Thursday 29 August 2024

युवा पीढ़ी को प्रेम के साथ ही शिक्षा के महत्त्व का संदेश देती है कुशराज की कहानी 'घर से फरार जिंदगियाँ' - डॉ० रिंकी रविकांत

कुशराज के कहानी-संग्रह 'घर से फरार जिंदगियाँ' की समीक्षा...


*** युवा पीढ़ी को प्रेम के साथ ही शिक्षा के महत्त्व का संदेश देती है कुशराज की कहानी 'घर से फरार जिंदगियाँ' ***


©️ डॉ० रिंकी रविकांत

(युवा समीक्षक - कोटा, राजस्थान)

     28 अगस्त 2024



                 

भारत में गरीबी और अमीरी के मध्य झूलता हुआ एक और वर्ग है मध्यम वर्ग। अमीर वेपरवाह होता है क्योंकि हरेक सुविधा उसके पास है उसे किसी चीज का फर्क नहीं पड़ता। गरीब लापरवाह इसलिए होता हैं क्योंकि जब सुविधाएँ ही नहीं तो क्या करना। ‘गरीब’ तो है ही ‘गरीब’, उसे दिखावे की आवश्यकता नहीं पड़ती पर मध्यम वर्ग को हमेशा दिखावे के चक्कर में झंझावातों से जूझना पड़ता है। सरकार भी अमीरों को और ‘अमीर’ करती रहती है या यूँ कहें कि उसकी सभी योजनाएँ सिर्फ ‘अमीरों’ और ‘गरीबों’ के लिए होती हैं। मध्यम वर्ग यहाँ भी मात खा जाता है। जब देश चलाने वाली सरकार ही इस वर्ग की परवाह नहीं करती तो उसे किसी और से क्या उम्मीद ?



इस मध्यम वर्ग ने कई उत्कृष्ट लेखक दिए या कई लेखक ऐसे हुए जिन्होंने इस मध्यम वर्ग के संघर्ष को रचना का विषय बनाया और अमर हो गए। यथा मिथिलेश्वर, कमलेश्वर, रामदरश मिश्र, अमरकान्त, राजेन्द्र यादव, महेन्द्र भीष्म आदि। आज की युवा पीढ़ी जिस घुटन और संत्राश से जूझ रही उसको युवा लेखकों ने भी आदर्श के बिना आवरण में लपेटे यथार्थ ही चित्रित करना प्रारंभ कर दिया। इस नई पीढ़ी के युवा और उभरते बहुमुखी प्रतिभा के धनी लेखक कुशराज भी अपनी कहानियों में इसी संघर्ष से जूझते हुए नजर आते हैं। 



‘घर से फरार जिंदगियाँ’ उनका कहानी-संग्रह है। जिसकी कहानियों के पात्र हमारे आस-पास के ही हैं। ‘रीना’ कहानी में जब लेखक कहता है कि - “ये बकरियाँ ही उनकी गायें थीं…” तब मन बड़ा उद्विग्न हो जाता है। यहाँ ‘गोदान’ के होरी की एक गऊ पालने की लालसा याद आती है परन्तु आज का किसान कदाचित और विपन्नता को प्राप्त हो चुका है तभी तो वह बकरियों को ही गाय मानने पर विवश है। कहानी बहुत कुछ घटना क्रम को समेटे हुए आगे बढती है मसलन… लड़की का विवाह आ गया, डेढ़ लाख दहेज़ देना है... दहेज की व्यवस्था हो गई और विवाह भी... ये सभी घटनाक्रम इतनी शीघ्रता से घटित होते हैं कि बात कुछ अधूरी सी प्रतित होती है। जब लेखक कहता है “एक साल के अन्दर पिंकी का पति भी उसकी मारपीट करने लगता है।” उसे लिखना था - ‘उससे मारपीट करने लगता है।’ आंचलिक भाषा के प्रयोग से वाक्य-विन्यास गड़बड़ा जा रहे। जब हम देखते हैं कि करन की नौकरी छूट गई बल्कि यूँ कहें कि छुड़ा दी गई; वो भी ग्राम प्रधान द्वारा ही। रसूख यहाँ भी काम आयी। निरीह पिता शिम्मू जो स्वयं की बेटी के विवाह के लिए तो कर्जदार बन गया पर बेटे के विवाह में उसे एक फूटी कौड़ी भी दहेज में नसीब नहीं हुआ। हाय रे! दुर्भाग्य कि नियति ने उसे तब भी नहीं बख्शा… और लेनदार से रोज-रोज की जलालत झेलता शिम्मू आख़िरकार मौत को गले लगा लेता है। इस गद्यांश में भी ‘गालीगलौच’ की बजाय ‘गालीगलौज’ और ‘टेंशन’ की बजाय ‘तनाव’ का प्रयोग होना चाहिए था। जिन विपत्तियों से ये परिवार दो चार हो रहा था उसे महज कल्पना प्रसूत नहीं कहा जा सकता वरन ये भारतीय समाज के एक बहुत बड़े वर्ग का कटु सत्य है।



‘सोनम एक बहादुर लड़की’ कहानी भी यथार्थबोध से अभिप्रेरित कहानी है। बगल में लेटी ‘पहली शिकार’ के होते हुए अजय व्हाट्सएप से ‘दूसरी का शिकार’ करने में व्यस्त है। खाना बनाने वाली को ‘आंटी’ तो कह लेता है पर उसे भी बिस्तर तक ले आता है। पाठक वर्ग अजय के चरित्र से वाकिफ हो जाता है कि अजय की प्रेमिका जिसे प्रेम समझ रही थी दरअसल वो वासना थी। कई बार ‘प्रेम’ के विषय में बहसे होती है और ‘ऐहिक प्रेम महज एक छलावा’ कह के लोग इसका मजाक भी उड़ाते हैं। आज की कुछेक बौद्धिक पीढ़ी को लगता है कि प्रेम में देह न मिले तो प्रेम कैसा? यही वजह है कि प्रेम को ‘ऐहिक’ छोड़ अब ‘दैहिक’ बना दिया गया। क्या विडंबना है इस जीवन की तीन बच्चों की उस माँ को खाना बनाने के तो डेढ़ हजार और हमबिस्तर होने के तीन हजार मिल रहे। धन्य हो हमारी गर्त में जा रही संस्कृति। भले ही कुशराज इस कहानी को लिखने के लिए किसी के निशाने पर आ जाये पर इस कहानी को लिखने का साहस दिखाने के लिए मैं उन्हें शाबासी देती हूँ।



इस कहानी में भी अजय के लिए ‘उससे’ की बजाय ‘इससे’ सच्चा प्यार और ‘हवस की आग’ की बजाय ‘हवस की प्यास’ बुझा रहा था जैसे शब्दों का प्रयोग खटकता है। नारीवादी विचारधारा की मेघा जब कहती है- “ये भारत देश है... जहाँ बारह वर्ष से कम उम्र की लड़की से रेप करने पर अत्याचारी को फाँसी की सजा सुनाई जाती है और बाकि स्त्रियों से दुष्कर्म करने पर पापी को छोटी मोटी सजा सुनाकर छोड़ दिया जाता है…” ये हमारी लचर कानून व्यवस्था पर गहरा तंज है। इसके बाद का जो पूरा घटना क्रम है वह पूरा का पूरा ‘फिल्मी’ लगता है। कानून हाथ में लेने वाली सोनम का ‘राष्टीय नारी सम्मान’, ‘नोबेल शांति पुरस्कार’ यहाँ तक की ‘भारत रत्न’ तक पा लेना अतिशयोक्तिपूर्ण लगता है। लेखक को ऐसे कल्पना प्रसूत और अतिशयोक्तिपूर्ण वातावरण के निर्माण से बचना चाहिए।     



‘पंचायत’ कहानी में भी कथा सूत्र में तारतम्यता की कमी है... घटनाएँ बहुत जल्दी-जल्दी घटित करने की कमी यहाँ भी दिखती है। ‘भूत’ कहानी के पहले ही गद्यांश में ‘घुसे’ और ‘स्मैल’ शब्दों का प्रयोग खटकता है... पूरी कहानी भूतों और तांत्रिकों के बीच घटती है। आदिकालीन हिंदी साहित्य को पढ़ने वाले सिद्धों और नाथों के चमत्कारिक घटनाओं से परिचित हैं। सिद्धों और नाथों के चमत्कारों की ही भांति रमशु कक्का के झाड़-फूंक को महज अंधविश्वास नहीं कहा जा सकता। ‘तीन लौंडे’ एक ऐसा प्रयोग है जिसके असफल होने के पूर्ण आसार हैं। अधूरी और लापरवाह किस्म की इस तरह के लेखन से लेखक को बचने की आवश्यकता है। मैं इसे एक बचकाना प्रयोग कहूँगी।



‘घर से फरार जिंदगियाँ’ हरेक मामले में इस कथा-संग्रह की सफल कहानी है। साक्षी और हर्ष के अंतरजातीय विवाह की समाज में स्वीकृति, असफल प्रेम से इतर हर्ष का ‘फॉरेंसिक इंस्पेक्टर’ पद पर चयन होना प्रेम की पराकाष्ठा को दिखाता है। समाज और धर्म के ठेकेदारों की परवाह किए बगैर प्रेमी युगल का अपने फैसले पर अडिग रहना। कोई भी गलत कदम उठाने की वजाय जीवन में मेहनत करके सफल होना आदि ऐसे कारण बन जाते हैं जिससे उनके अंतरजातीय प्रेम को सामाजिक स्वीकृति मिल जाती है। युवा पीढ़ी को प्रेम के साथ ही शिक्षा के महत्त्व का संदेश देने वाले कुशराज को बधाई।



‘मजदूरी’ कहानी की बात करें तो इसमें भी कथा सूत्रों में बिखराव नजर आता है वहीँ ‘प्रकृति’ एक अच्छी कहानी है। ‘पुलिस की रिश्वत खोरी’ में कहने को कुछ बचा ही नहीं। कहानी शीर्षक से ही अपने बारें में सब कुछ कह जाती है।



‘हिंदी: भारत माता के माथे की बिंदी’ कहानी में वर्तमान प्रधानमंत्री माननीय नरेन्द्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हिन्दी के प्रति समर्पण और उनके द्वारा किए गए कार्यों की सराहना की गई है। अंतिम कहानी ‘अंतिम संस्कार’ भी एक बदलाव पेश करती है।



चूँकि लेखक ने इन कहानियों के साथ तारीखों आदि का भी विवरण पेश किया है। उससे यह ज्ञात होता है कि संभवतः उम्र एक कारण रहा है इन कहानियों की अपरिपक्वता का। आज कुशराज अच्छा लिख और पढ़ रहे। वे एक संवेदनशील और मृदुभाषी प्राणी हैं। संवेदनशील मनुष्य ही अच्छा सृजन कर सकता है क्योंकि संवेदनाहीन मनुष्य मनुष्य कहलाने लायक ही नहीं होता। जिसमें भावना नहीं वो क्या साहित्य सृजन करेगा? बौद्धिक कुशराज की कुछ कहानियाँ कहानी के शिल्प की दृष्ठि से असफल अवश्य हैं परन्तु उनका पहला कहानी संग्रह है तो उसका यथेष्ट स्वागत किया जाना चाहिए और भविष्य में उनसे अच्छी कहानियों की उम्मीद की जा सकती है।   


पुस्तक - घर से फरार जिंदगियाँ

विधा - कहानी

लेखक - कुशराज झाँसी

प्रकाशन - दिसंबर 2023

प्रकाशक - लॉयन्स पब्लिकेशन, ग्वालियर

मूल्य - ₹150

अमेजन लिंक - Ghar Se Farar Zindagiyan https://amzn.in/d/dx8vSP5



Friday 16 August 2024

हिन्दी चेतना / विविधा (ऑनलाइन पत्रिका) में 15 अगस्त 2024 को डॉ० रामदरश मिश्र जी की जन्मशती पर प्रकाशित "डॉ० रामदरश मिश्र से साक्षात्कार - शिवजी श्रीवास्तव" पर कुशराज की प्रतिक्रिया...

*** हिन्दी चेतना / विविधा  (ऑनलाइन पत्रिका) में 15 अगस्त 2024 को डॉ० रामदरश मिश्र जी की जन्मशती पर प्रकाशित "डॉ० रामदरश मिश्र से साक्षात्कार - शिवजी श्रीवास्तव" पर कुशराज की प्रतिक्रिया *** 


इस लिंक पर क्लिक करके आप साक्षात्कार पढ़ सकते हैं - 

https://www.hindichetna.com/%e0%a4%a1%e0%a5%89-%e0%a4%b0%e0%a4%be%e0%a4%ae%e0%a4%a6%e0%a4%b0%e0%a4%b6-%e0%a4%ae%e0%a4%bf%e0%a4%b6%e0%a5%8d%e0%a4%b0-%e0%a4%b8%e0%a5%87-%e0%a4%b8%e0%a4%be%e0%a4%95%e0%a5%8d%e0%a4%b7%e0%a4%be/?fbclid=IwY2xjawEsLypleHRuA2FlbQIxMQABHT-hh25CBbqiz2UiHtQ-laykbLpGiCFCBktudAi2dcmulDyLipVgP3p7wg_aem_OqbUKe4KkR63eX5SPBGG-g&sfnsn=wiwspwa


"21वीं सदी के साहित्य पर सारगर्भित साक्षात्कार। आदरणीय श्रीवास्तव जी Shivji Srivastava के सवाल जायज हैं और पूजनीय मिश्र जी के जबाव सटीक हैं। वर्तमान और भविष्य के साहित्य को अपने में अपनी संस्कृति को समाहित करके नई पीढ़ी को संस्कृति से जोड़े रखना चाहिए और समाज की तमाम समस्याओं को उठाकर उनके उचित समाधान देकर आदर्श समाज का निर्माण करना चाहिए। विश्व-ग्राम को अवधारणा को नकारते हुए 'अपना गॉंव-अपनी पहचान' की अवधारणा को अपनाना चाहिए। स्त्री-विमर्श के नाम पर स्त्री की देह-मुक्ति नाजायज है। भारतीय स्त्री-विमर्श को सावित्रीबाई फुले की विचारधारा पर चलने की परम आवश्यकता है। प्रेमचंद का दलित साहित्य तथाकथित दलित साहित्यकारों से सौ गुना बेहतर है। महात्मा जोतिबा फुले किसान थे लेकिन उन्होंने अपना सारा जीवन दलितों के कल्याण में समर्पित किया। गुलामगिरी दलित साहित्य का शिखर है। स्त्री विमर्श और दलित विमर्श पर कोई भी लिख सकता है। चाहे वो पुरूष हो या गैर दलित। जैसा हम मानते हैं कि किसी भी वर्ग के द्वारा किसान-जीवन पर लिखा हुआ साहित्य 'किसान साहित्य' है और उसे लिखने वाला 'किसान साहित्यकार'...।"


©️ कुशराज झाँसी

(किसानवादी, युवा आलोचक)

16/8/2024, झाँसी

Thursday 15 August 2024

बुंदेली ज्ञान परंपरा का गागर में सागर है कुशराज का लघुशोध '21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन' - पंडित सुमित दुबे

नरसिंहपुर निवासी 'बुंदेली आँगन' के संस्थापक, बुंदेली लोकसंस्कृतिकर्मी आदरणीय पंडित सुमित दुबे द्वारा की गई किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज' के लघुशोध-प्रबंध '21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन" की समीक्षा.....






*** बुंदेली ज्ञान परंपरा का गागर में सागर है कुशराज का लघुशोध '21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन' ***  

©️ पंडित सुमित दुबे




किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज' जी ने अपने लघुशोध '21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन' में 21वीं सदी में बुंदेली भाषा, विभिन्न क्षेत्रों में बुंदेली और बुंदेलीसेवियों के साक्षात्कार नामक तीन अध्यायों में बुंदेली ज्ञान परंपरा का गागर में सागर भरने का बेहतरीन प्रयास किया है। कुशराज जी ने अपने शोध में बुंदेली भाषा का सीमांकन, बुंदेली संस्कृति और भाषाविज्ञान के आधार पर बहुत ही खूबसूरती से विश्लेषण किया है।

 

इसमें मुहावरों और लोकोक्ति के माध्यम से बुंदेली भाषा को परिभाषित किया गया है। साथ ही बुंदेली में भी विभिन्न बोलियाँ हैं, उनकी सुंदर विवेचना की है। बुंदेली और अन्य स्थानीय भाषाओं के अस्तित्व पर आपकी पीड़ा स्वाभाविक है। आपकी बुंदेली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल न होने की पीड़ा जायज है, जो बुंदेली भाषा पर काम करने वाले हर व्यक्ति की भी है।


कुशराज जी ने इस शोध में बुंदेली लोकजीवन में लोकसंस्कृति, खानपान, रहन-सहन, लोककला, लोकगीत, पहनावा, आभूषण, त्योहारों और परंपराओं का शोधपरक अध्ययन किया है। बुंदेली साहित्य के अध्ययन में आपने बुंदेली साहित्यकार, कवि, कथाकार, आलोचक,  इतिहासकार तक पहुंचने में अच्छा प्रयास किया है।


आपने बुंदेली में सिनेमा और सिनेमा जगत और सोशल मीडिया के माध्यम से बुंदेली भाषा की लोकप्रियता का भी सूक्ष्म अध्ययन किया और उससे जुड़े लोगों को रेखांकित भी किया। अंत मे बुंदेलीसेवियों के साक्षात्कार भी बहुत बढ़िया हैं। आपके शोध-कार्य हेतु आपको बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएँ। आशा है कि यह लघुशोध-कार्य शोध अध्ययन में परिणित हो। आपका शोध शोधार्थियों के लिए सन्दर्भ ग्रंथ के रूप में उपयोगी होगा।


14/08/2024, नरसिंहपुर

(बुंदेली लोकसंस्कृतिकर्मी, लोक अध्येता, बुंदेली गायक। नरसिंहपुर, मध्य प्रदेश - अखंड बुंदेलखंड़)






Tuesday 13 August 2024

बुंदेली के महत्त्व को रेखांकित करता लघुशोध-प्रबंध '21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन' - डॉ० शिवजी श्रीवास्तव

सुप्रसिद्ध आलोचक, कथाकार, शिक्षाविद आदरणीय डॉ० शिवजी श्रीवास्तव द्वारा की गई गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज' के लघुशोध-प्रबंध '21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन" की समीक्षा.....







बुंदेली के महत्त्व को रेखांकित करता लघुशोध-प्रबंध '21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन'

©️ डॉ० शिवजी श्रीवास्तव



बुंदेली भाषा का अपना समृद्ध इतिहास है। बुंदेली में साहित्य रचने वालों की भी एक समृद्ध परंपरा है।साहित्य के प्रत्येक कालखंड में अनेक साहित्यकार बुंदेली में साहित्य-सृजन करते रहे हैं। बुंदेलखंड के लोक जीवन में भी बुंदेली घुली मिली है। शहरी क्षेत्र में भले ही बुंदेली कम बोली जाती हो किंतु ग्रामीण अंचलों में अभी भी बुंदेली का ही प्रयोग होता है।बुंदेली के संरक्षण और संवर्धन हेतु बुद्धिजीवी और बुंदेलीप्रेमियों द्वारा सतत प्रयास जारी हैं। प्रसन्नता का विषय है कि विद्यार्थी भी बुंदेली के महत्त्व को समझते हुए उसके विकास और संरक्षण की दिशा में प्रयत्नशील हो रहे हैं। श्री गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज' का लघुशोध-प्रबंध '21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन' इसी दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। बुंदेलखंड महाविद्यालय झाँसी के हिन्दी विभाग के अंतर्गत प्रो० संजय सक्सेना के निर्देशन में अत्यंत परिश्रम पूर्वक लिखा गया यह लघुशोध-प्रबंध अपने शीर्षक के ही अनुरूप वर्तमान सदी में बुंदेली के महत्त्व को रेखांकित कर रहा है।

          

          सम्पूर्ण शोध-प्रबंध को शोधार्थी ने तीन अध्यायों में विभक्त किया है। प्रथम अध्याय - '21वीं सदी और बुंदेली भाषा' को चार उपशीर्षकों में विभाजित करते हुए शोधार्थी ने सर्वप्रथम 21वीं सदी को भारत की सदी बतलाते हुए बुंदेली भाषा की उत्पत्ति और विकास की विवेचना की है। विवेचना के अंतर्गत उन्होंने तर्कपूर्ण ढंग से बुंदेली की उत्पत्ति वेदों से बतलाते हुए उसके विकास की चर्चा की है। इस अध्याय में ही बुंदेली के क्षेत्र का वर्णन करते हुए परंपरा से क्रमशः बोलचाल में, साहित्य में और राजकाज में प्रयुक्त होने वाली बुंदेली भाषा के स्वरूप को संक्षेप में दिया है। साहित्य में बुंदेली के प्रयोग के उदाहरणों में आल्हाखंड, ईसुरी की फागें और किसान कवि बजीर के साहित्य से दृष्टांत प्रस्तुत किए हैं तथा राजकाज की भाषा के उदाहरण के रूप में छतरपुर की महारानी द्वारा महारानी लक्ष्मीबाई को बुंदेली में लिखे गए ऐतिहासिक पत्र को उद्धृत किया है। इसी अध्याय के चतुर्थ उपखंड में शोधकर्त्ता ने बुंदेली की 25 ज्ञात बोलियों का उल्लेख करते हुए स्पष्ट किया है कि अन्य बोलियों का संज्ञान में आना भी अपेक्षित है।


          लघुशोध-प्रबंध के द्वितीय अध्याय - '21वीं सदी में विभिन्न क्षेत्रों में बुंदेली' के अंतर्गत दस उपखंड है जिनमें क्रमशः 21वीं सदी के समाज में/बोलचाल में, साहित्य में, संस्कृति में, शिक्षा में, पत्रकारिता में, सिनेमा में, सोशल मीडिया में, राजनीति में, राजकाज में और बाजार में बुंदेली का विवेचन उदाहरणों सहित किया गया है। आवश्यक स्थलों पर ऐतिहासिक संदर्भ और महत्त्वपूर्ण घटनाओं का भी उल्लेख किया गया है। इस अध्याय के अंतर्गत ही शोधार्थी ने बुंदेलखंड के अनेक लोक उत्सवों, लोक नृत्यों और समय-समय पर आयोजित होने वाले लोक महोत्सवों तथा बुंदेली के साहित्यकारों, पत्रकारों, कलाकारों का परिचय देते हुए बुंदेली के विकास के लिए चलने वाले योगदानों का भी वर्णन किया है।


          लघुशोध-प्रबंध के तृतीय अध्याय में साक्षात्कार हैं। इस अध्याय में बुंदेली के संदर्भ में बुंदेलखंड विश्वविद्यालय झाँसी के आचार्य प्रो० पुनीत बिसारिया, संस्कृतिकर्मी डॉ० रामशंकर भारती, साहित्यकार डॉ० रामनारायण शर्मा और फिल्म अभिनेता आरिफ शहडोली के साक्षात्कार हैं। इन सभी साक्षात्कारों में बुंदेली के वर्तमान की समस्याओं और भविष्य के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण सवाल हैं। इन सवालों में बुंदेली का भविष्य, बुंदेली शोधपीठ की स्थापना, बुंदेली साहित्य को सम्मानित करने और बुंदेली को आठवीं अनुसूची में शामिल करने जैसे विषयों के संबंध में सवाल हैं। अंतिम अध्याय उपसंहार में निष्कर्ष रूप में समस्त अध्यायों का सार भाग प्रस्तुत है।


          सम्पूर्ण लघुशोध-प्रबंध श्री कुशराज की शोध-दृष्टि, उनकी अध्ययनवृत्ति और बुंदेली के उत्थान के प्रति उनकी लगन का परिचायक है। एक बात अवश्य कहना चाहूँगा कि कुशराज जी ने लघुशोध हेतु जिस विषय का चयन किया है, उसका फलक अत्यंत विस्तृत है, वस्तुतः यह विषय शोध-ग्रंथ हेतु उपयुक्त होता। विस्तृत फलक होने के कारण अनेक स्थलों पर विषय-वस्तु परिचयात्मक होकर रह गई है। 


          इस लघुशोध-प्रबंध को देखकर यह तो कहा ही जा सकता है कि इसमें बुंदेली के भविष्य को देखने वाली अनेक खिड़कियों को खोला गया है। इन खिड़कियों से झाँककर बुंदेली के भविष्य को देखा जा सकता है। आशा है कि भविष्य में वे इसी विषय को अपने शोध का विषय बनाएंगे और विस्तार से विवेचना करेंगे। कुशराज जी में संभावनाएँ हैं। मेरी शुभकामनाएँ उनके साथ हैं।


13 अगस्त 2024, नोएडा      

(सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर - श्री चित्रगुप्त पी० जी० कॉलेज, मैनपुरी, उत्तर प्रदेश)

कुशराज झाँसी की किसान विमर्श की बदलाओकारी कविताएँ : किसानी कैप्सूल

*** कुशराज झाँसी की किसान विमर्श की बदलाओकारी कविताएँ - "किसानी कैप्सूल" ***




1.

हम किसान,

उपजाते हैं अन्न।

मिटाते हैं दुनिया की भूख,

मगर खुद भूखे रह जाते हैं।


2.

भगवान भरोसे खेती करते,

सूखा पड़े या आए बाढ़।

मुँह नहीं मोड़ेंगे,

हम खेती से।

क्योंकि हम, 

अन्नपूर्णा माँ के बेटे हैं।


3.

परंपरागत बीजों से खेती

करें किसान,

उपज भले ही हो कम,

स्वस्थ रखेंगे सबको हम।


4.

हरित क्रांति ने खेती में रसायन घोला,

उपज को कई गुना बढ़ाया,

सबकी थाली को जहरीला बनाया।


5.

हम बुंदेली किसान,

मोटे अनाज उपजाते थे।

मोटा ही खाते थे,

मोटा ही पहनते थे।

खुद तंदुरुस्त रहके,

दुनिया को हष्ट-पुष्ट बनाते थे।


6.

सरकार ने श्रीअन्न योजना चलाई है,

गाँव-गाँव परंपरागत खेती की बहार आई है।

अब हम फिर से मोटे अनाज उगाएंगे,

दुनिया को शक्तिशाली बनाएंगे।



7.

चार महीने में हमने, 

हाड़तोड़ मेहनत से,

चकाचक टमाटर उपजाया।

मंडी में आकर मट्टी हुई पलीत,

जब टमाटर औनेपौने दाम बिका।



8.

मंडी के बड़े व्यापारी ने

हमसे टमाटर

आठ रुपए किलो खरीदा।

फिर उसने ठेलेवाले को 

बारह रुपए किलो बेचा।

ठेलेवाले ने वही टमाटर 

बीस रुपए किलो बेचा।

सब विक्रेताओं ने

खूब मुनाफा कमाया।

हम अन्नदाता किसान के हाथ 

लागत मूल्य ही नहीं आया।


©️ कुशराज झाँसी

(किसानवादी विचारक, युवा लेखक)

संशोधित रचना - 12/8/2024_4:30दिन_ खुशीपुरा झाँसी



Monday 12 August 2024

कुशराज झाँसी की किसान विमर्श की बदलाओकारी कविताएँ : किसानी कैप्सूल - कुशराज झाँसी

 *** कुशराज झाँसी की किसान विमर्श की बदलाओकारी कविताएँ - "किसानी कैप्सूल" ***



(1.)

हम हैं किसान,

अन्न उपजाते हैं,

दुनिया की भूख मिटाते हैं।


(2.)

हम भगवान भरोसे खेती करते,

सूखा पड़े या आए बाढ़,

हम खेती से कभी मुँह नहीं मोड़ेंगे।


(3.)

परंपरागत बीजों से खेती करते थे हम,

तब उपज भले ही कम होती थी,

लेकिन सबको स्वस्थ रखते थे हम।


(4.)

हरित क्रांति ने खेती में रसायन घोला,

उपज को कई गुना बढ़ाया,

सबकी थाली को जहरीला बनाया।


(5.)

हम बुंदेली किसान,

मोटे अनाज उपजाते थे,

दुनिया को हष्ट-पुष्ट बनाते थे।


(6.)

सरकार ने श्रीअन्न योजना चलाई है,

अब हम फिर से मोटे अनाज उगाएंगे,

दुनिया को शक्तिशाली बनाएंगे।


(7.)

चार महीने में हमने टमाटर उपजाया,

झाँसी मंडी में हुई मट्टी पलीत,

टमाटर बिका आठ रूपया किलो।


(8.)

व्यापारी ने हमसे आठ रुपए किलो टमाटर खरीदा,

उसने बारह रुपए किलो ठेलेवाले को बेचा,

ठेलेवाले ने वही टमाटर बीस रुपए किलो बेचा।


©️ कुशराज झाँसी

(किसानवादी विचारक, युवा लेखक)

12/8/2024_6:20दिन_ जरबौगॉंव झाँसी



Wednesday 7 August 2024

'21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन' गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज' का मौलिक शोध, इसे इतिहास ग्रंथ में बदल सकता है शोधार्थी - डॉ० लखनलाल पाल

सुप्रसिद्ध कथाकार, आलोचक, बुंदेली विचारक आदरणीय डॉ० लखनलाल पाल द्वारा की गई गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज' के लघु शोध-प्रबंध '21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन" की समीक्षा.....


*** '21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन' गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज' का मौलिक शोध, इसे इतिहास ग्रंथ में बदल सकता है शोधार्थी ***





'21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन' लघु शोध है। इस शोध को गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज' ने अपने कठिन परिश्रम से पूरा किया है। इस शोध में कुशराज ने 21वीं सदी की बुंदेली के विकास एवं उसकी विभिन्न क्षेत्रों में स्थिति का सम्यक विवेचन किया है। इसके लिए विभिन्न ग्रंथों एवं बुंदेली से जुड़े विद्वानों के साक्षात्कार किए हैं। इस सदी से जुड़े लोग वे चाहे साहित्यकार हों, भाषाविद हों या सिनेमा से संबंधित हों उनके योगदान को रेखांकित करने का प्रयास किया गया है। बुंदेली साहित्य और उसके उन्नयन पर केंद्रित यह लघुशोध एक आशा जगाता है कि जिसके लिए लोगों में एक टीस है। बुंदेली भी अन्य भाषाओं की तरह समादृत हो। इसे भी आठवीं अनुसूची में रखा जाए, बहुत से लोग ऐसा चाहते हैं। पर ऐसा संभव नजर नहीं आता है। शोधार्थी में इसके प्रति कुछ छटपटाहट ज्यादा ही दिखती है। 


इस ग्रंथ में कुशराज ने बहुत कुछ समेटने का प्रयास किया है किन्तु सभी को समेटा नहीं जा सका है। इसमें शोधार्थी का मैं दोष नहीं मानता हूँ। लघु शोध की अपनी एक सीमा होती है। इतना कह सकता हूँ कि इस लघु शोध को आगे चलकर शोधार्थी इतिहास ग्रंथ में बदल सकता है। मैं इसे इसलिए कह रहा हैं कि कुशराज में बहुत कुछ करने की उतावली दिखती है। शोधार्थी ने यह शोध केवल परीक्षा में अच्छे अंक प्राप्त करने के लिए इधर-उधर की सामग्री लेकर इतिश्री नहीं की है वरन् इस पर ढंग से काम किया है। अपनी बात को सिद्ध करने के लिए उपयुक्त संदर्भ ग्रंथों का हवाला दिया है। भाषा उसकी अपनी है, इसी कारण यह शोध मौलिक प्रतीत होता है। है भी, इसमें कोई संदेह नहीं है। शोधार्थी के बारे में अभी से भविष्यवाणी करना उचित तो नहीं होगा पर मैं आशान्वित हूँ कि शोधार्थी भविष्य में बुंदेली के उन्नयन के लिए काम करेगा। शोधार्थी के इस कार्य के लिए मैं बधाई देता हूँ।


     समीक्षक - 

©️ डॉ० लखनलाल पाल

     (कथाकार, बुंदेली विचारक)

         उरई, जालौन, अखंड बुंदेलखंड़ - 285001

  23/7/2024, उरई




Tuesday 6 August 2024

बुंदेलखंड़ कॉलेज, झाँसी (बुंदेलखंड़ विश्वविद्यालय, झाँसी) की 'परास्नातक हिन्दी' उपाधि हेतु प्रस्तुत लघु शोध-प्रबंध "21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन" का 'उपसंहार' - किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज' (बुंदेली-बुंदेलखंड अधिकार कार्यकर्त्ता, युवा लेखक, इतिहासकार - सीसीआरटी, संस्कृतमंत्रालय, भारत सरकार एवं संस्थापक - अखंड बुंदेलखंड महाँपंचयात, झाँसी)

बुंदेलखंड़ कॉलेज, झाँसी (बुंदेलखंड़ विश्वविद्यालय, झाँसी) की 'परास्नातक हिन्दी' उपाधि हेतु प्रस्तुत लघु शोध-प्रबंध "21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन" का 'उपसंहार' -



हमने ‘21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन’ नामक विषय पर शोध किया तो हमने पाया कि बुंदेली भाषा ‘अखंड बुंदेलखंड’ में प्रचलित मुख्य भाषा है, जिसकी लगभग 25 बोलियाँ भी प्रचलित हैं। बुंदेली अति प्राचीन भाषा है। जिसकी आदिजननी ‘संस्कृत’ है लेकिन जननी ‘अपभ्रंश’। 12वीं सदी में महाकवि जगनिक द्वारा रचित ‘आल्हा’ बुंदेली की पहली रचना है और इसी से बुंदेली साहित्य की शुरूआत हुई। ‘आल्हा’ को विश्व की सबसे बड़ी लोकगाथाओं में शामिल होने का गौरव प्राप्त है। लोकगाथा ‘आल्हा’ बुंदेलखंड के गॉंव-गॉंव में गाई जाती है। जगनिक के बाद महाकवि ईसुरी सबसे लोकप्रिय कवि हुए हैं, जिनकी फांगें लोक में बहुत प्रचलित हैं। इसी के साथ बुंदेली गद्य साहित्य में लोककथाओं, कहानियों, नाटकों आदि और लोकसाहित्य का बुंदेली भाषा के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान रहा है। 


21वीं सदी बुंदेली के लिए ‘स्वर्णयुग’ साबित हो रही है। वर्तमान में बुंदेली देहाती बुंदेलखंड और शहरी बुंदेलखंड में बोलचाल की भाषा है। समाज में बोलचाल बुंदेली में ही होता है। इसी के साथ बुंदेली भाषा का ज्ञान-विज्ञान के अनेक क्षेत्रों जैसे- साहित्य, संस्कृति, शिक्षा, पत्रकारिता, सिनेमा, सोशल मीडिया आदि में प्रयोग किया जा रहा है।


21वीं सदी में बुंदेली साहित्य की अनेक पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है और आगे भी होगा क्योंकि अपनी भाषा में लेखन करना हर साहित्यकार अपना कर्त्तव्य समझ रहा है। 21वीं सदी के डॉ० रामनारायण शर्मा, डॉ० श्याम सुंदर दुबे, डॉ० बहादुर सिंह परमार, डॉ० रामशंकर भारती, डॉ० शरद सिंह, कुशराज आदि प्रमुख बुंदेली साहित्यकार हैं। बुंदेली संस्कृति की ओर नई पीढ़ी फिर से लौट रही है। राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के आने से प्राथमिक शिक्षा बुंदेली माध्यम में दिया जाना संभव हो सका है। डॉ० हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर, बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी, महाराजा छत्रसाल बुंदेलखंड़ विश्वविद्यालय, छतरपुर आदि विश्वविद्यालयों में स्नातक और परास्नातक स्तर पर बुंदेली भाषा का अध्ययन-अध्यापन किया जा रहा है और बुंदेली पर शोध भी हो रहे हैं। इस सदी में ईसुरी, चौमासा, खबर लहरिया, बुंदेली बसंत, बुंदेली दरसन, बुंदेली अर्चन, बुंदेली बौछार, बुंदेली चुगली, बुंदेली वार्ता आदि पत्र-पत्रिकाओं ने बुंदेली को देश-दुनिया में जन-जन तक पहुँचाया है। इसी के साथ कन्हैया कैसेट, सोना कैसेट, बुंदेलखंड रिसर्च पोर्टल, बुंदेली झलक आदि वेबपोर्टलों ने भी बुंदेली के विकास में अहम भूमिका निभाई है। 


इस सदी में प्रथा, किसने भरमाया मेरे लखन को, ढ़डकोला, जीजा आओ रे, किसान का कर्ज, घरद्वार, एसडीएम पत्नी, गुठली लड्डू आदि बुंदेली फिल्मों और भाबी जी घर पर हैं, हप्पू की उलटन-पलटन आदि धारावाहिकों ने बुंदेली सिनेमा के विकास में ऐतिहासिक भूमिका निभाई है। 21वीं सदी में राजा बुंदेला, राम बुंदेला, सुष्मिता मुखर्जी, आशुतोष राणा, योगेश त्रिपाठी, आरिफ शहड़ोली, देवदत्त बुधौलिया, हरिया भैया, जित्तू खरे बादल, कक्कू भैया, मिसप्रिया बुंदेलखंडी आदि प्रमुख बुंदेली फिल्मकार हैं। 


इस सदी में राजनीति में भी बुंदेली का प्रयोग हो रहा है। यहाँ तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी भी बुंदेलखंड़ में जनसभाओं को बुंदेली में ही संबोधित करते हैं। इस सदी में सोशल मीडिया जैसे - यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप आदि ने बुंदेली को देश-दुनिया के कोने-कोने में पहुँचाने में अहम भूमिका निभाई है। यूट्यूब के माध्यम बुंदेली फिल्में और बुंदेली खबरें प्रसारित हो रहीं हैं। फेसबुक के माध्यम से बुंदेली रचनाएँ प्रकाशन में आ रहीं हैं। सचिन चौधरी, डॉ० शरद सिंह, जित्तू खरे बादल, कक्कू भैया, मिसप्रिया बुंदेलखंडी, कुशराज, शिवानी कुमारी, बिन्नूरानी आदि प्रमुख रूप सोशल मीडिया पर सक्रिय बुंदेलीसेवी हैं। 


21वीं सदी में बुंदेली भाषा को संविधान ‘भारत विधान’ की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की माँग जोरों पर है। सरकार को अब बुंदेली को आठवीं अनुसूची में शामिल कर देना चाहिए क्योंकि अब बुंदेली का प्रयोग ज्ञान-विज्ञान के हर क्षेत्र में बहुतायात हो रहा है। साथ ही बुंदेलखंड के साथ भाषाई-न्याय तभी हो सकेगा जब बुंदेली आठवीं अनुसूची में शामिल हो जाएगी। इसके साथ ही ‘अखंड बुंदेलखंड़’ की राजभाषा भी बुंदेली को बनना जरूरी है।चार बुंदेलीसेवियों के साक्षात्कार भी हमने इस शोध में शामिल किए हैं। शिक्षाविद् प्रो० पुनीत बिसारिया ने कहा कि पाठ्यक्रमों में बुंदेली भाषा और साहित्य शामिल हो। विश्वविद्यालयों में बुंदेली पीठ स्थापित हों और बुंदेली फिल्मों का अखिल भारतीय स्तर पर सिनेमाघरों में प्रदर्शन हो। संस्कृतिकर्मी डॉ० रामशंकर भारती ने कहा कि बुंदेली संस्कृति को पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। बुंदेली भाषा संविधान की आठवीं अनुसूची में दर्ज हो ताकि कालांतर में बुंदेली बुंदेलखंड की राजभाषा के रूप में स्वीकार्य हो सके। आलोचक डॉ० रामनारायण शर्मा ने कहा कि बुंदेली में आत्मकथा, जीवनी जैसी विधाओं में भी सृजन होना चाहिए। आठवीं अनुसूची में बुंदेली के शामिल होने से प्रशासनिक प्रतियोगी परीक्षाओं में बुंदेली को मान्यता मिलेगी और युवा अपनी भाषा के माध्यम उच्च पदों पर चयनित हो सकेंगे। अभिनेता आरिफ शहड़ोली ने कहा कि बुंदेलखंड़ के सिनेमाघरों में बुंदेली फिल्मों का प्रदर्शन अनिवार्य होना चाहिए। बुंदेली को बुंदेलखंड के पाठ्यक्रम में अनिवार्य कर देना चाहिए।


इस शोध में हमने अनुशंसा की है कि अखंड बुंदेलखंड़ के हर महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में बुंदेली विभाग की स्थापना हो। बुंदेली विश्वविद्यालय की स्थापना हो। बुंदेली संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल हो। बुंदेली साहित्य अकादमी की स्थापना हो। बुंदेली फिल्म सिटी की स्थापना हो। बुंदेली को उत्तरप्रदेश-बुंदेलखंड और मध्यप्रदेश-बुंदेलखंड़ की द्वितीय राजभाषा के रूप में मान्यता दी जाए।


अतः इस प्रकार हम निष्कर्ष रूप में कह सकते हैं कि 21वीं सदी में बुंदेली भाषा ज्ञान-विज्ञान के हर क्षेत्र में प्रयोग की जा रही है, इसकी देश-दुनिया में लोकप्रियता बढ़ रही है। बुंदेली के विकास और संरक्षण हेतु इसे आठवीं अनुसूची में शामिल होना ही चाहिए और विश्वविद्यालयों में बुंदेली विभाग सहित बुंदेली को समर्पित अन्य सरकारी संस्थाओं की स्थापना होनी ही चाहिए।


©️ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज'

(बुंदेली-बुंदेलखंड अधिकार कार्यकर्त्ता, युवा लेखक, इतिहासकार - सीसीआरटी, संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार एवं संस्थापक - अखंड बुंदेलखंड महाँपंचयात, झाँसी)


Friday 2 August 2024

बुंदेलखंड़ कॉलेज, झाँसी (बुंदेलखंड़ विश्वविद्यालय, झाँसी) की 'परास्नातक हिन्दी' उपाधि हेतु आचार्य सजंय सक्सेना जी के निर्देशन में प्रस्तुत लघु शोध-प्रबंध "21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन" की प्रस्तावना - किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी'

*** बुंदेलखंड़ कॉलेज, झाँसी (बुंदेलखंड़ विश्वविद्यालय, झाँसी) की 'परास्नातक हिन्दी' उपाधि हेतु आचार्य सजंय सक्सेना जी के निर्देशन में प्रस्तुत लघु शोध-प्रबंध "21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन" की प्रस्तावना ***

               




अपनी माटी, अपना देश, अपनी भाषा और अपनी संस्कृति सबको प्रिय होती है और हो भी क्यों न। जिस माटी में हम जनम लेते हैं, जिस माटी का हम अन्न-जल ग्रहण करते हैं, जिस माटी की प्रकृति से हम प्राणवायु।ऑक्सीजन ग्रहण करते हैं। उस माटी की आन-बान-शान की रक्षा करना हमारा पहला धर्म है। हमें अपनी माटी के कण-कण से लगाव होना ही चाहिए। अपनी माटी में उपजी भाषा और संस्कृति की अस्मिता बनाए रखनी चाहिए। हमें अपनी भाषा और संस्कृति को कभी भी नहीं छोड़ना चाहिए क्योंकि भाषा और संस्कृति ही हमारी दुनिया के सामने अनोखी पहचान बनाती है। अपनी भाषा और संस्कृति के बिना हमारी कोई स्वतंत्र पहचान नहीं बन सकती है। जो व्यक्ति अपनी भाषा और संस्कृति को छोड़ देते हैं और किसी पराई भाषा और संस्कृति को अपना लेते हैं, उनकी दशा गुलामों जैसी हो जाती है, उनकी कोई स्वतंत्र पहचान नहीं बचती है।


यदि हम अपनी व्यक्तिगत बात करें तो हमारी माटी बुंदेलभूमि है, जिसे 'बुंदेलखंड़' नाम से दुनिया में पहचाना जाता है। हम इसे 'अखंड बुंदेलखंड' कहते हैं। हमारी भाषा 'बुंदेली' है और मातृभाषा कछियाई है। बुंदेली अति प्राचीन भाषा है और कछियाई उसकी मुख्य बोली है। वर्तमान में बुंदेलखंड़ में 70% जनसंख्या किसानों की है इसलिए बुंदेली को हम 'किसानी' भाषा कहना उचित समझते हैं। बुंदेलीभाषियों की जनसंख्या लगभग 12 करोड़ है और अभी बुंदेली की लगभग 25 बोलियाँ प्रचलन में हैं। हमारी संस्कृति बुंदेली-संस्कृति है, जो किसानी-संस्कृति है। हमें अपनी बुंदेली माटी, बुंदेली भाषा, बुंदेलखंड राज्य और बुंदेली संस्कृति प्राणों से भी ज्यादा प्रिय है। हम अपनी बुंदेली माटी, बुंदेली भाषा और बुंदेली भाषा की रक्षा करना अपना धर्म मानते हैं। जब तक हमारी माटी, हमारी भाषा और संस्कृति की कीर्ति का परचम दुनिया में लहराता है, तभी तक हमारी कीर्ति की चर्चा होती है। इसलिए हमें अपनी भाषा और अपनी संस्कृति का प्रचार-प्रसार हर क्षण करते रहना चाहिए।


'21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन' नामक शीर्षक पर लघुशोध में हमने बुंदेली भाषा के उद्भव और विकास से लेकर 21वीं सदी के 24वें साल यानी 2024 तक ज्ञान-विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों जैसे - समाज, साहित्य, शिक्षा, संस्कृति, पत्रकारिता, सिनेमा, राजनीति, सोशल मीडिया और बाजार आदि में बुंदेली की दशा और दिशा का संक्षिप्त मूल्यांकन प्रस्तुत किया है। इसके साथ ही बुंदेली भाषा को संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल करने की अनुशंसा की है। वस्तुतः हमारा यह लघुशोध-प्रबंध 21वीं सदी के परिप्रेक्ष्य में बुंदेली भाषा का बहुआयामी संक्षिप्त इतिहास ही है।


प्रस्तुत लघु शोध-प्रबंध को पूर्ण करने में हमारे शोध-निर्देशक पूजनीय गुरूजी प्रो० संजय सक्सेना का अविस्मरणीय योगदान रहा है। अतः हम उनके प्रति भौत-भौत आभार व्यक्त करते हैं। अपने विभाग के आचार्यगणों में हम प्रो० नवेंद्र कुमार सिंह और डॉ० वंदना कुशवाहा का भी भौत-भौत आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होंने बुंदेली भाषा में शोध करने हेतु प्रेरित किया। इसके साथ ही हम प्रो० पुनीत बिसारिया, डॉ० रामशंकर भारती, डॉ० रामनारायण शर्मा और अभिनेता आरिफ शहड़ोली का भी भौत-भौत आभार व्यक्त करते हैं, जिन्होंने साक्षात्कार देकर हमारे शोध की गुणवत्ता और विश्वसनीता में श्रीवृद्धि की। हम बुंदेलीभाषी जनता के प्रति भी भौत-भौत आभार व्यक्त करते हैं, जो बुंदेली भाषा को जीवंत बनाए हुए है। अंत में हम उन सब बुंदेलीसेवियों के प्रति भौत-भौत आभार जिनके ग्रंथों और बौद्धिक संपदा का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से हमने सहयोग लिया है।    

                                       

©️ गिरजाशंकर कुशवाहा     

(शोधार्थी - हिन्दी विभाग, बुंदेलखंड कॉलेज, झाँसी)     

12 जून 2024, झाँसी


नीचे दी गई लिंक पर जाकर आप बुंदेलखंड कॉलेज, झाँसी में हमारे विद्यार्थी जीवन के बारे में आप पढ़ सकते / सकती हैं - 👇

https://kushraaz.blogspot.com/2024/08/21.html


#बुंदेलखंडमहाविद्यालय #बुंदेलखंडकॉलेज #बुंदेलखंडकालिज #बीकेडी #झाँसी #बुंदेलखंडविश्वविद्यालय #बुंदेलखंड #अखंडबुंदेलखंड #परास्नातक #हिन्दी #भाषा #साहित्य #बुंदेली #शोधार्थी #किसानगिरजाशंकरकुशवाहा 

#BundelkhandCollege #BundelkhandMahavidyalaya #BKD_Jhansi #BKD #Jhansi #BundelkhandUniversity #Bundelkhand #AkhandBundelkhand #PostGraduate #Hindi #Language #Literature #Bundeli #ResearchScholar #KisanGirjaShankarKushwaha

बुंदेलखंड कालिज, झाँसी से लघुशोध "21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन" और महाविद्यालय में सर्वोच्च स्थान के साथ हमने परास्नातक 'एम०ए० हिन्दी' की उपाधि अर्जित की - किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 'कुशराज झाँसी'

 *** बुंदेलखंड कालिज, झाँसी से लघुशोध "21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन" और महाविद्यालय में सर्वोच्च स्थान के साथ हमने परास्नातक 'एम०ए० हिन्दी' की उपाधि अर्जित की ***



दिल्ली विश्वविद्यालय के विश्वप्रसिद्ध महाविद्यालय 'हंसराज कॉलेज, दिल्ली' से स्नातक 'बी०ए० (ऑनर्स) हिन्दी' की उपाधि अर्जित करने के बाद वैश्विक कोरोना महामारी में हम घर लौट आए। फिर अपने गॉंव जरबौ में घर पर रहकर सिविल सेवा की तैयारी की और साथ ही लेखन-कार्य भी करते रहे। इसी बीच 'बुंदेलखंड कालिज, झाँसी' से कानून स्नातक की उपाधि अर्जित की। 


कानून स्नातक के दौरान सुप्रसिद्ध शिक्षाविद, आलोचक, हिन्दी विभाग - बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी के पूर्व अध्यक्ष एवं बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति, झाँसी के अध्यक्ष पूजनीय गुरूजी आचार्य पुनीत बिसारिया का सान्निध्य मिला और उन्होंने हमारी लेखन-प्रतिभा को पहचानकर बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति की योजना 'गुमनाम से नाम की ओर' के अन्तर्गत हमारी पहली किताब - 'पंचायत' (हिन्दी कहानी-कविता संग्रह) अनामिका प्रकाशन, प्रयागराज से प्रकाशित कराया और साहित्य की दुनिया में हमें अपनी पहचान कायम करने का मार्ग प्रशस्त किया। उन्होंने हमें हिन्दी से परास्नातक करने को भी प्रेरित किया।


बुंदेलखंड साहित्य उन्नयन समिति, झाँसी में ही हमें सुप्रसिद्ध संस्कृतिकर्मी, हिन्दुस्तानी एकेडेमी, प्रयागराज के 'एकेडेमी सम्मान' से विभूषित साहित्यकार पूजनीय गुरूजी डॉ० रामशंकर भारती का सान्निध्य मिला। उन्होंने झाँसी और बुंदेलखंड के साहित्यिक - सांस्कृतिक आयोजनों में अपने साथ सहभागिता कराई और हमारी लेखन-प्रतिभा को निखारा। इसके साथ ही उन्होंने शोध और आलोचना जगत में हमारा पदार्पण कराया। गुरूजी ने अपने आलोचना ग्रंथ 'डॉ० विनय कुमार पाठक और 21वीं सदी के विमर्श' के संपादन और सहलेखन का दायित्त्व सौंपा। यह ग्रंथ भावना प्रकाशन, दिल्ली से प्रकाशित हुआ है। आजादी के अमृत काल में गुरूजी की समकालीन विमर्शों की 75 हिन्दी कविताओं का संग्रह 'आखिर कब तक' हमारे संपादन में स्वतंत्र प्रकाशन, दिल्ली से शीघ्र ही प्रकाशित होने वाला है।


आचार्य पुनीत बिसारिया जी और डॉ० रामशंकर भारती जी की प्रेरणा से बुंदेलखंड कालिज, झाँसी के हिन्दी विभाग से परास्नातक 'एम०ए० हिन्दी' की पढ़ाई करने लगे। बुंदेलखंड कालिज, झाँसी के हिन्दी विभाग में विद्यार्थी जीवन हमारे जीवन का स्वर्णिम काल रहा। यहाँ हमें विभागाध्यक्ष आचार्य संजय सक्सेना जी ने बुंदेली काव्य, हिन्दी कथा साहित्य, स्त्री विमर्श, सिनेमा अध्ययन और पत्रकारिता प्रशिक्षण आदि प्रश्रपत्र पढ़ाए। आचार्य संजय जी द्वारा की गई प्रेमचंद के महानतम किसानवादी उपन्यास - 'गोदान' की व्यावहारिक व्याख्या और 'सिनेमा का समाज में योगदान' की विवेचना ने हमें बहुत प्रभावित किया। 


आचार्य नवेन्द्र कुमार सिंह जी ने दलित विमर्श, प्रयोजनमूलक हिन्दी, पटकथा लेखन और विशेष साहित्यकार अध्ययन - प्रेमचंद, शोध परियोजना आदि प्रश्रपत्र पढ़ाए। आचार्य नवेन्द्र जी द्वारा बताए गए 'शासकीय पत्रों के लिखने के तरीके' और 'पटकथा लेखन की रूपरेखा' ने हमें बहुत प्रभावित किया।


डॉ० वंदना कुशवाहा, श्री अनिरुद्ध गोयल, डॉ० श्याममोहन पटेल और डॉ० शिवप्रकाश त्रिपाठी शिव प्रकाश आदि सहायक आचार्यों ने हिन्दी साहित्य का इतिहास, प्राचीन एवं मध्यकालीन हिन्दी काव्य, आधुनिक हिन्दी काव्य, हिन्दी नाटक एवं प्रकीर्ण गद्य विधाएँ, बुंदेली काव्य, तुलनात्मक भारतीय साहित्य - कबीर और तिरुवल्लुवर, काव्यशास्त्र एवं साहित्यालोचन, भाषा विज्ञान आदि प्रश्नपत्र पढ़ाए।


आचार्य नवेन्द्र कुमार सिंह जी के संपादन में निकलने वाली महाविद्यालय की वार्षिक पत्रिका 'उन्नयन' में हमारी दो हिन्दी कहानियाँ सन 2023 में 'रीना' और सन 2024 में 'पंचायत' प्रकाशित हुईं। विभाग ने राष्ट्रीय युवा दिवस के अवसर पर 12 जनवरी 2024 को हमारे हिन्दी कहानी-संग्रह 'घर से फरार जिंदगियाँ' का लोकार्पण समारोह एवं परिचर्चा का आयोजन कराया।


आचार्य संजय सक्सेना जी के निर्देशन में हमने "21वीं सदी में बुंदेली : एक मूल्यांकन" नामक शीर्षक पर लघुशोध किया। लघुशोध की मौखिकी-परीक्षा 19 जुलाई 2024 को सम्पन्न हुई, जिसमें बाह्य परीक्षक के रूप में दयानंद वैदिक कालिज, उरई के प्राचार्य एवं हिन्दी विभाग के आचार्य डॉ० राजेश चंद्र पांडेय जी उपस्थित रहे। आंतरिक परीक्षक के रूप में विभागाध्यक्ष आचार्य संजय सक्सेना, आचार्य नवेन्द्र कुमार सिंह जी के साथ ही सहायक आचार्य उपस्थित रहे।



हंसराज कॉलेज, दिल्ली (दिल्ली विश्वविद्यालय, दिल्ली) और बुंदेलखंड कालिज, झाँसी (बुंदेलखंड़ विश्वविद्यालय, झाँसी) का हमारे व्यक्तित्व के निर्माण में अविस्मरणीय योगदान रहा है। इन्हीं दो कॉलेजों के योगदान की बजह से हम राजनीति, लेखन, शिक्षा, समाजसेवा, कानून, कृषि, पर्यावरण आदि क्षेत्रों में विशेष पहचान बना पाए हैं। अब तक के विश्वविद्यालयी जीवन में परिवार के सहयोग, दादा-दादी के आशीर्वाद, सहपाठी-साथियों के स्नेह एवं सहयोग और गुरूजनों के मार्गदर्शन एवं आर्शीवाद से हमारी तीन पुस्तकें - 'पंचायत', 'घर से फरार जिंदगियाँ', 'डॉ० विनय कुमार पाठक और इक्कीसवीं सदी के विमर्श', अनेक लेख और शोधपत्र प्रकाशित हो पाए हैं।


कल 31 जुलाई 2024 को हमारा 'परास्नातक हिन्दी' का अंतिम परिणाम बुंदेलखंड विश्वविद्यालय, झाँसी ने जारी किया। गुरूजनों, दादा-दादी और माता-पिता के आशीर्वाद से हमने 8.23 सी०जी०पी०ए० यानी 78.18% से बुंदेलखंड कालिज, झाँसी में सर्वोच्च स्थान के साथ 'परास्नातक हिन्दी' की उपाधि अर्जित की है। 🎓🥇🤟



हिन्दी विभाग, बुंदेलखंड कालिज, झाँसी के हम सदा ऋणी रहेंगे। हिन्दी विभाग में बिताया दो वर्ष का विद्यार्थी जीवन हमारे स्मृति पटल पर सदा अंकित रहेगा। हमें सबसे ज्यादा सहपाठियों, साथियों और जूनियरों के साथ बिताए अनोखे पल याद रहेंगे। प्रगति पथ पर अग्रसर होने हेतु कालिज से विलग होने के अवसर हम अपने पूजनीय गुरूजनों - आचार्य संजय सक्सेना, आचार्य नवेन्द्र कुमार सिंह, डॉ० वंदना कुशवाहा, श्री अनिरुद्ध गोयल, डॉ० श्याममोहन पटेल और डॉ० शिवप्रकाश त्रिपाठी को सत-सत नमन करते हैं और उनका भौत-भौत आभार भी व्यक्त करते हैं।


©️ किसान गिरजाशंकर कुशवाहा 

'कुशराज झाँसी'

(एम०ए० हिन्दी - बुंदेलखंड कालिज, झाँसी)

01/08/2024,10:15 रात, झाँसी


#बुंदेलखंडमहाविद्यालय #बुंदेलखंडकॉलेज #बुंदेलखंडकालिज #बीकेडी #झाँसी #बुंदेलखंडविश्वविद्यालय #बुंदेलखंड #अखंडबुंदेलखंड #परास्नातक #हिन्दी #भाषा #साहित्य #बुंदेली #विद्यार्थीजीवन #किसानगिरजाशंकरकुशवाहा

#BundelkhandCollege #BundelkhandMahavidyalaya #BKD_Jhansi #BKD #Jhansi #BundelkhandUniversity #Bundelkhand #AkhandBundelkhand

#PostGraduate #Hindi #Language #Literature #Bundeli #StudentLife #KisanGirjaShankarKushwaha

विजयादशमी 12 अक्टूबर 2024 से प्रकाशित पोलिटिकल बाजार के नए स्तम्भ 'कवि और कविताएँ' पर कुशराज की टिप्पणी

विजयादशमी 12 अक्टूबर 2024 से प्रकाशित पोलिटिकल बाजार के नए स्तम्भ 'कवि और कविताएँ' पर कुशराज की टिप्पणी - "पोलिटिकल बाजार के सं...