा जी को भौत-भौत बधाई।
©️ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज'
(युवा आलोचक)
१७/११/२०२४, झाँसी